दुर्गा सप्तशती कवच एक शक्तिशाली और धार्मिक पाठ है, जिसे विशेष रूप से माँ दुर्गा की पूजा और आराधना के समय पढ़ा जाता है। Durga Saptashati Kavach दुर्गा सप्तशती के 700 मंत्रों में से एक है और इसमें भगवान की रक्षात्मक शक्ति का वर्णन किया गया है। यह कवच भक्तों को शत्रुओं, बुरी शक्तियों, और मानसिक तनाव से बचाने के लिए पढ़ा जाता है। यह सरल और प्रभावी पूजा विधि है, जिसे घर पर भी किया जा सकता है।
दुर्गा सप्तशती पाठ में माँ दुर्गा की पूजा की महिमा, उनके अद्भुत रूप, शक्तियों और उनके द्वारा दी जाने वाली सुरक्षा का बखान किया गया है। इस दुर्गा पाठ को सही तरीके से और पूर्ण श्रद्धा के साथ पढ़ने से माँ दुर्गा का आशीर्वाद मिलता है और भक्त का जीवन संपूर्ण रूप से सुरक्षित और समृद्ध बनता है। यहां नीचे हमने आपके लिए इस कवच और कवच के पाठ विधि को विस्तार से बताया है।
दुर्गा सप्तशती कवच
ॐ अस्य श्रीचण्डीकवचस्य ब्रह्मा ऋषिः, अनुष्टुप् छन्दः
चामुण्डा देवता, अङ्गन्यासोक्तमातरो बीजम्, दिग्बन्धदेवतास्तत्त्वम्
श्रीजगदम्बाप्रीत्यर्थे सप्तशतीपाठाङ्गत्वेन जपे विनियोगः॥
ॐ नमश्चण्डिकायै
॥मार्कण्डेय उवाच॥
यद्गुह्यं परमं लोके सर्वरक्षाकरं नृणाम्,
यन्न कस्यचिदाख्यातं तन्मे ब्रूहि पितामह॥
ब्रह्मोवाच
अस्ति गुह्यतमं विप्र सर्वभूतोपकारकम् ,
देव्यास्तु कवचं पुण्यं तच्छृणुष्व महामुने॥
प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी,
तृतीयं चन्द्रघण्टेति कूष्माण्डेति चतुर्थकम्॥
पञ्चमं स्कन्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च,
सप्तमं कालरात्री च महागौरीति चाष्टमम्॥
नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गाः प्रकीर्तिताः,
उक्तान्येतानि नामानि ब्रह्मणैव महात्मना॥
अग्निना दह्यमानस्तु शत्रुमध्ये गतो रणे,
विषमे दुर्गमे चैव भयार्ताः शरणं गताः॥
न तेषां जायते किंचिदशुभं रणसंकटे,
नापदं तस्य पश्यामि शोकदुःखभयं न हि॥
यैस्तु भक्त्या स्मृता नूनं तेषां सिद्धि प्रजायते,
ये त्वां स्मरन्ति देवेशि रक्षसे तान्न संशयः॥
प्रेतसंस्था तु चामुण्डा वाराही महिषासना,
ऐन्द्री गजसमारुढ़ा वैष्णवी गरुड़ासना॥
माहेश्वरी वृषारुढ़ा कौमारी शिखिवाहना,
लक्ष्मीः पद्मासना देवी पद्महस्ता हरिप्रिया॥
श्वेतरूपधरा देवी ईश्वरी वृषवाहना,
ब्राह्मी हंससमारुढ़ा सर्वाभरणभूषिता॥
नानाभरणशोभाढ्या,
नानारत्नोपशोभिताः॥
दृश्यन्ते रथमारुढ़ा देव्यः क्रोधसमाकुलाः,
शङ्खं चक्रं गदां शक्तिं हलं च मुसलायुधम्।
खेटकं तोमरं चैव परशुं पाशमेव च,
कुन्तायुधं त्रिशूलं च शार्ङ्गमायुधमुत्तमम्।
दैत्यानां देहनाशाय भक्तानाम अभ्याय च,
धारयन्त्यायुधानीत्थं देवानां च हिताय वै।
महाबले महोत्साहे,
महाभयविनाशिनि।
त्राहि मां देवि दुष्प्रेक्ष्ये शत्रूणां भयवर्धिनि,
प्राच्यां रक्षतु मामैन्द्री आग्नेय्यामग्निदेवता॥
दक्षिणेऽवतु वाराही नैर्ऋत्यां खड्गधारिणी,
प्रतीच्यां वारुणी रक्षेद् वायव्यां मृगवाहिनी॥
