नर्मदा टेम्पल : नर्मदा जी के प्रसिद्ध मंदिरों की यात्रा

नर्मदा नदी, जिसे “रेवा” के नाम से भी जाना जाता है, भारत की सबसे पवित्र नदियों में से एक है। इसके तट पर कई प्राचीन और प्रसिद्ध नर्मदा टेम्पल स्थित हैं, जो आध्यात्मिकता और आस्था के प्रमुख केंद्र माने जाते हैं। इस लेख में हम कुछ प्रसिद्ध Narmada Temple की जानकारी विस्तार से देंगे।

Table of Contents

Narmada Temple

  • Narmada Udgam Temple, Amarkamtak
  • ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग
  • चौंसठ योगिनी मंदिर, भेड़ाघाट
  • श्री नर्मदा मंदिर, गरुड़ेश्वर – जहाँ नदी नहीं, माँ बहती हैं

1. Narmada Udgam Temple, Amarkantak

भारत की पवित्रतम नदियों में से एक, नर्मदा जी की एक विशेष बात है — यह उत्तर से दक्षिण की ओर नहीं, बल्कि पूरब से पश्चिम की ओर बहती है, और वो भी हिमालय से नहीं, बल्कि मध्य भारत की पहाड़ियों से जन्म लेती है। और यह चमत्कारी जन्म होता है – अमरकंटक में।

Narmada Udgam Temple, अमरकंटक

अमरकंटक सिर्फ एक गांव नहीं, बल्कि ऋषियों की तपोभूमि, नदियों की उद्गमस्थली और नर्मदा मैया का प्रथम स्पर्श स्थल है। यहाँ स्थित नर्मदा उद्गम मंदिर वो पवित्र धाम है जहाँ से माँ नर्मदा धरती पर बहने के लिए प्रकट होती हैं।

एक दिव्य उद्गम – गाय के मुख से निकली जलधारा

नर्मदा का उद्गम एक सुंदर, पत्थर से निर्मित गाय के मुख से होता है। यह स्थान एक छोटे से कुंड के रूप में है जिसे नर्मदा कुंड कहा जाता है। यहाँ बैठकर जब आप नर्मदा के पहले जलस्रोत को उभरते हुए देखते हैं, तो ऐसा लगता है जैसे साक्षात माँ प्रकट हो रही हों। यह नर्मदा का सृष्टि में पहला पदचिह्न है, और इसलिए यहाँ का जल मात्र जल नहीं — संजीवनी है।

मंदिर का इतिहास – अहिल्याबाई से लेकर भोंसले तक

हालाँकि इस नर्मदा टेम्पल की उत्पत्ति के बारे में कोई ठोस दस्तावेज नहीं है, लेकिन इतिहास में इसकी गूँज बार-बार सुनाई देती है।

  • ऐसा माना जाता है कि कलचुरी वंश ने 12वीं शताब्दी में इस मंदिर का प्रारंभिक निर्माण करवाया।
  • रीवा नरेश ने इस क्षेत्र को संरक्षित किया और नर्मदा कुंड की आधारशिला रखी।
  • फिर नागपुर के भोंसले राजा ने मंदिर को एक भव्य रूप दिया।
  • और अंत में, देवी अहिल्याबाई होल्कर ने Narmada Temple Amarkantak का नवीनीकरण करवाया और इसे धार्मिक गतिविधियों का केंद्र बना दिया।

आज जो हम भव्य परिसर देखते हैं, वह इन सभी के योगदान का सम्मिलित रूप है।

मंदिर की भव्यता

मंदिर परिसर में आपको हाथी और घोड़े की विशाल मूर्तियाँ मिलेंगी, जिन पर लखन और ऊदल की मूर्तियाँ विराजमान हैं। यह मूर्तियाँ एक समय में मंदिर की रक्षा की प्रतीक थीं। ऐसा कहा जाता है कि औरंगज़ेब के हमले के समय ये मूर्तियाँ क्षतिग्रस्त हुई थीं, लेकिन आज भी वे अपने गौरवशाली इतिहास की कहानी कहती हैं।

