नवरात्रि के तीसरे दिन माता दुर्गा के तीसरे स्वरूप चंद्रघंटा माता की पूजा-अर्चना की जाती है। यह स्वरूप माता पार्वती का है, जो अपने भक्तों की रक्षा के लिए सदैव तत्पर रहती हैं। Chandraghanta Mata के मस्तक पर घंटे के आकार का अर्धचंद्र विराजमान है, जिसके कारण उन्हें ‘चंद्रघंटा’ नाम से पुकारा जाता है। यह स्वरूप हमें जीवन में साहस और शक्ति प्रदान करता है।
माता चंद्रघंटा की कृपा से भक्तों के सभी दुख-दर्द दूर हो जाते हैं और उनके जीवन में सुख-समृद्धि का आगमन होता है। देवी के इस स्वरूप के दर्शन मात्र से ही भय और नकारात्मकता समाप्त हो जाती है। माता का यह स्वरूप न केवल हमें साहस और शक्ति प्रदान करता है बल्कि जीवन में संतुलन बनाए रखता है। हमने माता के बारे में यहां विस्तार से जानकरी दी हुई है, जो आपके लिए उपयोगी हो सकता है-
Chandraghanta Mata का स्वरूप

Mata Chandraghanta का स्वरूप अत्यंत दिव्य और मोहक है। इनका शरीर स्वर्ण के समान चमकीला है और इनके दस हाथ हैं। माता के हाथों में खड्ग, गदा, त्रिशूल, तलवार, धनुष-बाण, कमंडल, माला, अभय मुद्रा और वर मुद्रा धारण किए हुए हैं। माता के मस्तक पर घंटे के आकार का अर्धचंद्र सुशोभित है, जिससे इनके स्वरूप का नाम ‘चंद्रघंटा’ पड़ा।
माँ चंद्रघंटा की उत्पत्ति: क्यों धारण किया माँ ने घंटे का रूप?
पार्वती की तपस्या और तारकासुर का भय
शिव पुराण के अनुसार, माँ पार्वती ने 5000 वर्षों से अधिक कठोर तपस्या की और ब्रह्मचारिणी बन गईं। अंततः उनका विवाह भगवान शिव से संपन्न हुआ। जब वे कैलाश में अपने नए गृहस्थ जीवन में प्रवेश कर रही थीं, तब राक्षस तारकासुर उन पर बुरी नज़र रखे हुए था। इसका कारण यह था कि भगवान शिव के वरदान के अनुसार, शिव और पार्वती के पुत्र के हाथों ही तारकासुर का अंत होना निश्चित था। इसी कारण से तारकासुर ने योजना बनाई कि पार्वती का वध कर दिया जाए ताकि वे कभी संतान को जन्म न दे सकें।
जटुकासुर का हमला और माँ पार्वती की असहायता
तारकासुर ने अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिए जटुकासुर नामक राक्षस चमगादड़ की सहायता ली। जटुकासुर ने अपनी विशाल चमगादड़ सेना के साथ शिव गणों पर आक्रमण कर दिया, जिससे चारों ओर रक्तपात फैल गया। यह भयावह दृश्य देखकर माँ पार्वती अत्यंत भयभीत हो गईं और भगवान शिव से सहायता की याचना की। लेकिन भगवान शिव गहन ध्यान में लीन थे और उन्होंने पार्वती से कहा कि वे अपना तप नहीं छोड़ सकते। यह सुनकर माँ पार्वती ने स्वयं को असहाय महसूस किया।
माँ शक्ति का जागरण: जब पार्वती ने पहचानी अपनी दिव्यता
माँ पार्वती की यह दशा देखकर भगवान शिव ने उन्हें उनकी आंतरिक शक्ति की याद दिलाई। उन्होंने कहा कि माँ पार्वती स्वयं शक्ति की मूर्ति हैं, सृष्टि की माता हैं और उनमें ब्रह्मांडीय संतुलन की रक्षा के लिए किसी भी संकट से लड़ने की सामर्थ्य है। भगवान शिव के इन प्रेरणादायक शब्दों से माँ पार्वती ने अपनी आंतरिक शक्ति को जाग्रत किया और स्वयं राक्षस से युद्ध करने का निश्चय किया।
अर्धचंद्र का आभूषण: जब माँ पार्वती बनीं चंद्रघंटा
माँ पार्वती ने जटुकासुर से युद्ध के लिए प्रस्थान किया, लेकिन राक्षस चमगादड़ और उसकी सेना ने अपने विशाल पंखों से समस्त आकाश को ढक लिया था, जिससे चारों ओर घना अंधकार व्याप्त हो गया। इस स्थिति में, माँ पार्वती ने चंद्रदेव से सहायता की प्रार्थना की। चंद्रदेव ने अपनी दिव्य रोशनी से पृथ्वी को आलोकित किया। पार्वती ने चंद्रदेव को अपने मस्तक पर अर्धचंद्र के रूप में धारण किया और युद्ध के लिए आगे बढ़ गईं।
घंटे की गूंज और जटुकासुर का संहार
राक्षस चमगादड़ की सेना अत्यंत विशाल थी, जिससे उसे नियंत्रित करना कठिन हो रहा था। तब माँ पार्वती ने एक विशाल घंटा (घंटा) का प्रयोग किया, जिसकी तीव्र ध्वनि से समस्त चमगादड़ भाग खड़े हुए। इसके पश्चात, माँ पार्वती ने जटुकासुर पर आक्रमण किया। उन्होंने अपनी तलवार से उसके पंख काट डाले, घंटे से उसके मस्तक पर प्रहार किया और अंततः त्रिशूल से उसके हृदय में वार कर उसका वध कर दिया।
माता की पूजा विधि
- शुद्धिकरण: प्रातः काल स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
- स्थापना: माँ चंद्रघंटा की प्रतिमा या चित्र को पूजा स्थल पर स्थापित करें।
- पूजन सामग्री: फूल, धूप, दीप, अक्षत, चंदन, फल, मिष्ठान आदि सामग्री रखें।
- मंत्र जाप: ‘ॐ देवी चंद्रघंटायै नमः’ मंत्र का जाप करें।
- आरती: माता की आरती करें और उन्हें भोग अर्पित करें।
- प्रसाद वितरण: पूजा के पश्चात प्रसाद वितरण करें।
चंद्रघंटा माँ का भोग
चंद्रघंटा माता को दूध और उससे बने मिष्ठान का भोग अति प्रिय है। इस दिन भक्तगण माता को खीर, मलाई, दूध और मिठाइयों का भोग लगाते हैं। ऐसा करने से माता प्रसन्न होकर भक्तों को आशीर्वाद प्रदान करती हैं।
माता के मंत्र
प्रार्थना मंत्र
पिण्डज प्रवरारूढा चण्डकोपास्त्रकैर्युता।
प्रसादं तनुते मह्यम् चन्द्रघण्टेति विश्रुता॥
मूल मंत्र
ॐ देवी चंद्रघंटायै नमः।
स्तुति मंत्र
या देवी सर्वभूतेषु माँ चन्द्रघण्टा रूपेण संस्थिता,
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।

