तुलसी विवाह श्लोक: भगवान विष्णु और तुलसी माता के मिलन का दिव्य स्तुति पाठ

तुलसी विवाह श्लोक का उच्चारण उस पावन क्षण को और भी दिव्य बना देता है जब तुलसी माता और भगवान विष्णु का विवाह संपन्न होता है। इन श्लोकों का पाठ भक्त मन से करते हैं ताकि पूजा पूरी श्रद्धा और विधि से संपन्न हो। Tulsi Vivah Shlok न केवल वातावरण को पवित्र करते हैं, बल्कि भक्तों को मानसिक शांति और आध्यात्मिक ऊर्जा भी प्रदान करते हैं। यह दिव्य पाठ कुछ इस प्रकार से है-

Tulsi Vivah Shlok

॥ अथ तुलसी मंगलाष्टक मंत्र ॥

ॐ श्री मत्पंकजविष्टरो हरिहरौ, वायुमर्हेन्द्रोऽनलः,
चन्द्रो भास्कर वित्तपाल वरुण, प्रताधिपादिग्रहाः॥
प्रद्यम्नो नलकूबरौ सुरगजः, चिन्तामणिः कौस्तुभः,
स्वामी शक्तिधरश्च लांगलधरः, कुवर्न्तु वो मंगलम् ॥1

गंगा गोमतिगोपतिगर्णपतिः, गोविन्दगोवधर्नौ,
गीता गोमयगोरजौ गिरिसुता, गंगाधरो गौतमः॥
गायत्री गरुडो गदाधरगया, गम्भीरगोदावरी,
गन्धवर्ग्रहगोपगोकुलधराः, कुवर्न्तु वो मंगलम् ॥2॥

नेत्राणां त्रितयं महत्पशुपतेः अग्नेस्तु पादत्रयं,
तत्तद्विष्णुपदत्रयं त्रिभुवने, ख्यातं च रामत्रयम्॥
गंगावाहपथत्रयं सुविमलं, वेदत्रयं ब्राह्मणम्,
संध्यानां त्रितयं द्विजैरभिमतं, कुवर्न्तु वो मंगलम् ॥3॥

बाल्मीकिः सनकः सनन्दनमुनिः, व्यासोवसिष्ठो भृगुः,
जाबालिजर्मदग्निरत्रिजनकौ, गर्गोऽ गिरा गौतमः॥
मान्धाता भरतो नृपश्च सगरो, धन्यो दिलीपो नलः,
पुण्यो धमर्सुतो ययातिनहुषौ, कुवर्न्तु वो मंगलम् ॥4॥

गौरी श्रीकुलदेवता च सुभगा, कद्रूसुपणार्शिवाः,
सावित्री च सरस्वती च सुरभिः, सत्यव्रतारुन्धती॥
स्वाहा जाम्बवती च रुक्मभगिनी, दुःस्वप्नविध्वंसिनी,
वेला चाम्बुनिधेः समीनमकरा, कुवर्न्तु वो मंगलम् ॥5॥

गंगा सिन्धु सरस्वती च यमुना, गोदावरी नमर्दा,
कावेरी सरयू महेन्द्रतनया, चमर्ण्वती वेदिका॥
शिप्रा वेत्रवती महासुरनदी, ख्याता च या गण्डकी,
पूर्णाः पुण्यजलैः समुद्रसहिताः, कुवर्न्तु वो मंगलम् ॥6॥

लक्ष्मीः कौस्तुभपारिजातकसुरा, धन्वन्तरिश्चन्द्रमा,
गावः कामदुघाः सुरेश्वरगजो, रम्भादिदेवांगनाः॥
अश्वः सप्तमुखः सुधा हरिधनुः, शंखो विषं चाम्बुधे,
रतनानीति चतुदर्श प्रतिदिनं, कुवर्न्तु वो मंगलम् ॥7॥

ब्रह्मा वेदपतिः शिवः पशुपतिः, सूयोर् ग्रहाणां पतिः,
शुक्रो देवपतिनर्लो नरपतिः, स्कन्दश्च सेनापतिः॥
विष्णुयर्ज्ञपतियर्मः पितृपतिः, तारापतिश्चन्द्रमा,
इत्येते पतयस्सुपणर्सहिताः, कुवर्न्तु वो मंगलम् ॥8॥

॥ इति मंगलाष्टक समाप्त ॥

Tulsi Vivah Shlok

॥ अथ तुलसी मंगलाष्टक मंत्र ॥

ॐ श्री मत्पंकजविष्टरो हरिहरौ, वायुमर्हेन्द्रोऽनलः,
चन्द्रो भास्कर वित्तपाल वरुण, प्रताधिपादिग्रहाः॥
प्रद्यम्नो नलकूबरौ सुरगजः, चिन्तामणिः कौस्तुभः,
स्वामी शक्तिधरश्च लांगलधरः, कुवर्न्तु वो मंगलम् ॥1

गंगा गोमतिगोपतिगर्णपतिः, गोविन्दगोवधर्नौ,
गीता गोमयगोरजौ गिरिसुता, गंगाधरो गौतमः॥
गायत्री गरुडो गदाधरगया, गम्भीरगोदावरी,
गन्धवर्ग्रहगोपगोकुलधराः, कुवर्न्तु वो मंगलम् ॥2॥

नेत्राणां त्रितयं महत्पशुपतेः अग्नेस्तु पादत्रयं,
तत्तद्विष्णुपदत्रयं त्रिभुवने, ख्यातं च रामत्रयम्॥
गंगावाहपथत्रयं सुविमलं, वेदत्रयं ब्राह्मणम्,
संध्यानां त्रितयं द्विजैरभिमतं, कुवर्न्तु वो मंगलम् ॥3॥

