मिथिला का कण कण खिला जमाई राजा राम मिला

भगवान श्रीराम का मिथिला आगमन केवल एक विवाह संस्कार नहीं, बल्कि प्रेम, मर्यादा और संस्कृति का संगम था। जब श्रीराम जी ने जनकपुर में कदम रखा, तो पूरा मिथिला उल्लास से भर उठा। मिथिला का कण-कण खिला, जमाई राजा राम मिला भजन इसी शुभ अवसर का आनंदमय वर्णन करता है। यह भजन हमें उस दिव्य क्षण की अनुभूति कराता है जब जनकपुरी की धरती स्वयं को धन्य मान रही थी और माता सीता को उनके योग्य वर, श्रीराम, प्राप्त हुए।

Mithila Ka Kan Kan Khila Jamayi Raja Ram Mila

मिथिला का कण कण खिला,
जमाई राजा राम मिला।1।

जनक सुति संग रहियो ऐसे,
कनक कली पर भंवरा जैसे,
कनक कली पर भंवरा जैसे,
राम चंदा चकोरी सिया,
जमाई राजा राम मिला।2।

कनक अटारी जनक दुलारी,
निरख रहे तोहे धनुधारी,
निरख रहे तोहे धनुधारी,
लेके पलकों में तुमको छिपा,
जमाई राजा राम मिला।3।

पति पत्नी वृत धर्म निभाना,
दोनों कुलों का मान बढ़ाना,
दोनों कुलों का मान बढ़ाना,
अब दुनिया का होगा भला,
जमाई राजा राम मिला।4।

मिथिला का कण कण खिला,
जमाई राजा राम मिला।5।

भगवान श्रीराम और माता सीता का मिलन केवल एक विवाह नहीं, बल्कि धर्म, मर्यादा और प्रेम की पराकाष्ठा का प्रतीक है। यह भजन हमें उस पावन क्षण की याद दिलाता है जब मिथिला ने स्वयं को धन्य माना और हर गली-मोहल्ले में उल्लास छा गया। श्रीराम जी की कथा और भजनों का गुणगान करना ही उनके चरणों में सच्ची भक्ति है। यदि आपको यह भजन प्रिय लगा, तो आप “सीता-राम विवाह महोत्सव, जनकपुर की दिव्यता और राम, श्रीराम विवाह गीत, और “राम-सीता भक्ति के अद्भुत प्रसंग” भी पढ़ सकते हैं। इन भजनों और लेखों से आप प्रभु श्रीराम की कथा को और गहराई से अनुभव कर पाएंगे। जय श्रीराम! 🚩🙏

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