Aigiri Nandini Lyrics In Hindi Meaning: एक शक्तिशाली स्तोत्र का अर्थ और महत्व

ऐगीरी नंदिनी एक प्रसिद्ध दुर्गा स्तोत्र है, जो देवी दुर्गा की महिमा का बखान करता है, और ऐगिरि नंदिनी लिरिक्स इन हिंदी अर्थ को समझने से भक्त देवी की शक्ति और महिमा को और गहरे से महसूस कर पाते हैं, और उनके साथ जुड़ने का एक अद्वितीय अनुभव प्राप्त करते हैं। Aigiri Nandini Lyrics In Hindi Meaning का अध्ययन करना भक्तों के लिए आसान होता है, जो आंतरिक शांति, मानसिक शक्ति और आत्मविश्वास प्रदान करता है।

यह स्तोत्र देवी दुर्गा के अनेकों रूपों की प्रशंसा करता है और उनके द्वारा संसार के संहार, पालन और सृजन के कार्यों को बारीकी से उजागर करता है। इसके शब्दों में न केवल देवी की शक्ति और सौंदर्य का वर्णन है, बल्कि उनके अंतर्निहित रहस्यों और चमत्कारी शक्तियों का भी ध्यान केंद्रित किया गया है। यह स्तोत्र देवी के भक्तों को उनकी सुरक्षा और आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए प्रेरित करता है। हमने आपके लिए इस स्तोत्र को यहां आपके लिए उपलब्ध कराया है –

Aigiri Nandini Lyrics In Hindi Meaning

अयि गिरि नन्दिनी नन्दितमेदिनि विश्वविनोदिनि नन्दिनुते
गिरिवर विन्ध्यशिरोधिनिवासिनी विष्णुविलासिनि जिष्णुनुते॥
भगवति हे शितिकण्ठकुटुम्बिनि भूरिकुटुम्बिनि भूरिकृते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते॥१॥

अर्थ- हे पर्वतराज हिमालय की कन्या, जो संपूर्ण जगत को आनंद प्रदान करती हो! हे देवी, जो नंदी गणों के द्वारा वंदित हो, जो विंध्याचल पर्वत के उच्च शिखर पर विराजमान हो! आप भगवान विष्णु की प्रिय हैं, देवराज इंद्र द्वारा वंदनीय हैं, और स्वयं महादेव, नीलकंठ की अर्धांगिनी हैं। हे माँ, जो संपूर्ण सृष्टि को एक परिवार के रूप में देखती हैं और उसे समृद्धि प्रदान करती हैं! महिषासुर का संहार करने वाली महाशक्ति, आपकी महिमा अपरंपार है। आपके घुंघराले केश लताओं की शोभा मन को आकर्षित करती है, और आप अपने भक्तों के लिए करुणामयी माता हैं। हे शक्ति स्वरूपिणी, पर्वतराज की पुत्री, आपकी अनंत जय हो! आपकी कृपा से सृष्टि सदा धन्य बनी रहे।

सुरवरवर्षिणि दुर्धरधर्षिणि दुर्मुखमर्षिणि हर्षरते
त्रिभुवनपोषिणि शंकरतोषिणि किल्बिषमोषिणि घोषरते॥
दनुजनिरोषिणि दितिसुतरोषिणि दुर्मदशोषिणी सिन्धुसुते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते॥२॥

अर्थ- हे देवी, जो देवों को वरदान प्रदान करने वाली हैं, जो दुर्धर्ष और क्रूर असुरों का संहार करती हैं, जो सदा स्वयं में आनंदित और प्रसन्न रहती हैं। हे तीनों लोकों का पालन करने वाली, शिव को संतुष्ट करने वाली, समस्त पापों का नाश करने वाली और महाशक्ति से गूंजती गर्जना करने वाली माँ, तुम्हारी जय हो!

हे दानवों के अहंकार को चूर्ण करने वाली, अधर्मियों के दंभ को नष्ट करने वाली, सागर तनया, पर्वतराज की पुत्री, महिषासुर का मर्दन करने वाली माँ, तुम्हारी जय हो, जय हो, जय हो! हे महाशक्ति, जो अपने दिव्य स्वरूप से जगत को मोहित करती हो, हम तुम्हें नमन करते हैं!

