Shiv Tandav Stotram Ringtone

Shiv Tandav Stotram Ringtone | शिव तांडव स्तोत्रम रिंगटोन

Shiv Tandav Stotram Ringtone एक छोटा ध्वनिक फाइल होता है। जिसे आप अपने मोबाइल फोन पर रिंगटोन के रूप में उपयोग कर सकते हैं। जब यह दिव्य स्तोत्र आपकी फोन की रिंगटोन बनेगा, तो हर बार फोन की घंटी बजने पर महादेव की उपस्थिति और शक्ति का एहसास होगा। यह न सिर्फ आपकी भक्ति को …

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शिव तांडव स्तोत्र लिरिक्स जटाटवीगलज्जल प्रवाहपावितस्थले गलेऽवलम्ब्य लम्बितां भुजंगतुंगमालिकाम्‌।  डमड्डमड्डमड्डमनिनादवड्डमर्वयं चकार चंडतांडवं तनोतु नः शिवः शिवम॥1॥ जटा कटा हसंभ्रम भ्रमन्निलिंपनिर्झरी। विलोलवी चिवल्लरी विराजमानमूर्धनि। धगद्धगद्ध गज्ज्वलल्ललाट पट्टपावके किशोरचंद्रशेखरे रतिः प्रतिक्षणं ममं॥2॥  धरा धरेंद्र नंदिनी विलास बंधुवंधुर स्फुरदृगंत संतति प्रमोद मानमानसे। कृपाकटा क्षधारणी निरुद्धदुर्धरापदि कवचिद्विगम्बरे मनो विनोदमेतु वस्तुनि॥3॥ जटा भुजं गपिंगल स्फुरत्फणामणिप्रभा कदंबकुंकुम द्रवप्रलिप्त दिग्वधूमुखे। मदांध सिंधु रस्फुरत्वगुत्तरीयमेदुरे मनो विनोदद्भुतं बिंभर्तु भूतभर्तरि॥4॥  सहस्र लोचन प्रभृत्य शेषलेखशेखर प्रसून धूलिधोरणी विधूसरांघ्रिपीठभूः। भुजंगराज मालया निबद्धजाटजूटकः श्रिये चिराय जायतां चकोर बंधुशेखरः॥5॥ ललाट चत्वरज्वलद्धनंजयस्फुरिगभा निपीतपंचसायकं निमन्निलिंपनायम्‌। सुधा मयुख लेखया विराजमानशेखरं महा कपालि संपदे शिरोजयालमस्तू नः॥6॥ कराल भाल पट्टिकाधगद्धगद्धगज्ज्वल द्धनंजया धरीकृतप्रचंडपंचसायके। धराधरेंद्र नंदिनी कुचाग्रचित्रपत्रक प्रकल्पनैकशिल्पिनि त्रिलोचने मतिर्मम॥7॥ नवीन मेघ मंडली निरुद्धदुर्धरस्फुर त्कुहु निशीथिनीतमः प्रबंधबंधुकंधरः। निलिम्पनिर्झरि धरस्तनोतु कृत्ति सिंधुरः कलानिधानबंधुरः श्रियं जगंद्धुरंधरः॥8॥  प्रफुल्ल नील पंकज प्रपंचकालिमच्छटा विडंबि कंठकंध रारुचि प्रबंधकंधरम्‌ स्मरच्छिदं पुरच्छिंद भवच्छिदं मखच्छिदं गजच्छिदांधकच्छिदं तमंतकच्छिदं भजे॥9॥ अगर्वसर्वमंगला कलाकदम्बमंजरी रसप्रवाह माधुरी विजृंभणा मधुव्रतम्‌। स्मरांतकं पुरातकं भावंतकं मखांतकं गजांतकांधकांतकं तमंतकांतकं भजे॥10॥ जयत्वदभ्रविभ्रम भ्रमद्भुजंगमस्फुर द्धगद्धगद्वि निर्गमत्कराल भाल हव्यवाट् धिमिद्धिमिद्धिमि नन्मृदंगतुंगमंगल ध्वनिक्रमप्रवर्तित प्रचण्ड ताण्डवः शिवः॥11॥ दृषद्विचित्रतल्पयोर्भुजंग मौक्तिकमस्रजो र्गरिष्ठरत्नलोष्टयोः सुहृद्विपक्षपक्षयोः। तृणारविंदचक्षुषोः प्रजामहीमहेन्द्रयोः समं प्रवर्तयन्मनः कदा सदाशिवं भजे॥12॥ कदा निलिंपनिर्झरी निकुजकोटरे वसन्‌ विमुक्तदुर्मतिः सदा शिरःस्थमंजलिं वहन्‌। विमुक्तलोललोचनो ललामभाललग्नकः शिवेति मंत्रमुच्चरन्‌कदा सुखी भवाम्यहम्‌॥13॥ निलिम्प नाथनागरी कदम्ब मौलमल्लिका निगुम्फनिर्भक्षरन्म धूष्णिकामनोहरः। तनोतु नो मनोमुदं विनोदिनींमहनिशं परिश्रय परं पदं तदंगजत्विषां चयः॥14॥ प्रचण्ड वाडवानल प्रभाशुभप्रचारणी महाष्टसिद्धिकामिनी जनावहूत जल्पना। विमुक्त वाम लोचनो विवाहकालिकध्वनिः शिवेति मन्त्रभूषगो जगज्जयाय जायताम्‌॥15॥ इमं हि नित्यमेव मुक्तमुक्तमोत्तम स्तवं पठन्स्मरन्‌ ब्रुवन्नरो विशुद्धमेति संततम्‌। हरे गुरौ सुभक्तिमाशु याति नांयथा गतिं विमोहनं हि देहना तु शंकरस्य चिंतनम॥16॥ पूजाऽवसानसमये दशवक्रत्रगीतं यः शम्भूपूजनमिदं पठति प्रदोषे। तस्य स्थिरां रथगजेंद्रतुरंगयुक्तां लक्ष्मी सदैव सुमुखीं प्रददाति शम्भुः॥17॥ ॥ इति शिव तांडव स्तोत्रं संपूर्णम्‌॥

