Ramayan Manka 108 रघुपति राघव राजाराम... पतितपावन सीताराम ॥ जय रघुनन्दन जय घनश्याम... पतितपावन सीताराम ॥ भीड़ पड़ी जब भक्त पुकारे... दूर करो प्रभु दु:ख हमारे ॥ दशरथ के घर जन्मे राम... पतितपावन सीताराम ॥ 1 ॥ विश्वामित्र मुनीश्वर आये... दशरथ भूप से वचन सुनाये ॥ संग में भेजे लक्ष्मण राम... पतितपावन सीताराम ॥ 2 ॥ वन में जाए ताड़का मारी... चरण छुआए अहिल्या तारी ॥ ऋषियों के दु:ख हरते राम... पतितपावन सीताराम ॥ 3 ॥ जनक पुरी रघुनन्दन आए... नगर निवासी दर्शन पाए ॥ सीता के मन भाए राम... पतितपावन सीताराम ॥ 4॥ रघुनन्दन ने धनुष चढ़ाया... सब राजो का मान घटाया ॥ सीता ने वर पाए राम... पतितपावन सीताराम ॥5॥ परशुराम क्रोधित हो आये... दुष्ट भूप मन में हरषाये ॥ जनक राय ने किया प्रणाम... पतितपावन सीताराम ॥6॥ बोले लखन सुनो मुनि ग्यानी... संत नहीं होते अभिमानी ॥ मीठी वाणी बोले राम... पतितपावन सीताराम ॥7॥ लक्ष्मण वचन ध्यान मत दीजो... जो कुछ दण्ड दास को दीजो ॥ धनुष तोडय्या हूँ मै राम... पतितपावन सीताराम ॥8॥ लेकर के यह धनुष चढ़ाओ... अपनी शक्ति मुझे दिखलाओ ॥ छूवत चाप चढ़ाये राम... पतितपावन सीताराम ॥9॥ हुई उर्मिला लखन की नारी... श्रुतिकीर्ति रिपुसूदन प्यारी ॥ हुई माण्डव भरत के बाम... पतितपावन सीताराम ॥10॥ अवधपुरी रघुनन्दन आये... घर-घर नारी मंगल गाये ॥ बारह वर्ष बिताये राम... पतितपावन सीताराम ॥11॥ गुरु वशिष्ठ से आज्ञा लीनी... राज तिलक तैयारी कीनी ॥ कल को होंगे राजा राम... पतितपावन सीताराम ॥12॥ कुटिल मंथरा ने बहकाई... कैकई ने यह बात सुनाई ॥ दे दो मेरे दो वरदान... पतितपावन सीताराम ॥13॥ मेरी विनती तुम सुन लीजो... भरत पुत्र को गद्दी दीजो ॥ होत प्रात वन भेजो राम... पतितपावन सीताराम ॥14॥ धरनी गिरे भूप ततकाला... लागा दिल में सूल विशाला ॥ तब सुमन्त बुलवाये राम... पतितपावन सीताराम ॥15॥ राम पिता को शीश नवाये... मुख से वचन कहा नहीं जाये ॥ कैकई वचन सुनयो राम... पतितपावन सीताराम ॥16॥ राजा के तुम प्राण प्यारे... इनके दु:ख हरोगे सारे ॥ अब तुम वन में जाओ राम... पतितपावन सीताराम ॥17॥ वन में चौदह वर्ष बिताओ... रघुकुल रीति-नीति अपनाओ ॥ तपसी वेष बनाओ राम... पतितपावन सीताराम ॥18॥ सुनत वचन राघव हरषाये... माता जी के मंदिर आये ॥ चरण कमल मे किया प्रणाम... पतितपावन सीताराम ॥19॥ माता जी मैं तो वन जाऊं... चौदह वर्ष बाद फिर आऊं ॥ चरण कमल देखूं सुख धाम... पतितपावन सीताराम ॥20॥ सुनी शूल सम जब यह बानी... भू पर गिरी कौशल्या रानी ॥ धीरज बंधा रहे श्रीराम... पतितपावन सीताराम ॥21॥ सीताजी जब यह सुन पाई... रंग महल से नीचे आई ॥ कौशल्या को किया प्रणाम... पतितपावन सीताराम ॥22॥ मेरी चूक क्षमा कर दीजो... वन जाने की आज्ञा दीजो ॥ सीता को समझाते राम... पतितपावन सीताराम ॥23॥ मेरी सीख सिया सुन लीजो... सास ससुर की सेवा कीजो ॥ मुझको भी होगा विश्राम... पतितपावन सीताराम ॥24॥ मेरा दोष बता प्रभु दीजो... संग मुझे सेवा में लीजो ॥ अर्द्धांगिनी तुम्हारी राम... पतितपावन सीताराम ॥25॥ समाचार सुनि लक्ष्मण आये... धनुष बाण संग परम सुहाये ॥ बोले संग चलूंगा राम... पतितपावन सीताराम ॥26॥ राम लखन मिथिलेश कुमारी... वन जाने की करी तैयारी ॥ रथ में बैठ गये सुख धाम... पतितपावन सीताराम ॥27॥ अवधपुरी के सब नर नारी... समाचार सुन व्याकुल भारी ॥ मचा अवध में कोहराम... पतितपावन सीताराम ॥28॥ श्रृंगवेरपुर रघुवर आये... रथ को अवधपुरी लौटाये ॥ गंगा तट पर आये राम... पतितपावन सीताराम ॥29॥ केवट कहे चरण धुलवाओ... पीछे नौका में चढ़ जाओ ॥ पत्थर कर दी, नारी राम... पतितपावन सीताराम ॥30॥ लाया एक कठौता पानी... चरण कमल धोये सुख मानी ॥ नाव चढ़ाये लक्ष्मण राम... पतितपावन सीताराम ॥31॥ उतराई में मुदरी दीनी... केवट ने यह विनती कीनी ॥ उतराई नहीं लूंगा राम... पतितपावन सीताराम ॥32॥ तुम आये, हम घाट उतारे... हम आयेंगे घाट तुम्हारे ॥ तब तुम पार लगायो राम... पतितपावन सीताराम ॥33॥ भरद्वाज आश्रम पर आये... राम लखन ने शीष नवाए ॥ एक रात कीन्हा विश्राम... पतितपावन सीताराम ॥34॥ भाई भरत अयोध्या आये... कैकई को कटु वचन सुनाये ॥ क्यों तुमने वन भेजे राम... पतितपावन सीताराम ॥35॥ चित्रकूट रघुनंदन आये... वन को देख सिया सुख पाये ॥ मिले भरत से भाई राम... पतितपावन सीताराम ॥36॥ अवधपुरी को चलिए भाई... यह सब कैकई की कुटिलाई ॥ तनिक दोष नहीं मेरा राम... पतितपावन सीताराम ॥37॥ चरण पादुका तुम ले जाओ... पूजा कर दर्शन फल पावो ॥ भरत को कंठ लगाये राम... पतितपावन सीताराम ॥38॥ आगे चले राम रघुराया... निशाचरों का वंश मिटाया ॥ ऋषियों के हुए पूरन काम... पतितपावन सीताराम ॥39॥ अनसूया की कुटीया आये... दिव्य वस्त्र सिय मां ने पाय ॥ था मुनि अत्री का वह धाम... पतितपावन सीताराम ॥40॥ मुनि-स्थान आए रघुराई... शूर्पनखा की नाक कटाई ॥ खरदूषन को मारे राम... पतितपावन सीताराम ॥41॥ पंचवटी रघुनंदन आए... कनक मृग मारीच संग धाये ॥ लक्ष्मण तुम्हें बुलाते राम... पतितपावन सीताराम ॥42॥ रावण साधु वेष में आया... भूख ने मुझको बहुत सताया ॥ भिक्षा दो यह धर्म का काम... पतितपावन सीताराम ॥43॥ भिक्षा लेकर सीता आई... हाथ पकड़ रथ में बैठाई ॥ सूनी कुटिया देखी भाई... पतितपावन सीताराम ॥44॥ धरनी गिरे राम रघुराई... सीता के बिन व्याकुलताई ॥ हे प्रिय सीते, चीखे राम... पतितपावन सीताराम ॥45॥ लक्ष्मण, सीता छोड़ नहीं तुम आते... जनक दुलारी नहीं गंवाते ॥ बने बनाये बिगड़े काम... पतितपावन सीताराम ॥46 ॥ कोमल बदन सुहासिनि सीते... तुम बिन व्यर्थ रहेंगे जीते ॥ लगे चाँदनी-जैसे घाम... पतितपावन सीताराम ॥47॥ सुन री मैना, सुन रे तोता... मैं भी पंखो वाला होता ॥ वन वन लेता ढूंढ तमाम... पतितपावन सीताराम ॥48 ॥ श्यामा हिरनी, तू ही बता दे... जनक नन्दनी मुझे मिला दे ॥ तेरे जैसी आँखे श्याम... पतितपावन सीताराम ॥49॥ वन वन ढूंढ रहे रघुराई... जनक दुलारी कहीं न पाई ॥ गृद्धराज ने किया प्रणाम... पतितपावन सीताराम ॥50॥ चख चख कर फल शबरी लाई... प्रेम सहित खाये रघुराई ॥ ऎसे मीठे नहीं हैं आम... पतितपावन सीताराम ॥51॥ विप्र रुप धरि हनुमत आए... चरण कमल में शीश नवाये ॥ कन्धे पर बैठाये राम... पतितपावन सीताराम ॥52॥ सुग्रीव से करी मिताई... अपनी सारी कथा सुनाई ॥ बाली पहुंचाया निज धाम... पतितपावन सीताराम ॥53॥ सिंहासन सुग्रीव बिठाया... मन में वह अति हर्षाया ॥ वर्षा ऋतु आई हे राम... पतितपावन सीताराम ॥54॥ हे भाई लक्ष्मण तुम जाओ... वानरपति को यूं समझाओ ॥ सीता बिन व्याकुल हैं राम... पतितपावन सीताराम ॥55॥ देश देश वानर भिजवाए... सागर के सब तट पर आए ॥ सहते भूख प्यास और घाम ... पतितपावन सीताराम ॥56॥ सम्पाती ने पता बताया... सीता को रावण ले आया ॥ सागर कूद गए हनुमान... पतितपावन सीताराम ॥57॥ कोने कोने पता लगाया... भगत विभीषण का घर पाया ॥ हनुमान को किया प्रणाम... पतितपावन सीताराम ॥58॥ अशोक वाटिका हनुमत आए... वृक्ष तले सीता को पाये ॥ आँसू बरसे आठो याम ... पतितपावन सीताराम ॥59॥ रावण संग निशिचरी लाके ... सीता को बोला समझा के ॥ मेरी ओर तुम देखो बाम... पतितपावन सीताराम ॥60॥ मन्दोदरी बना दूँ दासी... सब सेवा में लंका वासी ॥ करो भवन में चलकर विश्राम... पतितपावन सीताराम ॥61॥ चाहे मस्तक कटे हमारा... मैं नहीं देखूं बदन तुम्हारा ॥ मेरे तन मन धन है राम... पतितपावन सीताराम ॥62॥ ऊपर से मुद्रिका गिराई... सीता जी ने कंठ लगाई ॥ हनुमान ने किया प्रणाम... पतितपावन सीताराम ॥63॥ मुझको भेजा है रघुराया... सागर लांघ यहां मैं आया ॥ मैं हूं राम दास हनुमान... पतितपावन सीताराम ॥64॥ भूख लगी फल खाना चाहूँ ... जो माता की आज्ञा पाऊँ ॥ सब के स्वामी हैं श्री राम... पतितपावन सीताराम ॥65॥ सावधान हो कर फल खाना... रखवालों को भूल ना जाना ॥ निशाचरों का है यह धाम ... पतितपावन सीताराम ॥66॥ हनुमान ने वृक्ष उखाड़े ... देख देख माली ललकारे ॥ मार-मार पहुंचाये धाम... पतितपावन सीताराम ॥67॥ अक्षय कुमार को स्वर्ग पहुंचाया... इन्द्रजीत को फांसी ले आया ॥ ब्रह्मफांस से बंधे हनुमान... पतितपावन सीताराम ॥68॥ सीता को तुम लौटा दीजो... उन से क्षमा याचना कीजो ॥ तीन लोक के स्वामी राम... पतितपावन सीताराम ॥69॥ भगत बिभीषण ने समझाया... रावण ने उसको धमकाया ॥ सनमुख देख रहे रघुराई... पतितपावन सीताराम ॥70॥ रूई, तेल घृत वसन मंगाई... पूंछ बांध कर आग लगाई ॥ पूंछ घुमाई है हनुमान... पतितपावन सीताराम ॥71॥ सब लंका में आग लगाई... सागर में जा पूंछ बुझाई ॥ ह्रदय कमल में राखे राम... पतितपावन सीताराम ॥72॥ सागर कूद लौट कर आये... समाचार रघुवर ने पाये ॥ दिव्य भक्ति का दिया इनाम... पतितपावन सीताराम ॥73॥ वानर रीछ संग में लाए... लक्ष्मण सहित सिंधु तट आए ॥ लगे सुखाने सागर राम... पतितपावन सीताराम ॥74॥ सेतू कपि नल नील बनावें... राम-राम लिख सिला तिरावें ॥ लंका पहुँचे राजा राम ... पतितपावन सीताराम ॥75॥ अंगद चल लंका में आया... सभा बीच में पांव जमाया ॥ बाली पुत्र महा बलधाम... पतितपावन सीताराम ॥76॥ रावण पाँव हटाने आया... अंगद ने फिर पांव उठाया ॥ क्षमा करें तुझको श्री राम ... पतितपावन सीताराम ॥77॥ निशाचरों की सेना आई... गरज तरज कर हुई लड़ाई ॥ वानर बोले जय सिया राम... पतितपावन सीताराम ॥78॥ इन्द्रजीत ने शक्ति चलाई... धरनी गिरे लखन मुरझाई ॥ चिन्ता करके रोये राम... पतितपावन सीताराम ॥79॥ जब मैं अवधपुरी से आया... हाय पिता ने प्राण गंवाया ॥ वन में गई चुराई बाम... पतितपावन सीताराम ॥80॥ भाई तुमने भी छिटकाया... जीवन में कुछ सुख नहीं पाया ॥ सेना में भारी कोहराम... पतितपावन सीताराम ॥81। जो संजीवनी बूटी को लाए... तो भाई जीवित हो जाये ॥ बूटी लायेगा हनुमान... पतितपावन सीताराम ॥82॥ जब बूटी का पता न पाया... पर्वत ही लेकर के आया ॥ काल नेम पहुंचाया धाम ... पतितपावन सीताराम ॥83॥ भक्त भरत ने बाण चलाया... चोट लगी हनुमत लंगड़ाया ॥ मुख से बोले जय सिया राम... पतितपावन सीताराम ॥84॥ बोले भरत बहुत पछताकर... पर्वत सहित बाण बैठाकर ॥ तुम्हें मिला दूं राजा राम... पतितपावन सीताराम ॥85॥ बूटी लेकर हनुमत आया... लखन लाल उठ शीष नवाया ॥ हनुमत कंठ लगाये राम... पतितपावन सीताराम ॥