अयि जगदम्बमदम्बकदम्ब वनप्रियवासिनि हासरते
शिखरिशिरोमणि तुङ्गहिमालय शृंगनिजालय मध्यगते॥
मधुमधुरे मधुकैटभगन्जिनि कैटभभंजिनि रासरते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते॥३॥

अर्थ- हे जगदंबे, हे माँ! हे कदंब वन में प्रेमपूर्वक विराजने वाली, आनंद और हास्य से परिपूर्ण देवी! हे हिमालय शिखर पर स्थित अपने दिव्य भवन में विराजमान माँ, तुम्हारी मधुरता मधु (शहद) के समान है। तुमने दैत्यों के अभिमान को चूर्ण किया, तुमने महिषासुर का संहार कर धर्म की रक्षा की। युद्ध में सदैव विजयी रहने वाली माँ, तुम्हारी शक्ति अपार है।

हे पर्वतराज की कन्या, तुम्हारी अलौकिक छवि, तुम्हारे घुँघराले केशों की लटाएँ भक्तों को मोहती हैं। तुम्हारी महिमा अपरंपार है। हे माँ! तुम्हारी जय हो, जय हो, जय हो!

अयि शतखण्ड विखण्डितरुण्ड वितुण्डितशुण्ड गजाधिपते
रिपु गजगण्ड विदारणचण्ड पराक्रम शुण्ड मृगाधिपते॥
निजभुज दण्ड निपतित खण्ड विपातित मुंड भटाधिपते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते॥४॥

अर्थ- हे महिषासुर मर्दिनी! हे पर्वत पुत्री! तुम वह शक्ति हो जो अधर्म के अभिमानी शत्रुओं का नाश करती हो। तुम्हारे शौर्य से उनके मदमत्त हाथियों की सत्ता खंड-खंड हो जाती है, और तुम्हारा सिंह उनके अहंकार को चूर-चूर कर देता है। तुम अपनी दिव्य भुजाओं से चंड-मुंड का संहार कर संसार को भयमुक्त करती हो। तुम्हारी लहराती केशराशि आकर्षण और शक्ति का अद्भुत संगम है। हे देवी! तुम्हारी अनंत महिमा को कोटि-कोटि वंदन! जय हो, जय हो, जय हो!

अयि रणदुर्मद शत्रुवधोदित दुर्धरनिर्जर शक्तिभृते
चतुरविचारधुरीणमहाशिव दूतकृत प्रथमाधिपते॥
दुरितदुरीह दुराशयदुर्मति दानवदूत कृतान्तमते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते॥५॥

अर्थ- हे रणभूमि में मदमत्त शत्रुओं का संहार करने वाली, अनंत और अविनाशी शक्तियों को धारण करने वाली माँ! जो शिव की महिमा और चतुराई को जानकर उन्हें अपना दूत बनाती हो, जो दुष्ट बुद्धि और पापी विचारों से भरे दानवों के षड्यंत्र का अंत करती हो। हे महिषासुरमर्दिनी! जो अपने केशों की लहरों से संपूर्ण सृष्टि को मोहित कर लेती हो, पर्वतराज की पुत्री, तुम्हारी अनंत जय हो, बारंबार जय हो!

अयि शरणागत वैरिवधूवर वीरवराभय दायकरे
त्रिभुवनमस्तक शुलविरोधि शिरोऽधिकृतामल शूलकरे ॥
दुमिदुमितामर धुन्दुभिनादमहोमुखरीकृत दिङ्मकरे
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते॥६॥

अर्थ- हे शरणागत शत्रुओं की पत्नियों को अभय देने वाली,
हे त्रिशूलधारिणी, जो तीनों लोकों को पीड़ा देने वाले दैत्यों का संहार करने योग्य है,
हे देवी, जिनकी महिमा से देवताओं की दुन्दुभी गूँज उठती है, और जिसकी ध्वनि दिशाओं में व्याप्त होती है,
हे महिषासुर मर्दिनी, जो अपनी लहराती केशराशि से संसार को आकर्षित करती हैं,
हे पर्वतनंदिनी, तुम्हारी जय हो! तुम्हारी जय हो! तुम्हारी जय हो!

