सामायिक पाठ जैन धर्म की अत्यंत शुभ और आवश्यक साधना है, जो आत्मशुद्धि और अहिंसा की भावना को जाग्रत करती है। जब कोई श्रद्धालु Samayik Paath करता है, तो वह क्षण भर के लिए संसारिक मोह-माया से दूर होकर आत्मा की ओर लौटता है। जैन सामायिक पाठ यानी एक ऐसी आध्यात्मिक क्रिया जो जीवन में संयम, संतुलन और शांति लाती है। हमने आपके लिए इस पाठ कोयह उपलब्ध कराया है –
Samayik Paath
प्रेम भाव हो सब जीवों से
गुणीजनों में हर्ष प्रभो॥
करुणा स्रोत बहे दुखियों पर
दुर्जन में मध्यस्थ विभो॥१॥
यह अनन्त बल शील आत्मा
हो शरीर से भिन्न प्रभो॥
ज्यों होती तलवार म्यान से
वह अनन्त बल दो मुझको॥२॥
सुख दुख बैरी बन्धु वर्ग में
काँच कनक में समता हो॥
वन उपवन प्रासाद कुटी में नहीं खेद
नहिं ममता हो॥३॥
जिस सुन्दर तम पथ पर चलकर
जीते मोह मान मन्मथ॥
वह सुन्दर पथ ही प्रभु मेरा
बना रहे अनुशीलन पथ॥४॥
एकेन्द्रिय आदिक जीवों की
यदि मैंने हिंसा की हो॥
शुद्ध हृदय से कहता हूँ वह
निष्फल हो दुष्कृत्य विभो॥५॥
मोक्षमार्ग प्रतिकूल प्रवर्तन
जो कुछ किया कषायों से॥
विपथ गमन सब कालुष मेरे
मिट जावें सद्भावों से॥६॥
चतुर वैद्य विष विक्षत करता
त्यों प्रभु मैं भी आदि उपान्त॥
अपनी निन्दा आलोचन से करता हूँ
पापों को शान्त॥७॥
सत्य अहिंसादिक व्रत में भी
मैंने हृदय मलीन किया॥
व्रत विपरीत प्रवर्तन करके
शीलाचरण विलीन किया॥८॥
कभी वासना की सरिता का
गहन सलिल मुझ पर छाया॥
पी पीकर विषयों की मदिरा
मुझ में पागलपन आया॥९॥
मैंने छली और मायावी
हो असत्य आचरण किया॥
परनिन्दा गाली चुगली जो
मुँह पर आया वमन किया॥१०॥
निरभिमान उज्ज्वल मानस हो
सदा सत्य का ध्यान रहे॥
निर्मल जल की सरिता सदृश
हिय में निर्मल ज्ञान बहे॥११॥
मुनि चक्री शक्री के हिय में
जिस अनन्त का ध्यान रहे॥
गाते वेद पुराण जिसे वह,
परम देव मम हृदय रहे॥१२॥
दर्शन ज्ञान स्वभावी जिसने
सब विकार हों वमन किये॥
परम ध्यान गोचर परमातम
परम देव मम हृदय रहे॥१३॥
जो भव दुख का विध्वंसक है
विश्व विलोकी जिसका ज्ञान॥
योगी जन के ध्यान गम्य वह
बसे हृदय में देव महान्॥१४॥
मुक्ति मार्ग का दिग्दर्शक है
जनम मरण से परम अतीत॥
निष्कलंक त्रैलोक्य दर्शी
वह देव रहे मम हृदय समीप॥१५॥
निखिल विश्व के वशीकरण वे
राग रहे न द्वेष रहे॥
शुद्ध अतीन्द्रिय ज्ञान स्वभावी
परम देव मम हृदय रहे॥१६॥
देख रहा जो निखिल विश्व को
कर्म कलंक विहीन विचित्र॥
स्वच्छ विनिर्मल निर्विकार
वह देव करें मम हृदय पवित्र॥१७॥
कर्म कलंक अछूत न जिसको
कभी छू सके दिव्य प्रकाश॥
