तुम ही मेरे सतगुरु तुम ही मेरे साहिब भजन लिरिक्स

“तुम ही मेरे सतगुरु, तुम ही मेरे साहिब” भजन गुरु के प्रति अनन्य भक्ति और समर्पण की भावना को प्रकट करता है। जब भक्त अपने सतगुरु को ही अपना परम साहिब मान लेता है, तो उसे जीवन के हर मार्ग में संबल और दिशा मिलती है। यह भजन उस गहरे आध्यात्मिक संबंध को व्यक्त करता है, जिसमें शिष्य अपने गुरु में ही संपूर्ण ब्रह्मांड को देखता है।

Tum Hi Mere Satguru Tum Hi Mere Sahib Bhajan Lyrics

तुम ही मेरे सतगुरु,
तुम ही मेरे साहिब,
तुम ही दीनानाथ हो,
तुम ही दीनानाथ हो।।

बिना तेरे दुनिया में,
कोई नहीं मेरा,
तेरे ही चरणों में,
लगा लिया डेरा,
जिधर देखती हूँ,
उधर तू ही तू है,
हम दुखियों की,
पुकार यही है,
तुम्ही मेरे सतगुरु,
तुम ही मेरे साहिब,
तुम ही दीनानाथ हो,
तुम ही दीनानाथ हो।।

किसके द्वार प्रभु,
रोऊँ दुःख अपना,
तेरे बिना ये दुनिया,
दिखे एक सपना,
नाव पुरानी मेरी,
नदिया है गहरी,
आकर दिखा दो,
किनारा कहाँ है,
तुम्ही मेरे सतगुरु,
तुम ही मेरे साहिब,
तुम ही दीनानाथ हो,
तुम ही दीनानाथ हो।।

भले बुरे है तेरे,
दर के भिखारी,
कितनो की पहले तूने,
बिगड़ी सँवारी,
अब मेरी बार क्यों,
है देरी लगाई,
मुझको ना सूझे,
मैं क्या हूँ कहाँ हूँ,
तुम्ही मेरे सतगुरु,
तुम ही मेरे साहिब,
तुम ही दीनानाथ हो,
तुम ही दीनानाथ हो।।

आ कर के दर्श,
दिखा जाओ प्यारे,
हरिहरानंद जी के,
प्राण अधारे,
दीप्तानंद गुरु,
दासी के रक्षक,
बिना तेरे दुनिया में,
कोई नहीं है,
तुम्ही मेरे सतगुरु,
तुम ही मेरे साहिब,
तुम ही दीनानाथ हो,
तुम ही दीनानाथ हो।।

तुम ही मेरे सतगुरु,
तुम ही मेरे साहिब,
तुम ही दीनानाथ हो,
तुम ही दीनानाथ हो।।

गुरुदेव ही जीवन का आधार हैं, और “तुम ही मेरे सतगुरु, तुम ही मेरे साहिब” भजन इसी सत्य को उजागर करता है। जो भी अपने गुरु के चरणों में श्रद्धा और विश्वास रखता है, उसे जीवन में कभी निराशा नहीं मिलती। इसी भक्ति भाव को और गहराई से अनुभव करने के लिए “गुरुवर के चरणों में मेरा है प्रणाम”, “गुरुदेव की महिमा अपरंपार”, “सतगुरु तुम सागर, मैं मीना” और “गुरुवर कृपा निधान” जैसे भजनों को भी पढ़ें और गुरुदेव की महिमा का गुणगान करें।









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