तुलसी विवाह एक पवित्र वैष्णव परंपरा है, जिसमें तुलसी माता और भगवान शालिग्राम (भगवान विष्णु का रूप) का विवाह तुलसी विवाह कथा के साथ मनाया जाता है। Tulsi Vivah Katha श्रद्धा, भक्ति और पतिव्रता धर्म की शक्ति को दर्शाती है। यहां हमने Tulsi Vivah ki katha को नीचे बताया है-
Tulsi Vivah Katha
इस पौराणिक कथा के अनुसार, बहुत समय पहले की बात है… राक्षस कुल में एक अत्यंत सुंदर, संस्कारी और भगवान विष्णु की परम भक्त दैत्यराज कालनेमी की कन्या का जन्म हुआ, जिसका नाम था वृंदा। यद्यपि वह राक्षसी वंश में जन्मी थी, लेकिन उसका मन बचपन से ही श्रीहरि विष्णु की भक्ति में रमा रहता था। वृंदा का जीवन तपस्या, सच्चाई और धर्म के मार्ग पर चलता था।
वृंदा और जलंधर का विवाह
जब वृंदा विवाह योग्य हुई, तो उसका विवाह राक्षसों के पराक्रमी और बलशाली राजा जलंधर से हुआ। जलंधर समुद्र से उत्पन्न हुआ था और उसमें अपार शक्ति थी। यद्यपि वह राक्षस था, लेकिन वृंदा के पतिव्रत धर्म और तपस्या के कारण उसका शरीर भी दिव्य आभा से चमकता था।
वृंदा ने अपने पति को सच्चे हृदय से स्वीकार किया और एक आदर्श पतिव्रता नारी की तरह जीवन जीने लगी। वह प्रतिदिन पूजा-पाठ करती और अपने पति के लिए दीर्घायु, विजय और धर्म की कामना करती।
देवताओं और जलंधर के बीच युद्ध
एक समय ऐसा आया जब देवताओं और असुरों के बीच भीषण युद्ध हुआ। जलंधर देवताओं को बार-बार युद्ध में पराजित कर रहा था। इसकी एकमात्र वजह थी वृंदा की अखंड पतिव्रता शक्ति और तपस्या। जब तक वृंदा का संकल्प और व्रत बना रहा, तब तक जलंधर को कोई नहीं हरा सका।
देवता हारते-हारते भगवान विष्णु के पास पहुँचे। उन्होंने करबद्ध होकर श्रीहरि से प्रार्थना की कि वे इस स्थिति से मुक्ति दिलाएं। लेकिन भगवान विष्णु ने कहा, “वृंदा मेरी परम भक्त है, मैं उसे छल नहीं सकता।”
देवताओं ने कहा, “हे प्रभु, जब अधर्म बढ़ता है तो धर्म की रक्षा करना आपका धर्म है।” सभी देवताओं की करुण पुकार सुनकर भगवान विष्णु ने एक योजना बनाई — वह जलंधर का रूप धारण कर वृंदा के पास पहुंचे।
वृंदा का संकल्प भंग और जलंधर का वध
जब वृंदा ने अपने पति जैसे दिखने वाले व्यक्ति को देखा, तो वह धोखा खा गई। उन्होंने पूजा से उठकर उनके चरण स्पर्श किया और अपना संकल्प तोड़ दिया। उसी क्षण युद्ध के मैदान में जलंधर की मृत्यु हो गई और उसका सिर कटकर वृंदा के पास आ गिरा।
वृंदा आश्चर्य रह गई। उसने सामने खड़े व्यक्ति को देखा और पहचान लिया कि वे स्वयं भगवान विष्णु हैं। उसका मन टूट गया और हृदय दुख से भर गया। उन्होंने क्रोधित होकर भगवान विष्णु को शाप दे दिया कि वे पत्थर के हो जाएं। भगवान ने निश्चल भाव से शाप स्वीकार किया और वे शालिग्राम रूप में बदल गए।