उदीच्यां रक्ष कौबेरी ऐशान्यां शूलधारिणी,
ऊर्ध्वं ब्रह्माणि मे रक्षेदधस्ताद् वैष्णवी तथा॥
एवं दश दिशो रक्षेच्चामुण्डा शववाहना ,
जया मे चाग्रतः स्तातु विजयाः स्तातु पृष्ठतः॥
अजिता वामपार्श्वे तु दक्षिणे चापराजिता,
शिखामेद्योतिनि रक्षेद उमा मूर्ध्नि व्यवस्थिता॥
मालाधरी ललाटे च भ्रुवौ रक्षेद् यशस्विनी,
त्रिनेत्रा च भ्रुवोर्मध्ये यमघण्टा च नासिके॥
शङ्खिनी चक्षुषोर्मध्ये श्रोत्रयोर्द्वारवासिनी,
कपोलौ कालिका रक्षेत्कर्णमूले तु शांकरी॥
नासिकायां सुगन्धा च उत्तरोष्ठे च चर्चिका,
अधरे चामृतकला जिह्वायां च सरस्वती॥
दन्तान् रक्षतु कौमारी कण्ठ मध्येतु चण्डिका,
घण्टिकां चित्रघण्टा च महामाया च तालुके॥
कामाक्षी चिबुकं रक्षेद् वाचं मे सर्वमङ्गला,
ग्रीवायां भद्रकाली च पृष्ठवंशे धनुर्धरी॥
नीलग्रीवा बहिःकण्ठे नलिकां नलकूबरी,
खड्ग्धारिन्यु भौ स्कन्धो बाहो मे वज्रधारिणी॥
हस्तयोर्दण्डिनी रक्षेदम्बिका चाङ्गुली स्त्था,
नखाञ्छूलेश्वरी रक्षेत्कुक्षौ रक्षे नलेश्वरी॥
स्तनौ रक्षेन्महालक्ष्मी मनः शोकविनाशिनी,
हृदय्म् ललिता देवी उदरम शूलधारिणी॥
नाभौ च कामिनी रक्षेद्,
गुह्यं गुह्येश्वरी तथा॥
कट्यां भगवती रक्षेज्जानुनी विन्ध्यवासिनी,
जङ्घे महाबला रक्षेत्सर्वकामप्रदायिनी॥
गुल्फयोर्नारसिंही च पादौ च नित तेजसी,
पादाङ्गुलीषु श्री रक्षेत्पादाधस्तलवासिनी॥
नखान् दंष्ट्राकराली च केशांश्चैवोर्ध्वकेशिनी,
रोमकूपेषु कौबेरी त्वचं वागीश्वरी तथा॥
रक्तमज्जावसामांसान्यस्थिमेदांसि पार्वती,
अन्त्राणि कालरात्रिश्च पित्तं च मुकुटेश्वरी॥
पद्मावती पद्मकोशे कफे चूड़ामणिस्तथा,
ज्वालामुखी नखज्वाला अभेद्या सर्वसंधिषु॥
शुक्रं ब्रह्माणि मे रक्षेच्छायां छत्रेश्वरी तथा,
अहंकारं मनो बुद्धिं रक्षमे धर्मचारिणी॥
प्राणापानौ तथा व्यानमुदानं च समानकम्,
वज्रहस्ता च मे रक्षेत्प्राणं कल्याणशोभना॥
रसे रूपे च गन्धे च शब्दे स्पर्शे च योगिनी,
सत्त्वं रजस्तमश्चैव रक्षेन्नारायणी सदा॥
आयू रक्षतु वाराही धर्मं रक्षतु वैष्णवी,
यशः कीर्तिं च लक्ष्मीं च धनं विद्यां च चक्रिणी॥
गोत्रमिन्द्राणि मे रक्षेत्पशून्मे रक्ष चण्डिके,
पुत्रान् रक्षेन्महालक्ष्मीर्भार्यां रक्षतु भैरवी॥
पन्थानं सुपथा रक्षेन्मार्गं क्षेमकरी तथा,
राजद्वारे महालक्ष्मीर्विजया सर्वतः स्थिता॥
रक्षाहीनं तु यत्स्थानं वर्जितं कवचेन तु,
तत्सर्वं रक्ष मे देवि जयन्ती पापनाशिनी॥
पदमेकं न गच्छेत्तु यदीच्छेच्छुभमात्मनः,
कवचेनावृतो नित्यं यत्र यत्रार्थी गच्छति॥
तत्र तत्रार्थलाभश्च विजयः सार्वकामिकः,
यं यं कामयते कामं तं तं प्राप्नोति निश्चितम्
परमैश्वर्यमतुलं प्राप्स्यते भूतले पुमान्॥
निर्भयो जायते मर्त्यः संग्रामेष्वपराजितः,
त्रैलोक्ये तु भवेत्पूज्यः कवचेनावृतः पुमान्॥
इदं तु देव्याः कवचं देवानामपि दुर्लभम्,
यः पठेत्प्रयतो नित्यं त्रिसन्ध्यं श्रद्धयान्वितः॥
दैवी कला भवेत्तस्य त्रैलोक्येपपराजितः,
जीवेद् वर्षशतं साग्रमपमृत्युविवर्जितः॥
नश्यन्ति व्याधयः सर्वे लूताविस्फोटकादयः,
