Bajarang Baan

Bajarang Baan | बजरंग बाण: हनुमान जी की आराधना का दिव्य मंत्र

बजरंग बाण भगवान हनुमान की स्तुति का एक प्रभावशाली और शक्तिशाली पाठ है, जिसे उनके भक्त संकटों और कष्टों से मुक्ति पाने के लिए पढ़ते हैं। “बजरंग” का अर्थ है बलशाली, और “बाण” का अर्थ है तीर। Bajarang Baan का पाठ हनुमान जी के उन भक्तों के लिए एक दिव्य साधन है, जो कठिन समय … Read more

durga saptashati path pdf

Durga Saptashati Path PDF | दुर्गा सप्तशती पाठ PDF: शक्ति की आराधना का पूर्ण ग्रंथ

दुर्गा सप्तशती पाठ PDF एक अत्यंत प्रभावशाली और शक्ति से भरपूर धार्मिक document फाइल है, जिसे माँ दुर्गा की पूजा के दौरान उपयोग किया जाता है। जो लोग समय या स्थान के कारण नियमित रूप से दुर्गा सप्तशती का पाठ नहीं कर सकते, उनके लिए Durga Saptashati Path Pdf एक बेहतरीन विकल्प है। इस PDF … Read more

पाठ मंत्र ॐ ऐं आत्मतत्त्वं शोधयामि नमः स्वाहा, ॐ ह्रीं विद्यातत्त्वं शोधयामि नमः स्वाहा। ॐ क्लीं शिवतत्त्वं शोधयामि नमः स्वाहा, ॐ ऐं ह्रीं क्लीं सर्वतत्त्वं शोधयामि नमः स्वाहा। ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णुः ॐ नमः परमात्मने, श्रीपुराणपुरुषोत्तमस्य श्रीविष्णोराज्ञया प्रवर्तमानस्याद्य श्रीब्रह्मणो द्वितीयपरार्द्धे श्रीश्वेतवाराहकल्पे वैवस्वतमन्वन्तरेऽष्टाविंशतितमे कलियुगे प्रथमचरणे जम्बूद्वीपे भारतवर्षे भरतखण्डे आर्यावर्तान्तर्गतब्रह्मावर्तैकदेशे पुण्यप्रदेशे बौद्धावतारे वर्तमाने यथानामसंवत्सरे अमुकामने महामांगल्यप्रदे मासानाम्‌ उत्तमे अमुकमासे अमुकपक्षे अमुकतिथौ अमुकवासरान्वितायाम्‌ अमुकनक्षत्रे अमुकराशिस्थिते सूर्ये अमुकामुकराशिस्थितेषु चन्द्रभौमबुधगुरुशुक्रशनिषु सत्सु शुभे योगे शुभकरणे एवं गुणविशेषणविशिष्टायां शुभ पुण्यतिथौ सकलशास्त्र श्रुति स्मृति पुराणोक्त फलप्राप्तिकामः अमुकगोत्रोत्पन्नः अमुक नाम अहं ममात्मनः सपुत्रस्त्रीबान्धवस्य श्रीनवदुर्गानुग्रहतो ग्रहकृतराजकृतसर्व-विधपीडानिवृत्तिपूर्वकं नैरुज्यदीर्घायुः पुष्टिधनधान्यसमृद्ध्‌यर्थं श्री नवदुर्गाप्रसादेन सर्वापन्निवृत्तिसर्वाभीष्टफलावाप्तिधर्मार्थ- काममोक्षचतुर्विधपुरुषार्थसिद्धिद्वारा श्रीमहाकाली-महालक्ष्मीमहासरस्वतीदेवताप्रीत्यर्थं शापोद्धारपुरस्परं कवचार्गलाकीलकपाठ- वेदतन्त्रोक्त रात्रिसूक्त पाठ देव्यथर्वशीर्ष पाठन्यास विधि सहित नवार्णजप सप्तशतीन्यास- धन्यानसहितचरित्रसम्बन्धिविनियोगन्यासध्यानपूर्वकं च 'मार्कण्डेय उवाच॥ सावर्णिः सूर्यतनयो यो मनुः कथ्यतेऽष्टमः।' इत्याद्यारभ्य 'सावर्णिर्भविता मनुः' इत्यन्तं दुर्गासप्तशतीपाठं तदन्ते न्यासविधिसहितनवार्णमन्त्रजपं वेदतन्त्रोक्तदेवीसूक्तपाठं रहस्यत्रयपठनं शापोद्धारादिकं च किरष्ये/करिष्यामि॥

Durga Path | दुर्गा पाठ: माँ दुर्गा की उपासना का एक महत्वपूर्ण तरीका

दुर्गा पाठ एक प्राचीन और शक्तिशाली भक्ति साधना है, जो विशेष रूप से माँ दुर्गा की पूजा और आराधना में किया जाता है। Durga Path भक्तों के लिए उनके जीवन में सुख, समृद्धि और शांति लाने का एक माध्यम है। दुर्गा जी के पाठ में माँ दुर्गा के विभिन्न रूपों की महिमा का वर्णन होता … Read more

