दुर्गा रक्षा कवच एक अत्यंत शक्तिशाली मंत्र है जो विशेष रूप से माँ दुर्गा की कृपा प्राप्त करने और उनके आशीर्वाद से जीवन में सुरक्षा पाने के लिए किया जाता है। Durga Raksha Kavach व्यक्ति को मानसिक, शारीरिक और आध्यात्मिक सुरक्षा प्रदान करता है। यह मंत्र विशेष रूप से उन लोगों के लिए उपयुक्त है जो जीवन में कठिनाइयों, समस्याओं, और शत्रुओं से बचाव की तलाश में रहते हैं।
इसके माध्यम से भक्त अपनी आस्था और विश्वास के साथ माँ दुर्गा से रक्षा की प्रार्थना करते हैं। यह विशेष रूप से उस समय उपयोगी होता है जब व्यक्ति जीवन की अनिश्चितताओं, विपत्तियों और संकटों से जूझ रहा हो। यहां हमने इस दुर्गा पाठ को विस्तार से आपके लिए नीचे उपलब्ध कराया है-
दुर्गा रक्षा कवच
ॐ अस्य श्रीचण्डीकवचस्य ब्रह्मा ऋषिः, अनुष्टुप् छन्दः
चामुण्डा देवता, अङ्गन्यासोक्तमातरो बीजम्, दिग्बन्धदेवतास्तत्त्वम्
श्रीजगदम्बाप्रीत्यर्थे सप्तशतीपाठाङ्गत्वेन जपे विनियोगः॥
ॐ नमश्चण्डिकायै
॥मार्कण्डेय उवाच॥
यद्गुह्यं परमं लोके सर्वरक्षाकरं नृणाम्,
यन्न कस्यचिदाख्यातं तन्मे ब्रूहि पितामह।
ब्रह्मोवाच
अस्ति गुह्यतमं विप्र सर्वभूतोपकारकम्,
देव्यास्तु कवचं पुण्यं तच्छृणुष्व महामुने।
प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी,
तृतीयं चन्द्रघण्टेति कूष्माण्डेति चतुर्थकम्।
पञ्चमं स्कन्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च,
सप्तमं कालरात्री च महागौरीति चाष्टमम्।
नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गाः प्रकीर्तिताः,
उक्तान्येतानि नामानि ब्रह्मणैव महात्मना।
अग्निना दह्यमानस्तु शत्रुमध्ये गतो रणे,
विषमे दुर्गमे चैव भयार्ताः शरणं गताः।
न तेषां जायते किंचिदशुभं रणसंकटे,
नापदं तस्य पश्यामि शोकदुःखभयं न हि।
यैस्तु भक्त्या स्मृता नूनं तेषां सिद्धि प्रजायते,
ये त्वां स्मरन्ति देवेशि रक्षसे तान्न संशयः।
प्रेतसंस्था तु चामुण्डा वाराही महिषासना,
ऐन्द्री गजसमारुढ़ा वैष्णवी गरुड़ासना।
माहेश्वरी वृषारुढ़ा कौमारी शिखिवाहना,
लक्ष्मीः पद्मासना देवी पद्महस्ता हरिप्रिया।
श्वेतरूपधरा देवी ईश्वरी वृषवाहना,
ब्राह्मी हंससमारुढ़ा सर्वाभरणभूषिता।
नानाभरणशोभाढ्या,
नानारत्नोपशोभिताः।
दृश्यन्ते रथमारुढ़ा देव्यः क्रोधसमाकुलाः,
शङ्खं चक्रं गदां शक्तिं हलं च मुसलायुधम्।
खेटकं तोमरं चैव परशुं पाशमेव च,
कुन्तायुधं त्रिशूलं च शार्ङ्गमायुधमुत्तमम्।
दैत्यानां देहनाशाय भक्तानाम अभ्याय च,
धारयन्त्यायुधानीत्थं देवानां च हिताय वै।
महाबले महोत्साहे,
महाभयविनाशिनि।
त्राहि मां देवि दुष्प्रेक्ष्ये शत्रूणां भयवर्धिनि ,
प्राच्यां रक्षतु मामैन्द्री आग्नेय्यामग्निदेवता।
दक्षिणेऽवतु वाराही नैर्ऋत्यां खड्गधारिणी,
प्रतीच्यां वारुणी रक्षेद् वायव्यां मृगवाहिनी।
उदीच्यां रक्ष कौबेरी ऐशान्यां शूलधारिणी,
ऊर्ध्वं ब्रह्माणि मे रक्षेदधस्ताद् वैष्णवी तथा।
एवं दश दिशो रक्षेच्चामुण्डा शववाहना,
