गंगा घाट सिर्फ एक स्थान नहीं, बल्कि भावनाओं, आस्था और सांस्कृतिक विरासत का प्रतीक हैं। बनारस, हरिद्वार, प्रयागराज से लेकर गंगासागर तक फैले ये Ganga Ghat भारतीय सभ्यता की धड़कन हैं। चलिए जानते हैं कुछ प्रमुख गंगा के किनारे बसें घाटों के बारे में, जहाँ जाकर आपको न केवल गंगा के साथ जुड़ने का अहसास होगा, बल्कि भारतीय संस्कृति के गहरे पहलुओं को भी महसूस कर पाएंगे-
1. दशाश्वमेध घाट – वाराणसी (काशी)

दशाश्वमेध घाट शायद सबसे प्रसिद्ध और भव्य घाट है। यहाँ हर शाम गंगा आरती होती है, जो हर भक्त और पर्यटक के दिल को छू लेती है। इस घाट की सुंदरता, यहां की आरती और घाट के किनारे की भीड़ इसे अनोखा बनाती है। हजारों दीपकों की लाइट और मंत्रोच्चारण की आवाज़ से वातावरण एक दिव्य अनुभव बन जाता है।
क्या है खास?
- गंगा आरती: हर शाम यहाँ की भव्य गंगा आरती हजारों लोगों को खींच लाती है। दीपों की रौशनी, मंत्रोच्चारण और घंटियों की गूंज से पूरा वातावरण दिव्य हो जाता है।
- नाव की सवारी: सूर्योदय या आरती के समय नाव से घाटों का नज़ारा लेना एक यादगार अनुभव होता है।
- घाट जीवन: साधु-संत, विदेशी यात्री, फोटोग्राफर, और श्रद्धालु — सभी यहाँ की आत्मा में घुल जाते हैं।
कैसे पहुँचे?
- स्थान: वाराणसी में गोदौलिया चौराहे से कुछ कदम दूर।
- रेलवे स्टेशन से दूरी: बनारस स्टेशन से लगभग 5-6 किमी।
- ऑटो/रिक्शा/पैदल: गोदौलिया से आगे पैदल जाना पड़ता है, घाट तक वाहन नहीं जाते।
आरती का समय:
- सुबह आरती: 4:30 AM – 5:00 AM
- शाम आरती:
- गर्मियों में: 7:00 PM
- सर्दियों में: 6:30 PM
कब जाएं?
- अक्टूबर से मार्च: मौसम सुहावना और भीड़ अधिक — सर्वोत्तम समय।
- त्योहारों पर: देव दीपावली, कार्तिक पूर्णिमा, गंगा दशहरा जैसे पर्वों पर घाट पर स्वर्ग उतर आता है।
अगर आप वाराणसी आएं और दशाश्वमेध घाट न जाएं, तो समझिए काशी का असली दर्शन अधूरा रह गया।
2. हरिद्वार – हर की पौड़ी

हरिद्वार का हर की पौड़ी घाट गंगा नदी के किनारे एक प्रमुख तीर्थ स्थल है। यहाँ पर गंगा की अविरल धारा और हर शाम होने वाली गंगा आरती लोगों को विशेष शांति और आंतरिक संतुलन देती है। हरिद्वार में गंगा स्नान करने से पुण्य की प्राप्ति मानी जाती है।
क्या है खास?
- गंगा आरती: हर शाम यहाँ गंगा माँ की आरती एक अलौकिक अनुभव देती है। हजारों दीयों की रौशनी, गूंजते मंत्र और लहराती गंगा — यह दृश्य जीवन भर याद रहता है।
- स्नान और मोक्ष: मान्यता है कि यहाँ एक डुबकी से पापों से मुक्ति मिलती है और मोक्ष का मार्ग प्रशस्त होता है।
- श्रद्धा का संगम: हर की पौड़ी श्रद्धालुओं, पर्यटकों, साधुओं और फोटोग्राफरों के लिए आकर्षण का केंद्र है।
कैसे पहुँचे?
