काल भैरव– एक ऐसा नाम जो सुनते ही रौद्र रूप, दिव्य शक्ति और तंत्र की रक्षा का भाव जाग उठता है। “काल” यानी समय और “भैरव” यानी भय से रक्षा करने वाले Kaal Bhairav, इन्हें भगवान शिव का रौद्र रूप कहा जाता हैं। जिन्हें मृत्यु, समय और रहस्यमयी शक्तियों का स्वामी माना जाता है। ये तंत्र साधना के प्रधान देवता हैं और अघोर मार्ग में इनका विशेष स्थान है-
Kaal Bhairav

Bhairav Baba एक ऐसे दिव्य स्वरूप हैं जो न केवल तंत्र की रक्षा करते हैं बल्कि समय और जीवन की हर बाधा से भी मुक्ति दिलाते हैं। अगर आप इनके मंदिरों की यात्रा करना चाहते हैं, तो काल भैरव मंदिर उज्जैन, काल भैरव मंदिर वाराणसी और बटुक भैरव मंदिर दिल्ली के बारे में भी पढ़ें। जो विशेष रूप से आपके लिए फलदायी होगा।
Bhairav Baba की उत्पत्ति: एक पौराणिक कथा
इनकी उत्पत्ति से जुड़ी कथा हमारे शास्त्रों में अत्यंत रोचक, गूढ़ और गहन भाव से भरी हुई है। यह कथा केवल शक्ति और क्रोध की ही नहीं, अपितु धर्म के पालन और मर्यादा की रक्षा की भी है।
ब्रह्मा जी का अहंकार और शिव जी का क्रोध
एक बार त्रिदेवों — ब्रह्मा, विष्णु और शिव — में श्रेष्ठता को लेकर चर्चा हो रही थी। इस दौरान ब्रह्मा जी ने अपने आप को सर्वोच्च बताकर भगवान शिव का अपमान कर दिया। उनके पांच मुखों में से एक मुख लगातार भगवान शिव की निंदा करने लगा।
शिव जी के क्रोध से प्रकट हुए
भगवान शिव ने जब यह अपमान सुना, तो उनके भीतर भयानक क्रोध उत्पन्न हुआ। उस समय उन्होंने अपनी भृकुटि से एक उग्र शक्ति को उत्पन्न किया — जो थे काल भैरव। जैसे ही वे प्रकट हुए, उनके हाथ में त्रिशूल और खप्पर था, और शरीर पर विभूति, भस्म एवं सर्पों का आभूषण।
ब्रह्मा का सिर काटना और ब्रह्महत्या दोष
इन्होने तुरंत ब्रह्मा जी के उस अपवित्र मुख को, जो निंदा कर रहा था, अपने खप्पर से अलग कर दिया। चूँकि ब्रह्मा त्रिदेवों में से हैं, इसलिए उनका सिर काटने से इन पर ब्रह्महत्या का दोष लग गया।
वाराणसी की यात्रा और दोष से मुक्ति
ब्रह्महत्या का पाप लेकर भैरव पृथ्वी पर घूमते रहे और अंततः काशी जिसे वाराणसी के नाम से भी जाना जाता है, पहुंचे। जैसे ही उन्होंने काशी में प्रवेश किया, उनका पाप वहीं गिर गया। तभी से काशी को Kaal Bhairav की नगरी कहा जाने लगा। यहाँ उनका मुख्य मंदिर भी स्थित है — काशी काल भैरव मंदिर।
धर्म के रक्षक
शास्त्रों में कहा गया है कि ये केवल रौद्र रूप के प्रतीक नहीं हैं, बल्कि वे धर्म और मर्यादा के रक्षक हैं। वे दुष्टों का संहार करते हैं और साधकों की रक्षा करते हैं। उनके द्वारा ब्रह्मा का सिर काटना, उनके न्याय के स्वरूप को दर्शाता है।
कथा समापन
भैरव बाबा की उत्पत्ति की यह कथा हमें यह सिखाती है कि चाहे कोई भी हो, जब धर्म की सीमा का उल्लंघन करता है, तो भैरव रूप में शिव प्रकट होकर न्याय करते हैं। साथ ही यह कथा यह भी दर्शाती है कि वाराणसी, न केवल मोक्ष की भूमि है, बल्कि यह भैरव की विशेष कृपा से भी पवित्र हुई है।
प्रमुख मंदिर
- काशी काल भैरव मंदिर (वाराणसी): भैरव की राजधानी मानी जाती है।
- काल भैरव मंदिर उज्जैन: महाकाल की भूमि पर स्थित यह मंदिर अति चमत्कारी माना जाता है।
