शनि अष्टक : शनि कृपा पाने का सबसे सरल और प्रभावी स्तोत्र

शनि अष्टक एक शक्तिशाली स्तोत्र है जो शनि देव की कृपा पाने और जीवन में आ रही कठिनाइयों को दूर करने के लिए पढ़ा या सुना जाता है। इस पाठ का नियमित रूप से जाप करने से शनि की दशा, साढ़ेसाती या ढैय्या के प्रभाव में राहत मिलती है। जो भक्त शनि की कृपा चाहते हैं, उनके लिए Shani Ashtak को हमने यहां उपलब्ध कराया है-

Shani Ashtak

कोणांतगो रौद्र यमो अथ बभ्रू: कृष्ण: शनि : पिंगल मंदसौरि: ॥
नित्यं स्मृतो यो हरते च पीडां तस्मै नम: श्रीरविनंदनाय ॥1 ॥

सुरासुरा: किं पुरुषा गजेंद्रा गंधर्व विद्याधर पन्नगाश्च ॥
पीड्यंति सर्वे विषमस्थिते च तस्मै नम: श्रीरविनंदनाय ॥ 2॥

नरा नरेंद्रा: पशवो गजेंद्रा: सरीसृपा: कीट पतंगभृंगा: ॥
पीड्यंति सर्वे विषमस्थिते च तस्मै नम: श्रीरविनंदनाय॥ 3॥

देशाश्च दुर्गाणि वनानि येन ग्रामाश्च देशा: पुर पत्तनानि॥
पीड्यंति सर्वे विषमस्थिते च तस्मै नम: श्रीरविनंदनाय॥4 ॥

स्त्रष्टा स्वयं भूर्भुवन त्रयस्य त्राणे हरि: संहरणे महेश:॥
एक स्त्रिधा ऋग यजु साम मूर्ति तस्मै नम: श्रीरविनंदनाय ॥5 ॥

प्रयागकूले यमुनातटे च सरस्वती पुण्य जले गुहायाम॥
यो योगिभिर्ध्येय शरीरसूक्ष्म
तस्मै नम: श्रीरविनंदनाय॥ 6॥

अन्यत्र देशात स्वगृहं प्रविष्टा यदीय वारे सुखिनो नरा: स्यु:॥
गृहाद गता ये न पुन: प्रयांति तस्मै नम: श्रीरविनंदनाय॥7॥

तिलर्यवै र्माष गुडान्नदानै र्लोहेन नीलांबर दानतो वा॥
प्रीणाति मंत्रैर्निजवासरेण तस्मै नम: श्रीरविनंदनाय॥8॥

शन्यष्टकं य: पठति प्रभाते नित्यं स सूतै: पशु बांधवैश्च॥
करोति राज्यं भुवि भूरि सौख्यं प्राप्नोति निर्वाणपदं तथांते॥9॥

Shani Ashtak

कोणांतगो रौद्र यमो अथ बभ्रू: कृष्ण: शनि : पिंगल मंदसौरि: ॥
नित्यं स्मृतो यो हरते च पीडां तस्मै नम: श्रीरविनंदनाय ॥1 ॥

सुरासुरा: किं पुरुषा गजेंद्रा गंधर्व विद्याधर पन्नगाश्च ॥
पीड्यंति सर्वे विषमस्थिते च तस्मै नम: श्रीरविनंदनाय ॥ 2॥

नरा नरेंद्रा: पशवो गजेंद्रा: सरीसृपा: कीट पतंगभृंगा: ॥
पीड्यंति सर्वे विषमस्थिते च तस्मै नम: श्रीरविनंदनाय॥ 3॥

देशाश्च दुर्गाणि वनानि येन ग्रामाश्च देशा: पुर पत्तनानि॥
पीड्यंति सर्वे विषमस्थिते च तस्मै नम: श्रीरविनंदनाय॥4 ॥

स्त्रष्टा स्वयं भूर्भुवन त्रयस्य त्राणे हरि: संहरणे महेश:॥
एक स्त्रिधा ऋग यजु साम मूर्ति तस्मै नम: श्रीरविनंदनाय ॥5 ॥

प्रयागकूले यमुनातटे च सरस्वती पुण्य जले गुहायाम॥
यो योगिभिर्ध्येय शरीरसूक्ष्म
तस्मै नम: श्रीरविनंदनाय॥ 6॥

