ज्योतिष शास्त्र में अष्टम शनि को जीवन की सबसे कठिन परीक्षाओं में से एक माना जाता है। जब शनि ग्रह किसी व्यक्ति की कुंडली में जन्मराशि से आठवें स्थान (अष्टम भाव) में गोचर करता है, तो इसे Ashtama Shani कहा जाता है। यह स्थिति जीवन में संघर्ष, चुनौतियाँ, स्वास्थ्य समस्याएँ और मानसिक तनाव ला सकती है। लेकिन नीचे दिए गए इसके प्रभाव को समझकर और सही उपाय अपनाकर इसके परिणामों को संतुलित किया जा सकता है।
What Is Ashtama Shani

सबसे पहले जानते है की ये होता क्या है? अष्टम भाव को ज्योतिष में आयु भाव, गूढ़ ज्ञान, आकस्मिक घटनाओं और परिवर्तन से जोड़ा जाता है। जब शनि इस भाव में प्रवेश करता है, तो यह व्यक्ति के जीवन में अनिश्चितताएँ, मानसिक बोझ और गंभीर बदलाव लाता है। यह एक ऐसा काल होता है, जिसमें व्यक्ति को धैर्य, आत्म-संयम और कर्मों की गहराई से परीक्षा देनी पड़ती है।
Sshtama Shani Effects
- मानसिक प्रभाव: इसका प्रभाव व्यक्ति को गहरे अवसाद, मानसिक तनाव और अकेलेपन की स्थिति में डाल सकता है। इस दौरान व्यक्ति को ऐसा महसूस हो सकता है कि उसका कोई साथ नहीं दे रहा और उसे हर चीज़ का सामना अकेले करना पड़ रहा है।
- आर्थिक प्रभाव: इस दौरान व्यक्ति को नौकरी में अस्थिरता, प्रमोशन में देरी या व्यापार में नुकसान जैसी स्थितियों का सामना करना पड़ सकता है। गलत निवेश से बचना चाहिए और किसी भी प्रकार के बड़े वित्तीय निर्णय सोच-समझकर लेने चाहिए। इस समय धैर्य और कड़ी मेहनत से ही व्यक्ति आगे बढ़ सकता है।
- स्वास्थ्य प्रभाव: Ashtama Shani अक्सर शारीरिक कमजोरी, जोड़ों का दर्द, हड्डियों की समस्या, सर्जरी या अचानक बीमारियों का कारण बन सकता है। योग, ध्यान और पौष्टिक आहार से स्वास्थ्य को संतुलित रखा जा सकता है।
- पारिवारिक जीवन पर प्रभाव: परिवार में तनाव, मनमुटाव और गलतफहमियों की संभावना बढ़ जाती है। वैवाहिक जीवन में भी अहंकार, झगड़े और भावनात्मक दूरी महसूस हो सकती है। धैर्य, संवाद और समझदारी से रिश्तों को बचाया जा सकता है।
किन लोगों पर पड़ता है इसका प्रभाव?
इसका प्रभाव मुख्य रूप से उन लोगों पर पड़ता है जिनकी कुंडली में शनि जन्मराशि से आठवें भाव में गोचर करता है। प्रत्येक राशि के लिए यह गोचर अलग-अलग समय पर होता है और इसका प्रभाव व्यक्ति के पूर्व जन्म के कर्मों और वर्तमान जीवनशैली पर निर्भर करता है।
Ashtama Shani से बचाव और इसके प्रभाव को कम करने के उपाय
- धैर्य और आत्म-संयम: यह समय कठिन जरूर होता है, लेकिन घबराने की बजाय धैर्य और आत्म-संयम से काम लेना चाहिए। किसी भी प्रकार के आवेग में आकर गलत निर्णय लेने से बचें।
- अच्छे कर्म: शनि न्याय के देवता हैं और वे कर्मों का फल देते हैं। इस दौरान सत्कर्म, दान-पुण्य और जरूरतमंदों की सहायता करने से शनि के दुष्प्रभाव कम हो सकते हैं।
- शनिदेव की उपासना: शनि चालीसा, शनि मंत्र, शनि स्तोत्र का नियमित पाठ करें। शनिवार को काले तिल, तेल और लोहे का दान करें।
- ध्यान और योग: मानसिक शांति और आत्म-संयम के लिए ध्यान और योग करें। सकारात्मक ऊर्जा बनाए रखने के लिए प्राणायाम और नियमित व्यायाम करें।
- हनुमान जी और शिव जी: हनुमान चालीसा का पाठ करें और बजरंग बली का स्मरण करें। महादेव की उपासना करने से भी शनि के प्रभाव में कमी आती है।
अष्टम शनि जीवन में बड़े बदलाव, चुनौतियाँ और कठिनाइयाँ लेकर आता है, लेकिन यह केवल एक परीक्षा होती है। अगर इस समय धैर्य, सकारात्मक सोच और अच्छे कर्म किए जाएँ, तो यह दौर जीवन में सफलता और आत्मिक उन्नति का कारण भी बन सकता है।
अगर आपको शनि की साढ़े साती, शनि महादशा, शनि की ढैया जैसी अन्य स्थितियों के बारे में भी जानना है, तो उनसे जुड़े लेख जरूर पढ़ें और अपने जीवन को बेहतर बनाने के लिए सही मार्ग अपनाएँ।
FAQ
ये कितने साल तक रहता है?
शनि का एक राशि में गोचर लगभग ढाई साल तक रहता है, इसलिए ये भी व्यक्ति की कुंडली में लगभग ढाई वर्षों तक प्रभाव डालता है।
किन लोगों पर इसका अधिक प्रभाव पड़ता है?
जिनकी कुंडली में शनि जन्मराशि से आठवें भाव में गोचर करता है, उन्हें इसका प्रभाव अधिक झेलना पड़ता है।
क्या ये हमेशा बुरा प्रभाव ही देता है?
नहीं, अगर व्यक्ति धैर्य, अनुशासन और अच्छे कर्मों को अपनाता है, तो इसका प्रभाव आत्म-सुधार और आध्यात्मिक उन्नति में भी मदद कर सकता है।

मैं हेमानंद शास्त्री, एक साधारण भक्त और सनातन धर्म का सेवक हूँ। मेरा उद्देश्य धर्म, भक्ति और आध्यात्मिकता के रहस्यों को सरल भाषा में भक्तों तक पहुँचाना है। शनि देव, बालाजी, हनुमान जी, शिव जी, श्री कृष्ण और अन्य देवी-देवताओं की महिमा का वर्णन करना मेरे लिए केवल लेखन नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक साधना है। मैं अपने लेखों के माध्यम से पूजन विधि, मंत्र, स्तोत्र, आरती और धार्मिक ग्रंथों का सार भक्तों तक पहुँचाने का प्रयास करता हूँ। 🚩 जय सनातन धर्म 🚩