वृंदा की तपस्या और तुलसी का जन्म
विष्णु भगवान के पत्थर के बनते ही सारे देवता चिंतित हो गए और देवताओं ने वृंदा से अपना श्राप वापस लेने का आग्रह किया। सबके कहने पर वृंदा ने अपना श्राप वापस ले लिया और इसके बाद उसने अपने पति का सिर उठाया और पति की चिता में बैठकर सती हो गईं। उनकी राख से एक दिव्य पौधा जन्मा, जिसे भगवान विष्णु ने तुलसी का नाम दिया।
इसके बाद भगवान विष्णु ने यह वरदान दिया कि —
“हे वृंदा, अब से तुम तुलसी रूप में पूजी जाओगी। बिना तुम्हारे पत्ते के मैं किसी भी भोग को स्वीकार नहीं करूंगा। हर साल तुम और मैं, शालिग्राम रूप में, सदा साथ पूजे जाएंगे और कार्तिक मास की एकादशी को तुम्हारा विवाह उत्सव के रूप में मनाया जाएगा।
Tulsi Vivah ki katha हमें यह सिखाती है कि सच्ची निष्ठा और प्रेम से भगवान भी भक्तों के अधीन हो जाते हैं। यह कथा केवल एक धार्मिक कथा नहीं, बल्कि यह भक्ति, नारी शक्ति, सच्चे प्रेम और त्याग की अद्भुत मिसाल है। वृंदा ने अपने धर्म और प्रेम के लिए जो बलिदान दिया, वही उन्हें तुलसी माता के रूप में अमर कर गया।
इसीलिए Tulsi Vivah न केवल एक उत्सव है, बल्कि यह आत्मा की पवित्रता और भक्ति की पराकाष्ठा का प्रतीक भी है। अगर आप इस कथा से जुड़ाव महसूस करते हैं, तो आप Tulsi Mata Ki Aarti, Tulsi Chalisa, और Tulsi Benefits से भी तुलसी माता की कृपा प्राप्त कर सकते हैं।
FAQ
तुलसी विवाह कब मनाया जाता है?
तुलसी विवाह कार्तिक शुक्ल एकादशी (देव उठनी/प्रबोधिनी एकादशी) के दिन मनाया जाता है। यह तिथि हिंदू पंचांग के अनुसार अक्टूबर-नवंबर माह में आती है।
वृंदा कौन थीं और उनका तुलसी से क्या संबंध है?
वृंदा एक पतिव्रता स्त्री थीं और भगवान विष्णु की भक्त थीं। उनके सती होने के बाद उनकी राख से तुलसी पौधे का जन्म हुआ।
विवाह करने से क्या लाभ होता है?
विवाह करने से जीवन में सुख, समृद्धि, वैवाहिक जीवन में शांति और कन्याओं को अच्छे वर की प्राप्ति होती है।
विवाह के दिन और क्या किया जाता है?
इस दिन व्रत रखा जाता है, पूजा-आरती की जाती है, तुलसी जी को वस्त्र पहनाए जाते हैं, और फिर विवाह के बाद तुलसी आरती, भजन-कीर्तन, और प्रसाद वितरण होता है।
मैं श्रुति शास्त्री , एक समर्पित पुजारिन और लेखिका हूँ, मैं अपने हिन्दू देवी पर आध्यात्मिकता पर लेखन भी करती हूँ। हमारे द्वारा लिखें गए आर्टिकल भक्तों के लिए अत्यंत उपयोगी होते हैं, क्योंकि मैं देवी महिमा, पूजन विधि, स्तोत्र, मंत्र और भक्ति से जुड़ी कठिन जानकारी सरल भाषा में प्रदान करती हूँ। मेरी उद्देश्य भक्तों को देवी शक्ति के प्रति जागरूक करना और उन्हें आध्यात्मिक ऊर्जा से ओतप्रोत करना है।View Profile