नर्मदा कुंड के चारों ओर बड़े-बड़े मंदिरों का एक समूह बसा है। यहाँ शिव, विष्णु, देवी, सूर्य और अन्य देवताओं के मंदिर स्थित हैं। हर मंदिर की अपनी एक कथा, एक ऊर्जा और एक अनुभूति है। यहाँ सुबह-सुबह आरती के समय जो घंटियों की ध्वनि गूंजती है, वो सीधे आत्मा को झकझोर देती है।

कैसे पहुँचें – अमरकंटक की यात्रा

  • हवाई मार्ग से:
    • निकटतम हवाई अड्डा: जबलपुर (म.प्र.) – लगभग 240 किमी
    • दिल्ली और मुंबई से जबलपुर के लिए नियमित उड़ानें उपलब्ध हैं
    • जबलपुर से टैक्सी या प्राइवेट वाहन से आराम से अमरकंटक पहुंच सकते हैं
  • रेल मार्ग से:
    • निकटतम रेलवे स्टेशन: पेंड्रा रोड (छत्तीसगढ़) – 43 किमी
    • अनुपपुर (म.प्र.) – 75 किमी
    • दोनों स्थानों से टैक्सी और लोकल वाहन उपलब्ध रहते हैं
  • सड़क मार्ग से:
    • अमरकंटक अच्छी सड़क नेटवर्क से जुड़ा है
    • रीवा, अनूपपुर, बिलासपुर, डिंडोरी, जबलपुर जैसे शहरों से बसें और टैक्सियाँ आसानी से मिल जाती हैं

जो भी नर्मदा मैया से प्रेम करता है, उसके लिए अमरकंटक की यह यात्रा केवल पर्यटन नहीं होती, बल्कि एक आध्यात्मिक जन्म की तरह होती है। यहाँ आकर लगता है कि हम सिर्फ एक नदी को नहीं, बल्कि माँ को साक्षात देख रहे हैं। नर्मदा का हर एक बूँद यहाँ से शुरू होती है – और साथ ही शुरू होती है एक भक्त के जीवन की नई शुरुआत।

2. ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग – नर्मदा की गोद में शिव का दिव्य स्वरूप

मध्य प्रदेश के खंडवा जिले में स्थित ओंकारेश्वर न केवल एक ज्योतिर्लिंग है, बल्कि शिव और नर्मदा के प्रेम और शक्ति का अनोखा संगम भी है। यहाँ आकर ऐसा लगता है जैसे नर्मदा की लहरें शिव का जाप कर रही हों — “ॐ नमः शिवाय”।

ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग

ओंकारेश्वर मंदिर की सबसे खास बात यह है कि यह नर्मदा नदी के बीच एक द्वीप पर बसा हुआ है, जिसका आकार “” (ओंकार) जैसा दिखाई देता है। इसी कारण इस स्थान को “ओंकारेश्वर” कहा जाता है — यानी “ॐ के ईश्वर”। यहाँ शिवजी दो रूपों में पूजे जाते हैं:

  • ओंकारेश्वर (मुख्य ज्योतिर्लिंग)
  • ममलेश्वर (अमलेश्वर) — जो नर्मदा के दूसरे किनारे स्थित है

मान्यता है कि जब तक भक्त दोनों मंदिरों के दर्शन नहीं करता, तब तक यात्रा अधूरी मानी जाती है।

ओंकारेश्वर की पौराणिक कथा

पौराणिक मान्यता के अनुसार एक बार देवताओं और दानवों के बीच युद्ध छिड़ गया। देवताओं की हार हो रही थी, तब उन्होंने भगवान शिव की आराधना की। शिवजी ने प्रसन्न होकर ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रकट होकर उन्हें विजय का आशीर्वाद दिया।

एक अन्य कथा के अनुसार — राजा मंधाता, जो सूर्य वंश के राजा थे, उन्होंने इस स्थान पर कठोर तप किया। उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें दर्शन दिए और यहीं स्वयं स्थापित हो गए।