मोह तिमिर को भेद चला जो
परम शरण मुझको वह आप्त॥१८॥
जिसकी दिव्य ज्योति के आगे
फीका पड़ता सूर्य प्रकाश॥
स्वयं ज्ञानमय स्व पर प्रकाशी
परम शरण मुझको वह आप्त॥१९॥
जिसके ज्ञान रूप दर्पण में
स्पष्ट झलकते सभी पदार्थ॥
आदि अन्तसे रहित शान्तशिव
परम शरण मुझको वह आप्त॥२०॥
जैसे अग्नि जलाती तरु को
तैसे नष्ट हुए स्वयमेव॥
भय विषाद चिन्ता नहीं जिनको
परम शरण मुझको वह देव॥२१॥
तृण, चौकी, शिल, शैलशिखर नहीं
आत्म समाधि के आसन॥
संस्तर, पूजा, संघ-सम्मिलन
नहीं समाधि के साधन॥२२॥
इष्ट वियोग अनिष्ट योग में
विश्व मनाता है मातम॥
हेय सभी हैं विषय वासना
उपादेय निर्मल आतम॥२३॥
बाह्य जगत कुछ भी नहीं मेरा
और न बाह्य जगत का मैं॥
यह निश्चय कर छोड़ बाह्य को
मुक्ति हेतु नित स्वस्थ रमें॥२४॥
अपनी निधि तो अपने में है
बाह्य वस्तु में व्यर्थ प्रयास॥
जग का सुख तो मृग तृष्णा है
झूठे हैं उसके पुरुषार्थ॥२५॥
अक्षय है शाश्वत है आत्मा
निर्मल ज्ञान स्वभावी है॥
जो कुछ बाहर है, सब पर है
कर्माधीन विनाशी है॥२६॥
तन से जिसका ऐक्य नहीं हो
सुत, तिय, मित्रों से कैसे॥
चर्म दूर होने पर तन से
रोम समूह रहे कैसे॥२७॥
महा कष्ट पाता जो करता
पर पदार्थ, जड़-देह संयोग॥
मोक्षमहल का पथ है सीधा
जड़-चेतन का पूर्ण वियोग॥२८॥
जो संसार पतन के कारण
उन विकल्प जालों को छोड़॥
निर्विकल्प निद्र्वन्द्व आत्मा
फिर-फिर लीन उसी में हो॥२९॥
स्वयं किये जो कर्म शुभाशुभ
फल निश्चय ही वे देते॥
करे आप, फल देय अन्य तो
स्वयं किये निष्फल होते॥३०॥
अपने कर्म सिवाय जीव को
कोई न फल देता कुछ भी॥
पर देता है यह विचार तज स्थिर हो
छोड़ प्रमादी बुद्धि॥३१॥
निर्मल, सत्य, शिवं सुन्दर है
अमितगति वह देव महान॥
शाश्वत निज में अनुभव करते
पाते निर्मल पद निर्वाण॥३२॥
दोहा
इन बत्तीस पदों से जो कोई।
परमातम को ध्याते हैं॥
साँची सामायिक को पाकर।
भवोदधि तर जाते हैं॥
सामायिक केवल एक क्रिया नहीं, बल्कि आत्मा से जुड़ने का गहरा माध्यम है। प्रतिदिन या नियत समय पर सामायिक करने वाला व्यक्ति भीतर से मजबूत, शांत और पवित्र बनता है। इसमें Bhaktamar Stotra जैसे पवित्र ग्रंथों का पाठ करना साधना को और भी प्रभावशाली बना देता है। आप Bhaktamar Stotra Download या Sanskrit में पाठ के ज़रिए इसे सामायिक के समय शामिल कर सकते हैं।
सामायिक पाठ करने की विधि
इस पवित्र साधना को सही विधि से करना न केवल धार्मिक रूप से लाभकारी है, बल्कि मानसिक और आत्मिक रूप से भी शुद्धि लाता है। आइए जानें Samayik Paath Jain करने की सरल विधि-
