वाराणसी के पवित्र मंदिरों में से एक शीतला घाट पर स्थित शीतला माता मंदिर वाराणसी श्रद्धालुओं के लिए आस्था का एक प्रमुख केंद्र है। Sheetla Mata Mandir Varanasi देवी शीतला माता को समर्पित है, जो रोगों से मुक्ति और स्वस्थ जीवन का आशीर्वाद देने वाली देवी मानी जाती हैं। खासकर, चेचक और त्वचा संबंधी रोगों से बचाव के लिए माँ शीतला की पूजा का विशेष महत्व है।
यह मंदिर अपनी सफेद संरचना के लिए प्रसिद्ध है और यहाँ प्रतिदिन हजारों भक्त दर्शन के लिए आते हैं। मंदिर परिसर में माँ संतोषी का एक छोटा मंदिर भी स्थित है, जिससे इस धार्मिक स्थल की महत्ता और अधिक बढ़ जाती है। ऐसा माना जाता है कि इस मंदिर में सच्चे मन से प्रार्थना करने वाले श्रद्धालुओं की सभी मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं। इस मंदिर के बारे में विस्तार से जानने के लिए पूरी आर्टिकल को पढ़े-
Sheetla Mata Mandir Varanasi का महत्व
यह मंदिर दशाश्वमेध घाट के दक्षिणी भाग में स्थित शीतला घाट पर स्थित है। मान्यता है कि यह मंदिर कई सौ वर्षों पुराना है और वाराणसी के धार्मिक और सांस्कृतिक इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान रखता है। शास्त्रों और लोक मान्यताओं के अनुसार, शीतला माता देवी दुर्गा का एक रूप हैं, जो भक्तों को रोगों से मुक्त करती हैं और उनके परिवार में सुख-समृद्धि प्रदान करती हैं। इस मंदिर की विशेषता यह है कि यहाँ आने वाले श्रद्धालु गंगाजल से स्नान कर माँ की पूजा-अर्चना करते हैं और माता को प्रसाद अर्पित करते हैं।
मंदिर तक कैसे पहुँचे?
- हवाई मार्ग: मंदिर का निकटतम हवाई अड्डा लाल बहादुर शास्त्री अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा (वाराणसी एयरपोर्ट) है, जो मंदिर से लगभग 25 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।
- रेल मार्ग: वाराणसी रेलवे स्टेशन से शीतला माता मंदिर मात्र 5 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। आप यहाँ से ऑटो, टैक्सी या रिक्शा के माध्यम से मंदिर तक आसानी से पहुँच सकते हैं।
- सड़क मार्ग: वाराणसी शहर सड़क मार्ग से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है। स्थानीय परिवहन जैसे ऑटो, ई-रिक्शा, और बस सेवाएँ मंदिर तक पहुँचने के लिए उपलब्ध हैं।
मंदिर में दर्शन का समय
माता का मंदिर सप्ताह के सभी दिन खुला रहता है, जिससे भक्त किसी भी दिन माँ के दर्शन कर सकते हैं। मंदिर का नियमित समय इस प्रकार है:
- सुबह: 5:00 AM से 12:00 PM
- शाम: 4:00 PM से 10:00 PM
- विशेष अवसरों और त्योहारों पर मंदिर का समय बढ़ सकता है, और रात्रि आरती के दौरान भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है।
- बसौड़ा पर्व, नवरात्रि, और अष्टमी तिथियों पर विशेष पूजा-अर्चना का आयोजन किया जाता है।
अगर आप शांति से दर्शन करना चाहते हैं, तो सुबह के समय मंदिर आना सबसे अच्छा रहेगा, क्योंकि इस समय भीड़ अपेक्षाकृत कम होती है।
इतिहास और मान्यताएँ
वाराणसी के इस मंदिर का उल्लेख प्राचीन धार्मिक ग्रंथों में मिलता है। माँ शीतला की पूजा सदियों से की जाती रही है और यह स्थान श्रद्धालुओं के लिए विशेष महत्व रखता है। वाराणसी के प्रमुख मंदिरों में शामिल यह स्थान अपनी पवित्रता और दिव्यता के लिए प्रसिद्ध है।