- स्थान: हरिद्वार शहर के मुख्य हिस्से में स्थित, रेलवे स्टेशन से केवल 1.5-2 किमी दूर।
- कैसे जाएं: पैदल, ई-रिक्शा, ऑटो सभी विकल्प मौजूद हैं। भीड़ में पैदल चलना आसान होता है।
- पार्किंग: बाहर पार्किंग की व्यवस्था है, अंदर वाहन नहीं जा सकते।
आरती का समय:
- सुबह आरती: लगभग 5:30 AM
- शाम आरती:
- गर्मियों में: 7:00 PM
- सर्दियों में: 6:00 PM
आरती से पहले पहुँचना बेहतर रहता है, वरना बैठने की जगह मिलना मुश्किल हो सकता है।
कब जाएं?
- अप्रैल से जून: ग्रीष्मकाल, लेकिन भीड़ होती है।
- अक्टूबर से मार्च: ठंडा मौसम और गंगा दर्शन के लिए बढ़िया समय।
- विशेष पर्व: कुंभ मेला, गंगा दशहरा, कार्तिक पूर्णिमा जैसे अवसर पर यहाँ श्रद्धा का समंदर उमड़ पड़ता है।
अगर आप हरिद्वार जाएं, तो हर की पौड़ी को मिस करना ही नहीं चाहिए। यहाँ की आरती और गंगा की लहरों में कुछ ऐसा है जो मन को भीतर तक शांति दे जाता है।
3. प्रयागराज – त्रिवेणी संगम

प्रयागराज में स्थित त्रिवेणी संगम एक ऐतिहासिक और धार्मिक स्थल है, जहाँ गंगा, यमुन और अदृश्य सरस्वती नदियों का मिलन होता है। यहाँ कुंभ मेला हर 12 साल में आयोजित होता है, जो एक विशाल धार्मिक उत्सव है। यहाँ का यह घाट बेहद पवित्र माना जाता है, और यहाँ पर पवित्र स्नान करने का बहुत महत्व है।
क्या है त्रिवेणी संगम की महिमा?
- यह वो स्थल है जहाँ कुंभ मेला का आयोजन होता है, जो दुनिया का सबसे बड़ा आध्यात्मिक मेला, और करोड़ों श्रद्धालुओं को आकर्षित करता है।
- गंगा की पारदर्शी धारा, यमुना की नीली गहराई, और सरस्वती की अदृश्य मौजूदगी तीनों का मिलन इस स्थान को दिव्य बनाता है।
- मान्यता है कि संगम में डुबकी लगाने से सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और आत्मा को शुद्धि मिलती है।
धार्मिक गतिविधियाँ
- डुबकी और स्नान: श्रद्धालु यहाँ विशेष अवसरों पर संगम स्नान करते हैं, जैसे मकर संक्रांति, मौनी अमावस्या, बसंत पंचमी, और कुंभ/अर्धकुंभ में।
- पूजा-पाठ और तर्पण: पितरों के लिए पिंडदान और तर्पण की प्रथा यहाँ गंगा तट पर की जाती है।
- ध्यान और साधना: आध्यात्मिक साधक और संन्यासी संगम किनारे ध्यान लगाते हैं।
कैसे पहुँचे त्रिवेणी संगम?
- स्थान: प्रयागराज शहर से करीब 7-8 किमी दूर।
- रेलवे स्टेशन: प्रयागराज जंक्शन (PNBE), वहाँ से ऑटो या टैक्सी लेकर पहुँच सकते हैं।
- नदी के पास पहुँचने के लिए: अंतिम 1-2 किमी नाव से जाना होता है, खासकर संगम बिंदु तक।
नाववाले आपको सीधा संगम स्थल तक ले जाते हैं, जहाँ गंगा-यमुना अलग-अलग रंगों में साफ दिखती हैं।
कब जाएं?
