ऊँचा ऊँचा शत्रुंजयना शिखरो सोहाय जैन स्तवन

जैन धर्म के पवित्र तीर्थों का महत्व अपार है, और उनमें से शत्रुंजय पर्वत की महिमा अद्वितीय है। ऊँचा ऊँचा शत्रुंजयना शिखरो सोहाय जैन स्तवन भजन हमें इस पावन स्थल की दिव्यता और आध्यात्मिक ऊँचाइयों का अनुभव कराता है। यह भजन शत्रुंजय पर्वत की महिमा का गुणगान करता है, जहाँ तीर्थंकरों की अनगिनत वंदनाएँ होती रही हैं। आइए, इस स्तवन को पढ़कर हम भी अपने हृदय में भक्ति की लौ जलाएँ और शत्रुंजय तीर्थ की वंदना करें।

Uncha Uncha Shantrujayana Shikaro Sohay Jain Stavan

ऊँचा ऊँचा शत्रुंजयना,
शिखरो सोहाय,
वच्चे मारा दादा केरा,
डेरा जगमग थाय।1।

दादा तारी यात्रा करवा,
मारुं मन ललचाय -२,
तळेटीए शीश नमावी,
चढवा लागुं पाय -२,
पावनगिरिनो स्पर्श थातां,
पापो दूर पलाय,
ऊंचा ऊंचा शत्रुंजयना,
शिखरो सोहाय।2।

लीली लीली झाडीयो मा,
पंखी करे कलशोर -२,
सोपान चढता चढता जाणे,
हयु अषाढियानो मोर -२,
कांकरे कांकरे सिद्धा अनंता,
लळी लळी लागुं पाय,
ऊंचा ऊंचा शत्रुंजयना,
शिखरो सोहाय।3।

पहेली आवे रामपोळने,
त्रीजी वाघणपोळ -२,
शांतिनाथनां दर्शन करीए,
पहोंच्या हाथीपोळ -२,
सामे मारा दादा केरा,
दरबार देखाय,
ऊंचा ऊंचा शत्रुंजयना,
शिखरो सोहाय।4।

दौड़ी दौड़ी आवुं दादा,
दर्शन करवाने काज -२,
भाव भरीने भक्ति करुं,
साधु आतम काज -२,
माता मरू देवी नां नंदन भेटी,
जीवन पावन थाय,
ऊंचा ऊंचा शत्रुंजयना,
शिखरो सोहाय।5।

क्षमाभावे ॐकार पदनुं,
नित्य करिश हुं तो जाप -२,
दादा तारा गुणला गातां,
कापीश भवनां पाप -२,
पद्मविजय’नां हये आज,
आनंद उभराय,
ऊंचा ऊंचा शत्रुंजयना,
शिखरो सोहाय।6।

ऊँचा ऊँचा शत्रुंजयना,
शिखरो सोहाय,
वच्चे मारा दादा केरा,
डेरा जगमग थाय।7।

शत्रुंजय पर्वत केवल एक तीर्थ नहीं, बल्कि मोक्ष मार्ग का प्रतीक है, जहाँ अनगिनत साधु-संतों ने आत्मशुद्धि का अनुभव किया है। “ऊँचा ऊँचा शत्रुंजयना शिखरो सोहाय” जैसे स्तवन भजन हमें जैन तीर्थों की महिमा से जोड़ते हैं। इस भक्ति को और गहरा करने के लिए “शत्रुंजय तीर्थ वंदना, जिन शासन की आराधना, नवकार मंत्र की महिमा,” और “तीर्थंकरों की वंदना” जैसे अन्य जैन भजनों को पढ़ें और अपनी आत्मा को पवित्र करें। 🙏

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