साईं बाबा धूप आरती लिरिक्स शाम के समय की जाने वाली एक विशेष आरती है जो बाबा को दिन भर की सेवा और भक्ति अर्पित करने का प्रतीक है। शाम की शांत बेला में दीपक और धूप की लौ के साथ यह आरती वातावरण को आध्यात्मिक ऊर्जा से भर देती है। यहां Sai Baba Dhoop Aarti Lyrics के सम्पूर्ण पाठ को उपलब्ध कराया गया है-
Sai Baba Dhoop Aarti Lyrics
आरती साईबाबा, सौख्यदातार जीवा, चरणरजातली ॥
द्यावादासा विसावा, भक्तां विसावा ॥ आ० ॥ध्रु०॥
जाळूनियां अनंग, स्वस्वरूपी राहे दंग ॥
मुमुक्षुजनां दावी, निज डोळां श्रीरंग, डोळां श्रीरंग ॥ आ० ॥१॥
जया मनी जैसा भाव, तया तैसा अनुभव ॥
दाविसी दयाघना, ऐसी तुझी ही माव ॥ आ० ॥२॥
तुमचे नाम ध्याता, हरे संसृती व्यथा ॥
अगाध तव करणी मार्ग दाविसी अनाथा ॥ आ० ॥३॥
कलियुगीं अवतार, सगुणब्रह्म साचार ॥
अवतीर्ण झालासे, स्वामी दत्त दिगंबर ॥द०॥आ० ॥४॥
आठां दिवसां गुरूवारीं, भक्त करिती वारी ॥
प्रभुपद पहावया, भवभय निवारी ॥ आ० ॥५॥
माझा निजद्रव्यठेवा, तव चरणरजसेवा॥
मागणें हेंचि आतां, तुम्हां देवाधिदेवा ॥आ० ॥६॥
इच्छित दीन चातक । निर्मल तोय निजसुख ॥
पाजावें माधवा या । सांभाळ आपुली भाक ॥ आ० ॥७॥
आरती साईबाबा । सौख्यदातार जीवा । चरणरजातली ॥
द्यावादासा विसावा, भक्तां विसावा ॥ आ० ॥ध्रु०॥
शिरडी माझें पंढरपूर – अभंग
शिरडी माझें पंढरपूर ।साईबाबा रमावर । बाबा रमावर ॥१॥
शुद्ध भक्ती चंद्रभागा । भाव पुंडलिक जागा ॥२॥
या हो या हो अवघे जन । करा बाबांसी वंदन ॥३॥
गणू म्हणे बाबा साई। धांव पाव माझे आई ॥४॥
घालीन लोटांगन – नमन
घालीन लोटांगन, वंदीन चरण,
डोळ्यांनी पाहिन रूप तुझें ॥
प्रेमें आलिंगिन, आनंदें पूजिन,
भावें ओवाळिन म्हणे नामा ॥१॥
त्वमेव माता च पिता त्वमेव, त्वमेव बंधुश्च सखा त्वमेव ॥
त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव, त्वमेव सर्वं मम देवदेव ॥२॥
कायेन वाचा मनसेंद्रियैर्वा, बुध्दयात्मना वा प्रकृतीस्वभावात् ॥
करोमी यद्यत्सकलं परस्मै, नारायणायेति समर्पयामि ॥३॥
अच्युतं केशवं रामनारायणं, कृष्णदामोदरं वासुदेवं हरिम् ॥
श्रीधरं माधवं गोपिकावल्लभं, जानकीनायकं रामचंद्र भजे ॥ ४ ॥
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ॥
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हर हरे…×3
नमस्काराष्टक
अनंता तुला तें कसें रे स्तवावें।
अनंता तुला तें कसें रे नमावें॥
