साईं बाबा काकड़ आरती: सुबह की शांति और भक्ति का सर्वोत्तम माध्यम

साईं बाबा काकड़ आरती सुबह की सबसे पवित्र आरती मानी जाती है। यह आरती भक्तों के दिन की शुरुआत को आध्यात्मिकता और शांति से भर देती है। Sai Baba Kakad Aarti श्रद्धालुओं के मन में ऊर्जा और सकारात्मकता का संचार करती है। हमने आपके दिन के शुरुआत को और अच्छा बनाने के लिए यहां सम्पूर्ण आरती को दिया हुआ है-

Sai Baba Kakad Aarti

1.भूपाळी

जोडूनियां कर चरणीं ठेविला माथा॥
परिसावी विनंती माझी सदुरुनाथा॥ 1॥
असो नसो भाव आलों तूझिया ठाया॥
कृपादृष्टीं पाहें मजकडे सदुरुया ॥ 2॥
अखंडित असावें ऐसें वाटतें पायी ॥
सांडूनी संकोच ठाव थोडासा देईं॥3॥
तुका म्हणे देवा माझी वेडीवांकुडी ॥
नामें भवपाश हातीं आपुल्या तोड़ी ॥4॥

2. भूपाळी

उठा पांडुरंगा आतां प्रभातसमयो पातला ॥
वैष्णवांचा मेळा गरुडपारीं दाटला ॥1॥

गरुडपारापासुनी महाद्घारापर्यंत॥
सुरवरांची मांदी उभी जोडूनियां हात ॥2॥

शुकसनकादिक नारद-तुबंर भक्तांच्या कोटी॥
त्रिशूल डमरु घेउनि उभा गिरिजेचा पती ॥3॥

कलीयुगींचा बक्त नामा उभा कीर्तनीं॥
पाठीमागें उभी डोळा लावुनियां जनी ॥ 4 ॥

3.भूपाळी

उठा उठा श्री साईनाथ गुरु चरणकमल दावा ॥
आधिव्याधि भवताप वारुनी तारा जडजीवा ॥ध्रु0॥

गेली तुम्हां सोडुनियां भवतमरजनी विलया ॥
परि ही अज्ञानासी तुमची भलवि योगमाया ॥
शक्ति न आम्हां यत्किंचितही तिजला साराया ॥

तुम्हीच तीतें सारुनि दावा मुख जन ताराया ॥चा0 ॥

भो साइनाथ महाराज भवतिमिरनाशक रवी,
अज्ञानी आम्ही किती तव वर्णावी थोरवी॥
ती वर्णितां भागले बहुवदनि शेष विधि कवी ॥ चा0 ॥
सकृप होउनि महिमा तुमचा तुम्हीच वदवावा ॥आधि0॥ उठा0 ॥ 1 ॥

बक्त मनीं सद्घाव धरुनि जे तुम्हां अनुसरले ।
ध्यायास्तव ते दर्शन तुमचें द्घारि उभे ठेले॥
ध्यानस्था तुम्हांस पाहुनी मन अमुचें धालें ।

परि त्वद्घचनामृत प्राशायातें आतुर झालें ॥चा॥

उघडूनी नेत्रकमला दीनबंधु रमाकांता ।
पाहिं बा कृपादृष्टीं बालका जशी माता॥
रंजवी मधुरवाणी हरीं ताप साइनाथा ॥चा0 ॥

आम्हीच अपुले काजास्तव तुज कष्टवितों देवा॥
सहन करिशिल तें ऐकुनि घावी भेट कृष्ण धांवा ॥उठा उठा0॥ आधिव्याधि0 ॥2 ॥

