मैंने भोग सजायो है थाल मईया कर लिजो स्वीकार

भक्ति में जब प्रेम और समर्पण जुड़ जाता है, तो वह सिर्फ पूजा नहीं, आत्मा की सच्ची साधना बन जाती है। मैंने भोग सजायो है थाल, मईया कर लिजो स्वीकार भजन भक्त की इसी श्रद्धा को प्रकट करता है। जब कोई भक्त माँ के चरणों में प्रेम और भक्ति से भोग अर्पित करता है, तो वह केवल अन्न नहीं, बल्कि अपनी आस्था, श्रद्धा और प्रेम भी माँ को समर्पित करता है।

Maine Bhog Sajayo Hai Thaal Maiya Kar Lijo Swikar

मैंने भोग सजायो है थाल,
मईया कर लिजो स्वीकार,
मईया कर लिजो,
माँ कर लिजो,
मैंने भोग सजायों है थाल,
मईया कर लिजो स्वीकार।।

शबरी के बैर समझ करके,
तुम पा लिजो यो चखकर के,
ये है मीठा की भरमार,
मईया कर लिजो स्वीकार।
मैंने भोग सजायों है थाल,
मईया कर लिजो स्वीकार।।

जिन भक्तों के घर जाकर के,
उन्हें धन्य किए माँ पा करके,
वैसा ही समझ सरकार,
मईया कर लिजो स्वीकार।
मैंने भोग सजायों है थाल,
मईया कर लिजो स्वीकार।।

उन भक्तों सा नही बन पाया,
ना वैसा भाव जगा पाया,
यही कमी रही हर बार,
मईया कर लिजो स्वीकार।
मैंने भोग सजायों है थाल,
मईया कर लिजो स्वीकार।।

जो तुम पाओ वह ज्ञात नही,
इतनी मेरी औकात नही,
मैं आँसु बहाउँ धार,
मईया कर लिजो स्वीकार।
मैंने भोग सजायों है थाल,
मईया कर लिजो स्वीकार।।

मैंने भोग सजायो है थाल,
मईया कर लिजो स्वीकार,
मईया कर लिजो,
माँ कर लिजो,
मैंने भोग सजायों है थाल,
मईया कर लिजो स्वीकार।।

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