बटुक भैरव स्तोत्र: भय और बाधाओं से रक्षा का दिव्य स्तोत्र

बटुक भैरव स्तोत्र को शक्ति, सुरक्षा और तांत्रिक बाधाओं से रक्षा हेतु एक अति प्रभावशाली स्तोत्र माना जाता है। यह स्तोत्र Batuk Bhairav Stotra के रूप में साधकों द्वारा विशेषकर अष्टमी, रविवार और मंगलवार को श्रद्धा से जपा जाता है। इसमें काल भैरव जी के बाल रूप बटुक भैरव की स्तुति की जाती है, जो शीघ्र प्रसन्न होकर साधक को भयमुक्त और बलशाली बनाते हैं। यह स्तोत्र इस प्रकार से है-

Batuk Bhairav Stotra

भैरव ध्यान

वन्दे बालं स्फटिक-सदृशम्, कुन्तलोल्लासि-वक्त्रम्,
दिव्याकल्पैर्नव-मणि-मयैः, किंकिणी-नूपुराढ्यैः।
दीप्ताकारं विशद-वदनं, सुप्रसन्नं त्रि-नेत्रम्,
हस्ताब्जाभ्यां बटुकमनिशं, शूल-दण्डौ दधानम्॥

मानसिक पूजन

ॐ लं पृथ्वी-तत्त्वात्मकं गन्धं
श्रीमद् आपदुद्धारण-बटुक-भेरव-प्रीतये समर्पयामि नमः॥

ॐ हं आकाश-तत्त्वात्मकं पुष्पं
श्रीमद् आपदुद्धारण-बटुक-भेरव-प्रीतये समर्पयामि नमः॥

ॐ यं वायु-तत्त्वात्मकं धूपं
श्रीमद् आपदुद्धारण-बटुक-भेरव-प्रीतये घ्रापयामि नमः॥

ॐ रं अग्नि-तत्त्वात्मकं दीपं
श्रीमद् आपदुद्धारण-बटुक-भेरव-प्रीतये निवेदयामि नमः॥

ॐ सं सर्व-तत्त्वात्मकं ताम्बूलं
श्रीमद् आपदुद्धारण-बटुक-भेरव-प्रीतये समर्पयामि नमः॥

भैरव स्तोत्र

ॐ भैरवो भूत-नाथश्च, भूतात्मा भूत-भावनः,
क्षेत्रज्ञः क्षेत्र-पालश्च, क्षेत्रदः क्षत्रियो विराट्।

श्मशान-वासी मांसाशी, खर्पराशी स्मरान्त-कृत्,
रक्तपः पानपः सिद्धः, सिद्धिदः सिद्धि-सेवितः।

कंकालः कालः-शमनः, कला-काष्ठा-तनुः कविः,
त्रि-नेत्रो बहु-नेत्रश्च, तथा पिंगल-लोचनः।

शूल-पाणिः खड्ग-पाणिः, कंकाली धूम्र-लोचनः,
अभीरुर्भैरवी-नाथो, भूतपो योगिनी – पतिः।

धनदोऽधन-हारी च, धन-वान् प्रतिभागवान्,
नागहारो नागकेशो, व्योमकेशः कपाल-भृत्।

कालः कपालमाली च, कमनीयः कलानिधिः,
त्रि-नेत्रो ज्वलन्नेत्रस्त्रि-शिखी च त्रि-लोक-भृत्।

त्रिवृत्त-तनयो डिम्भः शान्तः शान्त-जन-प्रिय,
बटुको बटु-वेषश्च, खट्वांग -वर – धारकः।

भूताध्यक्षः पशुपतिर्भिक्षुकः परिचारकः,
धूर्तो दिगम्बरः शौरिर्हरिणः पाण्डु – लोचनः।

प्रशान्तः शान्तिदः शुद्धः शंकर-प्रिय-बान्धवः,
अष्ट -मूर्तिर्निधीशश्च, ज्ञान- चक्षुस्तपो-मयः।

अष्टाधारः षडाधारः, सर्प-युक्तः शिखी-सखः,
भूधरो भूधराधीशो, भूपतिर्भूधरात्मजः।

कपाल-धारी मुण्डी च , नाग- यज्ञोपवीत-वान्,
जृम्भणो मोहनः स्तम्भी, मारणः क्षोभणस्तथा।

शुद्द – नीलाञ्जन – प्रख्य – देहः मुण्ड -विभूषणः,
बलि-भुग्बलि-भुङ्- नाथो, बालोबाल – पराक्रम।

सर्वापत् – तारणो दुर्गो, दुष्ट- भूत- निषेवितः,
कामीकला-निधिःकान्तः, कामिनी वश-कृद्वशी।