अयि निजहुङ्कृति मात्रनिराकृत धूम्रविलोचन धूम्रशते
समरविशोषित शोणितबीज समुद्भवशोणित बीजलते॥
शिवशिवशुम्भ निशुम्भमहाहव तर्पितभूत पिशाचरते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते॥७॥

अर्थ- हे देवी! तुम्हारी हुंकार मात्र से धूम्रलोचन जैसे दुष्ट राक्षस भस्म हो जाते हैं। युद्ध में जब रक्तबीज की रक्त की बूंदों से असंख्य रक्तबीज उत्पन्न हुए, तब तुमने अपने दिव्य स्वरूप से उनका संहार कर उनका रक्त पान किया। शुम्भ और निशुम्भ जैसे दैत्यों का अंत कर तुमने शिव और भूतगणों को तृप्त किया। हे महिषासुरमर्दिनी! तुम्हारी केशराशि की लताओं में अद्भुत आकर्षण है, जो संपूर्ण सृष्टि को मोह लेता है। हे पर्वतनंदिनी! तुम्हारी ही कृपा से संसार भयमुक्त होता है। तुम्हारी अनंत महिमा को प्रणाम! जय हो, जय हो, जय हो!

धनुरनुषङ्ग रणक्षणसङ्ग परिस्फुरदङ्ग नटत्कटके
कनकपिशङ्ग पृषत्कनिषङ्ग रसद्भटशृङ्ग हताबटुके॥
कृतचतुरङ्ग बलक्षितिरङ्ग घटद्बहुरङ्ग रटद्बटुके
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुत॥८॥

अर्थ- हे देवी! जिनके कर-कमलों में धारण किए कंगन रणभूमि में धनुष के साथ दमकते हैं, जिनके सुवर्ण-बाण शत्रुओं को विदीर्ण कर रक्त से रंजित हो जाते हैं, जिनकी दिव्य हुंकार से शत्रु भयभीत होकर करुण क्रंदन करते हैं। जो समस्त सेनाओं—हाथी, अश्व, रथ और पैदल दल—का संहार करने वाली महाशक्ति हैं। जो अनेक उग्र और वीर बालकों को उत्पन्न करने वाली, महिषासुर के अहंकार को चूर्ण करने वाली, अपने केशों की अलौकिक लताओं से मोहित करने वाली, हिमालय की दिव्य पुत्री हैं।

हे माँ! तुम्हारी अनंत जय हो! तुम्हारी महिमा अपरंपार है! जय जय माँ दुर्गे!

सुरललना ततथेयि तथेयि कृताभिनयोदर नृत्यरते
कृत कुकुथः कुकुथो गडदादिकताल कुतूहल गानरते॥
धुधुकुट धुक्कुट धिंधिमित ध्वनि धीर मृदंग निनादरते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते॥९॥

अर्थ- हे दिव्य भावनाओं से ओत-प्रोत नृत्य में मग्न रहने वाली, स्वर्गीय गीतों की मधुर लय में लीन रहने वाली, मृदंग की गंभीर ध्वनि से गूंजती हुई, महिषासुर का संहार करने वाली शक्ति स्वरूपिणी! हे पर्वतराज की पुत्री, जो अपने केशों की सजीव लताओं से आकर्षित करने वाली हैं, आपकी अनंत महिमा को नमन! आपकी जय हो, जय हो, जय हो!

जय जय जप्य जयेजयशब्द परस्तुति तत्परविश्वनुते
झणझणझिञ्झिमि झिङ्कृत नूपुरशिञ्जितमोहित भूतपते॥
नटित नटार्ध नटी नट नायक नाटितनाट्य सुगानरते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते॥१०॥

अर्थ- हे जगत की वंदनीय, हे स्तुति के योग्य देवी! तुम्हें संपूर्ण संसार नमन करता है। तुम्हारे नूपुरों की मधुर झंकार से स्वयं भूतनाथ महादेव मोहित होते हैं। अर्धनारीश्वर शिव के दिव्य नृत्य में रमने वाली, उस नाट्य को अपनी उपस्थिति से सुशोभित करने वाली देवी!

हे महिषासुरमर्दिनी, जो अधर्म का नाश कर धर्म की स्थापना करती हो, तुम्हारी महिमा अपरंपार है। तुम्हारे लहराते केशों की सघन लटाएं सौंदर्य और शक्ति का अद्भुत संगम हैं। हिमालय की पुत्री, शक्ति की साकार मूर्ति, तुम्हारी जय हो! तुम्हारी अनंत महिमा को कोटि-कोटि प्रणाम!

