महामृत्युंजय गायत्री मंत्र: जीवन रक्षा और रोग नाश का अचूक उपाय

जब जीवन में मृत्यु का भय, रोग का संकट या अनदेखे शत्रुओं से रक्षा की आवश्यकता होती है, तब महामृत्युंजय गायत्री मंत्र अत्यंत प्रभावकारी सिद्ध होता है। यह मंत्र भगवान शिव की कृपा प्राप्त करने का एक दिव्य माध्यम है, जो न केवल शारीरिक बल्कि मानसिक और आत्मिक स्तर पर भी सुरक्षा प्रदान करता है। यह अद्भुत Mahamrityunjay Gayatri Mantra के लिरिक्स इस प्रकार से है-

Mahamrityunjay Gayatri Mantra

ऊँ हौं जूं स: ऊँ भूर्भुव: स्व: ,
ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्,
उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्॥

अर्थ: हम त्रयम्बक (तीन नेत्रों वाले) भगवान शिव का पूजन और ध्यान करते हैं, जो जीवन को सुवासित और पुष्ट करने वाले हैं। जैसे खीरा पक जाने पर बेल से स्वतः अलग हो जाता है, वैसे ही हम मृत्यु के बंधनों से मुक्त हों, परंतु अमरत्व की प्राप्ति हो — यानी जीवन में शांति, सुरक्षा और मोक्ष मिले।

Mahamrityunjay Gayatri Mantra

ऊँ हौं जूं स: ऊँ भूर्भुव: स्व: ,
ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्,
उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्॥

महामृत्युंजय गायत्री मंत्र का नियमित और श्रद्धापूर्ण जाप जीवन में भय, रोग और अकाल मृत्यु से रक्षा करता है। यदि आप शिव साधना की गहराइयों में और उतरना चाहते हैं, तो शिव गायत्री मंत्र से शिव की करुणा का अनुभव करें, रुद्र गायत्री मंत्र से क्रोध रूपी विनाशक शक्ति को साधें, और काल भैरव गायत्री मंत्र से जीवन की रक्षात्मक ऊर्जा को जगाएं।

मंत्र जाप करने की सरल विधि

यदि आप मानसिक, शारीरिक और आत्मिक सुरक्षा चाहते हैं, तो इस मंत्र की जाप विधि को नीचे विस्तार से प्रस्तुत किया गया है, जिससे आप इसे सही ढंग से और श्रद्धापूर्वक संपन्न कर सकें।-

  1. शुभ मुहूर्त: सोमवार, प्रदोष, या शिवरात्रि के दिन इस मंत्र का जाप अत्यंत फलदायी माना जाता है। ब्रह्ममुहूर्त में जाप करना विशेष शुभ होता है।
  2. स्नान: स्नान करने के बाद शिव भक्त सफेद या बिल्व पत्र जैसे हरे रंगों के वस्त्र धारण करें और ध्यान रखें कि तन और मन दोनों पवित्र हों।
  3. पूजन स्थान: भगवान शिव की मूर्ति, फोटो या लिंग रूप को जल, दूध और बेलपत्र अर्पित करें। दीपक जलाएं और शांत वातावरण बनाएं।
  4. मंत्र जाप: अब शांति से Mahamrityunjay Gayatri Mantra का जाप शुरू करें। मंत्र का जप करते समय भगवान रुद्र की त्रिनेत्री, अमृतमय रूप और करुणामयी दृष्टि की कल्पना करें।
  5. समर्पण: अंत में भगवान शिव से मृत्यु के भय से मुक्ति, दीर्घायु और रोगमुक्त जीवन की कामना करें और उन्हें अपने सुखद जीवन के लिए धन्यवाद दें।

यह साधना न केवल मन को शक्ति देती है, बल्कि आत्मा को गहराई से शांति और शिवत्व से जोड़ती है। नियमित अभ्यास से आप शिव कृपा के साथ आध्यात्मिक और सांसारिक संतुलन प्राप्त कर सकते हैं।

FAQ

क्या इस मंत्र का जाप बिना गुरु के किया जा सकता है?

इस गायत्री मंत्र कब और कितनी बार जपना चाहिए?

रोज सुबह 108 बार या संकट की घड़ी में अधिक बार जप करना लाभकारी होता है।

क्या इस मंत्र को किसी विशेष स्थान पर जपना आवश्यक है?

क्या इस मंत्र का रिंगटोन या ऑडियो सुनने मात्र से लाभ होता है?

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