सोऐ को सँत जगाऐ फिर नीँद न उसको आऐ

“सोऐ को संत जगाए फिर नींद न उसको आए” भजन आध्यात्मिक जागरण का संदेश देता है। जब सतगुरु की कृपा से जीव अज्ञान की नींद से जागता है, तो वह फिर से मोह-माया के बंधनों में नहीं फंसता। यह भजन हमें गुरु के मार्गदर्शन का महत्व समझाने के साथ, आत्मा के सच्चे ज्ञान की ओर प्रेरित करता है।

Soye Ko Sant Jagaye Phir Need N Usko Aaye

सोऐ को सँत जगाऐ,
फिर नीँद न उसको आऐ,
जो जाग के फिर सो जाऐ,
उसे कोन जगाऐ,
हो उसे कोन जगाऐ।।

मर मर कर हम जीते थे,
जी जी कर अब मरते है,
क्या बात है ओ मेरे मनवा,
हरि को नही क्यो भजते है,
मौका है जो सँभल जाऐ,
तो नैया ये तर जाऐ,
जो जाग के फिर सो जाऐ,
उसे कोन जगाऐ,
हो उसे कोन जगाऐ।।

इतना क्यो इतराता है,
पाकर यह सुन्दर काया,
यह सोच जरा ओ मनवा,
जग मे तुझे कोन है लाया,
हरि रूठे तो मनजाए,
गुरू रूठे ठौर न पाए,
जो जाग के फिर सो जाऐ,
उसे कोन जगाऐ,
हो उसे कोन जगाऐ।।

आजा तू गुरू चरणो मे,
करदे तन मन सब अर्पण,
फिर बैठ के तू सतगुरू का,
मन से करले जो सुमिरन,
चिँतन मे जो खो जाए,
तो गुरू की दया हो जाए,
जो जाग के फिर सो जाऐ,
उसे कोन जगाऐ,
हो उसे कोन जगाऐ।।

सोऐ को सँत जगाऐ,
फिर नीँद न उसको आऐ,
जो जाग के फिर सो जाऐ,
उसे कोन जगाऐ,
हो उसे कोन जगाऐ।।

गुरुदेव की शरण में आने वाला भक्त अंधकार से प्रकाश की ओर बढ़ता है। “सोऐ को संत जगाए फिर नींद न उसको आए” भजन हमें इस दिव्य सत्य से जोड़ता है। अन्य भजनों को भी पढ़ें, जैसे “धीरे-धीरे बीती जाए उमर भव तरने का जतन तू कर”, “तेरी नौका में जो बैठा वो पार हो गया गुरुदेव”, “अगर तू चाहे जो भव तरना आ गुरु दर पे” और “गुरुदेव तुम्हारे चरणों में बैकुंठ का वास लगे मुझको”।









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