Shiv Tandav Stotra Lyrics | शिव तांडव स्तोत्र लिरिक्स

शिव तांडव स्तोत्र लिरिक्स आपके धार्मिक कार्यो में अत्यधिक उपयोगी हो सकता है। इसके प्रयोग से आप स्तोत्र को बिना किसी कठिनाई के पढ़ सकतें है और अपने पाठ को और प्रभावशाली बना सकते है। यह स्तोत्र भगवन शिव की भक्ति और स्तुति के लिए समर्पित है Shiv Tandav Stotram में भगवान शिव के तांडव …

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Shiv Tandav Stotram Pdf | शिव तांडव स्त्रोत्रम पीडीऍफ़

शिव तांडव स्त्रोत्रम पीडीऍफ़ आपकी भक्ति और आराधना का एक अच्छा साधन हो सकता है जिसका प्रयोग करके आप शिव के प्रति अपने विश्वास को और भी गहरा कर सकतें है। इस Shiv Tandav Stotram में भगवन शिव के क्रोध, त्याग, तपस्या, और महिमा का वर्णन किया गया है। इस पीडीऍफ़ को आप अपने मोबाइल …

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Hanuman Dwadash Naam Stotram !! श्री हनुमानद्वादशनाम स्तोत्र !! हनुमानञ्जनी सूनुर्वायुपुत्रो महाबल: ... ! रामेष्ट: फाल्गुनसख: पिङ्गाक्षोऽमितविक्रम: !! उदधिक्रमणश्चैव सीताशोकविनाशन: ...! लक्ष्मणप्राणदाता च दशग्रीवस्य दर्पहा !! एवं द्वादश नामानि कपीन्द्रस्य महात्मन: ... ! स्वापकाले प्रबोधे च यात्राकाले च य: पठेत् !! तस्य सर्वभयं नास्ति रणे च विजयी भवेत् ... ! राजद्वारे गह्वरे च भयं नास्ति कदाचन !!

Hanuman Dwadash Naam Stotram | हनुमान द्वादश नाम स्तोत्र : सकारात्मक ऊर्जा

हनुमान द्वादश नाम स्तोत्र भगवान हनुमान के बारह पवित्र नामों का संकलन है, जो भक्तों के लिए अति शुभ और फलदायी माना जाता है। यह Hanuman Dwadash Naam Stotram भक्तों के जीवन में साहस, शक्ति, और सकारात्मक ऊर्जा का संचार करता है। हनुमान जी को हिंदू धर्म में असीम शक्ति, अद्वितीय भक्ति और अटल विश्वास …

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Hanuman Vadvanal Stotra ॥ विनियोग ॥ ॐ अस्य श्री हनुमान् वडवानल-स्तोत्र-मन्त्रस्य श्रीरामचन्द्र ऋषिः ! श्रीहनुमान् वडवानल देवता, ह्रां बीजम्, ह्रीं शक्तिं, सौं कीलकं !! मम समस्त विघ्न-दोष-निवारणार्थे, सर्व-शत्रुक्षयार्थे ॥ सकल-राज-कुल-संमोहनार्थे, मम समस्त-रोग-प्रशमनार्थम् ! आयुरारोग्यैश्वर्याऽभिवृद्धयर्थं समस्त-पाप-क्षयार्थं !! श्रीसीतारामचन्द्र-प्रीत्यर्थं च हनुमद् वडवानल-स्तोत्र जपमहं करिष्ये ॥ ॥ ध्यान ॥ मनोजवं मारुत-तुल्य-वेगं जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठं ! वातात्मजं वानर-यूथ-मुख्यं श्रीरामदूतम् शरणं प्रपद्ये ॥ ॐ ह्रां ह्रीं ॐ नमो भगवते श्रीमहा-हनुमते प्रकट-पराक्रम ! सकल-दिङ्मण्डल-यशोवितान-धवलीकृत-जगत-त्रितय ॥ वज्र-देह रुद्रावतार लंकापुरीदहय उमा-अर्गल-मंत्र ! उदधि-बंधन दशशिरः कृतान्तक सीताश्वसन वायु-पुत्र ॥ अञ्जनी-गर्भ-सम्भूत श्रीराम-लक्ष्मणानन्दकर कपि-सैन्य-प्राकार ! सुग्रीव-साह्यकरण पर्वतोत्पाटन कुमार-ब्रह्मचारिन् गंभीरनाद ॥ सर्व-पाप-ग्रह-वारण-सर्व-ज्वरोच्चाटन डाकिनी-शाकिनी-विध्वंसन ! ॐ ह्रां ह्रीं ॐ नमो भगवते महावीर-वीराय सर्व-दुःख निवारणाय ॥ ग्रह-मण्डल सर्व-भूत-मण्डल सर्व-पिशाच-मण्डलोच्चाटन ! भूत-ज्वर-एकाहिक-ज्वर, द्वयाहिक-ज्वर, त्र्याहिक-ज्वर ॥ चातुर्थिक-ज्वर, संताप-ज्वर, विषम-ज्वर, ताप-ज्वर ! माहेश्वर-वैष्णव-ज्वरान् छिन्दि-छिन्दि यक्ष ब्रह्म-राक्षस !! भूत-प्रेत-पिशाचान् उच्चाटय-उच्चाटय स्वाहा ॥ ॐ ह्रां ह्रीं ॐ नमो भगवते श्रीमहा-हनुमते ! ॐ ह्रां ह्रीं ह्रूं ह्रैं ह्रौं ह्रः आं हां हां हां हां ॥ ॐ सौं एहि एहि ॐ हं ॐ हं ॐ हं ॐ हं ! ॐ नमो भगवते श्रीमहा-हनुमते श्रवण-चक्षुर्भूतानां ॥ शाकिनी डाकिनीनां विषम-दुष्टानां सर्व-विषं हर हर ! आकाश-भुवनं भेदय भेदय छेदय छेदय मारय मारय ॥ शोषय शोषय मोहय मोहय ज्वालय ज्वालय ! प्रहारय प्रहारय शकल-मायां भेदय भेदय स्वाहा ॥ ॐ ह्रां ह्रीं ॐ नमो भगवते महा-हनुमते सर्व-ग्रहोच्चाटन ! परबलं क्षोभय क्षोभय सकल-बंधन मोक्षणं कुर-कुरु ॥ शिरः-शूल गुल्म-शूल सर्व-शूलान्निर्मूलय निर्मूलय ! नागपाशानन्त-वासुकि-तक्षक-कर्कोटकालियान् !! यक्ष-कुल-जगत-रात्रिञ्चर-दिवाचर-सर्पान्निर्विषं कुरु-कुरु स्वाहा ॥ ॐ ह्रां ह्रीं ॐ नमो भगवते महा-हनुमते ! राजभय चोरभय पर-मन्त्र-पर-यन्त्र-पर-तन्त्र ॥ पर-विद्याश्छेदय छेदय सर्व-शत्रून्नासय ! नाशय असाध्यं साधय साधय हुं फट् स्वाहा ॥

