दुर्गा कवच लिरिक्स एक अत्यंत प्रभावशाली और पवित्र मंत्र है, जिसे देवी दुर्गा की शक्ति की रक्षा करने वाले कवच के रूप में माना जाता है। यह Durga Kavach Lyrics देवी दुर्गा के दिव्य रूप और उनके संरक्षण की शक्ति का आह्वान करता है। हिन्दू धर्म में दुर्गा कवच को विशेष रूप से रक्षात्मक मंत्र के रूप में पूजा जाता है, जो शारीरिक और मानसिक सुरक्षा प्रदान करता है।
इसे पढ़ने से न केवल बाहरी आक्रमणों से बचाव होता है, बल्कि आंतरिक बुराइयों, नकारात्मक ऊर्जाओं और मनोबल की कमजोरी से भी मुक्ति मिलती है। आप चाहें तो दुर्गा कवच PDF फॉर्मेट में भी डाउनलोड कर सुरक्षित रख सकते है इस लिरिक्स में कुल 12 श्लोक होते हैं, जो विशेष रूप से भक्त की सुरक्षा, समृद्धि और सुख-शांति के लिए होते हैं। इसे पढ़ने से व्यक्ति की सभी परेशानियाँ, दरिद्रता और विपत्तियाँ दूर होती हैं और जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
Durga Kavach Lyrics
॥अथ श्री देव्याः कवचम्॥
ॐ अस्य श्रीचण्डीकवचस्य ब्रह्मा ऋषिः, अनुष्टुप् छन्दः
चामुण्डा देवता, अङ्गन्यासोक्तमातरो बीजम्, दिग्बन्धदेवतास्तत्त्वम्
श्रीजगदम्बाप्रीत्यर्थे सप्तशतीपाठाङ्गत्वेन जपे विनियोगः
॥ॐ नमश्चण्डिकायै॥
मार्कण्डेय उवाच
ॐ यद्गुह्यं परमं लोके सर्वरक्षाकरं नृणाम्
यन्न कस्यचिदाख्यातं तन्मे ब्रूहि पितामह॥
ब्रह्मोवाच
अस्ति गुह्यतमं विप्र सर्वभूतोपकारकम्
देव्यास्तु कवचं पुण्यं तच्छृणुष्व महामुने॥
प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी
तृतीयं चन्द्रघण्टेति कूष्माण्डेति चतुर्थकम्॥
पञ्चमं स्कन्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च
सप्तमं कालरात्रीति महागौरीति चाष्टमम्॥
नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गाः प्रकीर्तिताः
उक्तान्येतानि नामानि ब्रह्मणैव महात्मना॥
अग्निना दह्यमानस्तु शत्रुमध्ये गतो रणे
विषमे दुर्गमे चैव भयार्ताः शरणं गताः॥
न तेषां जायते किंचित शुभं रणसंकटे
नापदं तस्य पश्यामि शोकदुःखभयं न हि॥
यैस्तु भक्त्या स्मृता नूनं तेषां वृद्धिः प्रजायते
ये त्वां स्मरन्ति देवेशि रक्षसे तान्न संशयः॥
प्रेतसंस्था तु चामुण्डा वाराही महिषासना
ऐन्द्री गजसमारुढा वैष्णवी गरुडासना॥
माहेश्वरी वृषारुढा कौमारी शिखिवाहना
लक्ष्मीः पद्मासना देवी पद्महस्ता हरिप्रिया॥
श्वेतरुपधरा देवी ईश्वरी वृषवाहना
ब्राह्मी हंससमारुढा सर्वाभरणभूषिता॥
इत्येता मातरः सर्वाः सर्वयोगसमन्विताः
नानाभरणशोभाढ्या नानारत्नोपशोभिताः॥
दृश्यन्ते रथमारुढा देव्यः क्रोधसमाकुलाः