अयि सुमनःसुमनःसुमनः सुमनःसुमनोहरकान्तियुते
श्रितरजनी रजनीरजनी रजनीरजनी करवक्त्रवृते॥
सुनयनविभ्रमर भ्रमरभ्रमर भ्रमरभ्रमराधिपते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते॥११॥

अर्थ- हे महिषासुर मर्दिनी, तुम्हारे रूप की अपूर्व कान्ति और सौंदर्य अद्वितीय हैं। तुम्हारा चेहरा चाँद की आभा से भी अधिक आकर्षक और मनमोहक है, जो रात्री की छांव में भी अपने प्रकाश से जगमगाता है। तुम्हारी आँखों में काले भंवरों जैसी गहरी छवि है, जो हर किसी को मंत्रमुग्ध कर देती है। पर्वत की पुत्री, तुम्हारे बालों की लहरें भी अपने आप में एक आकर्षण हैं, जो सबको अपनी ओर खींचती हैं। तुम्हारी महिमा अपरम्पार है और तुम हमेशा विजय प्राप्त करो, जय हो, जय हो, जय हो!

सहितमहाहव मल्लमतल्लिक मल्लितरल्लक मल्लरते
विरचितवल्लिक पल्लिकमल्लिक झिल्लिकभिल्लिक वर्गवृते॥
शितकृतफुल्ल समुल्लसितारुण तल्लजपल्लव सल्ललिते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते॥१२॥

अर्थ- महायोद्धाओं के साथ युद्ध में चमेली के फूलों की तरह कोमल और मृदु स्त्रियाँ, चमेली की लताओं की तरह मुलायम भील कन्याएँ, जो झींगुरों के झुंड से घिरी रहती हैं, उनके चेहरे पर खुशी की चाँदनी, उषाकाल में उभरते सूर्य की तरह तेज और खिले लाल फूलों की समान मुस्कान, हे महिषासुर मर्दिनी, जिनकी शक्ति से यह संसार आनंदित होता है, तुम्हारे बालों की लताएँ जैसे दिव्य आकर्षण का रूप, पर्वतों की पुत्री, तुम्हारी जय हो, जय हो, जय हो।”

यह स्वरूप देवी के प्रति अत्यधिक श्रद्धा और भक्ति से प्रेरित है, जिसमें उनके दिव्य रूप, मुस्कान और शक्ति का निरंतर सम्मान किया जाता है।

अविरलगण्ड गलन्मदमेदुर मत्तमतङ्गजराजपते
त्रिभुवनभूषण भूतकलानिधि रूपपयोनिधि राजसुते॥
अयि सुदतीजन लालसमानस मोहन मन्मथराजसुते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते॥१३॥

अर्थ- हे गजेश्वरी, जिनके कानों से निरंतर मद बहता है, तुम उस शक्तिशाली हाथी के समान हो। तीनों लोकों के आभूषण – रूप, सौंदर्य, शक्ति और कला – तुम्हारी शोभा को और भी अधिक बढ़ाते हैं। हे राजपुत्री, जिनकी मुस्कान में मोह उत्पन्न करने वाली आकर्षकता है, तुम मन्मथ (कामदेव) की पुत्री के समान हो, जो सुंदर स्त्रियों के मन में मोह का संचार करती हो। हे महिषासुर का मर्दन करने वाली पर्वत की पुत्री, तुम अपनी लताओं से हमें आकर्षित करती हो। तुम्हारी जय हो, जय हो, जय हो!”

कमलदलामल कोमलकान्ति कलाकलितामल भाललते
सकलविलास कलानिलयक्रम केलिचलत्कल हंसकुले॥
अलिकुलसङ्कुल कुवलयमण्डल मौलिमिलद्बकुलालिकुले
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते॥१४॥

अर्थ- जिनका मस्तक कमल की पंखुड़ी जैसा कोमल, निर्मल और चमकदार है, जिनकी चाल हंसों की तरह लुभावनी है, जिनसे सभी कलाओं का सृजन हुआ है, जिनके बालों में कुमुदनी के फूल और बकुल के पुष्प भंवरों से घिरे होते हैं, उन महिषासुर का वध करने वाली, अपनी बालों की लताओं से संसार को आकर्षित करने वाली पर्वत की पुत्री, देवी दुर्गा की जय हो, जय हो, जय हो।

करमुरलीरव वीजितकूजित लज्जितकोकिल मञ्जुमते
मिलितपुलिन्द मनोहरगुञ्जित रञ्जितशैल निकुञ्जगते॥
निजगणभूत महाशबरीगण सद्गुणसम्भृत केलितले
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते॥१५॥