हनुमान वडवानल स्तोत्र | Hanuman Vadvanal Stotra : पूजा का महामंत्र

इस हनुमान वडवानल स्तोत्र में विभीषण ने भगवान राम और हनुमान का वर्णन किया हैं। इस स्त्रोत का जाप करने से आप के जीवन के सभी कष्टों का नाश होगा तथा आप खुद को सुरक्षित महसूस करेंगे। यह हनुमान पूजा मंत्र भगवान की कृपा को पाने का एक महामंत्र है। इस स्त्रोत में हनुमान जी …

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Kartavirya Arjuna Mantra कार्तवीर्यार्जुनॊनाम राजाबाहुसहस्रवान् ... तस्यस्मरण मात्रॆण गतम् नष्टम् च लभ्यतॆ !! कार्तवीर्यह:खलद्वॆशीकृत वीर्यॊसुतॊबली ... सहस्र बाहु:शत्रुघ्नॊ रक्तवास धनुर्धर: !! रक्तगन्थॊ रक्तमाल्यॊ राजास्मर्तुरभीश्टद:... द्वादशैतानि नामानि कातवीर्यस्य य: पठॆत् !! सम्पदस्तत्र जायन्तॆ जनस्तत्रवशन्गतह:... आनयत्याशु दूर्स्थम् क्षॆम लाभयुतम् प्रियम् !! सहस्रबाहुम् महितम् सशरम् सचापम्... रक्ताम्बरम् विविध रक्तकिरीट भूषम् !! चॊरादि दुष्ट भयनाशन मिश्टदन्तम्... ध्यायॆनामहाबलविजृम्भित कार्तवीर्यम् !! यस्य स्मरण मात्रॆण सर्वदु:खक्षयॊ भवॆत्... यन्नामानि महावीरस्चार्जुनह:कृतवीर्यवान् !! हैहयाधिपतॆ: स्तॊत्रम् सहस्रावृत्तिकारितम्... वाचितार्थप्रदम् नृणम् स्वराज्यम् सुक्रुतम् यदि !! ॥ इति श्री कार्तवीर्यार्जुन स्त्रोत द्वादश नामस्तॊत्रम् सम्पूर्णम् !!

Kartavirya Arjuna Mantra | कार्तवीर्य अर्जुन : वीरता

कार्तवीर्य अर्जुन, हिन्दू पौराणिक ग्रंथ ‘महाभारत’ में एक महत्वपूर्ण पात्र है। महाभारत में इनके  सौर्य गाथा का वर्णन हुआ है।कार्तवीर्य अर्जुन का चरित्र महाभारत में सहस्रबाहु और धार्मिक पुरुष के रूप में दर्शाया गया है। अर्जुन के बहादुरी और वीरता के कारण वे कार्तवीर्य अर्जुन के नाम से प्रसिद्ध हुए।Kartavirya Arjuna Mantra आपके लिए उपलब्ध …

