अगर तू चाहे जो भव तरना आ गुरू दर पे भजन

“अगर तू चाहे जो भव तरना आ गुरू दर पे” भजन हमें यह समझाने का संदेश देता है कि इस संसार रूपी भवसागर से पार पाने के लिए गुरु की शरण में जाना ही एकमात्र उपाय है। जब हम गुरु चरणों में समर्पित होते हैं, तो उनका आशीर्वाद हमें सही मार्ग दिखाता है और जीवन को सार्थक बना देता है।

Ager Tu Chahe Jo Bhav Tarna Aa Guru Dar Pe Bhajan

अगर तू चाहे जो भव तरना,
आ गुरू दर पे,
बिना वजह ही क्यो लादे,
है बोझ तू सर पे।।

मिली है तुझको ये काया,
गुरु की रहमत से,
मगर तू छोड़ नही पाता,
अपनी आदत है,
हजारो दाग लगाए,
है तू चदरिया में,
यूँ ही गुजरती ये जाए,
तेरी उमरिया है।

अगर तू चाहे जो भव तरना,
आ गुरू दर पे,
बिना वजह ही क्यो लादे,
है बोझ तू सर पे।।

बिना भजन के यूँ जीना,
भी है कोई जीना,
नही तरेगी ये नैया,
किसी कैवट के बिना,
गुरू शरण मे तू इकर,
झुकाले सर अपना,
बना सके तो बनाले,
नसीब तू अपना।

अगर तू चाहें जो भव तरना,
आ गुरू दर पे,
बिना वजह ही क्यो लादे,
है बोझ तू सर पे।।

भजेगा नाम नही तो,
तरेगा तू कैसे,
बचेगा यम की अदालत,
से तू भला कैसे,
बहुत सजाएँ मिलेगी,
बहाँ गुरू के बिना,
तेरी न होगी जमानत,
वहां गुरू के बिना

अगर तू चाहें जो भव तरना,
आ गुरू दर पे,
बिना वजह ही क्यो लादे,
है बोझ तू सर पे।।

गुरु ही सच्चे पथप्रदर्शक हैं, जो हमें मोक्ष की ओर ले जाते हैं। “अगर तू चाहे जो भव तरना आ गुरू दर पे” भजन हमें यह प्रेरणा देता है कि अपने जीवन को सही दिशा में मोड़ने के लिए गुरु के चरणों में जाना आवश्यक है। अन्य भक्तिमय गुरु भजनों को पढ़ें, जैसे “गुरुदेव के चरणों की गर धूल जो मिल जाए”, “तेरे चरणों में सतगुरु मेरी प्रीत हो”, “गुरुदेव तुम्हारे चरणों में बैकुंठ का वास लगे मुझको” और “सारे तीरथ धाम आपके चरणों में गुरुदेव”।









Leave a comment