86॥ कुंभकरन उठकर तब आया... इन्द्रजीत पहुँचाया धाम... पतितपावन सीताराम ॥87॥ दुर्गापूजन रावण कीनो ... नौ दिन तक आहार न लीनो ॥ आसन बैठ किया है ध्यान ... पतितपावन सीताराम ॥88॥ रावण का व्रत खंडित कीना ... परम धाम पहुँचा ही दीना ॥ वानर बोले जय श्री राम... पतितपावन सीताराम ॥89॥ सीता ने हरि दर्शन कीना... चिन्ता शोक सभी तज दीना ॥ हँस कर बोले राजा राम... पतितपावन सीताराम ॥90॥ पहले अग्नि परीक्षा पाओ... पीछे निकट हमारे आओ ॥ तुम हो पतिव्रता हे बाम... पतितपावन सीताराम ॥91॥ करी परीक्षा कंठ लगाई... सब वानर सेना हरषाई ॥ राज्य बिभीषन दीन्हा राम ... पतितपावन सीताराम ॥92॥ फिर पुष्पक विमान मंगाया... सीता सहित बैठे रघुराया ॥ दण्डकवन में उतरे राम... पतितपावन सीताराम ॥93॥ ऋषिवर सुन दर्शन को आये... स्तुति कर मन में हर्षाये ॥ तब गंगा तट आये राम... पतितपावन सीताराम ॥94॥ नन्दी ग्राम पवनसुत आये... भाई भरत को वचन सुनाए ॥ लंका से आए हैं राम... पतितपावन सीताराम ॥95॥ कहो विप्र तुम कहां से आए... ऎसे मीठे वचन सुनाए ॥ मुझे मिला दो भैया राम... पतितपावन सीताराम ॥96॥ अवधपुरी रघुनन्दन आये... मंदिर-मंदिर मंगल छाये ॥ माताओं ने किया प्रणाम ... पतितपावन सीताराम ॥97॥ भाई भरत को गले लगाया... सिंहासन बैठे रघुराया ॥ जग ने कहा, हैं राजा राम ... पतितपावन सीताराम ॥98॥ सब भूमि विप्रो को दीनी ... विप्रों ने वापस दे दीनी ॥ हम तो भजन करेंगे राम ... पतितपावन सीताराम ॥99॥ धोबी ने धोबन धमकाई... रामचन्द्र ने यह सुन पाई ॥ वन में सीता भेजी राम... पतितपावन सीताराम ॥100॥ बाल्मीकि आश्रम में आई... लव व कुश हुए दो भाई ॥ धीर वीर ज्ञानी बलवान... पतितपावन सीताराम ॥101॥ अश्वमेघ यज्ञ किन्हा राम ... सीता बिन सब सूने काम ॥ लव कुश वहां दीयो पहचान ... पतितपावन सीताराम ॥102॥ सीता, राम बिना अकुलाई... भूमि से यह विनय सुनाई ॥ मुझको अब दीजो विश्राम... पतितपावन सीताराम ॥103॥ सीता भूमि में समाई... देखकर चिन्ता की रघुराई ॥ बार बार पछताये राम... पतितपावन सीताराम ॥104॥ राम राज्य में सब सुख पावें... प्रेम मग्न हो हरि गुन गावें ॥ दुख कलेश का रहा न नाम... पतितपावन सीताराम ॥105॥ ग्यारह हजार वर्ष परयन्ता ... राज कीन्ह श्री लक्ष्मी कंता ॥ फिर बैकुण्ठ पधारे धाम ... पतितपावन सीताराम ॥106॥ अवधपुरी बैकुण्ठ सिधाई... नर नारी सबने गति पाई ॥ शरनागत प्रतिपालक राम... पतितपावन सीताराम ॥107॥ श्याम सुंदर ने लीला गाई... मेरी विनय सुनो रघुराई ॥ भूलूँ नहीं तुम्हारा नाम... पतितपावन सीताराम ॥108॥