- अग्र काल भैरव मंदिर (मध्यप्रदेश): ग्रामीण अंचलों में अपार श्रद्धा का केंद्र।
- बटुक भैरव मंदिर (दिल्ली): बच्चों की रक्षा हेतु प्रसिद्ध।
- नाकोड़ा भैरव मंदिर (राजस्थान): जैन समुदाय के भैरव साधक यहाँ आते हैं।
इनकी पूजा करने की विधि
- पूजा का दिन और समय: इनकी पूजा मंगलवार और रविवार को शुभ मानी जाती है, विशेष रूप से अष्टमी तिथि को।
- आवश्यक सामग्री: सरसों का तेल, काली मिर्च, नींबू, नारियल, शराब (विशेष तांत्रिक पूजा में), काले वस्त्र, अगरबत्ती, लाल पुष्प।
- पूजा विधि: प्रातः स्नान करके काले वस्त्र धारण करें। दीप प्रज्वलित करें, भैरव चालीसा या अष्टकम का पाठ करें। सरसों तेल का दीप अर्पित करें। तांत्रिक पूजा में मदिरा का चढ़ावा भी प्रचलित है।
मंत्र और साधना
- बीज मंत्र: ॐ भैरवाय नमः
- गायत्री मंत्र: ॐ कालभैरवाय विद्महे महाकालाय धीमहि। तन्नो भैरवः प्रचोदयात्॥
- 108 नाम: भैरव जी के नामों का जप करने से विशेष कृपा प्राप्त होती है।
इनसे जुड़ी कुछ मान्यताएँ
- Bhairav Baba को शराब अर्पण करने की परंपरा है, खासकर उज्जैन में।
- रात्रि में पूजा विशेष फलदायी मानी जाती है।
- इनकी सवारी कुत्ता है, इसलिए कुत्तों को भोजन कराते हैं।
- यदि कोई साधक रुद्राक्ष माला से “काल भैरव बीज मंत्र” या “भैरव गायत्री मंत्र” का जप करे, तो उसे मानसिक स्थिरता, साहस और निडरता प्राप्त होती है।
- कुछ व्यापारी और गृहस्थ जन तिजोरी या दुकान में भैरव जी की छोटी मूर्ति या फोटो रखते हैं और प्रतिदिन दीप जलाकर “काल भैरव कवच” का पाठ करते हैं।
- ऐसा विश्वास है कि अगर कोई व्यक्ति लंबी यात्रा पर निकल रहा हो और “ॐ कालभैरवाय नमः” का स्मरण करके जाए तो यात्रा सुरक्षित, सफल और बाधा रहित होती है।
- भैरव बाबा की उपासना ग्रह पीड़ाओं और पितृ दोष को शांत करने वाली मानी जाती है।
- लोकविश्वास है कि जो साधक भैरव अष्टमी या किसी गुप्त रात्रि में भैरव तांत्रिक मंत्रों का विधिपूर्वक जप करता है, उसे विशेष सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं।
- कुछ स्थानों पर मान्यता है कि शिव मंदिर की यात्रा तब तक अधूरी मानी जाती है जब तक भक्त भैरव के दर्शन न कर लें।
FAQ
इनकी पूजा कब करें?
मंगलवार, रविवार या अष्टमी तिथि को।
क्या इनकी पूजा घर में कर सकते हैं?
हाँ, लेकिन विधिपूर्वक और शुद्धता से करें।
इनको शराब क्यों चढ़ाई जाती है?
यह तांत्रिक परंपरा का हिस्सा है, जिससे ऊर्जा का जागरण होता है।

मैं शिवप्रिया पंडित, माँ शक्ति का एक अनन्य भक्त और विंध्येश्वरी देवी, शैलपुत्री माता और चिंतापूर्णी माता की कृपा से प्रेरित एक आध्यात्मिक साधक हूँ। मेरा उद्देश्य माँ के भक्तों को उनके दिव्य स्वरूप, उपासना विधि और कृपा के महत्व से अवगत कराना है, ताकि वे अपनी श्रद्धा और भक्ति को और अधिक दृढ़ बना सकें। मेरे लेखों में इन देवी शक्तियों के स्तोत्र, चालीसा, आरती, मंत्र, कथा और पूजन विधियाँ शामिल होती हैं, ताकि हर भक्त माँ की आराधना सही विधि से कर सके और उनके आशीर्वाद से अपने जीवन को सुख-समृद्धि से भर सके। जय माता दी! View Profile