जगद्-रक्षा-करोऽनन्तो, माया – मन्त्रौषधी -मयः,
सर्व-सिद्धि-प्रदो वैद्यः, प्रभ – विष्णुरितीव हि।

फल–श्रुति

अष्टोत्तर-शतं नाम्नां, भैरवस्य महात्मनः,
मया ते कथितं देवि, रहस्य सर्व-कामदम्।
य इदं पठते स्तोत्रं, नामाष्ट-शतमुत्तमम्,
न तस्य दुरितं किञ्चिन्न च भूत-भयं तथा।

न शत्रुभ्यो भयंकिञ्चित्, प्राप्नुयान्मानवः क्वचिद्,
पातकेभ्यो भयं नैव, पठेत् स्तोत्रमतः सुधीः।
मारी-भये राज-भये, तथा चौराग्निजे भये॥

औत्पातिके भये चैव, तथा दुःस्वप्नज भये,
बन्धने च महाघोरे, पठेत् स्तोत्रमनन्य-धीः,
सर्वं प्रशममायाति, भयं भैरव-कीर्तनात्।

क्षमा-प्रार्थना

आवाहन न जानामि, न जानामि विसर्जनम्,
पूजा-कर्म न जानामि, क्षमस्व परमेश्वर।
मन्त्र-हीनं क्रिया-हीनं, भक्ति-हीनं सुरेश्वर,
मया यत्-पूजितं देव परिपूर्णं तदस्तु मे॥॥

॥ इति बटुक भैरव स्तोत्रम् ॥

Batuk Bhairav Stotra

भैरव ध्यान

वन्दे बालं स्फटिक-सदृशम्, कुन्तलोल्लासि-वक्त्रम्,
दिव्याकल्पैर्नव-मणि-मयैः, किंकिणी-नूपुराढ्यैः। 
दीप्ताकारं विशद-वदनं, सुप्रसन्नं त्रि-नेत्रम्,
हस्ताब्जाभ्यां बटुकमनिशं, शूल-दण्डौ दधानम्॥

मानसिक पूजन

ॐ लं पृथ्वी-तत्त्वात्मकं गन्धं
 श्रीमद् आपदुद्धारण-बटुक-भेरव-प्रीतये समर्पयामि नमः॥

ॐ हं आकाश-तत्त्वात्मकं पुष्पं 
श्रीमद् आपदुद्धारण-बटुक-भेरव-प्रीतये समर्पयामि नमः॥

ॐ यं वायु-तत्त्वात्मकं धूपं 
श्रीमद् आपदुद्धारण-बटुक-भेरव-प्रीतये घ्रापयामि नमः॥

ॐ रं अग्नि-तत्त्वात्मकं दीपं 
श्रीमद् आपदुद्धारण-बटुक-भेरव-प्रीतये निवेदयामि नमः॥

ॐ सं सर्व-तत्त्वात्मकं ताम्बूलं 
श्रीमद् आपदुद्धारण-बटुक-भेरव-प्रीतये समर्पयामि नमः॥

भैरव स्तोत्र

ॐ भैरवो भूत-नाथश्च, भूतात्मा भूत-भावनः,
क्षेत्रज्ञः क्षेत्र-पालश्च, क्षेत्रदः क्षत्रियो विराट्। 

श्मशान-वासी मांसाशी, खर्पराशी स्मरान्त-कृत्,
रक्तपः पानपः सिद्धः, सिद्धिदः सिद्धि-सेवितः। 

कंकालः कालः-शमनः, कला-काष्ठा-तनुः कविः,
त्रि-नेत्रो बहु-नेत्रश्च, तथा पिंगल-लोचनः। 

शूल-पाणिः खड्ग-पाणिः, कंकाली धूम्र-लोचनः,
अभीरुर्भैरवी-नाथो, भूतपो योगिनी – पतिः। 

धनदोऽधन-हारी च, धन-वान् प्रतिभागवान्,
नागहारो नागकेशो, व्योमकेशः कपाल-भृत्। 

कालः कपालमाली च, कमनीयः कलानिधिः,
त्रि-नेत्रो ज्वलन्नेत्रस्त्रि-शिखी च त्रि-लोक-भृत्।

 त्रिवृत्त-तनयो डिम्भः शान्तः शान्त-जन-प्रिय,
बटुको बटु-वेषश्च, खट्वांग -वर – धारकः। 

भूताध्यक्षः पशुपतिर्भिक्षुकः परिचारकः,
धूर्तो दिगम्बरः शौरिर्हरिणः पाण्डु – लोचनः।

 प्रशान्तः शान्तिदः शुद्धः शंकर-प्रिय-बान्धवः,
अष्ट -मूर्तिर्निधीशश्च, ज्ञान- चक्षुस्तपो-मयः। 