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Ramayan Manka 108 रघुपति राघव राजाराम... पतितपावन सीताराम ॥ जय रघुनन्दन जय घनश्याम... पतितपावन सीताराम ॥ भीड़ पड़ी जब भक्त पुकारे... दूर करो प्रभु दु:ख हमारे ॥ दशरथ के घर जन्मे राम... पतितपावन सीताराम ॥ 1 ॥ विश्वामित्र मुनीश्वर आये... दशरथ भूप से वचन सुनाये ॥ संग में भेजे लक्ष्मण राम... पतितपावन सीताराम ॥ 2 ॥ वन में जाए ताड़का मारी... चरण छुआए अहिल्या तारी ॥ ऋषियों के दु:ख हरते राम... पतितपावन सीताराम ॥ 3 ॥ जनक पुरी रघुनन्दन आए... नगर निवासी दर्शन पाए ॥ सीता के मन भाए राम... पतितपावन सीताराम ॥ 4॥ रघुनन्दन ने धनुष चढ़ाया... सब राजो का मान घटाया ॥ सीता ने वर पाए राम... पतितपावन सीताराम ॥5॥ परशुराम क्रोधित हो आये... दुष्ट भूप मन में हरषाये ॥ जनक राय ने किया प्रणाम... पतितपावन सीताराम ॥6॥ बोले लखन सुनो मुनि ग्यानी... संत नहीं होते अभिमानी ॥ मीठी वाणी बोले राम... पतितपावन सीताराम ॥7॥ लक्ष्मण वचन ध्यान मत दीजो... जो कुछ दण्ड दास को दीजो ॥ धनुष तोडय्या हूँ मै राम... पतितपावन सीताराम ॥8॥ लेकर के यह धनुष चढ़ाओ... अपनी शक्ति मुझे दिखलाओ ॥ छूवत चाप चढ़ाये राम... पतितपावन सीताराम ॥9॥ हुई उर्मिला लखन की नारी... श्रुतिकीर्ति रिपुसूदन प्यारी ॥ हुई माण्डव भरत के बाम... पतितपावन सीताराम ॥10॥ अवधपुरी रघुनन्दन आये... घर-घर नारी मंगल गाये ॥ बारह वर्ष बिताये राम... पतितपावन सीताराम ॥11॥ गुरु वशिष्ठ से आज्ञा लीनी... राज तिलक तैयारी कीनी ॥ कल को होंगे राजा राम... पतितपावन सीताराम ॥12॥ कुटिल मंथरा ने बहकाई... कैकई ने यह बात सुनाई ॥ दे दो मेरे दो वरदान... पतितपावन सीताराम ॥13॥ मेरी विनती तुम सुन लीजो... भरत पुत्र को गद्दी दीजो ॥ होत प्रात वन भेजो राम... पतितपावन सीताराम ॥14॥ धरनी गिरे भूप ततकाला... लागा दिल में सूल विशाला ॥ तब सुमन्त बुलवाये राम... पतितपावन सीताराम ॥15॥ राम पिता को शीश नवाये... मुख से वचन कहा नहीं जाये ॥ कैकई वचन सुनयो राम... पतितपावन सीताराम ॥16॥ राजा के तुम प्राण प्यारे... इनके दु:ख हरोगे सारे ॥ अब तुम वन में जाओ राम... पतितपावन सीताराम ॥17॥ वन में चौदह वर्ष बिताओ... रघुकुल रीति-नीति अपनाओ ॥ तपसी वेष बनाओ राम... पतितपावन सीताराम ॥18॥ सुनत वचन राघव हरषाये... माता जी के मंदिर आये ॥ चरण कमल मे किया प्रणाम... पतितपावन सीताराम ॥19॥ माता जी मैं तो वन जाऊं... चौदह वर्ष बाद फिर आऊं ॥ चरण कमल देखूं सुख धाम... पतितपावन सीताराम ॥20॥ सुनी शूल सम जब यह बानी... भू पर गिरी कौशल्या रानी ॥ धीरज बंधा रहे श्रीराम... पतितपावन सीताराम ॥21॥ सीताजी जब यह सुन पाई... रंग महल से नीचे आई ॥ कौशल्या को किया प्रणाम... पतितपावन सीताराम ॥22॥ मेरी चूक क्षमा कर दीजो... वन जाने की आज्ञा दीजो ॥ सीता को समझाते राम... पतितपावन सीताराम ॥23॥ मेरी सीख सिया सुन लीजो... सास ससुर की सेवा कीजो ॥ मुझको भी होगा विश्राम... पतितपावन सीताराम ॥24॥ मेरा दोष बता प्रभु दीजो... संग मुझे सेवा में लीजो ॥ अर्द्धांगिनी तुम्हारी राम... पतितपावन सीताराम ॥25॥ समाचार सुनि लक्ष्मण आये... धनुष बाण संग परम सुहाये ॥ बोले संग चलूंगा राम... पतितपावन सीताराम ॥26॥ राम लखन मिथिलेश कुमारी... वन जाने की करी तैयारी ॥ रथ में बैठ गये सुख धाम... पतितपावन सीताराम ॥27॥ अवधपुरी के सब नर नारी... समाचार सुन व्याकुल भारी ॥ मचा अवध में कोहराम... पतितपावन सीताराम ॥28॥ श्रृंगवेरपुर रघुवर आये... रथ को अवधपुरी लौटाये ॥ गंगा तट पर आये राम... पतितपावन सीताराम ॥29॥ केवट कहे चरण धुलवाओ... पीछे नौका में चढ़ जाओ ॥ पत्थर कर दी, नारी राम... पतितपावन सीताराम ॥30॥ लाया एक कठौता पानी... चरण कमल धोये सुख मानी ॥ नाव चढ़ाये लक्ष्मण राम... पतितपावन सीताराम ॥31॥ उतराई में मुदरी दीनी... केवट ने यह विनती कीनी ॥ उतराई नहीं लूंगा राम... पतितपावन सीताराम ॥32॥ तुम आये, हम घाट उतारे... हम आयेंगे घाट तुम्हारे ॥ तब तुम पार लगायो राम... पतितपावन सीताराम ॥33॥ भरद्वाज आश्रम पर आये... राम लखन ने शीष नवाए ॥ एक रात कीन्हा विश्राम... पतितपावन सीताराम ॥34॥ भाई भरत अयोध्या आये... कैकई को कटु वचन सुनाये ॥ क्यों तुमने वन भेजे राम... पतितपावन सीताराम ॥