कुछ कहूं है कहाँ ये मज़ाल मेरी गुरु भजन लिरिक्स

गुरु की महिमा का वर्णन करना किसी भी भक्त के लिए सहज नहीं होता, क्योंकि उनकी कृपा और ज्ञान अनंत है। जब भक्त गुरु के प्रति अपनी श्रद्धा प्रकट करना चाहता है, तो शब्द भी सीमित लगते हैं। “कुछ कहूं, है कहाँ ये मज़ाल मेरी” भजन इसी विनम्र भाव को प्रकट करता है कि गुरु की महिमा का बखान करना स्वयं गुरु कृपा के बिना संभव नहीं। आइए, इस भजन के माध्यम से अपने भावों को गुरुचरणों में अर्पित करें और उनकी दिव्यता को अनुभव करें।

Kuchh Kahu Hai Kaha Ye Majal Meri Guru Bhajan Lyrics

दोहा
तेरी गाऊं ऐ सतगुरु,
महिमा मैं क्या,
मैं हूँ राही प्रभू,
एक भटका हुआ।

कुछ कहूं है कहाँ,
ये मज़ाल मेरी,
महिमा है सतगुरु,
बेमिसाल तेरी,
कुछ कहूँ है कहाँ,
ये मज़ाल मेरी।।

हर तरफ हर जगह,
सतगुरु रुतबा तेरा,
हर डगर हर नज़र,
में है जलवा तेरा,
महिमा गाऊं मैं क्या,
दीनदयाल तेरी।
कुछ कहूँ है कहाँ,
ये मज़ाल मेरी।।

तुमने करके क़रम,
मुझको तन ये दिया
उसपे करके दया मुझको,
शरण ले लिया,
हो गई जिन्दगी,
ये निहाल मेरी।
कुछ कहूँ है कहाँ,
ये मज़ाल मेरी।।

रंग दो मेरी चुनरी,
अपने रंग में प्रभू,
आ के बस जाओ,
मेरे मन में प्रभू,
करदो ‘शिव’ की चुनर,
लालों लाल प्रभू।
कुछ कहूँ है कहाँ,
ये मज़ाल मेरी।।

कुछ कहूँ है कहाँ,
ये मज़ाल मेरी,
महिमा है सतगुरु,
बेमिसाल तेरी,
कुछ कहूँ है कहाँ,
ये मज़ाल मेरी।।

गुरु की महिमा शब्दों से परे है, और उनकी कृपा का अनुभव केवल सच्चे समर्पण से ही किया जा सकता है। “कुछ कहूं, है कहाँ ये मज़ाल मेरी” भजन हमें यह अहसास कराता है कि गुरु के बिना हम कुछ भी नहीं, और उनकी कृपा से ही हमारा जीवन सार्थक होता है। ऐसे ही अन्य भावपूर्ण भजनों जैसे “गुरु चरणों की महिमा अपार”, “गुरु बिना जीवन अधूरा”, “गुरु वाणी का प्रकाश”, और “गुरु कृपा से जीवन सफल” को पढ़ें और अपनी भक्ति को और दृढ़ करें।








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