दुर्गा चालीसा पाठ दुर्गा चालीसा नमो नमो दुर्गे सुख करनी, नमो नमो दुर्गे दुःख हरनी।   निरंकार है ज्योति तुम्हारी, तिहूं लोक फैली उजियारी।   शशि ललाट मुख महाविशाला, नेत्र लाल भृकुटि विकराला।   रूप मातु को अधिक सुहावे, दरश करत जन अति सुख पावे।   तुम संसार शक्ति लै कीना,पालन हेतु अन्न धन दीना।   अन्नपूर्णा हुई जग पाला, तुम ही आदि सुन्दरी बाला।   प्रलयकाल सब नाशन हारी, तुम गौरी शिवशंकर प्यारी।   शिव योगी तुम्हरे गुण गावें, ब्रह्मा विष्णु तुम्हें नित ध्यावें।   रूप सरस्वती को तुम धारा, दे सुबुद्धि ऋषि मुनिन उबारा।   धरयो रूप नरसिंह को अम्बा, परगट भई फाड़कर खम्बा।   रक्षा करि प्रह्लाद बचायो, हिरण्याक्ष को स्वर्ग पठायो।   लक्ष्मी रूप धरो जग माहीं, श्री नारायण अंग समाहीं।   क्षीरसिन्धु में करत विलासा, दयासिन्धु दीजै मन आसा।   हिंगलाज में तुम्हीं भवानी, महिमा अमित न जात बखानी।   मातंगी अरु धूमावति माता, भुवनेश्वरी बगला सुख दाता।   श्री भैरव तारा जग तारिणी, छिन्न भाल भव दुःख निवारिणी।   केहरि वाहन सोह भवानी, लांगुर वीर चलत अगवानी।   कर में खप्पर खड्ग विराजै, जाको देख काल डर भाजै।   सोहै अस्त्र और त्रिशूला, जाते उठत शत्रु हिय शूला।   नगरकोट में तुम्हीं विराजत, तिहुंलोक में डंका बाजत।   शुंभ निशुंभ दानव तुम मारे, रक्तबीज शंखन संहारे।   महिषासुर नृप अति अभिमानी, जेहि अघ भार मही अकुलानी।   रूप कराल कालिका धारा, सेन सहित तुम तिहि संहारा।   परी गाढ़ संतन पर जब जब, भई सहाय मातु तुम तब तब.   अमरपुरी अरु बासव लोका, तब महिमा सब रहें अशोका।   ज्वाला में है ज्योति तुम्हारी, तुम्हें सदा पूजें नर-नारी।   प्रेम भक्ति से जो यश गावें, दुःख दारिद्र निकट नहिं आवें।   ध्यावे तुम्हें जो नर मन लाई, जन्म-मरण ताकौ छुटि जाई।   जोगी सुर मुनि कहत पुकारी, योग न हो बिन शक्ति तुम्हारी।   शंकर आचारज तप कीनो, काम अरु क्रोध जीति सब लीनो।   निशिदिन ध्यान धरो शंकर को, काहु काल नहिं सुमिरो तुमको।   शक्ति रूप का मरम न पायो, शक्ति गई तब मन पछितायो।   शरणागत हुई कीर्ति बखानी, जय जय जय जगदम्ब भवानी।   भई प्रसन्न आदि जगदम्बा, दई शक्ति नहिं कीन विलम्बा।   मोको मातु कष्ट अति घेरो, तुम बिन कौन हरै दुःख मेरो।   आशा तृष्णा निपट सतावें, रिपू मुरख मौही डरपावे।   शत्रु नाश कीजै महारानी, सुमिरौं इकचित तुम्हें भवानी।   करो कृपा हे मातु दयाला, ऋद्धि-सिद्धि दै करहु निहाला।   जब लगि जिऊं दया फल पाऊं , तुम्हरो यश मैं सदा सुनाऊं।   दुर्गा चालीसा जो कोई गावै, सब सुख भोग परमपद पावै।   देवीदास शरण निज जानी, करहु कृपा जगदम्ब भवानी।

Durga Chalisa Paath | दुर्गा चालीसा पाठ: एक अद्भुत साधना

दुर्गा चालीसा पाठ एक शक्तिशाली और प्रभावी भक्ति कर्म है, जिसे भक्तों द्वारा माँ दुर्गा की कृपा और आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए नियमित रूप से किया जाता है। Durga Chalisa Paath माँ दुर्गा की स्तुति और उनके विभिन्न रूपों की महिमा का वर्णन करती है। दुर्गा चालीसा 40 श्लोकों में माँ दुर्गा की शक्ति, … Read more