4.भूपाळी

उठा पांडुरंगा आतां दर्शन घा सकळां॥
झाला अरुणोदय सरली निद्रेची वेळा ॥ 1॥

संत साधू मुनी अवघे झालेती गोळा ॥
सोडा शेजे सुख आतां बंघु घा मुखकमळा ॥ 2॥

रंगमंडपी महाद्घारीं झालीसे दाटी॥
मन उतावीळ रुप पहावया दृष्टी॥ 3॥

राही रखुमाबाई तुम्हां येऊं घा दया ॥
शेजे हालवुनी जागें करा देवराया ॥4 ॥

गरुड हनुमंत उभे पाहती वाट॥
स्वर्गीचे सुरवर घेउनि आले बोभाट॥ 5॥

झालें मुक्तद्घार लाभ झाला रोकडा॥
विष्णुदास नामा उभा घेऊनि कांकाड़ा ॥ 6 ॥

5.अभंग

घेउनियां पंचारती । करुं बाबांसी आरती ॥ करुं साई सी0 ॥ 1 ॥
उठा उठा हो बांधव । ओंवाळूं हा रमाधव ॥सांई र0 ॥ ओं 0 ॥ 2 ॥
करुनीयां स्थीर मन । पाहूं गंभीर हें ध्यान ॥ साईंचें हें0 ॥ पा0 ॥3॥
कृष्णनाथा दत्तसाई । जडो चित्त तुझे पायीं ॥ साई तु0 ॥ जडो0 ॥ 4 ॥

6.कांकंड आरती

कांकडआरती करीतों साईनाथ देवा ॥
चिनमयरुप दाखवीं घेउनि बालक-लघुसेवा ॥ ध्रु0॥

काम क्रोध मद मत्सर आटुनी कांकडा केला॥
वैराग्याचे तूप घालुनी मी तो भिजवीला॥
साईनाथगुरुभक्तिज्वलनें तो मी पेटविला ।

तद्वृत्ती जाळुनी गुरुनें प्रकाश पाडिला ॥
द्घेत-तमा नासूनी मिळवी तत्स्वरुपीं जीवा ॥चि0 ॥ 1 ॥

भू-खेचर व्यापूनी अवघे हृत्कमलीं राहरसी । तोचि दत्तदेव तू शिरड़ी राहुनी पावसी ॥
राहुनि येथे अन्यत्रहि तू भक्तांस्तव धांवसी । निरसुनियां संकटा दासा अनुभव दाविसी ॥
न कळे त्वल्लीलाही कोण्या देवा वा मानवा ॥चि0 ॥2 ॥

त्वघशदुंदुभीनें सारें अंबर हेंकोंदलें । सगुण मूर्ति पाहण्या आतुर जन शिरडी आले ॥
प्राशुनि त्वद्घचनामृत अमुचे देहभान हरपलें । सोडूनियां दुरभिमान मानस त्वच्चरणीं वाहिले ॥
कृपा करुनियां साईमाउले दास पदरिं ध्यावा ॥ चि0 ॥कां0 चि0 ॥ 3 ॥

7.कांकंड आरती ( पंढरीनाथा )

भक्तीचिया पोटीं बोध कांकडा ज्योती॥
पंचप्राण जीवें भावें ओवाळूं आरती ॥ 1॥

ओंवाळूं आरती माइया पंढरीनाथा माझ्या साईनाथा॥
दोन्ही कर जोडोनी चरणीं ठेविला माथा ॥ध्रु0 ॥

काय महिमा वर्णूं आतां सांगणे किती ॥
कोटी ब्रहमहत्या मुख पाहतां जाती ॥2॥

राही रखुमाबाई उभ्या दोघी दो बाहीं ॥
मयूरपिच्छ चामरें ढाळिति ठायींचे ठायीं॥ 3॥

तुका म्हणे दीप घेउनि उन्मनीत शोभा ॥
विठेवरी उभा दिसे लावण्यगाभा ॥ 4 ॥ ओवाळूं 0 ॥

8.पद (उठा उठा)

उठा साधुसंत साधा आपुलालें हित॥
जाईल जाईल हा नरदेह मग कैंचा भगवंत ॥ 1॥

उठोनियां पहांटे बाबा उभा असे विटे ॥
चरण तयांचे गोमटे अमृतदृष्टि अवलोका ॥ 2 ॥

उठा उठा हो वेगेंसीं चला जाऊंया राइळासी ॥
जळतिल पातकांच्या राशी कांकंडआरती देखिलिया ॥3॥

जागें करा रुक्मिणीवर, देव आहे निजसुरांत॥
वेंगें लिंबलोण करा दृष्ट होईल तयासी ॥4॥

दारीं वाजंत्रीं वाजती ढोल दमामे गर्जती॥
होते कांकडआरती माइया सदगरुरायांची ॥ 5॥

सिंहनाद शंखभेरी आनंद होतो महाद्घारी ॥
केशवराज विटेवरी नामा चरण वंदितो ॥ 6 ॥

भजन

साईनाथगुरु माझे आई । मजला ठाव घावा पायीं ॥
दत्तराज गुरु माझे आई । मजला ठाव घावा पायीं ॥
श्री सच्चिदानंद सदगुरु साईनाथ महाराज क जय ॥