नर्मदा परिक्रमा – एक अनोखी यात्रा

ओंकारेश्वर आने वाले कई श्रद्धालु यहाँ से नर्मदा परिक्रमा की शुरुआत करते हैं। ये परिक्रमा करीब 2600 किलोमीटर लंबी होती है, जो नर्मदा के उद्गम (अमरकंटक) से शुरू होकर उसी स्थान पर समाप्त होती है।

ओंकार पर्वत की छोटी सी परिक्रमा भी की जाती है, जिसे स्थानीय भाषा में “पर्वत परिक्रमा” कहा जाता है। यह लगभग 7-8 किलोमीटर की पदयात्रा होती है, जिसमें नर्मदा के तट के साथ चलते हुए सुंदर मंदिर, घाट और गुफाएँ दिखाई देती हैं।

ओंकारेश्वर में क्या देखें?

  • ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर – मुख्य शिवलिंग
  • ममलेश्वर मंदिर – द्वितीय रूप
  • सिद्धनाथ मंदिर – प्राचीन स्थापत्य का अद्भुत उदाहरण
  • गोमुख गुफा – साधना स्थल
  • नर्मदा घाट – शाम की आरती बेहद मनमोहक होती है
  • ओंकार पर्वत की परिक्रमा – आध्यात्मिक और प्राकृतिक आनंद

कैसे पहुँचे?

  • निकटतम शहर: इंदौर (77 किमी)
  • रेलवे स्टेशन: ओंकारेश्वर रोड (मंदलेश्वर स्टेशन)
  • हवाई अड्डा: इंदौर (देवी अहिल्याबाई होल्कर एयरपोर्ट)
  • सड़क मार्ग: इंदौर, खंडवा, उज्जैन से सीधी बस और टैक्सी सुविधा

ओंकारेश्वर सिर्फ एक तीर्थ नहीं, एक अनुभव है — ऐसा अनुभव जो आत्मा को छू जाए। यहाँ नर्मदा की शांति और शिव की शक्ति का ऐसा मेल है, जो हर यात्री को भीतर से बदल देता है।

3. चौंसठ योगिनी मंदिर, भेड़ाघाट – जहाँ तंत्र और भक्ति मिलते हैं

नर्मदा नदी के किनारे, भेड़ाघाट की संगमरमर चट्टानों के पास, एक पहाड़ी की चोटी पर स्थित है — चौंसठ योगिनी मंदिर । यह सिर्फ एक प्राचीन मंदिर नहीं, बल्कि तांत्रिक साधना, देवी उपासना और स्थापत्य कला का अद्भुत संगम है। यहाँ आकर ऐसा लगता है जैसे समय ठहर गया हो, और एक अनोखी, रहस्यमयी ऊर्जा चारों ओर बसी हो।

चौंसठ योगिनी मंदिर, भेड़ाघाट

कौन हैं 64 योगिनियाँ?

हिंदू धर्म की शक्तिशाली तांत्रिक परंपरा में योगिनियाँ वो दिव्य शक्तियाँ हैं, जो माँ दुर्गा के विभिन्न रूपों से उत्पन्न हुईं। ये कुल मिलाकर 64 होती हैं, और इन्हें “चौंसठ योगिनी” कहा जाता है।

इन योगिनियों को भक्ति के साथ साथ तंत्र साधना में भी अत्यंत महत्व दिया गया है। माना जाता है कि इनकी साधना से विशेष सिद्धियाँ प्राप्त की जा सकती हैं — लेकिन केवल उन्हीं को, जिनका मन और नीयत शुद्ध हो।

मंदिर की वास्तुकला – खुला आकाश, गोलाकार मंदिर

चौंसठ योगिनी मंदिर की सबसे अद्भुत बात है इसकी गोलाई में बनी संरचना, जिसमें कोई छत नहीं है। यह इसलिए बनाया गया था ताकि साधक सीधे आकाश के नीचे बैठकर साधना कर सकें।