स्थावरं जङ्गमं वापि कृत्रिमं चापि यद्विषम्॥
आभिचाराणि सर्वाणि मन्त्रयन्त्राणि भूतले,
भूचराः खेचराश्चैव जलजाश्चोपदेशिकाः॥
सहजाः कुलजा मालाः शाकिनी डाकिनी तथा,
अन्तरिक्षचरा घोरा डाकिन्यश्च महाबलाः॥
ग्रहभूतपिशाचाश्च यक्षगन्धर्वराक्षसाः,
ब्रह्मराक्षसवेतालाः कूष्माण्डा भैरवादयः॥
नश्यन्ति दर्शनात्तस्य कवचे हृदि संस्थिते,
मानोन्नतिर्भवेद् राज्ञस्तेजोवृद्धिकरं परम्॥
यशसा वर्धते सोऽपि कीर्तिमण्डितभूतले,
जपेत्सप्तशतीं चण्डीं कृत्वा तु कवचं पुरा॥
यावद्भूमण्डलं धत्ते सशैलवनकाननम् ,
तावत्तिष्ठति मेदिन्यां संततिः पुत्रपौत्रिकी॥
देहान्ते परमं स्थानं यत्सुरैरपि दुर्लभम् ,
प्राप्नोति पुरुषो नित्यं महामायाप्रसादतः॥
लभते परमं रुपं शिवेन सह मोदते
॥ॐ॥
॥इति देव्याः कवचं सम्पूर्णम्॥
दुर्गा सप्तशती पाठ के साथ Durga Raksha Kavach, Durga Ji Ke Bhajan और Durga Stotra का भी जाप करें और अपने जीवन में स्थिरता और साहस का सृजन करें।
Durga Saptashati Kavach पाठ की विधि:
इसे करने की एक सरल और सही विधि है, जिससे आप माँ दुर्गा की कृपा प्राप्त कर सकते हैं। निम्नलिखित विधि से कवच का पाठ किया जा सकता है:
- शुद्धता: सबसे पहले एक शुद्ध और शांत स्थान का चयन करें, जहाँ आपको कोई विघ्न न हो। यदि संभव हो तो पूजा कक्ष या मंदिर में इसे करें। आप शारीरिक और मानसिक शुद्धता के लिए स्नान करके स्वच्छ वस्त्र पहनें।
- पुजन सामग्री: पूजा के लिए देवी दुर्गा की मूर्ति या चित्र को पूजा स्थान पर रखें। दीपक, अगरबत्ती, तिल, फूल, घी, पंचमेवा, और अन्य पूजा सामग्री तैयार करें।
- संकल्प लें: पूजा प्रारंभ करने से पहले, मन में एक मजबूत संकल्प लें कि आप देवी दुर्गा की कृपा प्राप्त करने के लिए यह हवन या पाठ कर रहे है, और अपनी इच्छाओं और उद्देश्यों को मन में सोचें और फिर कार्य प्रारंभ करें। दुर्गा सप्तशती का पाठ करने से पहले श्री गणेश का वंदन भी करें।
- पाठ: कवच का पाठ पूरी श्रद्धा और ध्यान से शुरू करें। कवच का पाठ करते समय, प्रत्येक मंत्र का उच्चारण स्पष्ट रूप से और पूरी श्रद्धा से करें। अगर आप पहली बार इसे पढ़ रहे हैं, तो आप इसे कम से कम 11 बार पढ़ सकते हैं।
- हवन: हवन सामग्री को आग में अर्पित करें और फिर अपने मन में माँ दुर्गा का ध्यान करें। मंत्रों के साथ प्रत्येक सामग्री को अग्नि में अर्पित करें।
- प्रसाद वितरण: जब पाठ या हवन समाप्त हो जाए, तो प्रसाद वितरित करें। यह प्रसाद माँ दुर्गा का आशीर्वाद है, जिसे सभी को बांटना चाहिए।
- आरती: पाठ के बाद, माँ दुर्गा की आरती करें और उनके चरणों में श्रद्धा सुमन अर्पित करें। साथ ही, “जय माँ दुर्गा” का जाप करें।
- प्रार्थना: अंत में, भगवान से प्रार्थना करें कि वे आपके जीवन में शांति, समृद्धि, और सुरक्षा प्रदान करें। अपना संकल्प पुनः दोहराएं और फिर आशीर्वाद प्राप्त करें