- नवंबर से मार्च: ठंडा मौसम और घाट पर भीड़ होती है।
- जनवरी–फरवरी: माघ मेला और मौनी अमावस्या के स्नान का विशेष महत्व है।
- कुंभ/अर्धकुंभ वर्ष: हर 6 और 12 साल में भव्य आयोजन होता है — ज़रूर जाएं।
अगर आप भारतीय संस्कृति की जड़ों से जुड़ना चाहते हैं, तो प्रयागराज का त्रिवेणी संगम एक ऐसा स्थान है जो न सिर्फ पवित्र है, बल्कि आत्मा को भी छू जाता है।
4. मणिकर्णिका घाट (वाराणसी)

मणिकर्णिका घाट वाराणसी (काशी) का सबसे पवित्र और ऐतिहासिक घाट है, जिसे “मोक्ष का द्वार” भी कहा जाता है। यह वह स्थान है जहाँ जीवन और मृत्यु एक साथ सांस लेते हैं — जहाँ हर दिन अंत्येष्टि होती है, लेकिन वह भी एक मुक्ति का उत्सव बन जाती है।
मणिकर्णिका घाट का आध्यात्मिक महत्व
यह घाट हिंदू धर्म में अंतिम संस्कार के लिए सबसे पवित्र स्थान माना जाता है। मान्यता है कि यहाँ मृत्यु होने पर आत्मा को सीधे मोक्ष प्राप्त होता है, इसीलिए लोग अपने जीवन के अंतिम समय में काशी आकर बसते हैं।
क्या देखने को मिलता है यहाँ?
- दिन-रात जलती चिताएँ। यह अकेला घाट है जहाँ 24×7 अंतिम संस्कार होता है।
- साधुओं की उपस्थिति, मंत्रोच्चारण, लकड़ियों की ढेर और गंगा की चुपचाप बहती धारा — सब कुछ एक गूढ़ वातावरण रचते हैं।
- पास ही स्थित है विश्वनाथ नाथ मंदिर, जहाँ मृत्यु के देवता महाकाल की उपासना होती है।
कैसे पहुँचें?
- स्थान: वाराणसी के गोदौलिया से करीब 1.5 किमी दूर, पैदल मार्ग।
- नजदीकी रेलवे स्टेशन: वाराणसी जंक्शन (BSB), वहाँ से ऑटो/रिक्शा से गोदौलिया तक जाएँ, फिर पैदल।
- घाट तक नाव से भी पहुँचा जा सकता है — खासकर दशाश्वमेध घाट से।
जरूरी बात:
- मणिकर्णिका घाट एक श्मशान घाट है।
- यहाँ फोटो खींचना या ज़रूरत से ज़्यादा सवाल करना अशोभनीय माना जाता है।
- सम्मान के साथ वहाँ जाएँ और इसे आध्यात्मिक दृष्टि से समझने की कोशिश करें।
मणिकर्णिका घाट एक ऐसा स्थान है जहाँ मृत्यु डरावनी नहीं होती, बल्कि मुक्ति का उत्सव बन जाती है। काशी का यह घाट सिखाता है कि अंत ही शुरुआत है।
5. राजेन्द्र घाट (पटना, बिहार)

राजेन्द्र घाट पटना का एक प्रमुख गंगा घाट है, जो न सिर्फ धार्मिक दृष्टि से पवित्र माना जाता है, बल्कि यह बिहार की गौरवशाली विरासत से भी जुड़ा हुआ है। इस घाट का नाम भारत के पहले राष्ट्रपति और बिहार के सपूत, डॉ. राजेन्द्र प्रसाद के नाम पर रखा गया है।
स्थान और विशेषता
- यह घाट पटना सिटी (गुलजारबाग/राजेन्द्र नगर) क्षेत्र के पास स्थित है।
- घाट तक पहुँचना आसान है — नजदीकी रेलवे स्टेशन गुलजारबाग है, और स्थानीय ऑटो-रिक्शा से सीधे घाट तक पहुंचा जा सकता है।
- गंगा किनारे स्थित यह घाट मुख्य रूप से धार्मिक अनुष्ठानों, छठ पूजा, और गंगा स्नान के लिए प्रसिद्ध है।
धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व
- छठ महापर्व के दौरान यह घाट पटना के प्रमुख घाटों में से एक बन जाता है, जहाँ हजारों श्रद्धालु गंगा में स्नान और अर्घ्य देने आते हैं।
- यहाँ पर पिंडदान, श्राद्ध कर्म, और विशेष अवसरों पर सामूहिक हवन आदि होते हैं।
- घाट पर कई स्थानीय संस्थाओं द्वारा समय-समय पर साफ-सफाई अभियान, आरती, और सांस्कृतिक आयोजन भी होते हैं।
कब जाएं?