जया मे चाग्रतः स्तातु विजयाः स्तातु पृष्ठतः।
अजिता वामपार्श्वे तु दक्षिणे चापराजिता,
शिखामेद्योतिनि रक्षेद उमा मूर्ध्नि व्यवस्थिता।
मालाधरी ललाटे च भ्रुवौ रक्षेद् यशस्विनी,
त्रिनेत्रा च भ्रुवोर्मध्ये यमघण्टा च नासिके।
शङ्खिनी चक्षुषोर्मध्ये श्रोत्रयोर्द्वारवासिनी,
कपोलौ कालिका रक्षेत्कर्णमूले तु शांकरी।
नासिकायां सुगन्धा च उत्तरोष्ठे च चर्चिका,
अधरे चामृतकला जिह्वायां च सरस्वती।
दन्तान् रक्षतु कौमारी कण्ठ मध्येतु चण्डिका,
घण्टिकां चित्रघण्टा च महामाया च तालुके।
कामाक्षी चिबुकं रक्षेद् वाचं मे सर्वमङ्गला,
ग्रीवायां भद्रकाली च पृष्ठवंशे धनुर्धरी।
नीलग्रीवा बहिःकण्ठे नलिकां नलकूबरी,
खड्ग्धारिन्यु भौ स्कन्धो बाहो मे वज्रधारिणी।
हस्तयोर्दण्डिनी रक्षेदम्बिका चाङ्गुली स्त्था,
नखाञ्छूलेश्वरी रक्षेत्कुक्षौ रक्षे नलेश्वरी।
स्तनौ रक्षेन्महालक्ष्मी मनः शोकविनाशिनी,
हृदय्म् ललिता देवी उदरम शूलधारिणी।
नाभौ च कामिनी रक्षेद् ,
गुह्यं गुह्येश्वरी तथा।
कट्यां भगवती रक्षेज्जानुनी विन्ध्यवासिनी,
जङ्घे महाबला रक्षेत्सर्वकामप्रदायिनी।
गुल्फयोर्नारसिंही च पादौ च नित तेजसी,
पादाङ्गुलीषु श्री रक्षेत्पादाधस्तलवासिनी।
नखान् दंष्ट्राकराली च केशांश्चैवोर्ध्वकेशिनी,
रोमकूपेषु कौबेरी त्वचं वागीश्वरी तथा.
रक्तमज्जावसामांसान्यस्थिमेदांसि पार्वती,
अन्त्राणि कालरात्रिश्च पित्तं च मुकुटेश्वरी।
पद्मावती पद्मकोशे कफे चूड़ामणिस्तथा,
ज्वालामुखी नखज्वाला अभेद्या सर्वसंधिषु।
शुक्रं ब्रह्माणि मे रक्षेच्छायां छत्रेश्वरी तथा ,
अहंकारं मनो बुद्धिं रक्षमे धर्मचारिणी।
प्राणापानौ तथा व्यानमुदानं च समानकम्,
वज्रहस्ता च मे रक्षेत्प्राणं कल्याणशोभना।
रसे रूपे च गन्धे च शब्दे स्पर्शे च योगिनी,
सत्त्वं रजस्तमश्चैव रक्षेन्नारायणी सदा।
आयू रक्षतु वाराही धर्मं रक्षतु वैष्णवी,
यशः कीर्तिं च लक्ष्मीं च धनं विद्यां च चक्रिणी।
गोत्रमिन्द्राणि मे रक्षेत्पशून्मे रक्ष चण्डिके,
पुत्रान् रक्षेन्महालक्ष्मीर्भार्यां रक्षतु भैरवी।
पन्थानं सुपथा रक्षेन्मार्गं क्षेमकरी तथा,
राजद्वारे महालक्ष्मीर्विजया सर्वतः स्थिता।
रक्षाहीनं तु यत्स्थानं वर्जितं कवचेन तु ,
तत्सर्वं रक्ष मे देवि जयन्ती पापनाशिनी।
पदमेकं न गच्छेत्तु यदीच्छेच्छुभमात्मनः
कवचेनावृतो नित्यं यत्र यत्रार्थी गच्छति
तत्र तत्रार्थलाभश्च विजयः सार्वकामिकः
यं यं कामयते कामं तं तं प्राप्नोति निश्चितम्
परमैश्वर्यमतुलं प्राप्स्यते भूतले पुमान्।
निर्भयो जायते मर्त्यः संग्रामेष्वपराजितः,
त्रैलोक्ये तु भवेत्पूज्यः कवचेनावृतः पुमान्।
इदं तु देव्याः कवचं देवानामपि दुर्लभम्,
यः पठेत्प्रयतो नित्यं त्रिसन्ध्यं श्रद्धयान्वितः।
दैवी कला भवेत्तस्य त्रैलोक्येपपराजितः,
जीवेद् वर्षशतं साग्रमपमृत्युविवर्जितः।
नश्यन्ति व्याधयः सर्वे लूताविस्फोटकादयः,
स्थावरं जङ्गमं वापि कृत्रिमं चापि यद्विषम्।
आभिचाराणि सर्वाणि मन्त्रयन्त्राणि भूतले,
भूचराः खेचराश्चैव जलजाश्चोपदेशिकाः ।