माता चंद्रघंटा का आशीर्वाद
माता चंद्रघंटा की पूजा से भक्तों को साहस, शक्ति और मन की शांति प्राप्त होती है। उनकी कृपा से जीवन के सभी संकट दूर होते हैं और भक्त के घर में सुख-समृद्धि का वास होता है।
माता का स्वरूप हमें साहस और शक्ति का प्रतीक सिखाता है। उनकी उपासना से हम अपने जीवन के समस्त दुखों से मुक्ति प्राप्त कर सकते हैं। नवरात्रि के तीसरे दिन माता की पूजा करके हम अपने जीवन में सुख-शांति और समृद्धि का आह्वान कर सकते हैं।
FAQ
माँ चंद्रघंटा की पूजा कब की जाती है?
माता की पूजा नवरात्रि के तीसरे दिन की जाती है।
इनका मुख्य प्रतीक क्या है?
माता के मस्तक पर घंटे के आकार का अर्धचंद्र और उनके हाथों में शस्त्र प्रमुख प्रतीक हैं।
माता की पूजा करने से क्या लाभ मिलता है?
माता की पूजा से भय, तनाव और नकारात्मकता दूर होती है। साथ ही मन में साहस और आत्मविश्वास बढ़ता है।
माता की पूजा के लिए कौन से रंग के वस्त्र धारण करने चाहिए?
माता की पूजा के समय लाल या गुलाबी रंग के वस्त्र धारण करना अत्यंत शुभ माना जाता है।
क्या माता की पूजा विशेष रूप से महिलाओं के लिए लाभकारी है?
हां, माता की पूजा महिलाओं के लिए विशेष रूप से शुभ मानी जाती है और उनके जीवन में सुख-समृद्धि लाती है।

मैं शिवप्रिया पंडित, माँ शक्ति का एक अनन्य भक्त और विंध्येश्वरी देवी, शैलपुत्री माता और चिंतापूर्णी माता की कृपा से प्रेरित एक आध्यात्मिक साधक हूँ। मेरा उद्देश्य माँ के भक्तों को उनके दिव्य स्वरूप, उपासना विधि और कृपा के महत्व से अवगत कराना है, ताकि वे अपनी श्रद्धा और भक्ति को और अधिक दृढ़ बना सकें। मेरे लेखों में इन देवी शक्तियों के स्तोत्र, चालीसा, आरती, मंत्र, कथा और पूजन विधियाँ शामिल होती हैं, ताकि हर भक्त माँ की आराधना सही विधि से कर सके और उनके आशीर्वाद से अपने जीवन को सुख-समृद्धि से भर सके। जय माता दी! View Profile 🙏🔱