शङ्खं चक्रं गदां शक्तिं हलं च मुसलायुधम्॥
खेटकं तोमरं चैव परशुं पाशमेव च
कुन्तायुधं त्रिशूलं च शार्ङ्गमायुधमुत्तमम्॥
दैत्यानां देहनाशाय भक्तानामभयाय च
धारयन्त्यायुधानीत्थं देवानां च हिताय वै॥
नमस्तेऽस्तु महारौद्रे महाघोरपराक्रमे
महाबले महोत्साहे महाभयविनाशिनि॥
त्राहि मां देवि दुष्प्रेक्ष्ये शत्रूणां भयवर्धिनि
प्राच्यां रक्षतु मामैन्द्री आग्नेय्यामग्निदेवता॥
दक्षिणेऽवतु वाराही नैर्ऋत्यां खड्गधारिणी
प्रतीच्यां वारुणी रक्षेद् वायव्यां मृगवाहिनी॥
उदीच्यां पातु कौमारी ऐशान्यां शूलधारिणी
ऊर्ध्वं ब्रह्माणि मे रक्षेदधस्ताद् वैष्णवी तथा॥
एवं दश दिशो रक्षेच्चामुण्डा शववाहना
जया मे चाग्रतः पातु विजया पातु पृष्ठतः॥
अजिता वामपार्श्वे तु दक्षिणे चापराजिता
शिखामुद्योतिनि रक्षेदुमा मूर्ध्नि व्यवस्थिता॥
मालाधरी ललाटे च भ्रुवौ रक्षेद् यशस्विनी
त्रिनेत्रा च भ्रुवोर्मध्ये यमघण्टा च नासिके॥
शङ्खिनी चक्षुषोर्मध्ये श्रोत्रयोर्द्वारवासिनी
कपोलौ कालिका रक्षेत्कर्णमूले तु शांकरी॥
नासिकायां सुगन्धा च उत्तरोष्ठे च चर्चिका
अधरे चामृतकला जिह्वायां च सरस्वती॥
दन्तान् रक्षतु कौमारी कण्ठदेशे तु चण्डिका
घण्टिकां चित्रघण्टा च महामाया च तालुके॥
कामाक्षी चिबुकं रक्षेद् वाचं मे सर्वमङ्गला
ग्रीवायां भद्रकाली च पृष्ठवंशे धनुर्धरी॥
नीलग्रीवा बहिःकण्ठे नलिकां नलकूबरी
स्कन्धयोः खङ्गिनी रक्षेद् बाहू मे वज्रधारिणी॥
हस्तयोर्दण्डिनी रक्षेदम्बिका चाङ्गुलीषु च
नखाञ्छूलेश्वरी रक्षेत्कुक्षौ रक्षेत्कुलेश्वरी॥
स्तनौ रक्षेन्महादेवी मनः शोकविनाशिनी
हृदये ललिता देवी उदरे शूलधारिणी॥
नाभौ च कामिनी रक्षेद् गुह्यं गुह्येश्वरी तथा
पूतना कामिका मेढ्रं गुदे महिषवाहिनी॥
कट्यां भगवती रक्षेज्जानुनी विन्ध्यवासिनी
जङ्घे महाबला रक्षेत्सर्वकामप्रदायिनी॥
गुल्फयोर्नारसिंही च पादपृष्ठे तु तैजसी
पादाङ्गुलीषु श्री रक्षेत्पादाधस्तलवासिनी॥
नखान् दंष्ट्राकराली च केशांश्चैवोर्ध्वकेशिनी
रोमकूपेषु कौबेरी त्वचं वागीश्वरी तथा॥
रक्तमज्जावसामांसान्यस्थिमेदांसि पार्वती
अन्त्राणि कालरात्रिश्च पित्तं च मुकुटेश्वरी॥
पद्मावती पद्मकोशे कफे चूडामणिस्तथा
ज्वालामुखी नखज्वालामभेद्या सर्वसंधिषु॥
शुक्रं ब्रह्माणि मे रक्षेच्छायां छत्रेश्वरी तथा
अहंकारं मनो बुद्धिं रक्षेन्मे धर्मधारिणी॥
प्राणापानौ तथा व्यानमुदानं च समानकम्
वज्रहस्ता च मे रक्षेत्प्राणं कल्याणशोभना॥
रसे रुपे च गन्धे च शब्दे स्पर्शे च योगिनी
सत्त्वं रजस्तमश्चैव रक्षेन्नारायणी सदा॥
आयू रक्षतु वाराही धर्मं रक्षतु वैष्णवी
यशः कीर्तिं च लक्ष्मीं च धनं विद्यां च चक्रिणी॥