35॥ चित्रकूट रघुनंदन आये... वन को देख सिया सुख पाये ॥ मिले भरत से भाई राम... पतितपावन सीताराम ॥36॥ अवधपुरी को चलिए भाई... यह सब कैकई की कुटिलाई ॥ तनिक दोष नहीं मेरा राम... पतितपावन सीताराम ॥37॥ चरण पादुका तुम ले जाओ... पूजा कर दर्शन फल पावो ॥ भरत को कंठ लगाये राम... पतितपावन सीताराम ॥38॥ आगे चले राम रघुराया... निशाचरों का वंश मिटाया ॥ ऋषियों के हुए पूरन काम... पतितपावन सीताराम ॥39॥ अनसूया की कुटीया आये... दिव्य वस्त्र सिय मां ने पाय ॥ था मुनि अत्री का वह धाम... पतितपावन सीताराम ॥40॥ मुनि-स्थान आए रघुराई... शूर्पनखा की नाक कटाई ॥ खरदूषन को मारे राम... पतितपावन सीताराम ॥41॥ पंचवटी रघुनंदन आए... कनक मृग मारीच संग धाये ॥ लक्ष्मण तुम्हें बुलाते राम... पतितपावन सीताराम ॥42॥ रावण साधु वेष में आया... भूख ने मुझको बहुत सताया ॥ भिक्षा दो यह धर्म का काम... पतितपावन सीताराम ॥43॥ भिक्षा लेकर सीता आई... हाथ पकड़ रथ में बैठाई ॥ सूनी कुटिया देखी भाई... पतितपावन सीताराम ॥44॥ धरनी गिरे राम रघुराई... सीता के बिन व्याकुलताई ॥ हे प्रिय सीते, चीखे राम... पतितपावन सीताराम ॥45॥ लक्ष्मण, सीता छोड़ नहीं तुम आते... जनक दुलारी नहीं गंवाते ॥ बने बनाये बिगड़े काम... पतितपावन सीताराम ॥46 ॥ कोमल बदन सुहासिनि सीते... तुम बिन व्यर्थ रहेंगे जीते ॥ लगे चाँदनी-जैसे घाम... पतितपावन सीताराम ॥47॥ सुन री मैना, सुन रे तोता... मैं भी पंखो वाला होता ॥ वन वन लेता ढूंढ तमाम... पतितपावन सीताराम ॥48 ॥ श्यामा हिरनी, तू ही बता दे... जनक नन्दनी मुझे मिला दे ॥ तेरे जैसी आँखे श्याम... पतितपावन सीताराम ॥49॥ वन वन ढूंढ रहे रघुराई... जनक दुलारी कहीं न पाई ॥ गृद्धराज ने किया प्रणाम... पतितपावन सीताराम ॥50॥ चख चख कर फल शबरी लाई... प्रेम सहित खाये रघुराई ॥ ऎसे मीठे नहीं हैं आम... पतितपावन सीताराम ॥51॥ विप्र रुप धरि हनुमत आए... चरण कमल में शीश नवाये ॥ कन्धे पर बैठाये राम... पतितपावन सीताराम ॥52॥ सुग्रीव से करी मिताई... अपनी सारी कथा सुनाई ॥ बाली पहुंचाया निज धाम... पतितपावन सीताराम ॥53॥ सिंहासन सुग्रीव बिठाया... मन में वह अति हर्षाया ॥ वर्षा ऋतु आई हे राम... पतितपावन सीताराम ॥54॥ हे भाई लक्ष्मण तुम जाओ... वानरपति को यूं समझाओ ॥ सीता बिन व्याकुल हैं राम... पतितपावन सीताराम ॥55॥ देश देश वानर भिजवाए... सागर के सब तट पर आए ॥ सहते भूख प्यास और घाम ... पतितपावन सीताराम ॥56॥ सम्पाती ने पता बताया... सीता को रावण ले आया ॥ सागर कूद गए हनुमान... पतितपावन सीताराम ॥57॥ कोने कोने पता लगाया... भगत विभीषण का घर पाया ॥ हनुमान को किया प्रणाम... पतितपावन सीताराम ॥58॥ अशोक वाटिका हनुमत आए... वृक्ष तले सीता को पाये ॥ आँसू बरसे आठो याम ... पतितपावन सीताराम ॥59॥ रावण संग निशिचरी लाके ... सीता को बोला समझा के ॥ मेरी ओर तुम देखो बाम... पतितपावन सीताराम ॥60॥ मन्दोदरी बना दूँ दासी... सब सेवा में लंका वासी ॥ करो भवन में चलकर विश्राम... पतितपावन सीताराम ॥61॥ चाहे मस्तक कटे हमारा... मैं नहीं देखूं बदन तुम्हारा ॥ मेरे तन मन धन है राम... पतितपावन सीताराम ॥62॥ ऊपर से मुद्रिका गिराई... सीता जी ने कंठ लगाई ॥ हनुमान ने किया प्रणाम... पतितपावन सीताराम ॥63॥ मुझको भेजा है रघुराया... सागर लांघ यहां मैं आया ॥ मैं हूं राम दास हनुमान... पतितपावन सीताराम ॥64॥ भूख लगी फल खाना चाहूँ ... जो माता की आज्ञा पाऊँ ॥ सब के स्वामी हैं श्री राम... पतितपावन सीताराम ॥65॥ सावधान हो कर फल खाना... रखवालों को भूल ना जाना ॥ निशाचरों का है यह धाम ... पतितपावन सीताराम ॥66॥ हनुमान ने वृक्ष उखाड़े ... देख देख माली ललकारे ॥ मार-मार पहुंचाये धाम... पतितपावन सीताराम ॥67॥ अक्षय कुमार को स्वर्ग पहुंचाया... इन्द्रजीत को फांसी ले आया ॥ ब्रह्मफांस से बंधे हनुमान... पतितपावन सीताराम ॥68॥ सीता को तुम लौटा दीजो... उन से क्षमा याचना कीजो ॥ तीन लोक के स्वामी राम... पतितपावन सीताराम ॥69॥ भगत बिभीषण ने समझाया... रावण ने उसको धमकाया ॥ सनमुख देख रहे रघुराई... पतितपावन सीताराम ॥70॥ रूई, तेल घृत वसन मंगाई... पूंछ बांध कर आग लगाई ॥ पूंछ घुमाई है हनुमान... पतितपावन सीताराम ॥71॥ सब लंका में आग लगाई... सागर में जा पूंछ बुझाई ॥ ह्रदय कमल में राखे राम... पतितपावन सीताराम ॥72॥ सागर कूद लौट कर आये... समाचार रघुवर ने पाये ॥ दिव्य भक्ति का दिया इनाम... पतितपावन सीताराम ॥73॥ वानर रीछ संग में लाए... लक्ष्मण सहित सिंधु तट आए ॥ लगे सुखाने सागर राम... पतितपावन सीताराम ॥74॥ सेतू कपि नल नील बनावें... राम-राम लिख सिला तिरावें ॥ लंका पहुँचे राजा राम ... पतितपावन सीताराम ॥75॥ अंगद चल लंका में आया... सभा बीच में पांव जमाया ॥ बाली पुत्र महा बलधाम... पतितपावन सीताराम ॥76॥ रावण पाँव हटाने आया... अंगद ने फिर पांव उठाया ॥ क्षमा करें तुझको श्री राम ... पतितपावन सीताराम ॥77॥ निशाचरों की सेना आई... गरज तरज कर हुई लड़ाई ॥ वानर बोले जय सिया राम... पतितपावन सीताराम ॥78॥ इन्द्रजीत ने शक्ति चलाई... धरनी गिरे लखन मुरझाई ॥ चिन्ता करके रोये राम... पतितपावन सीताराम ॥79॥ जब मैं अवधपुरी से आया... हाय पिता ने प्राण गंवाया ॥ वन में गई चुराई बाम... पतितपावन सीताराम ॥80॥ भाई तुमने भी छिटकाया... जीवन में कुछ सुख नहीं पाया ॥ सेना में भारी कोहराम... पतितपावन सीताराम ॥81। जो संजीवनी बूटी को लाए... तो भाई जीवित हो जाये ॥ बूटी लायेगा हनुमान... पतितपावन सीताराम ॥82॥ जब बूटी का पता न पाया... पर्वत ही लेकर के आया ॥ काल नेम पहुंचाया धाम ... पतितपावन सीताराम ॥83॥ भक्त भरत ने बाण चलाया... चोट लगी हनुमत लंगड़ाया ॥ मुख से बोले जय सिया राम... पतितपावन सीताराम ॥84॥ बोले भरत बहुत पछताकर... पर्वत सहित बाण बैठाकर ॥ तुम्हें मिला दूं राजा राम... पतितपावन सीताराम ॥85॥ बूटी लेकर हनुमत आया... लखन लाल उठ शीष नवाया ॥ हनुमत कंठ लगाये राम... पतितपावन सीताराम ॥86॥ कुंभकरन उठकर तब आया... इन्द्रजीत पहुँचाया धाम... पतितपावन सीताराम ॥87॥ दुर्गापूजन रावण कीनो ... नौ दिन तक आहार न लीनो ॥ आसन बैठ किया है ध्यान ... पतितपावन सीताराम ॥88॥ रावण का व्रत खंडित कीना ... परम धाम पहुँचा ही दीना ॥ वानर बोले जय श्री राम... पतितपावन सीताराम ॥89॥ सीता ने हरि दर्शन कीना... चिन्ता शोक सभी तज दीना ॥ हँस कर बोले राजा राम... पतितपावन सीताराम ॥90॥ पहले अग्नि परीक्षा पाओ... पीछे निकट हमारे आओ ॥ तुम हो पतिव्रता हे बाम... पतितपावन सीताराम ॥91॥ करी परीक्षा कंठ लगाई... सब वानर सेना हरषाई ॥ राज्य बिभीषन दीन्हा राम ... पतितपावन सीताराम ॥92॥ फिर पुष्पक विमान मंगाया... सीता सहित बैठे रघुराया ॥ दण्डकवन में उतरे राम... पतितपावन सीताराम ॥93॥ ऋषिवर सुन दर्शन को आये... स्तुति कर मन में हर्षाये ॥ तब गंगा तट आये राम... पतितपावन सीताराम ॥94॥ नन्दी ग्राम पवनसुत आये... भाई भरत को वचन सुनाए ॥ लंका से आए हैं राम... पतितपावन सीताराम ॥95॥ कहो विप्र तुम कहां से आए... ऎसे मीठे वचन सुनाए ॥ मुझे मिला दो भैया राम... पतितपावन सीताराम ॥96॥ अवधपुरी रघुनन्दन आये... मंदिर-मंदिर मंगल छाये ॥ माताओं ने किया प्रणाम ... पतितपावन सीताराम ॥97॥ भाई भरत को गले लगाया... सिंहासन बैठे रघुराया ॥ जग ने कहा, हैं राजा राम ... पतितपावन सीताराम ॥98॥ सब भूमि विप्रो को दीनी ... विप्रों ने वापस दे दीनी ॥ हम तो भजन करेंगे राम ... पतितपावन सीताराम ॥99॥ धोबी ने धोबन धमकाई... रामचन्द्र ने यह सुन पाई ॥ वन में सीता भेजी राम... पतितपावन सीताराम ॥100॥ बाल्मीकि आश्रम में आई... लव व कुश हुए दो भाई ॥ धीर वीर ज्ञानी बलवान... पतितपावन सीताराम ॥101॥ अश्वमेघ यज्ञ किन्हा राम ... सीता बिन सब सूने काम ॥ लव कुश वहां दीयो पहचान ... पतितपावन सीताराम ॥102॥ सीता, राम बिना अकुलाई... भूमि से यह विनय सुनाई ॥ मुझको अब दीजो विश्राम... पतितपावन सीताराम ॥103॥ सीता भूमि में समाई... देखकर चिन्ता की रघुराई ॥ बार बार पछताये राम... पतितपावन सीताराम ॥104॥ राम राज्य में सब सुख पावें... प्रेम मग्न हो हरि गुन गावें ॥ दुख कलेश का रहा न नाम... पतितपावन सीताराम ॥105॥ ग्यारह हजार वर्ष परयन्ता ... राज कीन्ह श्री लक्ष्मी कंता ॥ फिर बैकुण्ठ पधारे धाम ... पतितपावन सीताराम ॥106॥ अवधपुरी बैकुण्ठ सिधाई... नर नारी सबने गति पाई ॥ शरनागत प्रतिपालक राम... पतितपावन सीताराम ॥107॥ श्याम सुंदर ने लीला गाई... मेरी विनय सुनो रघुराई ॥ भूलूँ नहीं तुम्हारा नाम... पतितपावन सीताराम ॥108॥