Durga Saptashati ॐ ऐं आत्मतत्त्वं शोधयामि नमः स्वाहा ॐ ह्रीं विद्यातत्त्वं शोधयामि नमः स्वाहा ॐ क्लीं शिवतत्त्वं शोधयामि नमः स्वाहा ॥ॐ ऐं ह्रीं क्लीं सर्वतत्त्वं शोधयामि नमः स्वाहा॥ ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णुः॥ ॐ नमः परमात्मने, श्रीपुराणपुरुषोत्तमस्य श्रीविष्णोराज्ञया प्रवर्तमानस्याद्य श्रीब्रह्मणो द्वितीयपरार्द्धे, श्रीश्वेतवाराहकल्पे वैवस्वतमन्वन्तरेऽष्टाविंशतितमे कलियुगे प्रथमचरणे जम्बूद्वीपे भारतवर्षे भरतखण्डे, आर्यावर्तान्तर्गतब्रह्मावर्तैकदेशे पुण्यप्रदेशे बौद्धावतारे वर्तमाने यथानामसंवत्सरे अमुकामने महामांगल्यप्रदे मासानाम्‌ उत्तमे, अमुकमासे अमुकपक्षे अमुकतिथौ अमुकवासरान्वितायाम्‌ अमुकनक्षत्रे अमुकराशिस्थिते सूर्ये अमुकामुकराशिस्थितेषु, चन्द्रभौमबुधगुरुशुक्रशनिषु सत्सु शुभे योगे शुभकरणे एवं गुणविशेषणविशिष्टायां शुभ पुण्यतिथौ सकलशास्त्र श्रुति स्मृति, पुराणोक्त फलप्राप्तिकामः अमुकगोत्रोत्पन्नः अमुक नाम अहं ममात्मनः सपुत्रस्त्रीबान्धवस्य श्रीनवदुर्गानुग्रहतो, ग्रहकृतराजकृतसर्व-विधपीडानिवृत्तिपूर्वकं नैरुज्यदीर्घायुः पुष्टिधनधान्यसमृद्ध्‌यर्थं श्री नवदुर्गाप्रसादेन, सर्वापन्निवृत्तिसर्वाभीष्टफलावाप्तिधर्मार्थ- काममोक्षचतुर्विधपुरुषार्थसिद्धिद्वारा श्रीमहाकाली-महालक्ष्मीमहासरस्वतीदेवताप्रीत्यर्थं शापोद्धारपुरस्परं कवचार्गलाकीलकपाठ- वेदतन्त्रोक्त रात्रिसूक्त पाठ देव्यथर्वशीर्ष, पाठन्यास विधि सहित नवार्णजप सप्तशतीन्यास-धन्यानसहितचरित्रसम्बन्धिविनियोगन्यासध्यानपूर्वकं च ‘मार्कण्डेय, उवाच॥ सावर्णिः सूर्यतनयो यो मनुः कथ्यतेऽष्टमः॥” इत्याद्यारभ्य “सावर्णिर्भविता मनुः” इत्यन्तं दुर्गासप्तशतीपाठं तदन्ते, न्यासविधिसहितनवार्णमन्त्रजपं वेदतन्त्रोक्तदेवीसूक्तपाठं रहस्यत्रयपठनं शापोद्धारादिकं च किरष्ये/करिष्यामि॥

दुर्गा सप्तशती | Durga Saptashati : देवी दुर्गा की महिमा और शक्ति का अद्वितीय ग्रंथ

दुर्गा सप्तशती, जिसे “चंडी पाठ” के नाम से भी जाना जाता है, हिंदू धर्म में अत्यंत पवित्र और प्रभावशाली ग्रंथ माना जाता है। यह ग्रंथ देवी दुर्गा की स्तुति में रचित है और इसमें 700 श्लोक शामिल हैं, जो “मार्कण्डेय पुराण” का हिस्सा हैं। Durga Saptashati में माँ दुर्गा के अद्भुत रूपों, उनकी महिमा, शक्ति, … Read more