अन्यत्र देशात स्वगृहं प्रविष्टा यदीय वारे सुखिनो नरा: स्यु:॥
गृहाद गता ये न पुन: प्रयांति तस्मै नम: श्रीरविनंदनाय॥7॥

तिलर्यवै र्माष गुडान्नदानै र्लोहेन नीलांबर दानतो वा॥
प्रीणाति मंत्रैर्निजवासरेण तस्मै नम: श्रीरविनंदनाय॥8॥

शन्यष्टकं य: पठति प्रभाते नित्यं स सूतै: पशु बांधवैश्च॥
करोति राज्यं भुवि भूरि सौख्यं प्राप्नोति निर्वाणपदं तथांते॥9॥

अगर आप जीवन में शनि से जुड़े कष्टों से राहत पाना चाहते हैं, तो Shani Ashtak का नियमित पाठ आपके लिए वरदान साबित हो सकता है। इसके अलावा आप Shani Mahadasha Effects या Shani ki Sade Sati kis rashi par hai जैसे विषयों पर भी जरूर पढ़ें ताकि शनि ग्रह की स्थितियों को बेहतर समझ सकें। शनि की कृपा पाने के लिए Shani Amritwani का श्रवण भी अत्यंत फलदायी माना गया है।

इसका पाठ करने की विधि

यदि आप जीवन की चुनौतियों, बाधाओं या शनि ग्रह की विशेष स्थितियों जैसे साढ़ेसाती या ढैय्या से राहत पाना चाहते हैं, तो श्रद्धा से किया गया शनि अष्टक का पाठ अत्यंत लाभकारी होता है। आइए, इस विधि को अपनाकर शनि देव की कृपा प्राप्त करें।

  1. स्थान: पाठ के लिए एक शांत और स्वच्छ स्थान चुनें – यह घर का पूजा स्थान, छत या एकांत कक्ष हो सकता है। यदि संभव हो तो पीपल के वृक्ष के नीचे भी पाठ किया जा सकता है।
  2. शुद्धता: स्नान करके स्वच्छ वस्त्र पहनें (काले या नीले वस्त्र पहनना शनि पूजा में शुभ माना जाता है)। एक लकड़ी की चौकी पर काला या नीला कपड़ा बिछाकर उस पर शनि देव की मूर्ति या फोटो स्थापित करें।
  3. पूजा सामग्री: सरसों का तेल, नीले फूल, काले तिल, लोहे का छोटा टुकड़ा, अगरबत्ती, दीपक, कपूर, और नीले वस्त्र – ये सभी सामग्री पास में रखें।
  4. दीपक और ध्यान: सरसों के तेल का दीपक जलाकर शनि देव का ध्यान करें। शांत चित्त होकर संकल्प लें कि आप श्रद्धा पूर्वक पाठ करेंगे।
  5. पाठ: अब पूरे मन से Shani Ashtak In Hindi का पाठ करें। इसका उच्चारण स्पष्ट और भावपूर्ण होना चाहिए। पाठ के समय शनि देव के स्वरूप की कल्पना करें और उनसे कृपा की प्रार्थना करें।
  6. पाठ संख्या: आप चाहें तो एक बार या तीन बार अष्टक का पाठ कर सकते हैं। अगर विशेष रूप से शनि दोष या साढ़ेसाती से पीड़ित हैं, तो 11 बार का पाठ करना फलदायक होता है।
  7. आरती: पाठ पूर्ण होने के बाद शनि देव की आरती करें। प्रार्थना करें कि वे आपके जीवन से कष्टों को दूर करें और कर्मों में मजबूती प्रदान करें।
  8. प्रसाद: काले तिल, गुड़ और उबले चने का प्रसाद चढ़ाएं और यथासंभव जरूरतमंदों को काले तिल, तेल या कंबल दान करें।

श्रद्धा और नियमपूर्वक किया गया पाठ न केवल शनि दोषों को शांति देता है, बल्कि आत्मबल, धैर्य और कर्म की दिशा में मजबूती भी प्रदान करता है।

FAQ

इसका पाठ कब करना चाहिए ?

इसका पाठ शनिवार के दिन करना सबसे उत्तम होता है। यदि नियमित करना संभव न हो, तो कम से कम हर शनिवार इसे अवश्य पढ़ें।

क्या अष्टक का पाठ रोज़ कर सकते हैं?

क्या पाठ के लिए कोई विशेष रंग शुभ होता है ?

अष्टक का पाठ करने से क्या लाभ होता है?

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