- सुबह जल्दी या शाम को सूर्यास्त के समय आना सबसे अच्छा होता है।
- छठ पूजा, गंगा दशहरा, और माघ पूर्णिमा जैसे अवसरों पर यह घाट विशेष रूप से जीवंत हो जाता है।
राजेन्द्र घाट न केवल श्रद्धा और भक्ति का केंद्र है, बल्कि यह बिहार की आधुनिक और सांस्कृतिक पहचान का प्रतीक भी है। पटना आने पर यहाँ एक बार ज़रूर जाना चाहिए — यह अनुभव शांत भी करता है और गौरवान्वित भी।
6. असि संगम घाट (वाराणसी)

असि संगम घाट, वाराणसी के दक्षिणी छोर पर स्थित एक सुंदर और पवित्र घाट है, जहाँ असि नदी और गंगा नदी का संगम होता है। यह घाट वाराणसी का एक महत्वपूर्ण धार्मिक और सांस्कृतिक केंद्र है, जिसे आमतौर पर “अस्सी घाट” के रूप में जाना जाता है, लेकिन संगम के कारण इसका सही नाम “असि संगम घाट” भी कहा जाता है।
आध्यात्मिक और पौराणिक महत्व
- मान्यता है कि यही वह स्थान है जहाँ भगवान शिव ने असि नदी की उत्पत्ति की थी जब उन्होंने शुम्भ-निशुम्भ नामक राक्षसों का वध किया।
- यहाँ गंगा और असि का मिलन एक ऊर्जावान और पवित्र संगम बनाता है, जहाँ स्नान करने से विशेष पुण्य की प्राप्ति होती है।
- इसे काशी का प्रवेश द्वार भी माना जाता है — यहाँ से काशी की धार्मिक यात्रा शुरू होती है।
सुबह-ए-बनारस: एक दिव्य अनुभव
असि संगम घाट पर हर सुबह “सुबह-ए-बनारस” कार्यक्रम होता है, जिसमें:
- सूर्य नमस्कार और योग
- शास्त्रीय संगीत और भजन
- गंगा आरती और मंत्रोच्चार
यह पूरा अनुभव इतना शांत और आत्मिक होता है कि हर आने वाला व्यक्ति उसे बार-बार जीना चाहता है।
कैसे पहुँचें असि संगम घाट?
- लोकेशन: वाराणसी के दक्षिणी भाग में, BHU (बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी) से सिर्फ 1–2 किमी की दूरी पर।
- रेलवे स्टेशन: वाराणसी जंक्शन से ऑटो या टैक्सी लेकर सीधे घाट तक पहुँचा जा सकता है।
घाट पर वाहनों की सुविधा भी है और नाव द्वारा भी यहाँ पहुँचा जा सकता है।
बेस्ट टाइम जाने का
- सुबह 4:30 बजे से 7:00 बजे तक — योग, आरती और संगीत का दिव्य मिलन
- शाम को सूर्यास्त के समय भी घाट शांति और सुंदरता से भरा होता है
असि संगम घाट पर एक बार जाना सिर्फ एक यात्रा नहीं, बल्कि अंदर की यात्रा होती है। यहाँ की हवा में एक विशेष ऊर्जा है — जो ना दिखती है, ना छूई जाती है… लेकिन महसूस जरूर होती है।
7. गढ़मुक्तेश्वर घाट (उत्तर प्रदेश)

गढ़मुक्तेश्वर, उत्तर प्रदेश के हापुड़ ज़िले में स्थित एक प्रसिद्ध तीर्थस्थान है, जो गंगा नदी के किनारे बसा हुआ है। यहाँ का प्रमुख घाट गढ़मुक्तेश्वर घाट एक ऐसा स्थान है जहाँ गंगा में आस्था, मुक्ति और परंपरा का संगम होता है।
पौराणिक महत्व
- मान्यता है कि इस स्थान का उल्लेख भागवत पुराण और महाभारत में भी आता है।
- कहा जाता है कि भगवान ब्रह्मा और गढ़वाल नरेशों ने यहाँ यज्ञ किए थे।
- यहाँ का नाम “मुक्तेश्वर” इसलिए पड़ा क्योंकि यह स्थान मोक्ष प्राप्ति का द्वार माना जाता है — विशेषकर उन लोगों के लिए जो गंगा स्नान और पिंडदान करते हैं।
गढ़मुक्तेश्वर घाट की खासियत
- यह घाट पिंडदान, गंगा स्नान, और धार्मिक क्रियाओं के लिए जाना जाता है।
- यहाँ प्रतिवर्ष कार्तिक पूर्णिमा (गंगा स्नान मेला) पर लाखों श्रद्धालु गंगा में स्नान करने आते हैं।
- यह मेला बहुत भव्य होता है और उत्तर भारत के सबसे बड़े गंगा स्नान मेलों में से एक माना जाता है।
कैसे पहुँचें गढ़मुक्तेश्वर घाट?