हनुमान बहुक लिरिक्स ॥श्रीगणेशाय नमः॥ श्रीजानकीवल्लभो विजयतेश्रीमद्-गोस्वामि-तुलसीदास-कृतहनुमान बाहुक सिंधु-तरन, सिय-सोच-हरन, रबि-बाल-बरन तनु। भुज बिसाल, मूरति कराल कालहुको काल जनु॥ गहन-दहन-निरदहन लंक निःसंक, बंक-भुव । जातुधान-बलवान-मान-मद-दवन पवनसुव॥ कह तुलसिदास सेवत सुलभ सेवक हित सन्तत निकट । गुन-गनत, नमत, सुमिरत, जपत समन सकल-संकट-विकट॥ स्वर्न-सैल-संकास कोटि-रबि-तरुन-तेज-घन । उर बिसाल भुज-दंड चंड नख-बज्र बज्र-तन॥ पिंग नयन, भृकुटी कराल रसना दसनानन । कपिस केस, करकस लँगूर, खल-दल बल भानन ॥ कह तुलसिदास बस जासु उर मारुतसुत मूरति बिकट । संताप पाप तेहि पुरुष पहिं सपनेहुँ नहिं आवत निकट॥ झूलना पञ्चमुख-छमुख-भृगु मुख्य भट असुर सुर, सर्व-सरि-समर समरत्थ सूरो । बाँकुरो बीर बिरुदैत बिरुदावली, बेद बंदी बदत पैजपूरो॥ जासु गुनगाथ रघुनाथ कह, जासुबल, बिपुल-जल-भरित जग-जलधि झूरो । दुवन-दल-दमनको कौन तुलसीस है, पवन को पूत रजपूत रुरो ॥ घनाक्षरी भानुसों पढ़न हनुमान गये भानु मन-अनुमानि सिसु-केलि कियो फेरफार सो। पाछिले पगनि गम गगन मगन-मन, क्रम को न भ्रम, कपि बालक बिहार सो॥ कौतुक बिलोकि लोकपाल हरि हर बिधि, लोचननि चकाचौंधी चित्तनि खभार सो। बल कैंधौं बीर-रस धीरज कै, साहस कै, तुलसी सरीर धरे सबनि को सार सो॥ भारत में पारथ के रथ केथू कपिराज, गाज्यो सुनि कुरुराज दल हल बल भो । कह्यो द्रोन भीषम समीर सुत महाबीर, बीर-रस-बारि-निधि जाको बल जल भो॥ बानर सुभाय बाल केलि भूमि भानु लागि, फलँग फलाँग हूँतें घाटि नभतल भो । नाई-नाई माथ जोरि-जोरि हाथ जोधा जोहैं, हनुमान देखे जगजीवन को फल भो ॥ गो-पद पयोधि करि होलिका ज्यों लाई लंक, निपट निसंक परपुर गलबल भो । द्रोन-सो पहार लियो ख्याल ही उखारि कर, कंदुक-ज्यों कपि खेल बेल कैसो फल भो ॥ संकट समाज असमंजस भो रामराज, काज जुग पूगनि को करतल पल भो । साहसी समत्थ तुलसी को नाह जाकी बाँह, लोकपाल पालन को फिर थिर थल भो॥ कमठ की पीठि जाके गोडनि की गाड़ैं मानो, नाप के भाजन भरि जल निधि जल भो। जातुधान-दावन परावन को दुर्ग भयो, महामीन बास तिमि तोमनि को थल भो॥ कुम्भकरन-रावन पयोद-नाद-ईंधन को, तुलसी प्रताप जाको प्रबल अनल भो । भीषम कहत मेरे अनुमान हनुमान, सारिखो त्रिकाल न त्रिलोक महाबल भो॥ ॥अत्यन्त बलवान् तीनों काल और तीनों लोक में कोई नहीं हुआ ॥ दूत रामराय को, सपूत पूत पौनको, तू अंजनी को नन्दन प्रताप भूरि भानु सो। सीय-सोच-समन, दुरित दोष दमन, सरन आये अवन, लखन प्रिय प्रान सो॥ दसमुख दुसह दरिद्र दरिबे को भयो, प्रकट तिलोक ओक तुलसी निधान सो । ज्ञान गुनवान बलवान सेवा सावधान, साहेब सुजान उर आनु हनुमान सो ॥ दवन-दुवन-दल भुवन-बिदित बल, बेद जस गावत बिबुध बंदीछोर को । पाप-ताप-तिमिर तुहिन-विघटन-पटु, सेवक-सरोरुह सुखद भानु भोर को॥ लोक-परलोक तें बिसोक सपने न सोक, तुलसी के हिये है भरोसो एक ओर को । राम को दुलारो दास बामदेव को निवास, नाम कलि-कामतरु केसरी-किसोर को ॥ महाबल-सीम महाभीम महाबान इत, महाबीर बिदित बरायो रघुबीर को। कुलिस-कठोर तनु जोरपरै रोर रन, करुना-कलित मन धारमिक धीर को॥ दुर्जन को कालसो कराल पाल सज्जन को, सुमिरे हरनहार तुलसी की पीर को। सीय-सुख-दायक दुलारो रघुनायक को, सेवक सहायक है साहसी समीर को॥ रचिबे को बिधि जैसे, पालिबे को हरि, हर मीच मारिबे को, ज्याईबे को सुधापान भो । धरिबे को धरनि, तरनि तम दलिबे को, सोखिबे कृसानु, पोषिबे को हिम-भानु भो॥ खल-दुःख दोषिबे को, जन-परितोषिबे को, माँगिबो मलीनता को मोदक सुदान भो। आरत की आरति निवारिबे को तिहुँ पुर, तुलसी को साहेब हठीलो हनुमान भो ॥ सेवक स्योकाई जानि जानकीस मानै कानि, सानुकूल सूलपानि नवै नाथ नाँक को। देवी देव दानव दयावने ह्वै जोरैं हाथ, बापुरे बराक कहा और राजा राँक को॥ जागत सोवत बैठे बागत बिनोद मोद, ताके जो अनर्थ सो समर्थ एक आँक को। सब दिन रुरो परै पूरो जहाँ-तहाँ ताहि, जाके है भरोसो हिये हनुमान हाँक को॥ सानुग सगौरि सानुकूल सूलपानि ताहि, लोकपाल सकल लखन राम जानकी । लोक परलोक को बिसोक सो तिलोक ताहि, तुलसी तमाइ कहा काहू बीर आनकी॥ केसरी किसोर बन्दीछोर के नेवाजे सब, कीरति बिमल कपि करुनानिधान की । बालक-ज्यों पालिहैं कृपालु मुनि सिद्ध ताको, जाके हिये हुलसति हाँक हनुमान की॥ करुनानिधान, बलबुद्धि के निधान मोद-महिमा निधान, गुन-ज्ञान के निधान हौ । बामदेव-रुप भूप राम के सनेही, नाम लेत-देत अर्थ धर्म काम निरबान हौ ॥ आपने प्रभाव सीताराम के सुभाव सील, लोक-बेद-बिधि के बिदूष हनुमान हौ । मन की बचन की करम की तिहूँ प्रकार, तुलसी तिहारो तुम साहेब सुजान हौ॥ मन को अगम, तन सुगम किये कपीस, काज महाराज के समाज साज साजे हैं। देव-बंदी छोर रनरोर केसरी किसोर, जुग जुग जग तेरे बिरद बिराजे हैं॥ बीर बरजोर, घटि जोर तुलसी की ओर, सुनि सकुचाने साधु खल गन गाजे हैं। बिगरी सँवार अंजनी कुमार कीजे मोहिं, जैसे होत आये हनुमान के निवाजे हैं॥ सवैया जान सिरोमनि हौ हनुमान सदा जन के मन बास तिहारो। ढ़ारो बिगारो मैं काको कहा केहि कारन खीझत हौं तो तिहारो॥ साहेब सेवक नाते तो हातो कियो सो तहाँ तुलसी को न चारो। दोष सुनाये तें आगेहुँ को होशियार ह्वैं हों मन तौ हिय हारो॥ तेरे थपे उथपै न महेस, थपै थिरको कपि जे घर घाले। तेरे निवाजे गरीब निवाज बिराजत बैरिन के उर साले॥ संकट सोच सबै तुलसी लिये नाम फटै मकरी के से जाले। बूढ़ भये, बलि, मेरिहि बार, कि हारि परे बहुतै नत पाले॥ सिंधु तरे, बड़े बीर दले खल, जारे हैं लंक से बंक मवा से। तैं रनि-केहरि केहरि के बिदले अरि-कुंजर छैल छवा से॥ तोसों समत्थ सुसाहेब सेई सहै तुलसी दुख दोष दवा से। बानर बाज ! बढ़े खल-खेचर, लीजत क्यों न लपेटि लवा-से॥ अच्छ-विमर्दन कानन-भानि दसानन आनन भा न निहारो। बारिदनाद अकंपन कुंभकरन्न-से कुञ्जर केहरि-बारो॥ राम-प्रताप-हुतासन, कच्छ, बिपच्छ, समीर समीर-दुलारो। पाप-तें साप-तें ताप तिहूँ-तें सदा तुलसी कहँ सो रखवारो॥ घनाक्षरी जानत जहान हनुमान को निवाज्यौ जन, मन अनुमानि बलि, बोल न बिसारिये। सेवा-जोग तुलसी कबहुँ कहा चूक परी, साहेब सुभाव कपि साहिबी सँभारिये॥ अपराधी जानि कीजै सासति सहस भाँति, मोदक मरै जो ताहि माहुर न मारिये। साहसी समीर के दुलारे रघुबीर जू के, बाँह पीर महाबीर बेगि ही निवारिये॥ बालक बिलोकि, बलि बारेतें आपनो कियो, दीनबन्धु दया कीन्हीं निरुपाधि न्यारिये। रावरो भरोसो तुलसी के, रावरोई बल, आस रावरीयै दास रावरो बिचारिये॥ बड़ो बिकराल कलि, काको न बिहाल कियो, माथे पगु बलि को, निहारि सो निवारिये। केसरी किसोर, रनरोर, बरजोर बीर, बाँहुपीर राहुमातु ज्यौं पछारि मारिये॥ सिंहिका के समान बाहु की पीड़ा को पछाड़कर मार डालिये॥ उथपे थपनथिर थपे उथपनहार, केसरी कुमार बल आपनो सँभारिये। राम के गुलामनि को कामतरु रामदूत, मोसे दीन दूबरे को तकिया तिहारिये॥ साहेब समर्थ तोसों तुलसी के माथे पर, सोऊ अपराध बिनु बीर, बाँधि मारिये। पोखरी बिसाल बाँहु, बलि, बारिचर पीर, मकरी ज्यौं पकरि कै बदन बिदारिये॥ राम को सनेह, राम साहस लखन सिय, राम की भगति, सोच संकट निवारिये। मुद-मरकट रोग-बारिनिधि हेरि हारे, जीव-जामवंत को भरोसो तेरो भारिये॥ कूदिये कृपाल तुलसी सुप्रेम-पब्बयतें, सुथल सुबेल भालू बैठि कै बिचारिये। महाबीर बाँकुरे बराकी बाँह-पीर क्यों न, लंकिनी ज्यों लात-घात ही मरोरि मारिये ॥ लोक-परलोकहुँ तिलोक न बिलोकियत, तोसे समरथ चष चारिहूँ निहारिये। कर्म, काल, लोकपाल, अग-जग जीवजाल, नाथ हाथ सब निज महिमा बिचारिये॥ खास दास रावरो, निवास तेरो तासु उर, तुलसी सो देव दुखी देखियत भारिये। बात तरुमूल बाँहुसूल कपिकच्छु-बेलि, उपजी सकेलि कपिकेलि ही उखारिये ॥ करम-कराल-कंस भूमिपाल के भरोसे, बकी बकभगिनी काहू तें कहा डरैगी । बड़ी बिकराल बाल घातिनी न जात कहि, बाँहूबल बालक छबीले छोटे छरैगी ।। आई है बनाइ बेष आप ही बिचारि देख, पाप जाय सबको गुनी के पाले परैगी । पूतना पिसाचिनी ज्यौं कपिकान्ह तुलसी की, बाँहपीर महाबीर तेरे मारे मरैगी॥ भालकी कि कालकी कि रोष की त्रिदोष की है, बेदन बिषम पाप ताप छल छाँह की । करमन कूट की कि जन्त्र मन्त्र बूट की, पराहि जाहि पापिनी मलीन मन माँह की॥ पैहहि सजाय, नत कहत बजाय तोहि, बाबरी न होहि बानि जानि कपि नाँह की । आन हनुमान की दुहाई बलवान की, सपथ महाबीर की जो रहै पीर बाँह की॥ सिंहिका सँहारि बल, सुरसा सुधारि छल, लंकिनी पछारि मारि बाटिका उजारी है । लंक परजारि मकरी बिदारि बारबार, जातुधान धारि धूरिधानी करि डारी है॥ तोरि जमकातरि मंदोदरी कढ़ोरि आनी, रावन की रानी मेघनाद महँतारी है । भीर बाँह पीर की निपट राखी महाबीर, कौन के सकोच तुलसी के सोच भारी है॥ तेरो बालि केलि बीर सुनि सहमत धीर, भूलत सरीर सुधि सक्र-रबि-राहु की । तेरी बाँह बसत बिसोक लोकपाल सब, तेरो नाम लेत रहै आरति न काहु की ।। साम दान भेद बिधि बेदहू लबेद सिधि, हाथ कपिनाथ ही के चोटी चोर साहु की । आलस अनख परिहास कै सिखावन है, एते दिन रही पीर तुलसी के बाहु की॥ टूकनि को घर-घर डोलत कँगाल बोलि, बाल ज्यों कृपाल नतपाल पालि पोसो है । कीन्ही है सँभार सार अँजनी कुमार बीर, आपनो बिसारि हैं न मेरेहू भरोसो है ॥ इतनो परेखो सब भाँति समरथ आजु, कपिराज साँची कहौं को तिलोक तोसो है । सासति सहत दास कीजे पेखि परिहास, चीरी को मरन खेल बालकनि को सो है॥ आपने ही पाप तें त्रिपात तें कि साप तें, बढ़ी है बाँह बेदन कही न सहि जाति है । औषध अनेक जन्त्र मन्त्र टोटकादि किये, बादि भये देवता मनाये अधिकाति है॥ करतार, भरतार, हरतार, कर्म काल, को है जगजाल जो न मानत इताति है । चेरो तेरो तुलसी तू मेरो कह्यो राम दूत, ढील तेरी बीर मोहि पीर तें पिराति है॥ दूत राम राय को, सपूत पूत बाय को, समत्व हाथ पाय को सहाय असहाय को । बाँकी बिरदावली बिदित बेद गाइयत, रावन सो भट भयो मुठिका के घाय को॥ एते बड़े साहेब समर्थ को निवाजो आज, सीदत सुसेवक बचन मन काय को । थोरी बाँह पीर की बड़ी गलानि तुलसी को, कौन पाप कोप, लोप प्रकट प्रभाय को ॥ देवी देव दनुज मनुज मुनि सिद्ध नाग, छोटे बड़े जीव जेते चेतन अचेत हैं । पूतना पिसाची जातुधानी जातुधान बाम, राम दूत की रजाइ माथे मानि लेत हैं॥ घोर जन्त्र मन्त्र कूट कपट कुरोग जोग, हनुमान आन सुनि छाड़त निकेत हैं । क्रोध कीजे कर्म को प्रबोध कीजे तुलसी को, सोध कीजे तिनको जो दोष दुख देत हैं ॥ तेरे बल बानर जिताये रन रावन सों, तेरे घाले जातुधान भये घर-घर के । तेरे बल रामराज किये सब सुरकाज, सकल समाज साज साजे रघुबर के ॥ तेरो गुनगान सुनि गीरबान पुलकत, सजल बिलोचन बिरंचि हरि हर के । तुलसी के माथे पर हाथ फेरो कीसनाथ, देखिये न दास दुखी तोसो कनिगर के॥ पालो तेरे टूक को परेहू चूक मूकिये न, कूर कौड़ी दूको हौं आपनी ओर हेरिये। भोरानाथ भोरे ही सरोष होत थोरे दोष, पोषि तोषि थापि आपनी न अवडेरिये॥ अँबु तू हौं अँबुचर, अँबु तू हौं डिंभ सो न, बूझिये बिलंब अवलंब मेरे तेरिये। बालक बिकल जानि पाहि प्रेम पहिचानि, तुलसी की बाँह पर लामी लूम फेरिये॥ घेरि लियो रोगनि, कुजोगनि, कुलोगनि ज्यौं, बासर जलद घन घटा धुकि धाई है। बरसत बारि पीर जारिये जवासे जस, रोष बिनु दोष धूम-मूल मलिनाई है॥ करुनानिधान हनुमान महा बलवान, हेरि हँसि हाँकि फूँकि फौजैं ते उड़ाई है। खाये हुतो तुलसी कुरोग राढ़ राकसनि, केसरी किसोर राखे बीर बरिआई है॥ सवैया राम गुलाम तु ही हनुमान गोसाँई सुसाँई सदा अनुकूलो। पाल्यो हौं बाल ज्यों आखर दू पितु मातु सों मंगल मोद समूलो॥ बाँह की बेदन बाँह पगार पुकारत आरत आनँद भूलो। श्री रघुबीर निवारिये पीर रहौं दरबार परो लटि लूलो॥ घनाक्षरी काल की करालता करम कठिनाई कीधौं, पाप के प्रभाव की सुभाय बाय बावरे। बेदन कुभाँति सो सही न जाति राति दिन, सोई बाँह गही जो गही समीर डाबरे॥ लायो तरु तुलसी तिहारो सो निहारि बारि, सींचिये मलीन भो तयो है तिहुँ तावरे। भूतनि की आपनी पराये की कृपा निधान, जानियत सबही की रीति राम रावरे॥ पाँय पीर पेट पीर बाँह पीर मुँह पीर, जरजर सकल पीर मई है। देव भूत पितर करम खल काल ग्रह, मोहि पर दवरि दमानक सी दई है॥ हौं तो बिनु मोल के बिकानो बलि बारेही तें, ओट राम नाम की ललाट लिखि लई है। कुँभज के किंकर बिकल बूढ़े गोखुरनि, हाय राम राय ऐसी हाल कहूँ भई है॥ बाहुक-सुबाहु नीच लीचर-मरीच मिलि, मुँहपीर केतुजा कुरोग जातुधान हैं। राम नाम जगजाप कियो चहों सानुराग, काल कैसे दूत भूत कहा मेरे मान हैं॥ सुमिरे सहाय राम लखन आखर दोऊ, जिनके समूह साके जागत जहान हैं। तुलसी सँभारि ताड़का सँहारि भारि भट, बेधे बरगद से बनाइ बानवान हैं॥ बालपने सूधे मन राम सनमुख भयो, राम नाम लेत माँगि खात टूकटाक हौं। परयो लोक-रीति में पुनीत प्रीति राम राय, मोह बस बैठो तोरि तरकि तराक हौं॥ खोटे-खोटे आचरन आचरत अपनायो, अंजनी कुमार सोध्यो रामपानि पाक हौं। तुलसी गुसाँई भयो भोंडे दिन भूल गयो, ताको फल पावत निदान परिपाक हौं॥ असन-बसन-हीन बिषम-बिषाद-लीन, देखि दीन दूबरो करै न हाय हाय को। तुलसी अनाथ सो सनाथ रघुनाथ कियो, दियो फल सील सिंधु आपने सुभाय को॥ नीच यहि बीच पति पाइ भरु हाईगो, बिहाइ प्रभु भजन बचन मन काय को। ता तें तनु पेषियत घोर बरतोर मिस, फूटि फूटि निकसत लोन राम राय को॥ जीओं जग जानकी जीवन को कहाइ जन, मरिबे को बारानसी बारि सुरसरि को। तुलसी के दुहूँ हाथ मोदक हैं ऐसे ठाँउ, जाके जिये मुये सोच करिहैं न लरि को॥ मोको झूटो साँचो लोग राम को कहत सब, मेरे मन मान है न हर को न हरि को। भारी पीर दुसह सरीर तें बिहाल होत, सोऊ रघुबीर बिनु सकै दूर करि को॥ सीतापति साहेब सहाय हनुमान नित, हित उपदेश को महेस मानो गुरु कै. मानस बचन काय सरन तिहारे पाँय, तुम्हरे भरोसे सुर मैं न जाने सुर कै॥ ब्याधि भूत जनित उपाधि काहु खल की, समाधि कीजे तुलसी को जानि जन फुर कै। कपिनाथ रघुनाथ भोलानाथ भूतनाथ, रोग सिंधु क्यों न डारियत गाय खुर कै॥ कहों हनुमान सों सुजान राम राय सों, कृपानिधान संकर सों सावधान सुनिये। हरष विषाद राग रोष गुन दोष मई, बिरची बिरञ्ची सब देखियत दुनिये॥ माया जीव काल के करम के सुभाय के, करैया राम बेद कहैं साँची मन गुनिये। तुम्ह तें कहा न होय हा हा सो बुझैये मोहि, हौं हूँ रहों मौनही बयो सो जानि लुनिये॥