मंदिर की परिधि में बनी 64 अलग-अलग योगिनी मूर्तियाँ, हर एक अपने अलग आसन और मुद्रा में हैं। इन मूर्तियों को देखकर लगता है जैसे वे अब भी जीवंत हैं, ध्यानमग्न हैं। मंदिर के केंद्र में भगवान शिव और माँ पार्वती की मूर्ति है, जो शिव–शक्ति के अद्वितीय संतुलन को दर्शाता है।

इतिहास की झलक

इस मंदिर का निर्माण 10वीं शताब्दी के आस-पास कलचुरी वंश के राजाओं द्वारा किया गया माना जाता है। यह मंदिर न केवल धार्मिक दृष्टि से, बल्कि पुरातत्व और इतिहास की दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। माना जाता है कि मध्यकाल में तंत्र साधना की चरम अवस्था में, यह स्थान तांत्रिकों और साधकों की एक प्रमुख सिद्धपीठ हुआ करता था।

नर्मदा का स्पर्श और भेड़ाघाट का सौंदर्य

इस मंदिर से नर्मदा नदी की झलक देखना अपने आप में एक दिव्यता है। पास ही स्थित है भेड़ाघाट — जहाँ संगमरमर की विशाल चट्टानें और झरने नर्मदा की सुंदरता को और भी बढ़ा देते हैं।

धुआँधार जलप्रपात और नर्मदा की संगमरमर घाटी यहाँ के मुख्य आकर्षण हैं। मंदिर की चोटी से नीचे की ओर देखो, तो लगता है जैसे पूरी सृष्टि किसी अदृश्य शक्ति के द्वारा रची गई हो।

कैसे पहुँचें?

  • स्थान: भेड़ाघाट, जबलपुर जिला, मध्य प्रदेश
  • निकटतम शहर: जबलपुर (लगभग 25 किमी)
  • कैसे जाएँ: जबलपुर से टैक्सी, ऑटो या लोकल गाइड के साथ भेड़ाघाट पहुँचना बेहद आसान है
  • समय: सुबह से शाम तक, विशेष रूप से सूर्योदय और सूर्यास्त के समय यहाँ का वातावरण अद्भुत होता है

अगर आप उन जगहों की तलाश में हो जहाँ धार्मिकता सिर्फ परंपरा नहीं, बल्कि अनुभव बन जाए, तो चौंसठ योगिनी मंदिर ज़रूर जाना चाहिए। यह मंदिर तंत्र और योग की उस पगडंडी पर खड़ा है जहाँ से शक्ति की साधना शुरू होती है और आत्मिक शांति की प्राप्ति होती है। यहाँ आकर नर्मदा मैया के स्पर्श के साथ, एक अलग ही आध्यात्मिक कंपन महसूस होता है — जिसे शब्दों में नहीं, केवल भीतर महसूस किया जा सकता है।

4. श्री नर्मदा मंदिर, गरुड़ेश्वर – जहाँ नदी नहीं, माँ बहती हैं

गुजरात के नर्मदा जिले में स्थित गरुड़ेश्वर गाँव, नर्मदा नदी के तट पर बसा एक पवित्र तीर्थ है। यहीं पर स्थित है – श्री नर्मदा मंदिर, जो भक्तों के लिए श्रद्धा, भक्ति और आत्मिक ऊर्जा का केंद्र है। इस मंदिर में नर्मदा जी को माँ के रूप में पूजा जाता है, और यहाँ की विशेषता है – नर्मदा जी की प्रत्यक्ष जलधारा, जो जीवनदायिनी और निर्मलता का प्रतीक है।

श्री नर्मदा मंदिर, गरुड़ेश्वर

मंदिर की पौराणिक और आध्यात्मिक मान्यता

गरुड़ेश्वर का नाम सुनते ही दो भाव जागते हैं — शिव भक्ति और नर्मदा उपासना। ऐसी मान्यता है कि इस स्थल पर गरुड़ जी ने भगवान शिव और नर्मदा जी की आराधना की थी, और इसी कारण इस स्थान का नाम ‘गरुड़ेश्वर’ पड़ा।