अष्टाधारः षडाधारः, सर्प-युक्तः शिखी-सखः,
भूधरो भूधराधीशो, भूपतिर्भूधरात्मजः। 

कपाल-धारी मुण्डी च , नाग- यज्ञोपवीत-वान्,
जृम्भणो मोहनः स्तम्भी, मारणः क्षोभणस्तथा। 

शुद्द – नीलाञ्जन – प्रख्य – देहः मुण्ड -विभूषणः,
बलि-भुग्बलि-भुङ्- नाथो, बालोबाल – पराक्रम। 

सर्वापत् – तारणो दुर्गो, दुष्ट- भूत- निषेवितः,
कामीकला-निधिःकान्तः, कामिनी वश-कृद्वशी। 

जगद्-रक्षा-करोऽनन्तो, माया – मन्त्रौषधी -मयः,
सर्व-सिद्धि-प्रदो वैद्यः, प्रभ – विष्णुरितीव हि। 

फल–श्रुति

अष्टोत्तर-शतं नाम्नां, भैरवस्य महात्मनः,
मया ते कथितं देवि, रहस्य सर्व-कामदम्। 
य इदं पठते स्तोत्रं, नामाष्ट-शतमुत्तमम्,
न तस्य दुरितं किञ्चिन्न च भूत-भयं तथा। 

न शत्रुभ्यो भयंकिञ्चित्, प्राप्नुयान्मानवः क्वचिद्,
पातकेभ्यो भयं नैव, पठेत् स्तोत्रमतः सुधीः। 
मारी-भये राज-भये, तथा चौराग्निजे भये॥

औत्पातिके भये चैव, तथा दुःस्वप्नज भये,
बन्धने च महाघोरे, पठेत् स्तोत्रमनन्य-धीः,
सर्वं प्रशममायाति, भयं भैरव-कीर्तनात्। 

क्षमा-प्रार्थना

आवाहन न जानामि, न जानामि विसर्जनम्,
पूजा-कर्म न जानामि, क्षमस्व परमेश्वर। 
मन्त्र-हीनं क्रिया-हीनं, भक्ति-हीनं सुरेश्वर,
मया यत्-पूजितं देव परिपूर्णं तदस्तु मे॥॥

॥ इति बटुक भैरव स्तोत्रम् ॥

यदि आप भैरव जी की आराधना को और भी गहराई से समझना चाहते हैं, तो हमारा काल भैरव मंत्र और भैरव कवच पर आधारित लेख भी अवश्य पढ़ें। भक्ति संदेश पर हम हर दिन आपके लिए ला रहे हैं ऐसे दिव्य लेख जो आपकी साधना को सिद्धि की ओर ले जाएं।

श्री बटुक भैरव स्तोत्र की जाप विधि

अगर आप जीवन में भय, संकट और नकारात्मकता से मुक्ति चाहते हैं, तो Batuk Bhairav Stotra का जाप एक शक्तिशाली उपाय है। इसके पाठ की सही विधि को अपनाकर, अपनी पाठ को और मजबूत करें-

  1. कब पढ़ें: रविवार, मंगलवार या अष्टमी को इसका पाठ विशेष फलदायी होता है। नियमित रूप से प्रतिदिन भी पाठ किया जा सकता है।
  2. स्नान: सबसे पहले स्नान कर के काले या नीले रंग का कपड़ें पहने क्योकि यह रंग काल भैरव के प्रिय रंग माने जाते है।
  3. कैसे पढ़ें: अब साफ और शांत वातावरण में पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठें। सामने बटुक भैरव जी का फोटो रखें, दीपक और अगरबत्ती जलाएं।
  4. दीपक और धुप: मूर्ति के सामने दीपक और धुप जलाये, इससे वातावरण भक्तिमय और शुद्ध होता है।
  5. पाठ के पहले:ॐ बटुक भैरवाय नमः” का 11 बार जप करें और फिर स्तोत्र का पाठ आरंभ करें।
  6. पाठ: अब श्रद्धा और पूरी भक्ति के साथ ध्यानपूर्वक Shri Batuk Bhairav Stotra का जाप करें।
  7. समापन: भैरव जी से भय, रोग, शत्रु और मानसिक कष्टों से रक्षा की प्रार्थना करें।

भक्ति और नियम के साथ किया गया बटुक भैरव स्तोत्र का पाठ जीवन में स्थिरता, सुरक्षा और आंतरिक शक्ति का अनुभव कराता है।

FAQ

बटुक भैरव और काल भैरव में क्या अंतर है?

क्या इस स्तोत्र का जप रात में किया जा सकता है?

क्या इसे बिना गुरु के पढ़ सकते हैं?

हां, श्रद्धा और शुद्ध हृदय से पढ़ा गया स्तोत्र गुरु रूप में स्वयं भैरव जी की कृपा दिलाता है।

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