माँ ब्रह्मचारणी कथा नवरात्रि के दूसरे दिन पूजी जाने वाली देवी ब्रह्मचारिणी माता से संबंधित एक अत्यंत प्रेरणादायक और दिव्य कथा है। माँ ब्रह्मचारिणी का नाम ही उनके तपस्विनी रूप को दर्शाता है, जिसमें ‘ब्रह्म’ का अर्थ है ‘तपस्या’ और ‘चारिणी’ का अर्थ है ‘आचरण करने वाली। माता ब्रह्मचारिणी की भक्ति और तपस्या का यह दिव्य स्वरूप हर भक्त के मन को आध्यात्मिक शक्ति और संयम प्रदान करता है। हमने Maa Brahmacharini Katha को सम्पूर्ण रूप से आपके पाठ के लिए निचे उपलब्ध कराया है-

Maa Brahmacharini Katha
देवी सती का जन्म और भगवान शिव से विवाह
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, ब्रह्मचारिणी माता का पूर्व जन्म में नाम देवी सती था। देवी सती ने भगवान शिव से विवाह किया था, लेकिन उनके पिता प्रजापति दक्ष भगवान शिव का अपमान करते थे। एक बार दक्ष ने एक बड़ा यज्ञ आयोजित किया और भगवान शिव को उसमें आमंत्रित नहीं किया। जब देवी सती ने यह देखा कि उनके पति भगवान शिव का अपमान हो रहा है, तो उन्होंने स्वयं को यज्ञ अग्नि में भस्म कर लिया। इस घटना के बाद भगवान शिव अत्यंत दुखी हो गए और एकांत में गहन तपस्या करने लगे।
माता पार्वती का पुनर्जन्म और कठोर तपस्या
इस घटना के बाद, देवी सती ने पुनः पार्वती के रूप में जन्म लिया। जन्म से ही माता पार्वती के मन में भगवान शिव को अपने पति के रूप में पाने की प्रबल इच्छा थी। एक दिन जब देवर्षि नारद माता पार्वती के महल में आए, तब उन्होंने माता को बताया कि उनका विवाह भगवान शिव से ही होगा। यह सुनकर माता पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए कठोर तपस्या करने का निश्चय किया।
मां ब्रह्मचारिणी की कठोर साधना
माता पार्वती ने हजारों वर्षों तक कठिन तपस्या की। पहले वे फल और कंदमूल खाकर तपस्या करती रहीं। इसके बाद उन्होंने केवल पत्ते खाकर तपस्या करनी शुरू कर दी। और फिर कुछ समय बाद उन्होंने पत्तों का भी त्याग कर दिया और बिना अन्न-जल के कठोर तपस्या करने लगीं। इस कारण माता पार्वती को अपर्णा (पत्तों का त्याग करने वाली) कहा गया।
कामदेव द्वारा भगवान शिव की तपस्या भंग करने का प्रयास
इधर स्वर्गलोक में राक्षस तारकासुर ने आतंक मचा रखा था। देवताओं को ज्ञात था कि केवल भगवान शिव के पुत्र के हाथों ही तारकासुर का वध संभव है। लेकिन भगवान शिव तो गहन तपस्या में लीन थे। इसलिए देवताओं ने कामदेव से विनती की कि वे भगवान शिव के मन में माता पार्वती के प्रति प्रेम उत्पन्न करें ताकि उनका विवाह हो सके।
कामदेव ने अपनी प्रेम-बाण चलाकर भगवान शिव की तपस्या को भंग करने का प्रयास किया। जैसे ही कामदेव का तीर भगवान शिव को लगा, भगवान शिव ने अपनी आंखें खोलीं और अत्यंत क्रोधित होकर रुद्र रूप धारण कर लिया। क्रोध में आकर भगवान शिव ने कामदेव को भस्म कर दिया।
इधर माता पार्वती बिना किसी भय के कठोर तपस्या करती रहीं। उन्होंने भारी वर्षा, कड़ाके की सर्दी और तेज गर्मी में खुले आसमान के नीचे तपस्या की। वे दिन-रात भगवान शिव का ध्यान करती रहीं और अपने लक्ष्य से कभी विचलित नहीं हुईं। माता की इस कठोर तपस्या को देखकर भगवान शिव अंततः प्रसन्न हो गए।
भगवान शिव द्वारा माता पार्वती की परीक्षा
एक दिन भगवान शिव एक साधु का वेश धारण करके माता पार्वती के पास आए और कहा – “हे देवी! तुम इतनी कठिन तपस्या क्यों कर रही हो? भगवान शिव का स्वभाव वैराग्यपूर्ण है, वे विवाह नहीं करेंगे। तुम इस तपस्या को त्याग दो।” लेकिन माता पार्वती ने साधु के रूप में आए भगवान शिव की बातों को अनसुना कर दिया और अपनी तपस्या जारी रखी।
भगवान शिव का माता पार्वती को वरदान
माता की यह अटूट भक्ति, तपस्या और संकल्प देखकर भगवान शिव अंततः प्रसन्न हो गए और उन्हें अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार कर लिया। माता पार्वती के इसी कठोर तप और संयम के कारण उन्हें ब्रह्मचारिणी माता कहा जाता है, जिसका अर्थ है – ब्रह्म (तपस्या) का आचरण करने वाली देवी।
मां ब्रह्मचारिणी से हमें क्या सीखने को मिलता है?