गोत्रमिन्द्राणि मे रक्षेत्पशून्मे रक्ष चण्डिके
पुत्रान् रक्षेन्महालक्ष्मीर्भार्यां रक्षतु भैरवी॥
पन्थानं सुपथा रक्षेन्मार्गं क्षेमकरी तथा
राजद्वारे महालक्ष्मीर्विजया सर्वतः स्थिता॥
रक्षाहीनं तु यत्स्थानं वर्जितं कवचेन तु
तत्सर्वं रक्ष मे देवि जयन्ती पापनाशिनी॥
पदमेकं न गच्छेत्तु यदीच्छेच्छुभमात्मनः
कवचेनावृतो नित्यं यत्र यत्रैव गच्छति॥
तत्र तत्रार्थलाभश्च विजयः सार्वकामिकः
यं यं चिन्तयते कामं तं तं प्राप्नोति निश्चितम्
परमैश्वर्यमतुलं प्राप्स्यते भूतले पुमान्॥
निर्भयो जायते मर्त्यः संग्रामेष्वपराजितः
त्रैलोक्ये तु भवेत्पूज्यः कवचेनावृतः पुमान्॥
इदं तु देव्याः कवचं देवानामपि दुर्लभम्
यः पठेत्प्रयतो नित्यं त्रिसन्ध्यं श्रद्धयान्वितः॥
दैवी कला भवेत्तस्य त्रैलोक्येष्वपराजितः
जीवेद् वर्षशतं साग्रमपमृत्युविवर्जितः॥
नश्यन्ति व्याधयः सर्वे लूताविस्फोटकादयः
स्थावरं जङ्गमं चैव कृत्रिमं चापि यद्विषम्॥
अभिचाराणि सर्वाणि मन्त्रयन्त्राणि भूतले
भूचराः खेचराश्चैव जलजाश्चोपदेशिकाः॥
सहजा कुलजा माला डाकिनी शाकिनी तथा
अन्तरिक्षचरा घोरा डाकिन्यश्च महाबलाः॥
ग्रहभूतपिशाचाश्च यक्षगन्धर्वराक्षसाः
ब्रह्मराक्षसवेतालाः कूष्माण्डा भैरवादयः॥
नश्यन्ति दर्शनात्तस्य कवचे हृदि संस्थिते
मानोन्नतिर्भवेद् राज्ञस्तेजोवृद्धिकरं परम्॥
यशसा वर्धते सोऽपि कीर्तिमण्डितभूतले
जपेत्सप्तशतीं चण्डीं कृत्वा तु कवचं पुरा॥
यावद्भूमण्डलं धत्ते सशैलवनकाननम्
तावत्तिष्ठति मेदिन्यां संततिः पुत्रपौत्रिकी॥
देहान्ते परमं स्थानं यत्सुरैरपि दुर्लभम्
प्राप्नोति पुरुषो नित्यं महामायाप्रसादतः॥
लभते परमं रुपं शिवेन सह मोदते॥ॐ॥
॥इति देव्याः कवचं सम्पूर्णम्॥
दुर्गा कवच का पाठ करने से व्यक्ति की आध्यात्मिक स्थिति मजबूत होती है। इसके अलावा Durga Raksha Kavach और Durga Saptashati Kavach का पाठ भी आपके लिए अत्यंत लाभदायक हो सकता है।
दुर्गा कवच लिरिक्स के पाठ की मुख्य विधि
इस पाठ को करने की विधि एक महत्वपूर्ण धार्मिक क्रिया है, जिसे सही तरीके से किया जाना चाहिए ताकि देवी दुर्गा की कृपा प्राप्त हो सके। यह विधि न केवल भक्त की शारीरिक सुरक्षा करती है, बल्कि मानसिक और आध्यात्मिक उन्नति के लिए भी सहायक है। यहाँ दुर्गा कवच पाठ की सही विधि दी गई है:
- शुद्धता और तयारी: सर्वप्रथम प्रातः स्नान करके अपने शरीर और मन को शुद्ध करें एवं स्वच्छ वस्त्र पहनें। तत्पश्चात एक शांत स्थान पर बैठें, जहाँ ध्यान केंद्रित किया जा सके और कोई विघ्न न आए।
