उमर गुजर गुजर जाए मगर तू न सुधर पाए

“उमर गुजर गुजर जाए मगर तू न सुधर पाए” भजन हमें आत्मचिंतन की ओर प्रेरित करता है। यह हमें यह समझाने की कोशिश करता है कि जीवन की अनमोल घड़ियाँ यूं ही व्यर्थ न जाएं, बल्कि हमें अपने सतगुरु की शरण में आकर सच्चे ज्ञान और भक्ति का मार्ग अपनाना चाहिए। वरना समय बीतता रहेगा, और हम अपनी गलतियों को दोहराते रहेंगे।

Umar Gujar Gujar Jaye Mager Tu N Sudher Paye

उमर गुजर गुजर जाए,
मगर तू न सुधर पाए,
है मेरी इतनी सी,
इल्तिजा रे ओ मन,
तरा जाए बिना भजन भव,
तरा नही जाए,
है मेरी इतनी सी,
इल्तिजा रे ओ मन,
उमर गुजर गुजर जाए,
मगर तू न सुधर पाए।।

गुरु दर क्यो प्यारा है,
आओ जरा आओ,
यहाँ देखो न,
जग से क्यो न्यारा है,
घूमो जग सारा,
फिर देखो न,
आजा आजा रे मन,
तू गुरू की शरण,
उमर गूजर गुजर जाए,
मगर तू न सुधर पाए।।

देते है वो साधन,
तरने का तुझको,
वो जग तारन,
कर प्राणी तू सुमिरन,
गुरू चरणो मे,
लगा कर मन,
मुक्ती को पाने का,
अब तू करले जतन,
उमर गूजर गुजर जाए,
मगर तू न सुधर पाए।।

गुरू से जो करता है,
वादा न पूरा तू करता है,
आवागमन के चक्कर मे,
खुद प्राणिये,
तू ही फँसता है,
आजा गुरू की शरण,
कर प्रभू का भजन,
उमर गूजर गुजर जाए,
मगर तू न सुधर पाए।।

उमर गुजर गुजर जाए,
मगर तू न सुधर पाए,
है मेरी इतनी सी,
इल्तिजा रे ओ मन,
तरा जाए बिना भजन भव,
तरा नही जाए,
है मेरी इतनी सी,
इल्तिजा रे ओ मन,
उमर गुजर गुजर जाए,
मगर तू न सुधर पाए।।

गुरु की कृपा से ही आत्मबोध संभव है, और उनके बताए मार्ग पर चलकर ही जीवन को सार्थक बनाया जा सकता है। “उमर गुजर गुजर जाए मगर तू न सुधर पाए” भजन इसी सत्य की याद दिलाता है। अन्य भक्तिमय गुरु भजनों को पढ़ें, जैसे “तुझे दे दी गुरुजी ने चाबी तो फिर कँगाल क्यों बने”, “गुरुदेव मेरे दाता मुझको ऐसा वर दो”, “तेरे चरणों में सतगुरु मेरी प्रीत हो” और “गुरुदेव तुम्हारे चरणों में बैकुंठ का वास लगे मुझको”।









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