- समय और स्थान: यह प्रातःकाल, संध्या या किसी भी शांत समय में की जा सकती है। इसके लिए शांत और स्वच्छ वातावरण चुनें, जहाँ कोई व्यवधान न हो।
- व्रती के वस्त्र: सामायिक करते समय सफेद वस्त्र धारण करें। शरीर और मन दोनों की शुद्धि जरूरी है। साथ ही, मन में पूर्ण समर्पण और भक्ति का भाव रखें।
- आसन: पैड या चटाई पर सुखासन या पद्मासन में बैठें। शरीर को स्थिर रखें और आँखें बंद करके थोड़ी देर ध्यान करें ताकि मन एकाग्र हो सके।
- नवकार मंत्र: सामायिक की शुरुआत नवकार मंत्र के उच्चारण से करें। यह आत्मा को जागृत करने का पहला और सबसे शुद्ध तरीका है।
- पाठ सामग्री: Jain Samayik में आप नवकार मंत्र, लोगसा सूत्र और अन्य जिनवाणी के श्लोकों का पाठ कर सकते हैं। चाहें तो केवल मनन और ध्यान भी करें।
- संकल्प: इसके दौरान आप मन, वचन और काया से किसी भी पाप या हिंसा से बचने का संकल्प लेते हैं। यही इस साधना की सबसे बड़ी महिमा है।
- समापन: समाप्ति पर विनती करें कि हे प्रभु! मुझे शक्ति दो कि मैं हर दिन सामायिक जैसा जीवन जी सकूं, संयमित, शांत और शुभ।
Samayik Paath की यह विधि जितनी सहज है, उतनी ही गहन भी। नियमित रूप से यह अभ्यास करने से संयम, श्रद्धा और आत्मशुद्धि का मार्ग स्वतः खुलता है।
FAQ
सामायिक का अर्थ क्या है?
सामायिक का अर्थ होता है – समता में रहना। यह एक आध्यात्मिक साधना है जिसमें व्यक्ति 48 मिनट तक पूर्ण संयम और आत्मचिंतन में लीन रहता है।
क्या सामायिक सिर्फ व्रती कर सकते हैं?
नहीं, कोई भी श्रद्धालु सामायिक कर सकता है। इसका उद्देश्य आत्मा को संसार से काटकर संयम की ओर लाना है।
क्या इसका पाठ रोज़ करना ज़रूरी है?
रोज़ करना आदर्श है, लेकिन यदि संभव न हो तो सप्ताह में कुछ दिन भी इसका अभ्यास लाभदायक रहता है।
क्या यह अकेले किया जा सकता है?
हां, यह एक व्यक्तिगत साधना है और इसे एकांत, शांत और पवित्र वातावरण में अकेले करना अत्यधिक फलदायी होता है।
मैं धर्म पाल जैन, जैन धर्म का एक निष्ठावान अनुयायी और भगवान महावीर की शिक्षाओं का प्रचारक हूँ। मेरा लक्ष्य है कि लोग भगवान महावीर के संदेशों को अपनाकर अपने जीवन में शांति, संयम और करुणा का संचार करें और अपने जीवन को सदाचार और आध्यात्मिक शांति से समृद्ध कर सके। मैं अपने लेखों के माध्यम से भगवान महावीर के उपदेश, भक्तामर स्तोत्र, जैन धर्म के सिद्धांत और धार्मिक अनुष्ठान को सरल और सहज भाषा में प्रस्तुत करता हूँ, ताकि हर जैन अनुयायी इनका लाभ उठा सके।View Profile ॐ ह्रीं अर्हं नमः 🙏