सहजाः कुलजा मालाः शाकिनी डाकिनी तथा,
अन्तरिक्षचरा घोरा डाकिन्यश्च महाबलाः।
ग्रहभूतपिशाचाश्च यक्षगन्धर्वराक्षसाः,
ब्रह्मराक्षसवेतालाः कूष्माण्डा भैरवादयः।
नश्यन्ति दर्शनात्तस्य कवचे हृदि संस्थिते,
मानोन्नतिर्भवेद् राज्ञस्तेजोवृद्धिकरं परम्।
यशसा वर्धते सोऽपि कीर्तिमण्डितभूतले,
जपेत्सप्तशतीं चण्डीं कृत्वा तु कवचं पुरा।
यावद्भूमण्डलं धत्ते सशैलवनकाननम्,
तावत्तिष्ठति मेदिन्यां संततिः पुत्रपौत्रिकी।
देहान्ते परमं स्थानं यत्सुरैरपि दुर्लभम्,
प्राप्नोति पुरुषो नित्यं महामायाप्रसादतः।
लभते परमं रुपं शिवेन सह मोदते
॥ॐ॥
इति देव्याः कवचं सम्पूर्णम्
इसका पाठ द्वारा आप संकटमुक्त की प्राप्ति कर सकते है। आप Durga Saptashati Mantra, Durga Stotram और Durga Chalisa Paath करके भी अपने जीवन में सकारात्मकता का संचार कर सकते है।
Durga Raksha Kavach की विधि
कवच का पाठ करने की विधि को श्रद्धा और पूर्ण ध्यान से करना चाहिए, ताकि इसके सभी लाभ प्राप्त किए जा सकें। यहाँ इस पाठ की विधि का विस्तार से वर्णन किया गया है-
- पवित्रता: पाठ करने से पहले शरीर और मन को शुद्ध करना जरूरी है, इसलिए स्नान करके शुद्ध वस्त्र पहनें और पूजा के लिए एक शुद्ध स्थान चुनें। घर में किसी शांत स्थान पर बैठें, जहाँ आप बिना किसी विघ्न के ध्यान केंद्रित कर सकें।
- पूजा की तैयारी: पूजा स्थल पर माँ दुर्गा की प्रतिमा या चित्र को विधिपूर्वक स्थापित करें। यदि संभव हो तो पूजा में फूल, दीपक, अगरबत्ती, और मिठाई का उपयोग करें। एक थाली में कच्चे तेल का दीपक, पानी, और ताजे फूल रखें।
कावच का पाठ आरंभ करने से पहले माँ दुर्गा के चरणों में श्रद्धा से प्रणाम करें। - पाठ: अब दुर्गा कवच के श्लोकों का जाप शुरू करें। यह कवच कुल 18 श्लोकों का होता है, जिन्हें एक-एक करके उच्चारण करें।
इन श्लोकों का उच्चारण शुद्ध और स्पष्ट रूप से करें। किसी श्लोक को छोड़ने से कवच का पूरा लाभ नहीं मिलता।
ध्यान रहे कि प्रत्येक श्लोक के बाद संक्षिप्त रूप से माँ दुर्गा का धन्यवाद और आशीर्वाद मांगे। इस दौरान मानसिक एकाग्रता बनाए रखें। - जप संख्या: इसका जाप एक बार में 108 बार किया जाता है। यदि आपके पास समय कम है, तो आप 11, 21, या 51 बार भी कवच का जाप कर सकते हैं।
- आरती: पाठ के बाद दुर्गा देवी आरती करें। यह आपके पाठ को पूर्णता प्रदान करता है।
- जाप समाप्ति: जब आपने सभी श्लोकों का जाप समाप्त कर लिया हो, तो अंत में माँ दुर्गा से आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए उन्हें धन्यवाद दें और शांति के लिए प्रार्थना करें।
- प्रसाद चढ़ाना: कवच पाठ समाप्त करने के बाद माँ दुर्गा को मिठाई या फल चढ़ाएं। इस प्रसाद को घर के सभी सदस्यों को वितरित करें और स्वयं भी ग्रहण करें। इसे घर में सुख, समृद्धि और शांति का वास करने का प्रतीक माना जाता है।
- नियमित पाठ: कवच के लाभों को अनुभव करने के लिए इसे नियमित रूप से पढ़ना बेहतर है।
