गुरु बृहस्पति चालीसा: एक दिव्य महिमा का श्रोत

गुरु बृहस्पति चालीसा भजन गुरु बृहस्पति देव की महिमा और कृपा का गुणगान करता है। बृहस्पति देव को ज्ञान, विद्या, और आशीर्वाद का देवता माना जाता है। यह चालीसा हमें यह समझाने का प्रयास करती है कि बृहस्पति देव का आशीर्वाद हमारे जीवन में सुख, समृद्धि, और सफलता लाता है। जब भी हम Guru Brahaspati Chalisa का पाठ करते हैं, तो हम अपनी शिक्षा, करियर, और व्यक्तिगत जीवन में आंतरिक शक्ति और दिशा प्राप्त करते हैं।

Guru Brahaspati Chalisa

दोहा

प्रन्वाऊ प्रथम गुरु चरण, बुद्धि ज्ञान गुन खान।
श्री गणेश शारद सहित, बसों ह्रदय में आन॥
अज्ञानी मति मंद मैं, हैं गुरुस्वामी सुजान।
दोषों से मैं भरा हुआ हूँ तुम हो कृपा निधान॥

चौपाई

जय नारायण जय निखिलेशवर। विश्व प्रसिद्ध अखिल तंत्रेश्वर।
यंत्र-मंत्र विज्ञानं के ज्ञाता।भारत भू के प्रेम प्रेनता॥
जब जब हुई धरम की हानि। सिद्धाश्रम ने पठए ज्ञानी।
सच्चिदानंद गुरु के प्यारे। सिद्धाश्रम से आप पधारे॥

उच्चकोटि के ऋषि-मुनि स्वेच्छा। ओय करन धरम की रक्षा।
अबकी बार आपकी बारी। त्राहि त्राहि है धरा पुकारी॥
मरुन्धर प्रान्त खरंटिया ग्रामा। मुल्तानचंद पिता कर नामा।
शेषशायी सपने में आये। माता को दर्शन दिखलाए॥

रुपादेवि मातु अति धार्मिक। जनम भयो शुभ इक्कीस तारीख।
जन्म दिवस तिथि शुभ साधक की। पूजा करते आराधक की॥
जन्म वृतन्त सुनायए नवीना। मंत्र नारायण नाम करि दीना।
नाम नारायण भव भय हारी। सिद्ध योगी मानव तन धारी॥

ऋषिवर ब्रह्म तत्व से ऊर्जित। आत्म स्वरुप गुरु गोरवान्वित।
एक बार संग सखा भवन में। करि स्नान लगे चिन्तन में॥
चिन्तन करत समाधि लागी। सुध-बुध हीन भये अनुरागी।
पूर्ण करि संसार की रीती। शंकर जैसे बने गृहस्थी॥

अदभुत संगम प्रभु माया का। अवलोकन है विधि छाया का.
युग-युग से भव बंधन रीती। जंहा नारायण वाही भगवती॥
सांसारिक मन हुए अति ग्लानी। तब हिमगिरी गमन की ठानी।
अठारह वर्ष हिमालय घूमे। सर्व सिद्धिया गुरु पग चूमें॥

त्याग अटल सिद्धाश्रम आसन। करम भूमि आए नारायण।
धरा गगन ब्रह्मण में गूंजी। जय गुरुदेव साधना पूंजी॥
सर्व धर्महित शिविर पुरोधा। कर्मक्षेत्र के अतुलित योधा।
ह्रदय विशाल शास्त्र भण्डारा। भारत का भौतिक उजियारा॥

एक सौ छप्पन ग्रन्थ रचयिता। सीधी साधक विश्व विजेता।
प्रिय लेखक प्रिय गूढ़ प्रवक्ता। भूत-भविष्य के आप विधाता॥
आयुर्वेद ज्योतिष के सागर। षोडश कला युक्त परमेश्वर।
रतन पारखी विघन हरंता। सन्यासी अनन्यतम संता॥

अदभुत चमत्कार दिखलाया। पारद का शिवलिंग बनाया।
वेद पुराण शास्त्र सब गाते। पारेश्वर दुर्लभ कहलाते॥
पूजा कर नित ध्यान लगावे। वो नर सिद्धाश्रम में जावे।
चारो वेद कंठ में धारे। पूजनीय जन-जन के प्यारे॥

