फागुन की बहार लाई मस्ती की फुहार

Fagun Ki Bahar Layi Masti Ki Fuhar

फागुन की बहार,
लाई मस्ती की फुहार,
मैं तो चला अपने बाबा,
श्याम के दरबार,
होगी भिड़ अपार,
पर सुनते है पुकार,
मैं तो चला अपने बाबा,
श्याम के दरबार,
फागुन कि बहार।।

खाटू नगर में भरता है,
श्याम का लखी मेला,
घुमता भक्तो के रेलो में,
बाबा मेरा अलबेला,
ले जाऊ मै निशान,
लगाके जयकार,
मैं तो चला अपने बाबा,
श्याम के दरबार,
फागुन कि बहार।।

लेकर जाऊंगा घर से,
पिचकारी रंग गुलाल,
बाबा के चेहरे को वहा,
मै कर दूंगा पिला लाल,
श्याम संग मनाऊंगा,
ये फागुन का त्योहार,
मैं तो चला अपने बाबा,
श्याम के दरबार,
फागुन कि बहार।।

नाचूंगा मै मोर बनके,
अपने बाबा के दर पे,
पकडूँगा मै हाथ उनका,
और नचाऊ जमके,
लुटकर लाया विजय,
वो खुशिया बेशुमार,
मैं तो चला अपने बाबा,
श्याम के दरबार,
फागुन कि बहार।।

फागुन की बहार,
लाई मस्ती की फुहार,
मैं तो चला अपने बाबा,
श्याम के दरबार,
होगी भिड़ अपार,
पर सुनते है पुकार,
मैं तो चला अपने बाबा,
श्याम के दरबार,
फागुन कि बहार।।

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