बृहस्पति अङ्गिरस ऋषि कवच: गुरु की कृपा पाने का दिव्य उपाय

बृहस्पति अङ्गिरस ऋषि कवच हमारे हिन्दू धर्म एक अत्यंत प्रभावशाली स्तोत्र है, जिसे पढ़ने से जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है और गुरु ग्रह के अशुभ प्रभावों को कम किया जा सकता है। Brihaspati Angiras Rishi Kavach न केवल बृहस्पति ग्रह की कृपा को आकर्षित करता है, बल्कि जीवन में बाधाओं को दूर कर ज्ञान और सौभाग्य की प्राप्ति भी कराता है। इस पाठ के लिरिक्स कुछ इस प्रकार से है-

Brihaspati Angiras Rishi Kavach

ॐ श्री गुरवे नमः

बृहस्पतिर्विश्वरूपश्च पातु मे सर्वदा तनुम्
सर्वदुःखभयघ्नश्च सर्वरोगनिवारणः ॥1॥

शीर्षं पातु मे देवो ललाटं पातु मे गुरुः
नेत्रे ज्ञानमयो पातु कर्णौ श्रुति प्रदायकः ॥2॥

नासिकां पातु मे सौम्यः, मुखं मे पातु वाच्पतिः
जिह्वां मे पातु वेदज्ञो, कण्ठं मे पातु वेदवित् ॥3॥

भुजौ मे पातु धिष्ण्यश्च, स्कन्धौ मे च बृहस्पतिः
हृदयं मे पातु सर्वज्ञो, नाभिं मे च सुरार्चितः ॥4॥

कटिं मे पातु वागीशः, ऊरू मे पातु वाचकः
जानुनी मे सुधीः पातु, जंघे मे ज्ञानदोऽवतु ॥5॥

पादौ मे देवगुरुः पातु, सर्वाङ्गं सर्वतो गुरुः
सर्वरोगान् हरेद् दोषान्, सर्वशान्तिं प्रयच्छति ॥6॥

इति बृहस्पति अङ्गिरस ऋषि कवचं सम्पूर्णम्

Brihaspati Angiras Rishi Kavachॐ श्री गुरवे नमः ।बृहस्पतिर्विश्वरूपश्च पातु मे सर्वदा तनुम्॥
सर्वदुःखभयघ्नश्च सर्वरोगनिवारणः ॥1॥शीर्षं पातु मे देवो ललाटं पातु मे गुरुः॥
नेत्रे ज्ञानमयो पातु कर्णौ श्रुति प्रदायकः ॥2॥नासिकां पातु मे सौम्यः, मुखं मे पातु वाच्पतिः॥
जिह्वां मे पातु वेदज्ञो, कण्ठं मे पातु वेदवित् ॥3॥भुजौ मे पातु धिष्ण्यश्च, स्कन्धौ मे च बृहस्पतिः॥
हृदयं मे पातु सर्वज्ञो, नाभिं मे च सुरार्चितः ॥4॥कटिं मे पातु वागीशः, ऊरू मे पातु वाचकः॥
जानुनी मे सुधीः पातु, जंघे मे ज्ञानदोऽवतु ॥5॥पादौ मे देवगुरुः पातु, सर्वाङ्गं सर्वतो गुरुः॥
सर्वरोगान् हरेद् दोषान्, सर्वशान्तिं प्रयच्छति ॥6॥इति बृहस्पति अङ्गिरस ऋषि कवचं सम्पूर्णम्

यदि आप अपने जीवन में सफलता, शिक्षा, और सौभाग्य प्राप्त करना चाहते हैं, तो Brihaspati Angiras Rishi Kavach का नियमित पाठ अवश्य करें। अगर किसी की कुंडली में बृहस्पति कमजोर स्थिति में हो या फिर गुरु दोष का प्रभाव हो, तो इसका पाठ अत्यंत लाभकारी होता है। इसके साथ ही, गुरु ग्रह शांति मंत्र, बृहस्पति बीज मंत्र, और “बृहस्पति गायत्री मंत्र का भी जाप करने से बृहस्पति देव की विशेष कृपा प्राप्त होती है।

इस कवच का पाठ विधि

  1. शुद्धता: इस कवच का पाठ करने के लिए सबसे पहले स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
  2. स्थान का चयन: पूजा करने के लिए घर का कोई शुद्ध स्थान चुनें, जहां शांति और सकारात्मक ऊर्जा बनी रहे। पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठना शुभ माना जाता है।
  3. पूजन सामग्री: पूजा स्थल पर बृहस्पति देव की मूर्ति या फोटो स्थापित करें। पीले रंग का वस्त्र बिछाएं और घी का दीपक जलाएं। हल्दी, चंदन, अक्षत, पीले फूल, और बेसन के लड्डू या चने की दाल का प्रसाद पास में रखें।
  4. आह्वान: सबसे पहले भगवान गणेश का ध्यान करें और फिर बृहस्पति देव का आह्वान करें। उनके चरणों में जल अर्पित करें और तिलक लगाएं। अब पीले फूल अर्पित करते हुए “ॐ बृं बृहस्पतये नमः” मंत्र का जाप करें।
  5. कवच पाठ: अब बृहस्पति अङ्गिरस ऋषि कवच का श्रद्धा और विश्वास के साथ पाठ करें। पाठ के दौरान अपना ध्यान पूर्ण रूप से बृहस्पति देव पर केंद्रित रखें।
  6. जाप संख्या: अगर संभव हो तो पाठ के बाद 108 बार “ॐ ग्रां ग्रीं ग्रौं सः गुरवे नमः” मंत्र का जाप करें।
  7. समापन: पाठ समाप्त होने के बाद, बृहस्पति देव से प्रार्थना करें कि वे अपनी कृपा बनाए रखें। घी का दीपक आरती के रूप में घुमाएं और प्रसाद ग्रहण करें।

इसके नियमित पाठ से व्यक्ति को ज्ञान, समृद्धि और आध्यात्मिक बल प्राप्त होता है। यह गुरु ग्रह के शुभ प्रभाव को बढ़ाने का एक प्रभावशाली माध्यम है।

FAQ

इसका पाठ क्यों किया जाता है?

इस कवच का पाठ किस दिन करना चाहिए?

इसे गुरुवार के दिन करना सबसे शुभ माना जाता है।

इस कवच का पाठ किस भाषा में किया जा सकता है?

क्या इस कवच का पाठ किसी और के लिए किया जा सकता है?

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