शीतला माता को हिंदू धर्म में रोगनाशिनी देवी के रूप में पूजा जाता है। विशेष रूप से उत्तर भारत में उनकी उपासना का विशेष महत्व है। Sheetla Mata को चेचक, नेत्र रोग और त्वचा संबंधी बीमारियों से बचाव करने वाली देवी माना जाता है। भक्तगण इनकी कृपा प्राप्त करने के लिए व्रत, पूजन और अर्पण करते हैं। शीतला माँ की आराधना के दौरान ठंडे भोजन का विशेष महत्व होता है।
माता की पूजा का प्रमुख दिन बसोड़ा पर्व होता है, जब लोग ठंडे पकवान बनाकर माता को भोग लगाते हैं और स्वयं भी ग्रहण करते हैं। मान्यता है कि माता को बासी और ठंडे व्यंजन अर्पित करने से वे प्रसन्न होती हैं और अपने भक्तों को रोगों से बचाती हैं। यहां हमने शीतला माँ से जुडु सही जानकरी को आप तक पहुंचाया है, जो आपके लिए बहुत उपयोगी होगी-
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ToggleSheetla Mata की उत्पति
स्कंद पुराण में माता शीतला से जुड़ी एक पौराणिक कथा मिलती है, जिसके अनुसार, माता शीतला का जन्म ब्रह्माजी से हुआ था और उन्हें भगवान शिव की शक्ति का स्वरूप माना जाता है। कथा के अनुसार, जब भगवान शिव के पसीने से ज्वरासुर उत्पन्न हुआ, तो माता शीतला उसे लेकर पृथ्वी पर आईं। वे अपने साथ दाल के दाने लेकर राजा विराट के राज्य में पहुंचीं, लेकिन राजा ने उन्हें अपने राज्य में रहने से मना कर दिया। इससे माता क्रोधित हो गईं, और उनके क्रोध से प्रजा की त्वचा पर लाल-लाल दाने हो गए, जिससे जलन और पीड़ा होने लगी।
राजा विराट को अपनी गलती का अहसास हुआ, और उन्होंने माता से क्षमा याचना की। उन्होंने माता शीतला को कच्चा दूध और ठंडी लस्सी का भोग अर्पित किया, जिससे देवी का क्रोध शांत हुआ। तभी से माता को ठंडे पकवानों का भोग लगाने की परंपरा चली आ रही है।
माता की महिमा
देवी शीतला को शीतलता प्रदान करने वाली माता कहा जाता है। धार्मिक मान्यता है कि माता अपने भक्तों के सभी कष्टों का निवारण करती हैं और उन्हें निरोगी जीवन का आशीर्वाद देती हैं। माता के पूजन से वातावरण शुद्ध होता है और संक्रामक बीमारियों का नाश होता है।
माता की कृपा से व्यक्ति शारीरिक और मानसिक शांति प्राप्त करता है। कई भक्त विशेष रूप से संतान की सुख-समृद्धि और सुरक्षा के लिए माता की आराधना करते हैं।
देवी माता की पूजा विधि
शीतला माता की पूजा प्रायः होली के बाद पड़ने वाले शीतला सप्तमी और अष्टमी को की जाती है। इस दिन विशेष रूप से ठंडे भोजन का भोग लगाकर माता की आराधना की जाती है। पूजा विधि इस प्रकार है:
- स्नान एवं संकल्प: प्रातः काल स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें और माता की पूजा का संकल्प लें।
- स्थापना: घर या मंदिर में माता की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें।
- नैवेद्य अर्पण: माता को जल, पुष्प, धूप, दीप और चंदन अर्पित करें।
- भोग: इस दिन माता को बासी भोजन, ठंडी रबड़ी, मीठे चावल, दही, चीनी, बाजरे की रोटी आदि का भोग लगाया जाता है।
- मंत्र जाप: माता शीतला के मंत्रों का जाप करें, जैसे- ॐ ह्रीं शीतलायै नमः
- कहानी एवं आरती: माता की कथा का पाठ करें और अंत में माता की आरती करें।
- प्रसाद वितरण: पूजा संपन्न होने के बाद प्रसाद सभी को वितरित करें।
माता के प्रसिद्ध मंदिर
माता के कई प्राचीन और प्रसिद्ध मंदिर भारतभर में स्थित हैं-
- माता शीतला मंदिर, गुरुग्राम
- शीतला माँ मंदिर, वाराणसी
माता शीतला को रोगनाशिनी देवी के रूप में पूजने की परंपरा प्राचीनकाल से चली आ रही है। माता शीतला की भक्ति में लीन श्रद्धालु उनकी कृपा प्राप्त कर शारीरिक और मानसिक शांति का अनुभव करते हैं। उनकी साधना न केवल रोगों से मुक्ति दिलाती है बल्कि जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार भी करती है।
इनकी पूजा मुख्य रूप से किस दिन की जाती है?
इनकी पूजा मुख्य रूप से बसोड़ा पर्व या शीतला अष्टमी को की जाती है। यह दिन चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को आता है।
माता का वाहन कौन-सा है?
माता का वाहन गधा है, जो धैर्य और संतोष का प्रतीक माना जाता है।
इनका सबसे प्रसिद्ध मंत्र कौन-सा है?
ॐ ह्रीं शीतलायै नमः यह मंत्र माता की कृपा पाने के लिए जपा जाता है।