रामायण मनका | Ramayan Manka 108 : परेशानियों से छुटकारा

इस रामायण मनका में 108 छंद भगवान श्री राम की स्तुति के लिए दिए गए हैं। यह भगवान राम के प्रेमियों  के लिए उपलब्ध है जो भी भक्त अपने जीवन के परेशानियों से जूझ रहा है उन परेशानियों से जल्दी छुटकारा पाने के लिए आप Ramayan Manka 108 बार पाठ कर सकते है। Ramayan Manka …

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Shiv Panchakshar Stotra Lyrics नागेन्द्रहाराय त्रिलोचनाय...! भस्माङ्गरागाय महेश्वराय !! नित्याय शुद्धाय दिगम्बराय...! तस्मै न काराय नमः शिवाय ॥१॥ मन्दाकिनी सलिलचन्दन चर्चिताय...! नन्दीश्वर प्रमथनाथ महेश्वराय !! मन्दारपुष्प बहुपुष्प सुपूजिताय...! तस्मै म काराय नमः शिवाय ॥२॥ शिवाय गौरीवदनाब्जवृन्द...! सूर्याय दक्षाध्वरनाशकाय !! श्रीनीलकण्ठाय वृषध्वजाय...! तस्मै शि काराय नमः शिवाय ॥३॥ वसिष्ठकुम्भोद्भवगौतमार्य...! मुनीन्द्रदेवार्चितशेखराय !! चन्द्रार्क वैश्वानरलोचनाय...! तस्मै व काराय नमः शिवाय ॥४॥ यक्षस्वरूपाय जटाधराय...! पिनाकहस्ताय सनातनाय !! दिव्याय देवाय दिगम्बराय...! तस्मै य काराय नमः शिवाय ॥५॥ पञ्चाक्षरमिदं पुण्यं यः पठेच्छिवसन्निधौ !! शिवलोकमवाप्नोति शिवेन सह मोदते !!

शिव पंचाक्षर स्तोत्र | Shiv Panchakshar Stotra Lyrics : नमः शिवाय का गुणगान

शिव पंचाक्षर स्तोत्र भगवान शिव के गुणों का बखान करने वाला एक प्रमुख स्तोत्र है जिसे हमारे हिन्दू धर्म में अधिक महत्व दिया जाता है। इस स्तोत्र में पाँच अक्षरों का (नमः शिवाय) महत्त्वपूर्ण गुणगान होता है, जो भगवान शिव की महत्त्वपूर्ण  बातों को बताता है।यह Shiv Panchakshar Stotra Lyrics व्यक्ति के मन को शांत रखता है बुद्धि और …