अनंत मुखांचा शिणे शेष गातां।
नमस्कार साष्टांग श्रीसाइनाथा ॥१॥
स्मरावें मनीं त्वत्पदा नित्य भावें।
उरावें तरी भक्तिसाठी स्वभावें॥
तरावें जगा तारूनी मायताता॥ नमस्कार० ॥२॥
वसे जो सदा दावया संतलीला।
दिसे अज्ञ लोकापरी जो जनाला॥
परी अंतरी ज्ञान कैवल्यदाता ॥ नमस्कार० ॥३॥
बरा लाधला जन्म हा मानवाचा।
नरा सार्थका साधनीभूत साचा॥
धरूं साइप्रेमा गळाया अहंता ॥ नमस्कार ॥४॥
धरावें करींसान अल्पज्ञ बाला।
करावें आम्हां धन्य चुंबोनि गाला॥
मुखीं घाल प्रेमें खरा ग्रास आतां॥ नमस्कार ॥५॥
सुरादिक ज्यांच्या पदा वंदिताती।
शुकादिक ज़्यातें समानत्व देती॥
प्रयागादि तीर्थेपदीं नम्र होतां ॥नमस्कार० ॥६॥
तुझ्या ज्या पदा पाहता गोपबाली।
सदा रंगली चित्स्वरूपी मिळाली॥
करी रासक्रिडासवें ॥ कृष्णनाथा ॥ नमस्कार ॥७॥
तुला मागतों मागणे एक द्यावें।
करा जोडितों दीन अत्यंत भावें॥
भवी मोहनीराज हा तारिं आतां॥ नमस्कार ॥८॥
ऐसा येई बा – प्रार्थना
प्रार्थना ऐसा येई बा।साई दिगंबरा। अक्षयरूप अवतारा॥
सर्वहि व्यापकतूं। श्रुतिसारा। अनुसयाऽत्रिकुमारा॥६० ॥
काशी स्नान जप, प्रतिदिवशीं। कोल्हापुर भिक्षेसी॥
निर्मल नदि तुंगा, जल प्राशी। निद्रा माहुर देशीं॥ ऐ० ॥१॥
झोळी लोंबतसे वाम करीं॥ त्रिशूल डमरू-धारी॥
भक्ता वरद सदा सुखकारी ॥ देशील मुक्ती चारी॥ ऐ० ॥२॥
पायी पादुका, जपमाला कमंडलू मृगछाला॥
धारण करिशी बा, नागजटा मुगुट शोभतो माथां॥ ऐ० ॥३॥
तत्पर तुझ्या या जे ध्यानीं, अक्षय त्यांचे सदनीं॥
लक्ष्मी वास करी दिनरजनीं, रक्षिसि संकट वारूनि॥ ऐ० ॥४॥
या परिध्यान तुझें गुरूराया॥ दृश्य करी नयनां या॥
पूर्णानंदसुखें ही काया॥ लाविसि हरिगुण गाया॥ ऐ० ॥५॥
श्री साईनाथ महिम्न स्तोत्रम
सदा सत्स्वरूपं चिदानंदकंद, जगत्संभवस्थानसंहार हे तुम् ॥
स्वभक्तेच्छया मानुषं दर्शयंत, नमामीश्वरं सद्गुरुसाईनाथम् ॥१॥
भवध्वांतविध्वंस मार्तडमीड्यं, मनोवागतीतं मुनीर्ध्यानगम्यम् ॥
जगद्व्यापकं निर्मलं निर्गुणं त्वा, नमामी० ॥२॥
भवांभोधि मग्नार्दितानां जनानां, स्वपादाश्रितानां स्वभक्तिप्रियाणाम् ॥
समुद्धारणार्थ कलौ संभवन्तं, नमामी ॥३॥
सदा निंबवृक्षस्य मूलाधिवासात्सुधास्त्राविणं तिक्तमप्यप्रियं तम् ॥
तरूं कल्पवृक्षाधिकं साधयंतं, नमामी ॥४॥
सदा कल्पवृक्षस्य तस्याधिमूले भवद्भावबुद्ध्या सपर्यादिसेवाम् ॥
नृणां कुर्वतां भुक्तिमुक्तिप्रदं तं, नमामी० ॥५॥