कवच के लाभ
शारीरिक सुरक्षा: कवच का पाठ शारीरिक सुरक्षा प्रदान करता है। यह व्यक्ति को दुर्घटनाओं, बीमारी और शारीरिक कष्टों से बचाता है।
मानसिक शांति: यह व्यक्ति के मन को शांति और संतुलन प्रदान करता है, जिससे तनाव, चिंता और मानसिक उलझनों से मुक्ति मिलती है। यह कवच मानसिक बल और स्थिरता बढ़ाता है।
आर्थिक सुरक्षा: कवच से सामाजिक और आर्थिक सुरक्षा मिलती है, जिससे वह आर्थिक समस्याओं और सामाजिक संघर्षों से बच सकता है।
शत्रुओं से रक्षा: यह कावच शत्रुओं और बुरी शक्तियों से सुरक्षा प्रदान करता है। इसके जाप से व्यक्ति के जीवन में आने वाली नकारात्मक शक्तियाँ और शत्रुओं का प्रभाव कम होता है।
आध्यात्मिक उन्नति: यह पाठ व्यक्ति को आत्म-ज्ञान की ओर मार्गदर्शन करता है और उसकी आध्यात्मिक यात्रा को सहज और प्रभावशाली बनाता है।
रोगों से मुक्ति: यह कवच शारीरिक और मानसिक रोगों से मुक्ति दिलाने में सहायक होता है। इसके जाप से व्यक्ति को शारीरिक पीड़ाओं और मानसिक तनाव से राहत मिलती है।
शक्ति में वृद्धि: कवच के पाठ से भक्त की आध्यात्मिक शक्ति में वृद्धि होती है। यह व्यक्ति को आत्मविश्वास और साहस देता है, जिससे वह जीवन में किसी भी कठिनाई का सामना कर सकता है।
नकारात्मकता: यह कवच व्यक्ति के जीवन से भय और नकारात्मकता को दूर करता है। मानसिक डर, शंका और असुरक्षा की भावना को समाप्त करता है, जिससे व्यक्ति का जीवन शांतिपूर्ण बनता है।
समृद्धि: दुर्गा जी के इस कवच के जाप से व्यक्ति के जीवन में समृद्धि और सुख-शांति का वास होता है। यह जीवन में धन, सुख, और शांति के प्रवाह को बढ़ाता है, जिससे व्यक्ति का जीवन समृद्ध हो जाता है।
आत्म-संयम: यह पाठ व्यक्ति को आत्म-संयम और मानसिक संतुलन सिखाता है। इसके जाप से व्यक्ति के भीतर संयम और शांति का संचार होता है, जो जीवन को संतुलित और व्यवस्थित बनाने में मदद करता है।
FAQ
दुर्गा कवच का जाप कितनी बार करना चाहिए?
इसे नियमित रूप से भी पढ़ा जा सकता है लेकिन आप इसे सप्ताह में केवल एक या दो बार भी पढ़ सकते हैं, विशेष रूप से शुक्रवार या नवरात्रि के दौरान इसका पाठ शुभ माना जाता है।
क्या कवच का जाप महिलाओं के लिए भी किया जा सकता है?
हाँ, इसका जाप पुरुषों और महिलाओं दोनों द्वारा किया जा सकता है। यह किसी भी व्यक्ति के लिए समान रूप से लाभकारी है, बिना किसी भेदभाव के।
क्या दुर्गा कवच का जाप अकेले किया जा सकता है?
हाँ, दुर्गा कवच का जाप अकेले भी किया जा सकता है, लेकिन इसे पूरी श्रद्धा और विश्वास के साथ करना चाहिए।
I am Shri Nath Pandey and I am a priest in a temple, which is located in Varanasi. I have been spending my life worshiping for the last 6 years. I have dedicated my soul completely to the service of God. Our website is a source related to Aarti, Stotra, Chalisa, Mantra, Festivals, Vrat, Rituals, and Sanatan Lifestyle. View Profile