अर्थ- जिनके हाथों की मुरली की मधुर ध्वनि सुनकर कोयल भी चुप हो जाती है, जो रंग-बिरंगे पर्वतों के बीच विचरते हुए, पुलिंद जनजाति की स्त्रियों के साथ सुरीले गीत गाती हैं, जो शबरी जाति की उन भक्तनाओं के साथ खेलती हैं, जो सद्गुणों में समृद्ध हैं। उन महिषासुर का संहार करने वाली, जिनके बालों की लताएँ पर्वतों की शक्ति को आकर्षित करती हैं, उन पर्वत की पुत्री की जय हो, जय हो, जय हो।

कटितटपीत दुकूलविचित्र मयुखतिरस्कृत चन्द्ररुचे
प्रणतसुरासुर मौलिमणिस्फुर दंशुलसन्नख चन्द्ररुचे॥
जितकनकाचल मौलिमदोर्जित निर्भरकुञ्जर कुम्भकुचे
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते॥१६॥

अर्थ- जिनकी अनुपम आभा से चन्द्रमा की रौशनी भी फीकी पड़ जाती है, जिनकी कमर रेशमी वस्त्रों से अलंकृत होकर परम सुंदरता का प्रतीक बनती है। देवता और असुर दोनों ही जिनके सामने सिर झुकाते हैं, जिनके मुकुट की मणियाँ उनके पैरों के नाखूनों से इस तरह चमकती हैं जैसे चन्द्रमा की रौशनी। जैसे सोने के पर्वतों पर विजय प्राप्त कर कोई हाथी मदमस्त होकर गजराज की तरह शोर मचाता है, ठीक वैसे ही देवी के उरोज (वक्ष स्थल) भी अत्यधिक सौंदर्य और शक्ति से परिपूर्ण प्रतीत होते हैं। हे महिषासुर मर्दिनी, पर्वतों की पुत्री, जो अपनी बालों की लता से मोहक रूप से आकर्षित करती हो, तुम्हारी महिमा अपरंपार है। तुम्हारी जय हो, जय हो, जय हो!

विजितसहस्रकरैक सहस्रकरैक सहस्रकरैकनुते
कृतसुरतारक सङ्गरतारक सङ्गरतारक सूनुसुते॥
सुरथसमाधि समानसमाधि समाधिसमाधि सुजातरते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते॥१७॥

अर्थ- सहस्रों दैत्यों के हजारों हाथों से हजारों युद्धों को जीतने वाली, और जिनके सहस्रों हाथों से पूजा जाती है, जो देवताओं को रक्षार्थ उत्पन्न करने वाली और तारकासुर के साथ महान युद्ध में संलग्न करने वाली, राजा सुरथ और समाधि नामक वैश्य की भक्ति से संतुष्ट होने वाली, हे महिषासुर मर्दिनी, बालों की लताओं से आकर्षित करने वाली पर्वत पुत्री! तुम्हारी जय हो, जय हो, जय हो। यह श्लोक देवी की अनंत शक्ति और उनके अद्वितीय रूपों का आह्वान करता है, जो न केवल संसार के असुरों को पराजित करती हैं, बल्कि अपने भक्तों की भक्ति से भी असीम संतुष्टि प्राप्त करती हैं। यहाँ देवी के महिमामंडन के साथ-साथ, उनकी रक्षात्मक और समर्पण की भावना को व्यक्त किया गया है।

पदकमलं करुणानिलये वरिवस्यति योऽनुदिनं सुशिवे
अयि कमले कमलानिलये कमलानिलयः स कथं न भवेत्॥
तव पदमेव परम्पदमित्यनुशीलयतो मम किं न शिवे
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते॥१८॥

अर्थ- हे कमला! जो कोई भी तुम्हारे करुणामय पदकमल की सेवा करता है, वह व्यक्ति समृद्धि और ऐश्वर्य से कैसे विहीन रह सकता है? तुम्हारे पदकमल ही तो परम पद की ओर ले जाते हैं, और उनका ध्यान करने पर भी मुझे उस परम पद की प्राप्ति क्यों नहीं हो सकती? हे महिषासुर का संहार करने वाली, हे पर्वत की कन्या! तुम्हारी महिमा और विजय का हर क्षण जयकार हो, जयकार हो, जयकार हो।”

यह संस्करण एक गहरी आध्यात्मिक भावना और मानव हृदय को जोड़ने का प्रयास करता है, जहां भक्ति और समर्पण की सरलता के साथ देवी की महिमा और शक्ति का आदर व्यक्त किया गया है।