मंदिर की वास्तुकला
मंदिर की लाल रंग की संरचना इसे अन्य मंदिरों से अलग बनाती है। इसकी सीधी और सरल बनावट भक्तों को शांति और पवित्रता का अनुभव कराती है। मंदिर गंगा के समीप स्थित होने के कारण इसकी सुंदरता और आध्यात्मिक ऊर्जा और अधिक बढ़ जाती है।
माँ शीतला की पूजा विधि
माँ शीतला की पूजा विशेष रूप से मंगलवार और शनिवार को की जाती है। इस दिन भक्त मंदिर आकर माता का गंगाजल से अभिषेक करते हैं और हल्दी, चंदन, फूल, नारियल, मिठाई और चने का भोग अर्पित करते हैं। यहाँ आने वाले श्रद्धालु माता को चुनरी अर्पित कर अपने परिवार के स्वस्थ और समृद्ध जीवन की प्रार्थना करते हैं।
विशेष अनुष्ठान:
- माँ को बासी भोजन का भोग लगाया जाता है, जिसे “बसौड़ा” कहते हैं।
- मंदिर में सिंदूर और हल्दी चढ़ाने की परंपरा है।
- भक्त मंदिर के प्रांगण में दीप प्रज्वलित कर माँ से आशीर्वाद मांगते हैं।
मंदिर जाने का शुभ दिन
माँ शीतला की पूजा करने का सबसे उत्तम समय चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि मानी जाती है। इस अवसर पर यहाँ हजारों श्रद्धालु एकत्रित होते हैं और भव्य धार्मिक आयोजन होते हैं। इसके अलावा, नवरात्रि और बसौड़ा पर्व पर मंदिर में विशेष पूजन और अनुष्ठान किए जाते हैं।
शीतला माता मंदिर वाराणसी एक पवित्र और आध्यात्मिक स्थल है, जहाँ भक्त अपनी मनोकामनाएँ लेकर आते हैं और माँ शीतला से रोगमुक्ति और सुख-समृद्धि का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। वाराणसी की धार्मिक और सांस्कृतिक विरासत में इस मंदिर का विशेष स्थान है। यदि आप वाराणसी जाते हैं, तो इस मंदिर के दर्शन अवश्य करें और माँ शीतला की कृपा प्राप्त करें।
FAQ
शीतला माता यह मंदिर कहाँ स्थित है?
यह मंदिर वाराणसी में शीतला घाट, दशाश्वमेध घाट के दक्षिणी भाग, मैदागिन, घासी टोला के पास स्थित है।
क्या मंदिर में कोई विशेष पर्व मनाया जाता है?
हाँ, बसौड़ा पर्व (होली के बाद आने वाली अष्टमी) के दिन मंदिर में विशेष भीड़ रहती है, जब माता को ठंडे और बासी भोजन का भोग लगाया जाता है।
मंदिर में कौन-कौन से देवी-देवता विराजमान हैं?
इस मंदिर में शीतला माता मुख्य देवी हैं, साथ ही गर्भगृह में माँ संतोषी की एक मूर्ति भी स्थापित है।
माँ शीतला की पूजा करने की सही विधि क्या है?
भक्त पहले गंगा स्नान करते हैं, फिर मंदिर में शीतला माता को जल अर्पित कर धूप-दीप जलाते हैं और प्रसाद चढ़ाते हैं।
मैं शिवप्रिया पंडित, माँ शक्ति का एक अनन्य भक्त और विंध्येश्वरी देवी, शैलपुत्री माता और चिंतापूर्णी माता की कृपा से प्रेरित एक आध्यात्मिक साधक हूँ। मेरा उद्देश्य माँ के भक्तों को उनके दिव्य स्वरूप, उपासना विधि और कृपा के महत्व से अवगत कराना है, ताकि वे अपनी श्रद्धा और भक्ति को और अधिक दृढ़ बना सकें। मेरे लेखों में इन देवी शक्तियों के स्तोत्र, चालीसा, आरती, मंत्र, कथा और पूजन विधियाँ शामिल होती हैं, ताकि हर भक्त माँ की आराधना सही विधि से कर सके और उनके आशीर्वाद से अपने जीवन को सुख-समृद्धि से भर सके। जय माता दी! View Profile 🙏🔱