- मूर्ति स्थापना: पूजा स्थल पर देवी दुर्गा का चित्र या मूर्ति रखें और पूजा स्थल को शुद्ध करने के लिए गंगाजल छिड़कें और दीपक जलाएं।
- संकल्प लें: दुर्गा कवच का पाठ करते समय पहले देवी दुर्गा के सामने संकल्प लें कि आप यह पाठ सच्चे मन से और श्रद्धा के साथ करेंगे। संकल्प में यह भी कहें कि आप देवी से अपनी शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक सुरक्षा की प्रार्थना कर रहे हैं।
- मानसिक स्थिति: पाठ शुरू करने से पहले मन को एकाग्र और शांत करें। किसी भी प्रकार की मानसिक व्यस्तता से दूर रहें।
ध्यान केंद्रित करने के लिए कुछ देर दीपक या दीपमालिका को देखें और फिर अपनी आँखें बंद करके मन में देवी की तस्वीर या रूप का ध्यान करें। - पाठ करें: अब दुर्गा कवच के श्लोकों का शुद्ध उच्चारण करें। हर श्लोक को पूरी श्रद्धा और ध्यान के साथ पढ़ें। आप इसे अकेले या परिवार के साथ सामूहिक रूप से भी पढ़ सकते हैं।
- समर्पण और प्रार्थना: पाठ समाप्त करने के बाद देवी दुर्गा के समक्ष अपने हाथ जोड़कर धन्यवाद दें और उनकी कृपा के लिए आभार प्रकट करें।
उनसे अपने जीवन के संकटों को दूर करने और आशीर्वाद देने की प्रार्थना करें। - भोग अर्पित करें: देवी को कुछ फल, मिठाई या फूल अर्पित करें। यह अर्पण श्रद्धा का प्रतीक है और देवी दुर्गा के प्रति आपकी भक्ति को दर्शाता है।
- पाठ समाप्ति: पाठ के बाद तुरंत उठकर किसी अन्य कार्य में न लग जाएं। कुछ क्षण शांति में बैठें और देवी दुर्गा का आशीर्वाद महसूस करें। यह आपकी मानसिक स्थिति को स्थिर बनाए रखने में मदद करता है।
- नियमितता: दुर्गा कवच का पाठ यदि नियमित रूप से किया जाए तो उसका प्रभाव और भी अधिक शक्तिशाली होता है। आप इसे नवरात्रि, शुक्रवार या मंगलवार जैसे विशेष दिनों में नियमित रूप से पढ़ सकते हैं।
इस लिरिक्स के पाठ से होने वाले मुख्य लाभ
दुर्गा कवच का पाठ करने से व्यक्ति को अनेक प्रकार के लाभ प्राप्त होते हैं, जो उसके जीवन को सकारात्मक दिशा में बदलने में सहायक होते हैं। यहाँ दुर्गा कवच के कुछ प्रमुख लाभ बताए गए हैं:
- शारीरिक सुरक्षा: दुर्गा कवच का सबसे महत्वपूर्ण लाभ यह है कि यह व्यक्ति को शारीरिक सुरक्षा प्रदान करता है। यह व्यक्ति को किसी भी प्रकार की शारीरिक हानि, दुर्घटना, और बुरी नज़र से बचाता है।
- तनावमुक्ति: दुर्गा कवच का नियमित पाठ मानसिक शांति प्रदान करता है। यह मानसिक तनाव, चिंता, और अवसाद से राहत दिलाने में मदद करता है। जब मन शांत और स्थिर होता है, तो जीवन की समस्याओं का समाधान भी सहज हो जाता है।