अनेकाश्रृतातयलीला विलासैः समाविष्कृतेशानभास्वत्प्रभावम् ॥
अहंभावहीनं प्रसन्नात्मभावं, नमामी ॥६॥
सतां विश्रमाराममेवाभिरामं सदा सज्जन: संस्तुतं सन्नमद्धिः॥
जनामोदद भक्तभद्रप्रदं तं, नमामी० ॥७॥
अजन्माद्यमेकं परं ब्रम्ह साक्षात्स्वयंसंभवं-राममेवावतीर्णम् ॥
भवद्दर्शनात्संपुनीतः प्रभोऽहं, नमामी० ॥८॥
श्रीसाईशकृपानिधेऽखिलनृणां सर्वार्थसिद्धप्रद ॥ युष्मत्पादरजः प्रभावमतुलं धातापि वक्ताऽक्षमः ॥
सद्भक्त्या शरणं कृतांजलिपुट: संप्रापितोऽस्मि प्रभो, श्रीमत्साईपरेशपादकमलान्नान्यच्छरण्यं मम ॥९॥
साईरूपधरराघवोत्तम, भक्तकामविबुधदुमं प्रभुम् ॥
माययोपहतचित्तशुद्धये, चिंतयाम्यहमहर्निश मुदा ॥ १० ॥
शरत्सुधांशुप्रतिमप्रकाश, कृपातपात्रं तव साईनाथ ॥
त्वदीयपादाब्जसमाश्रिताना स्वच्छायया तापमपाकरोतु ॥११॥
उपासनादैवतसाइनाथ, स्तवैर्मयो पासनिना स्तुतस्त्वम ॥
रमेन्मनो मे तव पादयुग्मे, भृङ्गो, यथाब्जे मकरंदलुब्धः ॥ १२ ॥
अनेकजन्मार्जितपापसंक्षयो, भवेद्भवत्पादसरोजदर्शनात् ॥
क्षमस्व सर्वानपराध पुंजकान्प्रसीद साईश गुरो दयानिधे ॥१३॥
श्री साईनाथचरणामृतपूतचित्तास्तत्पादसेवनरताः सततं च भक्त्या |
संसारजन्यदुरितौधविनिर्गतास्ते कैवल्यधाम परमं समवाप्नुवन्ति ॥१४॥
स्तोत्रमेतत्पठेद्भक्त्या यो नरस्तन्मना: सदा ॥
सद्गुरोः साइनाथस्य कृपापात्रं भवेद् ध्रुवम् ॥१५॥
श्रीगुरुप्रसाद याचना दशक
रूसो मम प्रियांबिका, मजवरी पिताही रूसो।
रूसो मम प्रियांगना, प्रियसुतात्मजाही रूसो ॥
रूसो भगिनी बंधुही, श्वशुर सासुबाई रूसो।
न दत्तगुरू साई मा, मजवरी कधीहीं रूसो ॥१॥
पुसो न सुनबाई त्या, मज न भ्रातृजाया पुसो।
पुसो न प्रिय सोयरे, प्रिय सगे न ज्ञाती पुसो ॥
पुसो सुहृद ना सखा, स्वजन नाप्तबंधू पुसो।
परीन गुरू साई मा मजवरी,कधीहीं रूसो ॥२॥
पुसो न अबला मुले, तरूण वृद्धही ना पुसो ।
पुसो न गुरूं धाकुटें, मजन थोर साने पुसो ॥
पुसो नच भलेबुरे, सुजन साधुही ना पुसो।
परी न गुरू साई मा, मजवरी कधीहीं रूसो ॥३॥
रूसो चतुर तत्ववित्, विबुध प्राज्ञे ज्ञानी रूसो ।
रूसोहि विदुषी स्त्रिया, कुशल पंडिताही रूसो ॥
रूसो महिपती यती, भजक तापसीही रूसो।
न दत्तगुरू साई मा, मजवरी कधीही रूसो ॥४॥
रूसो कवि ऋषी मुनी, अनघ सिद्ध योगी रूसो।
रूसो हि गृहदेवता, नि कुलग्रामदेवी रूसो ॥
रूसो खल पिशाच्चही, मलिन डाकिनींही रूसो।
न दत्तगुरू साई मा, मजवरी कधीही रूसो ॥५॥