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विन्धेश्वरी स्तोत्र | Vindheshwari Stotra निशुम्भ-शुम्भ-गर्जनीं, प्रचण्ड-मुण्ड-खण्डिनीम्... वने रणे प्रकाशिनीं भजामि विन्ध्यवासिनीम् !! त्रिशुल-मुण्ड-धारिणीं धरा-विघात-हारिणीम्... गृहे-गृहे निवासिनीं भजामि विन्ध्यवासिनीम् !! दरिद्रदुःख-हारिणीं, सदा विभुतिकारिणीम्... वियोग-शोक-हारिणीं, भजामि विन्ध्यवासिनीम् !! लसत्सुलोल-लोचनं लतासनं वरप्रदम्... कपाल-शुल-धारिणीं, भजामि विन्ध्यवासिनीम् !! कराब्जदानदाधरां, शिवाशिवां प्रदायिनीम्... वरा-वराननां शुभां भजामि विन्ध्यवासिनीम् !! ऋषिन्द्रजामिनीप्रदां, त्रिधा स्वरूप-धारिणीम्... जले स्थले निवासिनीं, भजामि विन्ध्यवासिनीम् !! विशिष्ट-शिष्ट-कारिणीं, विशाल रूप-धारिणीम्... महोदरे विलासिनीं, भजामि विन्ध्यवासिनीम् !! पुरन्दरादि-सेवितां पुरादिवंशखण्डिताम्... विशुद्ध-बुद्धिकारिणीं, भजामि विन्ध्यवासिनीम् !!

विन्धेश्वरी स्तोत्र | Vindheshwari Stotra : आनंद और शांति की प्राप्ति

इस प्राचीन विन्धेश्वरी स्तोत्र के माध्यम से, हम माँ विन्धेश्वरी की शक्तियों का गुणगान करते हैं। जो अपनी कृपा से लोगों का भला करती हैं। Vindheshwari stotra को आप अपने जीवन में ध्यान और पूजा का हिस्सा बनाकर अपने जीवन को सुखी बना सकते हैं। इस स्तोत्र का पाठ करने से हमारा  जीवन आनंद और शांतिमय …

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Siddha Kunjika Stotram शिव उवाच शृणु देवि प्रवक्ष्यामि, कुञ्जिकास्तोत्रमुत्तमम्... येन मन्त्रप्रभावेण चण्डीजापः शुभो भवेत !! 1 !! न कवचं नार्गलास्तोत्रं कीलकं न रहस्यकम्... न सूक्तं नापि ध्यानं च न न्यासो न च वार्चनम् !! 2 !! कुञ्जिकापाठमात्रेण दुर्गापाठफलं लभेत्... अति गुह्यतरं देवि देवानामपि दुर्लभम् !! 3 !! गोपनीयं प्रयत्नेन स्वयोनिरिव पार्वति... मारणं मोहनं वश्यं स्तम्भनोच्चाटनादिकम्। पाठमात्रेण संसिद्ध्येत् कुञ्जिकास्तोत्रमुत्तमम् !! 4 !! ॥अथ मन्त्रः॥ ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे। ॐ ग्लौ हुं क्लीं जूं स: ... ज्वालय ज्वालय ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ज्वल हं सं लं क्षं फट् स्वाहा !! ॥इति मन्त्रः॥ नमस्ते रूद्ररूपिण्यै नमस्ते मधुमर्दिनि... नमः कैटभहारिण्यै नमस्ते महिषार्दिनि !! 1 !! नमस्ते शुम्भहन्त्र्यै च निशुम्भासुरघातिनि !! 2 !! जाग्रतं हि महादेवि जपं सिद्धं कुरूष्व मे... ऐंकारी सृष्टिरूपायै ह्रींकारी प्रतिपालिका !! 3 !! क्लींकारी कामरूपिण्यै बीजरूपे नमोऽस्तु ते... चामुण्डा चण्डघाती च यैकारी वरदायिनी !! 4 !! विच्चे चाभयदा नित्यं नमस्ते मन्त्ररूपिणि !! 5 !! धां धीं धूं धूर्जटेः पत्नी वां वीं वूं वागधीश्वरी... क्रां क्रीं क्रूं कालिका देवि शां शीं शूं मे शुभं कुरु !! 6 !! हुं हुं हुंकाररूपिण्यै जं जं जं जम्भनादिनी... भ्रां भ्रीं भ्रूं भैरवी भद्रे भवान्यै ते नमो नमः !! 7 !! अं कं चं टं तं पं यं शं वीं दुं ऐं वीं हं क्षं धिजाग्रं धिजाग्रं त्रोटय त्रोटय दीप्तं कुरु कुरु स्वाहा॥ पां पीं पूं पार्वती पूर्णा खां खीं खूं खेचरी तथा !! 8 !! सां सीं सूं सप्तशती देव्या मन्त्रसिद्धिं कुरुष्व मे !! इदं तु कुञ्जिकास्तोत्रं मन्त्रजागर्तिहेतवे... अभक्ते नैव दातव्यं गोपितं रक्ष पार्वति !! यस्तु कुञ्जिकाया देवि हीनां सप्तशतीं पठेत्... न तस्य जायते सिद्धिररण्ये रोदनं यथा !! इति श्रीरुद्रयामले गौरीतन्त्रे शिवपार्वतीसंवादे कुञ्जिकास्तोत्रं सम्पूर्णम्। !! ॐ तत्सत् !!

Siddha Kunjika Stotram | सिद्ध कुंजिका स्तोत्र : चमत्कारी मंत्र

सिद्ध कुंजिका स्तोत्र माँ दुर्गा की एक प्राचीन संस्कृत मंत्र है, जो उनके शक्तियों का वर्णन करता है। यह Siddha Kunjika Stotram बहुत ही चमत्कारी मंत्र है। इस मंत्र का गोपनीय जाप करने से भक्तों को अधिक लाभ और सफलता मिलता है। ॥सिद्धकुञ्जिकास्तोत्रम्॥ शिव उवाचशृणु देवि प्रवक्ष्यामि, कुञ्जिकास्तोत्रमुत्तमम्…येन मन्त्रप्रभावेण चण्डीजापः शुभो भवेत !! 1 !! …

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