9.श्री सांईनाथ प्रभाताष्टक

प्रभातसमयीं नभा शुभ रवि प्रभा फांकली ।
स्मरे गुरु सदा अशा समयिं त्या छळे ना कली ॥
म्हणोनि कर जोडूनी करुं अतां गुरुप्रार्थना ।

समर्थ गुरु साइनाथ पुरवी मनोवासना ॥ 1 ॥

तमा निरसि भानु हा गुरुहि नासि अज्ञानता ।
परन्तु गुरुची करी न रविही कधीं साम्यता ॥
पुन्हां तिमिर जन्म घे गुरुकृपेनि अज्ञान ना ।

समर्थ गुरु साइनाथ पुरवी मनोवासना ॥2 ॥

रवि प्रगट होउनि त्वरित घालवी आलसा ।
तसा गुरुहि सोडवी सकल दुष्कृतीलालसा ॥
हरोनि अभिमानही जडवि तत्पदीं भावना ।

समर्थ गुरु साइनाथ पुरवी मनोवासना ॥3॥

गुरुसि उपमा दिसे विधिहरीहरांची उणी ।
कुठोनि मग येई ती कवनिं या उगी पाहुणी॥
तुझीच उपमा तुला बरवि शोभते सज्जना ।

समर्थ गुरु साइनाथ पुरवी मनोवासना ॥4॥

समाधि उतरोनियां गुरु चला मशीदीकडे ।
त्वदीय वचनोक्ति ती मधुर वारिती सांकडें॥
अजातरिपु सदगुरु अखिलपातका भंजना ।

समर्थ गुरु साइनाथ पुरवी मनोवासना ॥5॥

अहा सुसमयासि या गुरु उठोनियां बैसले
वोलोकुनि पदाश्रिता तदिय आपदे नासिलें॥
असा सुहितकारि या जगतिं कोणिही अन्य ना ।

समर्थ गुरु साइनाथ पुरवी मनोवासना॥ 6॥

असे बहुत शाहणा परि न ज्या गुरुची कृपा ।
न तत्स्वहित त्या कळे करितसे रिकाम्या गपा
जरी गुरुपदा धरी सुदृढ़ भक्तिने तो मना ।

समर्थ गुरु साइनाथ पुरवी मनोवासना 7

गुरो विनति मी करीं हृदयमंदिरीं या बसा ।
समस्त जग हें गुरुस्वरुपची ठसो मानसा
घडो सतत सत्कृती मतिहि दे जगत्पावना ।

समर्थ गुरु साइनाथ पुरवी मनोवासना8

स्रग्धरा

प्रेमें या अष्टकासी पढुनि गुरुवरा प्रार्थिती जे प्रभातीं ।
त्यांचे चित्तासि देतों अखिल हरुनियां भ्रांति मी नित्य शांती
ऐसें हें साईनाथें कथुनि सुचविलें जेविं या बालकासी ।

तेवीं त्या कृष्णपायीं नमुनि सविनयें अर्पितों अष्टकासी 1
श्री सच्चिदानंद सदगुरु साईनाथ महाराज की जय

10.पद

सांई रहम नजर करना, बच्चों का पालन करना धु0
जाना तुमने जगत्पसारा, सबही झूठ जमाना साई0 1
मैं अंधा हूँ बंदा आपका, मुझको प्रभु दिखलाना साई0 2
दास गनू कहे अब क्या बोलूं, थक गई मेरी रसना साई0 3

11.पद

रहम नजर करो, अब मोरे साई,
तुम बिन नहीं मुझे माँ बाप भाई धु0

मैं अंधा हूँ बंदा तुम्हारा
मैं ना जानूं अल्लाइलाही 1

खाली जमाना मैंने गमाया
साथी आखिर का किया न कोई 2

अपने मस्जिद का झाडू गनू है
मालिक हमारे, तुम बाबा साई 3

12.पद

तुज काय देऊं सावळ्या मी खाया तरी, मी दुबली बटिक नाम्याची जाण श्रीहरी
उच्छिष्ट तुला देणें ही गोष्ट ना बरी, तूं जगन्नाथ, तुज देऊँ कशी रे भाकरी
नको अंत मदीय पाहूं सख्या भगवंता श्रीकांता
माध्यान्हरात्र उलटोनि गेली ही आतां आण चित्ता
जा होईल तुझा रे कांकडा ही राउळांतरीं आणतील भक्त नैवेघ हीनानापरी