रूसो मृगखग कृमी, अखिल जीवजंतु रूसो।
रूसो विटप प्रस्तरा, अचल आपगाब्धी रूसो ॥
रूसो ख पवनाग्नि वार, अवनि पंचतत्वें रूसो।
न दत्तगुरू साई मा, मजवरी कधीही रूसो ॥६॥
रूसो विमल किन्नरा, अमल यक्षिणीही रूसो।
रूसो शशि खगादिही, गगनिं तारकाही रूसो ॥
रूसो अमरराजही, अदये धर्मराजा रूसो ।
न दत्तगुरू साई मा, मजवरी कधीही रूसो ॥७॥
रूसो मन सरस्वती, चपलचित्त तेंही रूसो ।
रूसो वपु दिशाखिला, कठिण काल तोही रूसो ॥
रूसो सकल विश्वही, मयि तु ब्रह्मगोलं रूसो ।
न दत्तगुरू साई मा, मजवरी कधीही रूसो ॥८॥
विमूढ म्हणूनी हसो, मज न मत्सराही डसो।
पदाभिरूचि उल्हासो, जननकर्दमीं ना फसो ॥
न दुर्ग धृतिचा धसो, अशिवभाव मागें खसो।
प्रपंचि मन हें रूसो, दृढ विरक्ति चित्तीं ठसो ॥९॥
कुणाचिही घृणा नसो, न च स्पृहा कशाची असो।
सदैव हृदयीं वसो, मनसि ध्यानिं साई वसो ॥
पदी प्रणय वोरसो, निखिल दृश्य बाबा दिसो।
न दत्तगुरू साई मा, उपरि याचनेला रूसो ॥१०॥
पुष्पांजली
ॐ यज्ञेन यज्ञमयजंत देवास्तानि धर्माणि प्रथमान्यासन् ॥
ते ह नाकं महिमान: सचंत यत्र पूर्वे साध्या संति देवाः ॥
ॐ राजाधिराजाय प्रसह्यसाहिने नमो वयं वैश्रवणाय कूर्महे॥
स मे कामान्कामकामाय मह्यं कामेश्वरो वैश्रवणो दधातु ॥
कुबेराय वैश्रवणाय ॥ महाराजाय नमः ॥ ॐ स्वस्ति ॥
साम्राज्यं भौंज्यं स्वाराज्यं वैराज्यं पारमेष्ठ्य राज्यं
माहाराज्यमाधिपत्यमयं समंतपर्यायी स्यात्सार्वभौम:
सार्वायुष आंतादापरार्धात् पृथिव्यैसमुद्रपर्यंताया एकराळिति ॥
तदप्येष श्लोकोऽभिगीतो मरुत: परिवेष्टारो मरुत्तस्यावसन्गृहे ॥
आविक्षितस्य कामप्रेर्विश्वेदेवाः सभासद इति ॥
श्री नारायण वासुदेव सच्चिदानंद सद्गुरु साईंनाथ महाराज की जय॥
प्रार्थना
करचरणकृतं वाक्कायजं कर्मजं वा,
श्रवणनयनजं वा मानसं वाऽपराधम् ॥
विदितमविदितं वा सर्वमेतत्क्षमस्व,
जय जय करूणाब्धे श्रीप्रभो साईनाथ ॥१॥
यदि आप Sai Baba Dhoop Aarti Lyrics को पढ़कर भक्ति में डूब गए हैं, तो हमारी साइट पर उपलब्ध साईं बाबा काकड़ आरती, शेज आरती साईं बाबा लिरिक्स, और साईं बाबा स्तोत्रम जैसे भक्ति स्रोतों को भी ज़रूर पढ़ें। हर आरती एक विशेष समय और भाव के साथ जुड़ी होती है, जो आपकी साधना को गहराई देती है। अगर आप साईं बाबा से जुड़ाव को और गहरा करना चाहते हैं, तो इन लेखों से अवश्य लाभ लें।
आरती करने की सही विधि क्या है ?