Maa Brahmacharini Ki Katha हमें यह सिखाती है कि जीवन में कोई भी कठिन लक्ष्य प्राप्त करने के लिए त्याग, संयम और तपस्या अत्यंत आवश्यक हैं। माता ब्रहचारिणी के जैसे ही यदि हम अपने कार्य के प्रति अटल विश्वास और निष्ठा बनाए रखें, तो हम अपने जीवन के हर कठिन लक्ष्य को अवश्य प्राप्त करेंगे।
नवरात्रि में मां ब्रह्मचारिणी की पूजा का महत्व
इसलिए नवरात्रि के दूसरे दिन ब्रह्मचारिणी माता की पूजा करने से हमें धैर्य, संयम और भक्ति का वरदान प्राप्त होता है और हमारे जीवन के समस्त संकट दूर हो जाते हैं। माता की कृपा से हमें आध्यात्मिक बल और दिव्य ऊर्जा प्राप्त होती है।
ब्रह्मचारिणी माता की पूजा विधि
Brahmacharini Mata की पूजा करने के लिए निम्नलिखित विधि अपनाई जाती है:
- प्रातःकाल स्नान करके स्वच्छ वस्त्र पहनें।
- घर के पूजा स्थल पर माता ब्रह्मचारिणी की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें।
- पूजा के दौरान कलश स्थापना करके भगवान गणेश और नवग्रहों की पूजा करें।
- Brahmacharini Mata का ध्यान करें और उन्हें अपने घर में विराजमान होने का निवेदन करें।
- माता को अक्षत, पुष्प, रोली, कुमकुम, धूप, दीप आदि अर्पित करें।
- माता को फल, मिठाई, पंचामृत और भोग अर्पित करें।
- माता ब्रह्मचारिणी के मंत्र का जाप करें।
FAQ
ब्रह्मचारिणी माता की पूजा नवरात्रि के किस दिन की जाती है?
नवरात्रि के दूसरे दिन (द्वितीया तिथि) को ब्रह्मचारिणी माता की पूजा की जाती है।
ब्रह्मचारिणी माता के पूजन से क्या लाभ प्राप्त होते हैं?
ब्रह्मचारिणी माता के पूजन से भक्तों को धैर्य, संयम, त्याग और आत्मविश्वास की प्राप्ति होती है।
ब्रह्मचारिणी माता कौन हैं?
ब्रह्मचारिणी माता नवरात्रि के दूसरे दिन पूजी जाने वाली माँ दुर्गा का दूसरा स्वरूप हैं।

मैं शिवप्रिया पंडित, माँ शक्ति का एक अनन्य भक्त और विंध्येश्वरी देवी, शैलपुत्री माता और चिंतापूर्णी माता की कृपा से प्रेरित एक आध्यात्मिक साधक हूँ। मेरा उद्देश्य माँ के भक्तों को उनके दिव्य स्वरूप, उपासना विधि और कृपा के महत्व से अवगत कराना है, ताकि वे अपनी श्रद्धा और भक्ति को और अधिक दृढ़ बना सकें। मेरे लेखों में इन देवी शक्तियों के स्तोत्र, चालीसा, आरती, मंत्र, कथा और पूजन विधियाँ शामिल होती हैं, ताकि हर भक्त माँ की आराधना सही विधि से कर सके और उनके आशीर्वाद से अपने जीवन को सुख-समृद्धि से भर सके। जय माता दी! View Profile