कुकड़ कू कुकड कू बोल रहो मुर्गा

भक्ति के मार्ग पर चलते हुए माँ दुर्गा के दरबार में हर चीज़ का अपना महत्व होता है, चाहे वह भक्त हो या फिर कोई संकेत देने वाला पक्षी-पशु। कुकड़ कू कुकड़ कू बोल रहो मुर्गा भजन में भक्तिपूर्ण भावनाओं के साथ एक रोचक अंदाज देखने को मिलता है। यह भजन हमें माँ के प्रति प्रेम और भक्ति के साथ-साथ एक अनोखी ऊर्जा भी देता है, जिससे भक्तजन और अधिक उत्साह से माँ की भक्ति में लीन हो सकें।

Kukad Ku Kukad Ku Bol Rahe Murga

दोहा –
जीवन तपती धूप है, तू शीतल जल धार,
थपकी लोरी में छुपा है, माँ का सारा प्यार।

कुकड़ कू कुकड कू, बोल रहो मुर्गा,
हो गवो सबेरा, अब जाग माई दुर्गा।1।

मुर्गा की बांग सुन, उठ गई चिडैया,
चहचहा के हमसे, ओ कह रही चिड़ैया,
हम तो उठ गए है, तुम भी उठो माई दुर्गा,
हो गवो सबेरा, अब जाग माई दुर्गा।2।

ब्रह्म मुहरत की, शुभ घड़ी है प्यारी,
पूजा की थाल लिए, आया है पुजारी,
ब्रह्म घड़ी चुके ना, सुनो माई दुर्गा,
हो गवो सबेरा, अब जाग माई दुर्गा।3।

जल धार में हम तो, कब से है ठाडे,
भोर हो गई पंडा, खोल दे किवाड़े,
दास सजन जगाता है, सुनो माई दुर्गा,
हो गवो सबेरा, अब जाग माई दुर्गा।4।

आरती करे तोरी, हम यहां सकारे,
ढोल शंख लेके हम, आए तेरे द्वारे,
शंख ध्वनि सुनके, अब जाग माई दुर्गा,
हो गवो सबेरा, अब जाग माई दुर्गा।5।

कुकड़कू कुकडकू, बोल रहो मुर्गा,
हो गवो सबेरा, अब जाग माई दुर्गा।6।

“कुकड़ कू कुकड़ कू बोल रहो मुर्गा” भजन माँ दुर्गा के दरबार की जीवंतता और भक्ति के उल्लास को दर्शाता है। माँ के चरणों में सच्चे मन से गाया गया हर भजन उन्हें प्रिय होता है, फिर चाहे वह किसी भी रूप में हो। भक्ति का यह आनंद “चरण में बिठाये रखना चुनड़ में छिपाये रखना” भजन में भी देखने को मिलता है। माँ की कृपा सदा बनी रहे, जय माता दी! ????????

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