हनुमान बहुक | Hanuman Bahuk : एक अद्भुत भक्ति ग्रंथ

हनुमान बहुक एक प्रमुख भक्ति ग्रंथ है, जो भगवान हनुमान की महिमा, उनके गुण और शक्ति को समर्पित है। इसे विशेष रूप से हनुमान जी के भक्तों द्वारा उनके आशीर्वाद की प्राप्ति और संकटों से मुक्ति के लिए पढ़ा जाता है। Hanuman Bahuk में भगवान हनुमान की पूजा के श्लोक और उनके शक्ति रूप का … Read more

Durga Saptashati Paath ॐ ऐं आत्मतत्त्वं शोधयामि नमः स्वाहा, ॐ ह्रीं विद्यातत्त्वं शोधयामि नमः स्वाहा, ॐ क्लीं शिवतत्त्वं शोधयामि नमः स्वाहा, ॐ ऐं ह्रीं क्लीं सर्वतत्त्वं शोधयामि नमः स्वाहा॥ ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णुः॥ ॐ नमः परमात्मने, श्रीपुराणपुरुषोत्तमस्य श्रीविष्णोराज्ञया प्रवर्तमानस्याद्य श्रीब्रह्मणो द्वितीयपरार्द्धे। श्रीश्वेतवाराहकल्पे वैवस्वतमन्वन्तरेऽष्टाविंशतितमे कलियुगे प्रथमचरणे जम्बूद्वीपे भारतवर्षे भरतखण्डे। आर्यावर्तान्तर्गतब्रह्मावर्तैकदेशे पुण्यप्रदेशे बौद्धावतारे वर्तमाने यथानामसंवत्सरे अमुकामने महामांगल्यप्रदे मासानाम्‌ उत्तमे। अमुकमासे अमुकपक्षे अमुकतिथौ अमुकवासरान्वितायाम्‌ अमुकनक्षत्रे अमुकराशिस्थिते सूर्ये अमुकामुकराशिस्थितेषु। चन्द्रभौमबुधगुरुशुक्रशनिषु सत्सु शुभे योगे शुभकरणे एवं गुणविशेषणविशिष्टायां शुभ पुण्यतिथौ सकलशास्त्र श्रुति स्मृति। पुराणोक्त फलप्राप्तिकामः अमुकगोत्रोत्पन्नः अमुक नाम अहं ममात्मनः सपुत्रस्त्रीबान्धवस्य श्रीनवदुर्गानुग्रहतो। ग्रहकृतराजकृतसर्व-विधपीडानिवृत्तिपूर्वकं नैरुज्यदीर्घायुः पुष्टिधनधान्यसमृद्ध्‌यर्थं श्री नवदुर्गाप्रसादेन। सर्वापन्निवृत्तिसर्वाभीष्टफलावाप्तिधर्मार्थ- काममोक्षचतुर्विधपुरुषार्थसिद्धिद्वारा श्रीमहाकाली-महालक्ष्मीमहासरस्वतीदेवताप्रीत्यर्थं शापोद्धारपुरस्परं कवचार्गलाकीलकपाठ- वेदतन्त्रोक्त रात्रिसूक्त पाठ देव्यथर्वशीर्ष। पाठन्यास विधि सहित नवार्णजप सप्तशतीन्यास-धन्यानसहितचरित्रसम्बन्धिविनियोगन्यासध्यानपूर्वकं च ‘मार्कण्डेय। उवाच॥ सावर्णिः सूर्यतनयो यो मनुः कथ्यतेऽष्टमः॥” इत्याद्यारभ्य “सावर्णिर्भविता मनुः” इत्यन्तं दुर्गासप्तशतीपाठं तदन्ते। न्यासविधिसहितनवार्णमन्त्रजपं वेदतन्त्रोक्तदेवीसूक्तपाठं रहस्यत्रयपठनं शापोद्धारादिकं च किरष्ये/करिष्यामि॥

दुर्गा सप्तशती पाठ | Durga Saptashati Paath : एक संजीवनी शक्ति

दुर्गा सप्तशती पाठ, जिसे श्रीचंडी पाठ के नाम से भी जाना जाता है, हिंदू धर्म में देवी दुर्गा की महिमा का अद्भुत ग्रंथ है। यह पाठ देवी की शक्ति, साहस और करुणा का प्रतीक है और इसे शारदीय या वासंती नवरात्रि के दौरान विशेष रूप से किया जाता है। Durga Saptashati Paath में देवी दुर्गा … Read more

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Bajrang Baan PDF | बजरंग बाण PDF : एक दिव्य रक्षाशक्ति

बजरंग बाण पीडीएफ हनुमान भक्तो के लिए सरल और आसान सामग्री हो सकती है जिसके सहायता वो हनुमान जी के प्रति अपने प्रेम को गहरा और मजबूत कर सकते है। बजरंग बाण भगवान हनुमान का अत्यंत प्रभावशाली और शक्तिशाली स्तोत्र है, जिसे हनुमान जी की महिमा, शक्ति और आशीर्वाद के रूप में पूजा जाता है। … Read more

Sunderkand

Sunderkand | सुंदरकांड : घर में सुख समृद्धि

सुंदरकांड, श्रीरामचरितमानस का वो हिस्सा है जो हनुमान जी की वीरता, भक्ति और समर्पण को अद्भुत तरीके से प्रस्तुत करता है। इसका नाम “Sunderkand” इसलिए पड़ा क्योंकि इसमें हनुमान जी के कार्यों की सुंदरता और प्रभु राम के प्रति उनके असीम प्रेम को दर्शाया गया है। जब सीता माता को रावण द्वारा लंका में बंदी … Read more

Hanuman Ashtak in Hindi | हनुमान अष्टक इन हिंदी

हनुमान अष्टक इन हिंदी उन भक्तों के लिए एक उत्तम साधन है, जो भगवान हनुमान की कृपा से अपने जीवन के सभी संकटों से छुटकारा पाना चाहते हैं। इसमें आठ मंत्रात्मक श्लोक होते हैं, जो उनके बल, बुद्धि, और भक्तों के प्रति उनके असीम प्रेम का वर्णन करते हैं। जो लोग जीवन में निरंतर संघर्ष … Read more