बृहस्पति अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्रम् : गुरु की कृपा पाने का दिव्य मार्ग

बृहस्पति अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्रम् एक अत्यंत प्रभावशाली स्तोत्र है, जिसमें बृहस्पति देव के 108 दिव्य नामों का वर्णन किया गया है। Brihaspati Ashtottara Shatanama Stotram विशेष रूप से उन लोगों के लिए लाभकारी है, जिनका गुरु ग्रह अशुभ स्थिति में है। बृहस्पति देव को प्रसन्न करने के लिए इस स्तोत्र का पाठ अत्यंत प्रभावी माना जाता है। यहां आपके लिये इस स्तोत्र को विस्तार से दिया गया है-

Brihaspati Ashtottara Shatanama Stotram

गुरुर्गुणवरो गोप्ता गोचरो गोपतिप्रियः,
गुणी गुणवतां श्रेष्ठो गुरूणां गुरुरव्ययः।

जेता जयंतो जयदो जीवोऽनंतो जयावहः,
आंगीरसोऽध्वरासक्तो विविक्तोऽध्वरकृत्परः।

वाचस्पतिर्वशी वश्यो वरिष्ठो वाग्विचक्षणः,
चित्तशुद्धिकरः श्रीमान् चैत्रः चित्रशिखंडिजः।

बृहद्रथो बृहद्भानुर्बृहस्पतिरभीष्टदः,
सुराचार्यः सुराराध्यः सुरकार्यहितंकरः।

गीर्वाणपोषको धन्यो गीष्पतिर्गिरिशोऽनघः,
धीवरो धिषणो दिव्यभूषणो देवपूजितः।

धनुर्धरो दैत्यहंता दयासारो दयाकरः,
दारिद्र्यनाशको धन्यो दक्षिणायनसंभवः।

धनुर्मीनाधिपो देवो धनुर्बाणधरो हरिः,
आंगीरसाब्जसंजातः आंगीरसकुलोद्भवः।

सिंधुदेशाधिपो धीमान् स्वर्णवर्णश्चतुर्भुजः,
हेमांगदो हेमवपुर्हेमभूषणभूषितः।

पुष्यनाथः पुष्यरागमणिमंडलमंडितः,
काशपुष्पसमानाभः कलिदोषनिवारकः।

इंद्रादिदेवोदेवेशो देवताभीष्टदायकः,
असमानबलः सत्त्वगुणसंपद्विभासुरः।

भूसुराभीष्टदो भूरियशः पुण्यविवर्धनः,
धर्मरूपो धनाध्यक्षो धनदो धर्मपालनः।

सर्ववेदार्थतत्त्वज्ञः सर्वापद्विनिवारकः,
सर्वपापप्रशमनः स्वमतानुगतामरः।

ऋग्वेदपारगो ऋक्षराशिमार्गप्रचारकः,
सदानंदः सत्यसंधः सत्यसंकल्पमानसः ।

सर्वागमज्ञः सर्वज्ञः सर्ववेदांतविद्वरः,
ब्रह्मपुत्रो ब्राह्मणेशो ब्रह्मविद्याविशारदः।

समानाधिकनिर्मुक्तः सर्वलोकवशंवदः,
ससुरासुरगंधर्ववंदितः सत्यभाषणः।

नमः सुरेंद्रवंद्याय देवाचार्याय ते नमः,
नमस्तेऽनंतसामर्थ्य वेदसिद्धांतपारगः।

सदानंद नमस्तेऽस्तु नमः पीडाहराय च,
नमो वाचस्पते तुभ्यं नमस्ते पीतवाससे।

नमोऽद्वितीयरूपाय लंबकूर्चाय ते नमः,
नमः प्रहृष्टनेत्राय विप्राणां पतये नमः.