सप्तशती कवच का पाठ एक महत्वपूर्ण धार्मिक क्रिया है, जो श्रद्धा और सही विधि से किया जाना चाहिए। इस विधि का पालन करने से व्यक्ति की सभी परेशानियों का समाधान होता है और जीवन में देवी दुर्गा का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
कवच का पाठ करने के लाभ
यह एक अत्यंत शक्तिशाली मंत्र है, जो भक्तों को मानसिक, शारीरिक, और आध्यात्मिक रूप से सशक्त बनाता है। निम्नलिखित हैं इस कवच के पाठ करने के प्रमुख लाभ-
- सुरक्षा और रक्षा: कवच का पाठ करने से व्यक्ति शारीरिक और मानसिक दोनों प्रकार के संकटों से मुक्त रहता है। यह बुरी शक्तियों, शत्रुओं, और नकारात्मक प्रभावों से सुरक्षा प्रदान करता है।
- मानसिक शांति: इस मंत्र के जाप से मानसिक शांति प्राप्त होती है। यह तनाव, चिंता और मानसिक अशांति को दूर करता है, जिससे व्यक्ति शांत और संतुलित महसूस करता है।
- आध्यात्मिक उन्नति: सप्तशती कवच का पाठ करने से व्यक्ति का आध्यात्मिक उत्थान होता है। यह व्यक्ति को सकारात्मक ऊर्जा और शक्ति से भरपूर करता है और जीवन में सही दिशा का मार्गदर्शन प्रदान करता है।
- समृद्धि का वास: कवच का नियमित पाठ आर्थिक समृद्धि और सफलता के द्वार खोलता है। यह व्यवसाय में वृद्धि, धन की प्राप्ति और समृद्धि का कारण बनता है।
- शारीरिक स्वास्थ्य: यह पाठ शरीर को शारीरिक रोगों और समस्याओं से मुक्ति दिलाता है। यह रोग प्रतिरोधक क्षमता को मजबूत करता है और स्वास्थ्य में सुधार करता है।
- कष्टों से मुक्ति: दुर्गा जी के सप्तशती कवच का जाप जीवन के सभी प्रकार के कष्टों, दुखों और बाधाओं से मुक्ति दिलाता है। यह मानसिक, शारीरिक और पारिवारिक समस्याओं को हल करता है।
- शक्ति और साहस: यह साहस और आत्मविश्वास में वृद्धि करता है, जिससे व्यक्ति हर कठिनाई का सामना कर सकता है।
- कष्टों से राहत: कवच को पढ़ने से आप अपने जीवन की समस्याओं का समाधान पा सकते हैं। यह सभी प्रकार की तकलीफों, परेशानियों और विपत्तियों से राहत देता है।
- सुख-शांति: यह पाठ घर और जीवन में सुख-शांति का वातावरण बनाता है। परिवार में प्रेम, सद्भाव और समृद्धि की भावना उत्पन्न करता है।
- आशीर्वाद: कवच का पाठ करते हुए माँ दुर्गा की विशेष कृपा प्राप्त होती है। उनका आशीर्वाद व्यक्ति के जीवन में शांति, समृद्धि, और सुरक्षा लेकर आता है।
FAQ
कवच का पाठ कब और क्यों करना चाहिए?
कवच का पाठ विशेष रूप से नवरात्रि, पूजा-पाठ, या किसी संकट की स्थिति में किया जाता है।
क्या कवच का पाठ किसी भी व्यक्ति को करना चाहिए?
हां, यह पाठ कोई भी व्यक्ति कर सकता है, खासकर वे लोग जो मानसिक या शारीरिक समस्याओं का सामना कर रहे हैं, या जिन्हें शांति और सुरक्षा की आवश्यकता है।
सप्तशती कवच का पाठ कितनी बार करना चाहिए?
यह पाठ 11, 21, या 108 बार किया जा सकता है। यह संख्या श्रद्धा और समय की उपलब्धता पर निर्भर करती है।
क्या इस पाठ को महिला और पुरुष दोनों पढ़ सकते हैं?
हां, कवच का पाठ महिला और पुरुष दोनों कर सकते हैं। यह सभी के लिए समान रूप से लाभकारी है।