चिन्तन करत मंत्र जब गाएं। विश्वामित्र वशिष्ठ बुलाएं।
मंत्र नमो नारायण सांचा। ध्यानत भागत भूत-पिशाचा॥
प्रातः कल करहि निखिलायन। मन प्रसन्न नित तेजस्वी तन।
निर्मल मन से जो भी ध्यावे। रिद्धि सिद्धि सुख-सम्पति पावे॥

पथ करही नित जो चालीसा। शांति प्रदान करहि योगिसा।
अष्टोत्तर शत पाठ करत जो। सर्व सिद्धिया पावत जन सो॥
श्री गुरु चरण की धारा। सिद्धाश्रम साधक परिवारा।
जय-जय-जय आनंद के स्वामी। बारम्बार नमामी नमामी॥

Guru Brahaspati Chalisa

दोहा

प्रन्वाऊ प्रथम गुरु चरण, बुद्धि ज्ञान गुन खान।
श्री गणेश शारद सहित, बसों ह्रदय में आन॥
अज्ञानी मति मंद मैं, हैं गुरुस्वामी सुजान।
दोषों से मैं भरा हुआ हूँ तुम हो कृपा निधान॥

चौपाई

जय नारायण जय निखिलेशवर। विश्व प्रसिद्ध अखिल तंत्रेश्वर। 
यंत्र-मंत्र विज्ञानं के ज्ञाता।भारत भू के प्रेम प्रेनता॥
जब जब हुई धरम की हानि। सिद्धाश्रम ने पठए ज्ञानी। 
सच्चिदानंद गुरु के प्यारे। सिद्धाश्रम से आप पधारे॥

उच्चकोटि के ऋषि-मुनि स्वेच्छा। ओय करन धरम की रक्षा। 
अबकी बार आपकी बारी। त्राहि त्राहि है धरा पुकारी॥
मरुन्धर प्रान्त खरंटिया ग्रामा। मुल्तानचंद पिता कर नामा। 
शेषशायी सपने में आये। माता को दर्शन दिखलाए॥

रुपादेवि मातु अति धार्मिक। जनम भयो शुभ इक्कीस तारीख। 
जन्म दिवस तिथि शुभ साधक की। पूजा करते आराधक की॥
जन्म वृतन्त सुनायए नवीना। मंत्र नारायण नाम करि दीना। 
नाम नारायण भव भय हारी। सिद्ध योगी मानव तन धारी॥

ऋषिवर ब्रह्म तत्व से ऊर्जित। आत्म स्वरुप गुरु गोरवान्वित। 
एक बार संग सखा भवन में। करि स्नान लगे चिन्तन में॥
चिन्तन करत समाधि लागी। सुध-बुध हीन भये अनुरागी। 
पूर्ण करि संसार की रीती। शंकर जैसे बने गृहस्थी॥

अदभुत संगम प्रभु माया का। अवलोकन है विधि छाया का. 
युग-युग से भव बंधन रीती। जंहा नारायण वाही भगवती॥
सांसारिक मन हुए अति ग्लानी। तब हिमगिरी गमन की ठानी। 
अठारह वर्ष हिमालय घूमे। सर्व सिद्धिया गुरु पग चूमें॥

त्याग अटल सिद्धाश्रम आसन। करम भूमि आए नारायण। 
धरा गगन ब्रह्मण में गूंजी। जय गुरुदेव साधना पूंजी॥
सर्व धर्महित शिविर पुरोधा। कर्मक्षेत्र के अतुलित योधा। 
ह्रदय विशाल शास्त्र भण्डारा। भारत का भौतिक उजियारा॥

एक सौ छप्पन ग्रन्थ रचयिता। सीधी साधक विश्व विजेता। 
प्रिय लेखक प्रिय गूढ़ प्रवक्ता। भूत-भविष्य के आप विधाता॥
आयुर्वेद ज्योतिष के सागर। षोडश कला युक्त परमेश्वर। 
रतन पारखी विघन हरंता। सन्यासी अनन्यतम संता॥

अदभुत चमत्कार दिखलाया। पारद का शिवलिंग बनाया। 
वेद पुराण शास्त्र सब गाते। पारेश्वर दुर्लभ कहलाते॥
पूजा कर नित ध्यान लगावे। वो नर सिद्धाश्रम में जावे। 
चारो वेद कंठ में धारे। पूजनीय जन-जन के प्यारे॥