13.पद

श्री सदगुरु बाबासाई तुजवांचुनि आश्रय नाही, भूतली धु0
मी पापी पतित धीमंदा । तारणें मला गुरुनाथा, झडकरी1
तूं शांतिक्षमेचा मेरु । तूं भवार्णवींचें तारुं, गुरुवरा 2
गुरुवरा मजसि पामरा, अता उद्घरा, त्वरित लवलाही, त्वरित लवलाही,
मी बुडतों भवभय डोही उद्घरा

श्री सदगु0 3

अगर आप साईं बाबा की भक्ति को गहराई से अनुभव करना चाहते हैं तो साईं बाबा काकड़ आरती के साथ-साथ हमारी साइट पर उपलब्ध साईं बाबा धूप आरती लिरिक्स और शेज आरती साईं बाबा लिरिक्स को भी अवश्य पढ़ें। ये सभी आरतियाँ भक्तों को अलग-अलग समय और भावों में बाबा के चरणों से जोड़ती हैं। साथ ही, यदि आप मंत्रों और स्तुति में रुचि रखते हैं, तो साईं बाबा स्तोत्रम आपके लिए अत्यंत लाभकारी होगा। हर आरती और स्तोत्र एक नई ऊर्जा और भक्ति की अनुभूति देता है।

काकड़ आरती करने की विधि

यह रही आरती करने की एक सामान्य लेकिन प्रभावी विधी-

  1. मूर्ति या इमेज: सबसे पहले साईं बाबा की प्रतिमा या इमेज को साफ-सुथरे स्थान पर स्थापित करें।
  2. सामग्री: इसके पास एक थाली में दीपक (माटी का दीया या मोमबत्ती), धूपबत्ती या कपूर, ताजे फूल और मिठाई जैसे प्रसाद रखें। सभी सामग्री शुद्ध और पवित्र होनी चाहिए।
  3. एकाग्रता: आरती शुरू करने से पहले कुछ देर ध्यान लगाकर मन को शांत करें और अपने हृदय में साईं बाबा के प्रति पूर्ण श्रद्धा और भक्ति का भाव जागृत करें।
  4. दीपक जलाना: अब दीपक को जलाकर साईं बाबा की प्रतिमा के सामने रखें। दीपक की लौ को ध्यान से देखें और धीरे-धीरे उसकी ज्योति को बाबा की ओर केंद्रित करते हुए दीपक घुमाएं।
  5. आरती गायन: इस दौरान Sai Baba Kakad Aarti Lyrics का उच्चारण करें। यदि आप इसे गाना नहीं कहते है तो इसे श्रद्धा पूर्वक सुने।
  6. प्रसाद चढ़ाना: आरती के बीच-बीच में ताजे फूल साईं बाबा के चरणों में अर्पित करें। इसके बाद अपनी श्रद्धा के अनुसार मिठाई या कोई और प्रसाद भी चढ़ाएं।
  7. आरती समाप्ति: आरती के अंत में दोनों हाथ जोड़कर बाबा से आशीर्वाद प्राप्त करें। अपने मन की शांति और सभी इच्छाओं की पूर्ति के लिए प्रार्थना करें।

Sai Baba Kakad Aarti सुबह सूर्योदय के ठीक पहले या तुरंत बाद की जाती है, क्योंकि यह समय आध्यात्मिक ऊर्जा से भरपूर होता है और दिन की सकारात्मक शुरुआत करता है।

FAQ

इस आरती की रचना किसने की है ?

क्या काकड़ आरती के लिए कोई विशेष दिन उपयुक्त होता है?

हालाँकि इसे रोज़ किया जा सकता है, लेकिन गुरुवार और पूर्णिमा जैसे शुभ दिनों पर इसका विशेष महत्व होता है।

क्या काकड़ आरती में भजन गाना आवश्यक है?

क्या महिलाएं साईं बाबा की काकड़ आरती कर सकती हैं?

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