भजले नाम गुरू का रे मनवा बीत रही है स्वाँसा भजन हमें जीवन की क्षणभंगुरता का बोध कराता है और सतगुरु की भक्ति में लीन रहने की प्रेरणा देता है। यह भजन हमें यह समझाने का प्रयास करता है कि सांसों की गिनती हर पल घट रही है, और यदि हमने गुरुदेव का नाम नहीं लिया, तो यह जीवन व्यर्थ ही चला जाएगा। इसलिए, समय रहते हमें गुरु के चरणों में समर्पित होकर सच्चे भक्ति मार्ग को अपनाना चाहिए।
Bhajale Naam Guru Ka Re Manva Beet Rahi Hai Swansa
भजले नाम गुरू का रे मनवा,
बीत रही है स्वाँसा,
रात गई सुबहा आएगी,
आए न तेरी स्वाँसा।।
करले जतन तू,
भव तरने का,
बीती जाए तेरी जवानी,
स्वाँस आखिरी,
जब आएगी,
पछिताएगा तब तू प्राणी,
भजलें नाम गुरू का रे मनवा,
बीत रही है स्वाँसा।।
आज मिला है,
नर तन तुझको,
शायद फिर ये कल न पाए,
एक एक कर ये,
स्वाँसे बीते,
फिर ये बापस आए न आए,
भजलें नाम गुरू का रे मनवा,
बीत रही है स्वाँसा।।
घरवालो के,
सुख की खातिर,
खो दी है तू ने जिन्दगानी,
अपनी खातिर,
कुछ न किया अब,
क्या ले जाएगा तू प्राणी,
भजलें नाम गुरू का रे मनवा,
बीत रही है स्वाँसा।।
भजले नाम गुरू का रे मनवा,
बीत रही है स्वाँसा,
रात गई सुबहा आएगी,
आए न तेरी स्वाँसा।।
गुरुदेव की भक्ति ही सच्चा संबल है, जिससे यह जीवन सार्थक बनता है। “भजले नाम गुरु का रे मनवा, बीत रही है स्वाँसा” भजन हमें गुरु नाम सुमिरन की महिमा से जोड़ता है और सही दिशा में आगे बढ़ने का मार्ग दिखाता है। ऐसे ही अन्य प्रेरणादायक भजनों को पढ़ें या करें, जैसे “अगर तू चाहे जो भव तरना आ गुरु दर पे”, “सोऐ को संत जगाऐ फिर नीँद न उसको आए”, “तेरी नौका में जो बैठा वो पार हो गया गुरुदेव” और “धीरे-धीरे बीती जाए उमर, भव तरने का जतन तू कर”।

मैं हेमानंद शास्त्री, एक साधारण भक्त और सनातन धर्म का सेवक हूँ। मेरा उद्देश्य धर्म, भक्ति और आध्यात्मिकता के रहस्यों को सरल भाषा में भक्तों तक पहुँचाना है। शनि देव, बालाजी, हनुमान जी, शिव जी, श्री कृष्ण और अन्य देवी-देवताओं की महिमा का वर्णन करना मेरे लिए केवल लेखन नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक साधना है। मैं अपने लेखों के माध्यम से पूजन विधि, मंत्र, स्तोत्र, आरती और धार्मिक ग्रंथों का सार भक्तों तक पहुँचाने का प्रयास करता हूँ। 🚩 जय सनातन धर्म 🚩