माना जाता है कि यह स्थल परम पूज्य स्वामी श्री वासुदेवानंद सरस्वती महाराज की साधना भूमि भी रही है। उन्होंने यहीं पर “नर्मदा परिक्रमा” का एक बड़ा केंद्र स्थापित किया था। उनके नाम से यहाँ एक आश्रम भी स्थित है, जहाँ अब भी वेदपाठ और साधना होती है।

मंदिर का स्वरूप – शांति और श्रद्धा का अद्वितीय संगम

श्री नर्मदा मंदिर की बनावट सादा होते हुए भी दिव्यता से भरपूर है। मंदिर के अंदर माँ नर्मदा की जलधारा को एक पवित्र कुंड में प्रवाहित होते हुए देखा जा सकता है। भक्त यहाँ नर्मदा जल से स्नान कर, अपनी जीवन यात्रा को पवित्र मानते हैं।

मंदिर परिसर बेहद शांत है, और वहां बैठ कर सिर्फ नर्मदा के जल की आवाज़ सुनना भी एक तरह की ध्यान प्रक्रिया लगती है। यहाँ की आरती, खासकर शाम की, एक ऐसा अनुभव है जो शब्दों से परे है — घंटियों की ध्वनि, दीपों की लौ और नर्मदा मैया की शीतल ऊर्जा सब कुछ साथ मिलकर आपको भीतर तक छू जाती है।

गरुड़ेश्वर के पास – पर्यटन और आध्यात्मिक आकर्षण

  • स्टैचू ऑफ यूनिटी: गरुड़ेश्वर से मात्र 10–12 किलोमीटर दूर स्थित है भारत की शान — स्टैचू ऑफ यूनिटी। आप मंदिर दर्शन के साथ साथ इसे भी देख सकते हैं।
  • शूलपाणेश्वर मंदिर: नर्मदा तट पर भगवान शिव का एक प्राचीन मंदिर, जो गरुड़ेश्वर के पास ही है।
  • नर्मदा डैम और व्यू पॉइंट्स: सुंदर घाट, हरियाली और जलप्रपात के सुंदर दृश्य भी आपको मन मोह लेंगे।

कैसे पहुँचें?

  • स्थान: गरुड़ेश्वर गाँव, नर्मदा जिला, गुजरात
  • निकटतम रेलवे स्टेशन: राजपिपला या वड़ोदरा (लगभग 90 किमी)
  • निकटतम एयरपोर्ट: वड़ोदरा एयरपोर्ट
  • सड़क मार्ग: वड़ोदरा, राजपीपला या भरूच से टैक्सी या बस से सीधे गरुड़ेश्वर पहुँचा जा सकता है

श्री नर्मदा मंदिर, गरुड़ेश्वर न केवल एक पूजा स्थल है, बल्कि यह एक आध्यात्मिक विश्रांति का स्थान है। यदि आप कभी नर्मदा यात्रा पर निकलें, तो इस स्थान को अवश्य अपनी यात्रा में शामिल करें। यहाँ का शांत वातावरण, नर्मदा मैया का स्पर्श, और भक्तों की निश्छल भक्ति — ये सब मिलकर आपको भीतर तक पवित्र कर देते हैं।

नर्मदा नदी के तट पर बसे ये Narmada Temple भारतीय संस्कृति, भक्ति और इतिहास के अद्भुत प्रतीक हैं। नर्मदा जी के इन पवित्र स्थलों का दर्शन करने से आध्यात्मिक शांति मिलती है और धार्मिक परंपराओं से गहरा जुड़ाव होता है। यदि आप नर्मदा परिक्रमा पर हैं या इस पावन नदी के दर्शन के इच्छुक हैं, तो ये मंदिर आपकी यात्रा का अहम हिस्सा बन सकते हैं।

FAQ

नर्मदा मंदिर यात्रा के लिए सबसे अच्छा समय कौन सा है?

नर्मदा किनारे सबसे सुंदर आरती कहाँ होती है?

नर्मदा उद्गम स्थल कहाँ है और वहाँ क्या देखने योग्य है?

अमरकंटक में स्थित नर्मदा उद्गम स्थल वो स्थान है जहाँ से नर्मदा नदी का उद्गम होता है।

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