- आध्यात्मिक उन्नति: यह भक्त को देवी दुर्गा की शक्ति और कृपा से जुड़ने का अवसर देता है, जिससे उसकी आध्यात्मिक उन्नति होती है और आत्मज्ञान की प्राप्ति होती है।
- विपत्तियों से मुक्ति: यह कवच विभिन्न प्रकार की विपत्तियों और कठिनाइयों से बचाव करता है। चाहे वह आर्थिक संकट हो, पारिवारिक कलह हो, या जीवन में कोई और समस्या हो, दुर्गा कवच पाठ करने से यह सब दूर होता है। यह व्यक्ति को शत्रुओं और नकारात्मक शक्तियों से भी बचाता है।
- नकारात्मकता: दुर्गा कवच नकारात्मक ऊर्जा, बुरी नजर, और अशुभ प्रभावों से रक्षा करता है। यह व्यक्ति के चारों ओर एक सकारात्मक ऊर्जा का कवच बनाता है, जिससे जीवन में सुख, शांति और समृद्धि आती है।
- संकटों से मुक्ति: जब जीवन में कठिनाइयाँ और संकट आते हैं, तो दुर्गा कवच का पाठ व्यक्ति को इनसे उबारने में मदद करता है। यह विशेष रूप से उन लोगों के लिए फायदेमंद होता है, जो किसी गंभीर संकट या भयावह परिस्थिति में फंसे होते हैं।
- सफलता और समृद्धि: दुर्गा कवच का नियमित पाठ करने से व्यक्ति के जीवन में समृद्धि और सफलता आती है। यह व्यक्ति को अच्छे अवसरों की प्राप्ति में मदद करता है और उसके कामों में सफलता प्राप्त होती है।
- साहस में वृद्धि: यह कवच व्यक्ति को मानसिक और शारीरिक शक्ति प्रदान करता है। इसका पाठ व्यक्ति को साहस, आत्मविश्वास और धैर्य में वृद्धि करता है, जिससे वह जीवन की कठिनाइयों का सामना कर सकता है।
दुर्गा कवच केवल एक मंत्र नहीं, बल्कि यह एक शक्तिशाली साधना है, जो जीवन को हर दृष्टि से समृद्ध और सुरक्षित बनाती है। देवी दुर्गा की कृपा से यह कवच भक्त को सभी प्रकार की बाधाओं से मुक्त कराता है और उसे हर क्षेत्र में सफलता प्राप्त करने की शक्ति देता है।
FAQ
दुर्गा कवच का पाठ कब करना चाहिए?
दुर्गा कवच का पाठ सुबह या शाम के समय, स्नान के बाद और शुद्ध मन से करना सबसे शुभ माना जाता है। नवरात्रि के दिनों में इसका विशेष महत्व है।
क्या दुर्गा कवच को बिना कंठस्थ किए पढ़ सकते हैं?
हां, दुर्गा कवच को बिना कंठस्थ किए भी पढ़ा जा सकता है। यदि आप इसे सही उच्चारण के साथ पढ़ते हैं, तो यह समान रूप से प्रभावी होता है।
क्या दुर्गा कवच का पाठ सभी कर सकते हैं?
जी हां, दुर्गा कवच का पाठ कोई भी व्यक्ति कर सकता है, चाहे वह किसी भी आयु, जाति, या लिंग का हो। यह हर भक्त के लिए समान रूप से फलदायी है।
दुर्गा कवच के मूल स्रोत क्या हैं?
दुर्गा कवच “मार्कण्डेय पुराण” के देवी महात्म्य से लिया गया है, जो शक्ति की महिमा और उनकी कृपा का वर्णन करता है।