कभी फुर्सत हो तो जगदंबे निर्धन के घर भी आ जाना

भक्त का प्रेम और भक्ति माँ जगदंबे को हर हाल में पुकारता है, फिर चाहे वह वैभवशाली महलों में हो या किसी निर्धन के छोटे से घर में। कभी फुर्सत हो तो जगदंबे निर्धन के घर भी आ जाना भजन में भक्त की विनम्रता और माँ के प्रति उसकी अनन्य श्रद्धा झलकती है। यह भजन माँ के स्नेह और करुणा को दर्शाता है, जो हर भक्त के मन में यह विश्वास जगाता है कि माँ किसी के भेदभाव में नहीं बंधती, बल्कि प्रेम और भक्ति को ही अपना सच्चा आह्वान मानती हैं।

Kabhi Phusrt Ho To Jagdambe Nirdhan Ke Ghar Bhi Aa Jana

कभी फुर्सत हो तो जगदंबे,
निर्धन के घर भी आ जाना,
जो रूखा सूखा दिया हमें,
कभी उसका भोग लगा जाना,
कभी फुर्सत हों तो जगदंबे,
निर्धन के घर भी आ जाना।1।

ना छत्र बना सका सोने का,
ना चुनरी घर मेरे तारों जड़ी,
ना पेड़े बर्फी मेवा है माँ,
बस श्रद्धा है नैन बिछाए खड़ी,
इस श्रद्धा की रखलो लाज हे माँ,
इस अर्जी को ना ठुकरा जाना,
जो रूखा सूखा दिया हमें,
कभी उसका भोग लगा जाना,
कभी फुर्सत हों तो जगदंबे,
निर्धन के घर भी आ जाना।2।

जिस घर के दीये में तेल नहीं,
वहाँ ज्योत जलाऊं मैं कैसे,
मेरा खुद ही बिछौना धरती पर,
तेरी चौकी सजाऊं मैं कैसे,
जहाँ मैं बैठा वहीं बैठ के माँ,
बच्चों का दिल बहला जाना,
जो रूखा सूखा दिया हमें,
कभी उसका भोग लगा जाना,
कभी फुर्सत हों तो जगदंबे,
निर्धन के घर भी आ जाना।3।

तू भाग्य बनाने वाली है,
माँ मैं तकदीर का मारा हूँ,
हे दाती संभालो भिखारी को,
आखिर तेरी आँख का तारा हूँ,
मैं दोषी तू निर्दोष है माँ,
मेरे दोषों को तू भुला जाना,
जो रूखा सूखा दिया हमें,
कभी उसका भोग लगा जाना,
कभी फुर्सत हों तो जगदंबे,
निर्धन के घर भी आ जाना।4।

कभी फुर्सत हो तो जगदंबे,
निर्धन के घर भी आ जाना,
जो रूखा सूखा दिया हमें,
कभी उसका भोग लगा जाना,
कभी फुर्सत हों तो जगदंबे,
निर्धन के घर भी आ जाना।5।

माँ जगदंबे के चरणों में सच्ची भक्ति और प्रेम हो तो वे अवश्य पधारती हैं, चाहे भक्त किसी भी परिस्थिति में क्यों न हो। “कभी फुर्सत हो तो जगदंबे निर्धन के घर भी आ जाना” भजन माँ की असीम कृपा और स्नेह का प्रतीक है। यदि यह भजन आपको माँ की भक्ति में डुबो देता है, तो “सानू खुशी मैया जी तुहाडे आवन दी राहवा विच फूल बरसावा मैं” भजन भी अवश्य सुनें, जो माँ के स्वागत की भव्यता और भक्तों के आनंद को प्रकट करता है।

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