नमो भार्गवशिष्याय विपन्नहितकारिणे,
नमस्ते सुरसैन्यानां विपत्तित्राणहेतवे।

बृहस्पतिः सुराचार्यो दयावान् शुभलक्षणः,
लोकत्रयगुरुः श्रीमान् सर्वगः सर्वतोविभुः।

सर्वेशः सर्वदातुष्टः सर्वदः सर्वपूजितः,
अक्रोधनो मुनिश्रेष्ठो नीतिकर्ता जगत्पिता।

विश्वात्मा विश्वकर्ता च विश्वयोनिरयोनिजः,
भूर्भुवोधनदाता च भर्ताजीवो महाबलः ।

बृहस्पतिः काश्यपेयो दयावान् शुभलक्षणः,
अभीष्टफलदः श्रीमान् शुभग्रह नमोऽस्तु ते।

बृहस्पतिः सुराचार्यो देवासुरसुपूजितः,
आचार्योदानवारिश्च सुरमंत्री पुरोहितः।

कालज्ञः कालृग्वेत्ता चित्तगश्च प्रजापतिः,
विष्णुः कृष्णः सदासूक्ष्मः प्रतिदेवोज्ज्वलग्रहः।

इति श्री बृहस्पति अष्टोत्तरशतनाम स्तोत्रम्

Brihaspati Ashtottara Shatanama Stotram

गुरुर्गुणवरो गोप्ता गोचरो गोपतिप्रियः,
गुणी गुणवतां श्रेष्ठो गुरूणां गुरुरव्ययः। 

जेता जयंतो जयदो जीवोऽनंतो जयावहः,
आंगीरसोऽध्वरासक्तो विविक्तोऽध्वरकृत्परः। 

वाचस्पतिर्वशी वश्यो वरिष्ठो वाग्विचक्षणः,
चित्तशुद्धिकरः श्रीमान् चैत्रः चित्रशिखंडिजः। 

बृहद्रथो बृहद्भानुर्बृहस्पतिरभीष्टदः,
सुराचार्यः सुराराध्यः सुरकार्यहितंकरः। 

गीर्वाणपोषको धन्यो गीष्पतिर्गिरिशोऽनघः,
धीवरो धिषणो दिव्यभूषणो देवपूजितः। 

धनुर्धरो दैत्यहंता दयासारो दयाकरः,
दारिद्र्यनाशको धन्यो दक्षिणायनसंभवः। 

धनुर्मीनाधिपो देवो धनुर्बाणधरो हरिः,
आंगीरसाब्जसंजातः आंगीरसकुलोद्भवः। 

सिंधुदेशाधिपो धीमान् स्वर्णवर्णश्चतुर्भुजः,
हेमांगदो हेमवपुर्हेमभूषणभूषितः। 

पुष्यनाथः पुष्यरागमणिमंडलमंडितः,
काशपुष्पसमानाभः कलिदोषनिवारकः। 

इंद्रादिदेवोदेवेशो देवताभीष्टदायकः,
असमानबलः सत्त्वगुणसंपद्विभासुरः। 

भूसुराभीष्टदो भूरियशः पुण्यविवर्धनः,
धर्मरूपो धनाध्यक्षो धनदो धर्मपालनः। 

सर्ववेदार्थतत्त्वज्ञः सर्वापद्विनिवारकः,
सर्वपापप्रशमनः स्वमतानुगतामरः। 

ऋग्वेदपारगो ऋक्षराशिमार्गप्रचारकः,
सदानंदः सत्यसंधः सत्यसंकल्पमानसः । 

सर्वागमज्ञः सर्वज्ञः सर्ववेदांतविद्वरः,
ब्रह्मपुत्रो ब्राह्मणेशो ब्रह्मविद्याविशारदः। 

समानाधिकनिर्मुक्तः सर्वलोकवशंवदः,
ससुरासुरगंधर्ववंदितः सत्यभाषणः। 

नमः सुरेंद्रवंद्याय देवाचार्याय ते नमः,
नमस्तेऽनंतसामर्थ्य वेदसिद्धांतपारगः। 

सदानंद नमस्तेऽस्तु नमः पीडाहराय च,
नमो वाचस्पते तुभ्यं नमस्ते पीतवाससे। 

नमोऽद्वितीयरूपाय लंबकूर्चाय ते नमः,
नमः प्रहृष्टनेत्राय विप्राणां पतये नमः. 