बाल्मीकिः सनकः सनन्दनमुनिः, व्यासोवसिष्ठो भृगुः,
जाबालिजर्मदग्निरत्रिजनकौ, गर्गोऽ गिरा गौतमः॥
मान्धाता भरतो नृपश्च सगरो, धन्यो दिलीपो नलः,
पुण्यो धमर्सुतो ययातिनहुषौ, कुवर्न्तु वो मंगलम् ॥4॥

गौरी श्रीकुलदेवता च सुभगा, कद्रूसुपणार्शिवाः,
सावित्री च सरस्वती च सुरभिः, सत्यव्रतारुन्धती॥
स्वाहा जाम्बवती च रुक्मभगिनी, दुःस्वप्नविध्वंसिनी,
वेला चाम्बुनिधेः समीनमकरा, कुवर्न्तु वो मंगलम् ॥5॥

गंगा सिन्धु सरस्वती च यमुना, गोदावरी नमर्दा,
कावेरी सरयू महेन्द्रतनया, चमर्ण्वती वेदिका॥
शिप्रा वेत्रवती महासुरनदी, ख्याता च या गण्डकी,
पूर्णाः पुण्यजलैः समुद्रसहिताः, कुवर्न्तु वो मंगलम् ॥6॥

लक्ष्मीः कौस्तुभपारिजातकसुरा, धन्वन्तरिश्चन्द्रमा,
गावः कामदुघाः सुरेश्वरगजो, रम्भादिदेवांगनाः॥
अश्वः सप्तमुखः सुधा हरिधनुः, शंखो विषं चाम्बुधे,
रतनानीति चतुदर्श प्रतिदिनं, कुवर्न्तु वो मंगलम् ॥7॥

ब्रह्मा वेदपतिः शिवः पशुपतिः, सूयोर् ग्रहाणां पतिः,
शुक्रो देवपतिनर्लो नरपतिः, स्कन्दश्च सेनापतिः॥
विष्णुयर्ज्ञपतियर्मः पितृपतिः, तारापतिश्चन्द्रमा,
इत्येते पतयस्सुपणर्सहिताः, कुवर्न्तु वो मंगलम् ॥8॥

॥ इति मंगलाष्टक समाप्त ॥

Tulsi Vivah Shlok का पाठ न सिर्फ धार्मिक परंपरा को निभाने का एक तरीका है, बल्कि यह मन, आत्मा और परिवार को शुद्धता और शांति से भरने वाला एक आध्यात्मिक अनुभव भी है। इस श्लोक का उपयोग Tulsi Vivah के समय किया जाता है साथ ही तुलसी व्रत कथा की जाती है और विवाह समाप्त होने पर तुलसी चालीसा का पाठ अवस्य करे ।

तुलसी विवाह के श्लोक पाठ विधि

यदि आप भी Tulsi Vivah Ke Shlok का विधिपूर्वक पाठ करना चाहते हैं, तो नीचे दी गई आसान और पारंपरिक विधि को अपनाएं। यह विधि अपनाकर आप भगवान विष्णु और तुलसी माता की कृपा प्राप्त कर सकते हैं।

  1. स्नान करें: सबसे पहले प्रातः काल उठकर अच्छे से स्नान करें और शुद्ध वस्त्र धारण करें। मन को शांत कर भगवान विष्णु और तुलसी माता का ध्यान करें।
  2. पूजा स्थल: घर में तुलसी चौरा या मंदिर को साफ करें। वहां तुलसी का पौधा रखें और भगवान विष्णु की फोटो या मूर्ति स्थापित करें। पीला कपड़ा बिछाएं और उस पर पूजन सामग्री सजाएं।
  3. दीपक और अगरबत्ती: भगवान विष्णु और तुलसी माता के समक्ष दीपक और अगरबत्ती जलाकर वातावरण को पवित्र करें।
  4. संकल्प लें: अपने मन में यह संकल्प करें कि आप श्रद्धा और भक्ति से तुलसी विवाह के श्लोकों का पाठ करेंगे और भगवान की कृपा प्राप्त करेंगे।
  5. पाठ करें: अब श्रद्धा और शुद्ध उच्चारण के साथ Tulsi Vivah Shlok In Hindi का पाठ करें। श्लोकों का पाठ करते समय हर पंक्ति के भाव को मन में उतारें और ध्यान रखें कि यह विवाह एक पवित्र यज्ञ के समान है।
  6. पुष्प अर्पण: प्रत्येक श्लोक के अंत में तुलसी माता और भगवान विष्णु को फूल अर्पित करें। इससे पाठ का प्रभाव और अधिक फलदायी होता है।
  7. आरती करें: श्लोक पाठ के बाद भगवान विष्णु और तुलसी माता की आरती करें। “ॐ जय जगदीश हरे” और “तुलसी माता की आरती” गाएं।
  8. प्रसाद वितरण: आरती के बाद तुलसी पत्र, मिष्ठान्न और पंचामृत का प्रसाद बांटें और परिवार व भक्तों को दें।

तुलसी विवाह श्लोकों का पाठ करना न केवल धार्मिक रूप से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह आत्मिक शांति, मानसिक सुकून और पारिवारिक समृद्धि भी लाता है।

FAQ

तुलसी विवाह में कौन-कौन से श्लोक पढ़े जाते हैं?

तुलसी विवाह में मुख्य रूप से विवाह संस्कार से जुड़े श्लोक, तुलसी माता की स्तुति और श्री विष्णु के मंगल श्लोकों का पाठ किया जाता है।

क्या इन श्लोकों का जाप रोज़ कर सकते हैं?

इसे कौन कौन पढ़ सकता है?

यह तुलसी श्लोक कितने समय में पूरे होते हैं?

इसका पाठ करने से कौन से पुण्य फल मिलते हैं?

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