- लोकेशन: गढ़मुक्तेश्वर, हापुड़ जिला, उत्तर प्रदेश
- रेलवे स्टेशन: गढ़मुक्तेश्वर रेलवे स्टेशन (GMB), घाट से करीब 2–3 किमी दूर
- सड़क मार्ग: दिल्ली से NH-9 द्वारा मात्र 110–120 किमी, 2.5 से 3 घंटे का सफर
लोकल ऑटो, टैक्सी या पैदल चलकर भी घाट तक पहुंचा जा सकता है।
बेस्ट टाइम जाने का:
- कार्तिक पूर्णिमा (अक्टूबर-नवंबर) के समय यहाँ का माहौल सबसे भव्य होता है।
- इसके अलावा, श्राद्ध पक्ष, अमावस्या, और त्योहारों पर भी विशेष धार्मिक आयोजन होते हैं।
- सालभर गंगा स्नान के लिए श्रद्धालु आते रहते हैं, लेकिन सुबह का समय सबसे पवित्र माना जाता है।
गढ़मुक्तेश्वर घाट एक ऐसा तीर्थ है जो बिना शोर-शराबे के आत्मिक शांति, गंगा की महिमा, और सनातन संस्कृति का सुंदर मिलन कराता है। अगर आप गंगा के एक सच्चे साधक हैं, तो यहाँ की यात्रा एक बार ज़रूर करनी चाहिए।
हर Ganga Ghat की अपनी एक विशेषता है — कहीं ये भव्य हैं, कहीं शांति से भरे हुए हैं, और कहीं ये आध्यात्मिक ऊर्जा से ओत-प्रोत हैं। इन घाटों का यह आध्यात्मिक यात्रा हर भारतीय के लिए एक अविस्मरणीय अनुभव है। चाहे आप वाराणसी के दशाश्वमेध घाट पर हो, हरिद्वार के हर की पौड़ी पर गंगा के किनारे की शांति और ध्यान की एक अद्भुत शक्ति है जो जीवन को सही दिशा देती है।
FAQ
सबसे प्रसिद्ध गंगा आरती किस घाट पर होती है?
वाराणसी का दशाश्वमेध घाट और हरिद्वार का हर की पौड़ी, गंगा आरती के लिए सबसे प्रसिद्ध स्थल हैं।
क्या घाटों पर नाव की सवारी उपलब्ध होती है?
हाँ, खासकर वाराणसी, ऋषिकेश, हरिद्वार जैसे स्थानों पर नाव सेवा सुबह और शाम उपलब्ध होती है।
क्या घाटों पर फोटो और वीडियो बनाना मान्य है?
अधिकांश घाटों पर फोटो/वीडियो लेना मना नहीं है, पर अंतिम संस्कार या पूजा स्थलों पर सम्मान बनाए रखना चाहिए।
क्या इन घाटों पर महिलाएं सुरक्षित रूप से जा सकती हैं?
हाँ, प्रमुख घाटों पर पुलिस व स्वयंसेवक तैनात रहते हैं। परंतु सुबह या रात को अकेले जाने से पहले स्थानीय सलाह लेना बेहतर होता है।

मैं श्रुति शास्त्री , एक समर्पित पुजारिन और लेखिका हूँ, मैं अपने हिन्दू देवी पर आध्यात्मिकता पर लेखन भी करती हूँ। हमारे द्वारा लिखें गए आर्टिकल भक्तों के लिए अत्यंत उपयोगी होते हैं, क्योंकि मैं देवी महिमा, पूजन विधि, स्तोत्र, मंत्र और भक्ति से जुड़ी कठिन जानकारी सरल भाषा में प्रदान करती हूँ। मेरी उद्देश्य भक्तों को देवी शक्ति के प्रति जागरूक करना और उन्हें आध्यात्मिक ऊर्जा से ओतप्रोत करना है।View Profile