नमो भार्गवशिष्याय विपन्नहितकारिणे,
नमस्ते सुरसैन्यानां विपत्तित्राणहेतवे। 

बृहस्पतिः सुराचार्यो दयावान् शुभलक्षणः,
लोकत्रयगुरुः श्रीमान् सर्वगः सर्वतोविभुः। 

सर्वेशः सर्वदातुष्टः सर्वदः सर्वपूजितः,
अक्रोधनो मुनिश्रेष्ठो नीतिकर्ता जगत्पिता। 

विश्वात्मा विश्वकर्ता च विश्वयोनिरयोनिजः,
भूर्भुवोधनदाता च भर्ताजीवो महाबलः । 

बृहस्पतिः काश्यपेयो दयावान् शुभलक्षणः,
अभीष्टफलदः श्रीमान् शुभग्रह नमोऽस्तु ते। 

बृहस्पतिः सुराचार्यो देवासुरसुपूजितः,
आचार्योदानवारिश्च सुरमंत्री पुरोहितः। 

कालज्ञः कालृग्वेत्ता चित्तगश्च प्रजापतिः,
विष्णुः कृष्णः सदासूक्ष्मः प्रतिदेवोज्ज्वलग्रहः। 

इति श्री बृहस्पति अष्टोत्तरशतनाम स्तोत्रम्

गुरु बृहस्पति की कृपा प्राप्त करने के लिए Brihaspati Ashtottara Shatanama Stotram का नियमित पाठ अवश्य करना चाहिए। अगर आप गुरु ग्रह के प्रभाव से संबंधित अन्य उपाय जानना चाहते हैं, तो “गुरु ग्रह के उपाय” और “बृहस्पति मंत्र” भी बहुत प्रभावी माने जाते हैं। इसके अलावा, यदि आप गुरु की महिमा और उनके स्तोत्र को विस्तार से समझना चाहते हैं, तो बृहस्पति कवच स्तोत्रम् भी आपके लिए लाभकारी रहेगा।

इस स्तोत्रम् का पाठ करने की विधि

  1. प्रातः स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
  2. पूजन के लिए शांत और पवित्र स्थान का चयन करें।
  3. पीले फूल, चंदन, केसर, हल्दी, पीले वस्त्र और बेसन के लड्डू अर्पित करें।
  4. घी का दीपक जलाकर बृहस्पति देव का ध्यान करें।
  5. ॐ ग्रां ग्रीं ग्रौं सः गुरवे नमः मंत्र का 108 बार जाप करें।
  6. अब श्रद्धा पूर्वक बृहस्पति अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्रम् का पाठ करें।
  7. पाठ समाप्ति के बाद गुरु ग्रह से कृपा की प्रार्थना करें और प्रसाद ग्रहण करें।

इस विधि से पाठ करने से गुरु ग्रह की कृपा प्राप्त होती है और जीवन में ज्ञान, समृद्धि एवं शुभता बढ़ती है।

FAQ

इस स्तोत्रम का पाठ कब करना चाहिए?

गुरुवार के दिन ब्रह्म मुहूर्त या संध्या समय इसका पाठ करना शुभ माना जाता है।

क्या बिना गुरु मंत्र दीक्षा लिए इस स्तोत्र का पाठ किया जा सकता है?

क्या स्तोत्र पाठ के साथ विशेष पूजन करना आवश्यक है?

क्या इस स्तोत्र का पाठ करने से बृहस्पति दोष समाप्त हो सकता है?

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