चिन्तन करत मंत्र जब गाएं। विश्वामित्र वशिष्ठ बुलाएं। 
मंत्र नमो नारायण सांचा। ध्यानत भागत भूत-पिशाचा॥
प्रातः कल करहि निखिलायन। मन प्रसन्न नित तेजस्वी तन। 
निर्मल मन से जो भी ध्यावे। रिद्धि सिद्धि सुख-सम्पति पावे॥

पथ करही नित जो चालीसा। शांति प्रदान करहि योगिसा। 
अष्टोत्तर शत पाठ करत जो। सर्व सिद्धिया पावत जन सो॥
श्री गुरु चरण की धारा। सिद्धाश्रम साधक परिवारा। 
जय-जय-जय आनंद के स्वामी। बारम्बार नमामी नमामी॥

गुरु बृहस्पति चालीसा हमें यह सिखाती है कि गुरु बृहस्पति देव की भक्ति से हमारे जीवन में ज्ञान और समृद्धि का प्रवेश होता है। जब हम उनके मंत्रों और आशीर्वाद के साथ अपने जीवन की दिशा तय करते हैं, तो हर कार्य में सफलता प्राप्त होती है। इस भक्ति रस को और गहराई से अनुभव करने के लिए आप श्री हरि की महिमा अपार, गोविंद बोलो हरि गोपाल बोलो, नारायण, नारायण जय गोविंद हरे और संकट हरन श्री विष्णु जी जैसे अन्य भजनों का भी पाठ करें और भगवान विष्णु की कृपा का अनुभव करें।

चालीसा की जप विधि

  1. शुभ दिन व समय: गुरु बृहस्पति चालीसा का पाठ प्रत्येक गुरुवार को सूर्योदय से पूर्व या प्रातःकाल 5 से 7 बजे के बीच करना अत्यंत शुभ फल देता है।
  2. स्थान व शुद्धता: पाठ के लिए शांत, पवित्र और स्वच्छ स्थान चुनें। पूर्व दिशा की ओर मुख करके पीले वस्त्र पहनकर बैठें। आसन कुश या पीले कपड़े का हो तो और अच्छा।
  3. पूजन सामग्री: पीले पुष्प, हल्दी की गांठ, पीली मिठाई (बेसन लड्डू), केला, चने की दाल, पीली चुनरी, घी का दीपक, अगरबत्ती, जल और पंचामृत रखें।
  4. पूजन क्रम:
    • हाथ धोकर, स्नान कर शुद्ध वस्त्र धारण करें।
    • सामने गुरु बृहस्पति जी की मूर्ति या चित्र स्थापित करें।
    • दीपक जलाएं और अगरबत्ती अर्पित करें।
    • ‘ॐ बृं बृहस्पतये नमः’ मंत्र से उनका आवाहन करें।
    • उन्हें पीले पुष्प, हल्दी, चने की दाल और पीली मिठाई अर्पित करें।
    • तत्पश्चात श्रद्धापूर्वक गुरु बृहस्पति चालीसा का पाठ करें।
    • पाठ के बाद गुरुवार व्रत कथा का श्रवण करें (यदि संभव हो)।
    • अंत में आरती करें और प्रसाद बाँटें।
  5. विशेष निर्देश:
    • पाठ में एकाग्रता और निष्ठा अत्यंत आवश्यक है।
    • व्रत के दिन पीली वस्तुएं जैसे चना, हल्दी, आम, केले का सेवन करें।
    • ब्रह्मचर्य का पालन करें और दिनभर गुरु मंत्र का स्मरण करें।

FAQ

बृहस्पति देव के चालीसा का पाठ कब करना चाहिए?

इस चालीसा का पाठ गुरुवार के दिन सुबह स्नान करके, पीले वस्त्र पहनकर और पीले फूलों के साथ बृहस्पति देव की पूजा करके करना श्रेष्ठ माना जाता है।

क्या इस चालीसा का पाठ महिलाएं भी कर सकती हैं?

बृहस्पति ग्रह दोष से मुक्ति के लिए क्या केवल चालीसा पढ़ना पर्याप्त है?

Leave a comment