कनकलसत्कलसिन्धुजलैरनुषिञ्चति तेगुणरङ्गभुवम्
भजति स किं न शचीकुचकुम्भतटीपरिरम्भसुखानुभवम्॥
तव चरणं शरणं करवाणि नतामरवाणि निवासि शिवम्
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते॥१९॥

अर्थ- जैसे सोने के समान चमकते हुए नदी के पानी से जब कोई तुम्हारे आशीर्वाद से रंगित होता है, वैसे ही शची (इंद्राणी) के गले से आलिंगन प्राप्त करने वाले इंद्र की तरह परम सुख का अनुभव करता है। हे वाणी (महासरस्वती), तुममें शुभता और समृद्धि का निवास है। मैं तुम्हारे चरणों में शरणागत हूँ, हे महिषासुर मर्दिनी, तुम्हारी जय हो, जो बालों की लताओं से सज्जित पर्वत की पुत्री हो, तुम्हारी जय हो, जय हो, जय हो।

तव विमलेन्दुकुलं वदनेन्दुमलं सकलं ननुकूलयते
किमु पुरुहूतपुरीन्दु मुखीसु मुखीभिरसौ विमुखीक्रियते॥
ममतु मतं शिवनामधने भवती कृपया किमुतक्रियते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते॥२०॥

अर्थ- तुम्हारा मुख चन्द्रमा के समान निर्मल और शीतल है, जो सभी गंदगी और अशुद्धताओं को दूर कर देता है। यही कारण है कि मेरे मन की आंतरिक विकार और भ्रम दूर हो जाते हैं। मेरे विचार से, तुम्हारी अनुकम्पा के बिना शिव के दिव्य नाम की प्राप्ति संभव नहीं हो सकती। हे महिषासुर मर्दिनी, जिनकी लताओं के रूप में बालों का आकर्षण अद्भुत है, तुम्हारी महिमा अपार है। तुम्हारी जय हो, तुम्हारी जय हो, तुम्हारी जय हो।

अयि मयि दीन दयालु-तया कृपयैव त्वया भवितव्यमुमे
अयि जगतो जननी कृपयासि यथासि तथानुमितासिरते
यदुचितमत्र भवत्युररीकुरुतादुरुतापमपाकुरुते
जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते॥२१॥

अर्थ- हे दीन-हीन पर कृपा करने वाली उमा! मेरी भी शरण में आकर मुझ पर अपनी दया की वर्षा कर दो। हे जगत जननी! जैसे तुम अपने भक्तों पर अनुकंपा की वर्षा करती हो, वैसे ही शत्रु के तीरों की बौछार भी करती हो, अतः इस समय मेरे पाप और कष्टों को दूर करो, जैसा तुम्हारे समीप उचित हो। हे महिषासुर मर्दिनी! बालों की लताओं से आकर्षित करने वाली, पर्वत की पुत्री, तुम्हारी महिमा अनन्त है। तुम्हारी जय हो, तुम्हारी जय हो, तुम्हारी जय हो।

इस स्तोत्र के माध्यम से हम देवी दुर्गा की असीम शक्ति और कृपा का अनुभव करते हैं। उनकी उपासना से न केवल हमारे जीवन के संकट दूर होते हैं, बल्कि हम आध्यात्मिक उन्नति की ओर भी बढ़ते हैं। Aigiri Nandini लिरिक्स की गूंज में छिपे अर्थ और उसकी शक्ति हमें शांति, शक्ति और आंतरिक संतुलन की प्राप्ति कराते हैं।

ऐगिरि नंदिनी लिरिक्स इन हिंदी अर्थ को जानने से भक्तों को इस दिव्य स्तोत्र का सटीक अर्थ समझने में मदद मिलती है। देवी की महिमा का जाप और ध्यान हमें उनके आशीर्वाद से अभिभूत करता है, और हमें हर मुश्किल से निपटने की शक्ति देता है।

FAQ

Aigiri Nandini” किसने लिखा?

इसे आदि शंकराचार्य जी ने लिखा। है

ऐगिरि नंदिनी लिरिक्स इन हिंदी अर्थ क्यों समझना महत्वपूर्ण है?

इसका पाठ कब और कैसे करें?

क्या इसका पाठ किसी विशेष दिन या समय पर करना चाहिए?

क्या इस पाठ को घर में अकेले भी पढ़ सकते हैं?

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