Sai Baba Dhoop Aarti Lyrics in Hindi के माध्यम से जो भावना जागृत होती है, वह व्यक्ति के जीवन को नई दिशा प्रदान करता है, लेकिन इसके लिए आरती को सही विधि से करना बहुत आवश्यक है-
- तैयारी: धूप आरती करने से पहले स्थान की सफाई करें और स्नान करके साफ सुथरे कपड़ें पहने। यदि संभव हो तो पिले रंग के कपड़ें पहने यह बहुत शुभ माना जाता है।
- सामग्री: अब साईं बाबा की मूर्ति या फोटो को स्वच्छ स्थान पर रखें और एक थाली में दीपक, धूपबत्ती, फूल, कपूर और प्रसाद भी रखें।
- मन शांत करें: कुछ क्षण बाबा का ध्यान करें और मन से सभी चिंता व व्याकुलता दूर करें। साईं नाम का स्मरण करते हुए खुद को पूरी तरह भक्ति में समर्पित करें।
- धूप आरती: अब धूपबत्ती जलाएं और उसे बाबा के समक्ष घुमाते हुए साईं बाबा धूप आरती लिरिक्स का गायन करें। आप आरती की लिरिक्स जोर से बोलें या ध्यानपूर्वक सुनें। आरती में प्रयुक्त धूप वातावरण को शुद्ध करती है और मन को एकाग्र करने में सहायता करती है।
- प्रसाद अर्पण: आरती के दौरान और बाद में ताजे फूल बाबा के चरणों में अर्पित करें और मिठाई या फल का प्रसाद बाबा को समर्पित करें और फिर परिवार या भक्तों में वितरित करें।
- प्रार्थना: आरती समाप्त होने के बाद दोनों हाथ जोड़कर बाबा से कृपा, मार्गदर्शन और शांति की प्रार्थना करें और कुछ समय शांत बैठकर बाबा के नाम का जाप करें या उनका ध्यान करें।
साईं बाबा की उपासना में धूप आरती का विशेष स्थान है, जो उनके चरणों में दिन के अंत का आभार व्यक्त करती है। आप भी ऊपर दिए गए विधि के अनुसार आरती को करके साई बाबा के प्रति अपनी भक्ति और प्रेम को और मजबूत कर सकते है।
FAQ
साईं बाबा की धूप आरती कब की जाती है?
धूप आरती आमतौर पर शाम (4:00 बजे) सूर्यास्त के समय की जाती है, जब वातावरण शांत और स्थिर होता है।
क्या आरती के साथ धूप जलाना आवश्यक है?
धूप प्रतीक है शुद्धता और समर्पण का, इसलिए इसका उपयोग आरती में करना अत्यंत शुभ माना जाता है।
क्या इस आरती के लिए किसी विशेष भजन का प्रयोग होता है?
हां, पारंपरिक धूप आरती लिरिक्स का ही प्रयोग किया जाता है जो साईं बाबा की महिमा का गान करता है।
क्या यह आरती मंदिरों में और घरों में अलग होती है?
आरती की भावना एक ही होती है, पर मंदिरों में इसका गायन समूह में होता है, जबकि घर पर व्यक्ति इसे एकल रूप में कर सकता है।
क्या मोबाइल पर आरती सुनकर भी आराधना की जा सकती है?
जी हाँ, यदि मन एकाग्र हो और श्रद्धा सच्ची हो, तो मोबाइल पर आरती सुनना भी उतना ही फलदायी होता है।
मैं हेमानंद शास्त्री, एक साधारण भक्त और सनातन धर्म का सेवक हूँ। मेरा उद्देश्य धर्म, भक्ति और आध्यात्मिकता के रहस्यों को सरल भाषा में भक्तों तक पहुँचाना है। शनि देव, बालाजी, हनुमान जी, शिव जी, श्री कृष्ण और अन्य देवी-देवताओं की महिमा का वर्णन करना मेरे लिए केवल लेखन नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक साधना है। मैं अपने लेखों के माध्यम से पूजन विधि, मंत्र, स्तोत्र, आरती और धार्मिक ग्रंथों का सार भक्तों तक पहुँचाने का प्रयास करता हूँ। 🚩 जय सनातन धर्म 🚩