इक ठौर चाहिये | Ek Thour Chahiye

इक ठौर चाहिये भजन भगवान के शरण में जाने की प्रार्थना को व्यक्त करता है। इसमें भक्त यह कहता है कि उसे इस संसार में किसी और चीज की आवश्यकता नहीं है, केवल भगवान की शरण चाहिए, जहां वह शांति और संतुष्टि पा सके। यह भजन एक गहरी आत्मिक भावना को प्रकट करता है कि जीवन के सभी सुख और दुखों के बीच हमें सिर्फ भगवान का आश्रय चाहिए, जो हमें हर संकट से उबारने और हमें शांति देने में सक्षम है।

Ek Thour Chahiye

थक गया हूँ चलते चलते
इक ठौर चाहिये।
तेरे चरणों के सिवाय
ठिकाना ना और चाहिये।

भटक रहा है मन
डगर है बहुत अँधेरी
राह दिखाये ऐसी
इक भोर चाहिये।
तेरे चरणों के सिवाय
ठिकाना ना और चाहिये।
थक गया हूँ चलते चलते
इक ठौर चाहिये।

डगमगा रही है कश्ती
भँवर बहुत हैं गहरे
डूब रहा हूँ तुम्हारे होते
तुम कैसे मांझी ठहरे
थामों पतवार आके
मुझे छोर चाहिये।
तेरे चरणों के सिवाय
ठिकाना ना और चाहिये।
थक गया हूँ चलते चलते
इक ठौर चाहिये।

इक ठौर चाहिये भजन हमें यह समझाता है कि भगवान का शरण ही जीवन का सर्वोत्तम समाधान है। जब हम भगवान के पास जाते हैं और उनकी शरण में रहते हैं, तो हम दुनिया की सभी समस्याओं से पार पा सकते हैं। इस भक्ति रस को और गहराई से अनुभव करने के लिए आप श्री हरि की महिमा अपार”, गोविंद बोलो हरि गोपाल बोलो, नारायण, नारायण जय गोविंद हरे और संकट हरन श्री विष्णु जी जैसे अन्य भजनों का भी पाठ करें और भगवान विष्णु की कृपा का अनुभव करें। 🙏💛

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