रामायण मनका | Ramayan Manka 108 : परेशानियों से छुटकारा

इस रामायण मनका में 108 छंद भगवान श्री राम की स्तुति के लिए दिए गए हैं। यह भगवान राम के प्रेमियों  के लिए उपलब्ध है जो भी भक्त अपने जीवन के परेशानियों से जूझ रहा है उन परेशानियों से जल्दी छुटकारा पाने के लिए आप Ramayan Manka 108 बार पाठ कर सकते है। Ramayan Manka … Read more

Shiv Panchakshar Stotra Lyrics नागेन्द्रहाराय त्रिलोचनाय...! भस्माङ्गरागाय महेश्वराय !! नित्याय शुद्धाय दिगम्बराय...! तस्मै न काराय नमः शिवाय ॥१॥ मन्दाकिनी सलिलचन्दन चर्चिताय...! नन्दीश्वर प्रमथनाथ महेश्वराय !! मन्दारपुष्प बहुपुष्प सुपूजिताय...! तस्मै म काराय नमः शिवाय ॥२॥ शिवाय गौरीवदनाब्जवृन्द...! सूर्याय दक्षाध्वरनाशकाय !! श्रीनीलकण्ठाय वृषध्वजाय...! तस्मै शि काराय नमः शिवाय ॥३॥ वसिष्ठकुम्भोद्भवगौतमार्य...! मुनीन्द्रदेवार्चितशेखराय !! चन्द्रार्क वैश्वानरलोचनाय...! तस्मै व काराय नमः शिवाय ॥४॥ यक्षस्वरूपाय जटाधराय...! पिनाकहस्ताय सनातनाय !! दिव्याय देवाय दिगम्बराय...! तस्मै य काराय नमः शिवाय ॥५॥ पञ्चाक्षरमिदं पुण्यं यः पठेच्छिवसन्निधौ !! शिवलोकमवाप्नोति शिवेन सह मोदते !!

शिव पंचाक्षर स्तोत्र | Shiv Panchakshar Stotra Lyrics : नमः शिवाय का गुणगान

शिव पंचाक्षर स्तोत्र भगवान शिव के गुणों का बखान करने वाला एक प्रमुख स्तोत्र है जिसे हमारे हिन्दू धर्म में अधिक महत्व दिया जाता है। इस स्तोत्र में पाँच अक्षरों का (नमः शिवाय) महत्त्वपूर्ण गुणगान होता है, जो भगवान शिव की महत्त्वपूर्ण  बातों को बताता है।यह Shiv Panchakshar Stotra Lyrics व्यक्ति के मन को शांत रखता है बुद्धि और … Read more

विन्धेश्वरी स्तोत्र | Vindheshwari Stotra निशुम्भ-शुम्भ-गर्जनीं, प्रचण्ड-मुण्ड-खण्डिनीम्... वने रणे प्रकाशिनीं भजामि विन्ध्यवासिनीम् !! त्रिशुल-मुण्ड-धारिणीं धरा-विघात-हारिणीम्... गृहे-गृहे निवासिनीं भजामि विन्ध्यवासिनीम् !! दरिद्रदुःख-हारिणीं, सदा विभुतिकारिणीम्... वियोग-शोक-हारिणीं, भजामि विन्ध्यवासिनीम् !! लसत्सुलोल-लोचनं लतासनं वरप्रदम्... कपाल-शुल-धारिणीं, भजामि विन्ध्यवासिनीम् !! कराब्जदानदाधरां, शिवाशिवां प्रदायिनीम्... वरा-वराननां शुभां भजामि विन्ध्यवासिनीम् !! ऋषिन्द्रजामिनीप्रदां, त्रिधा स्वरूप-धारिणीम्... जले स्थले निवासिनीं, भजामि विन्ध्यवासिनीम् !! विशिष्ट-शिष्ट-कारिणीं, विशाल रूप-धारिणीम्... महोदरे विलासिनीं, भजामि विन्ध्यवासिनीम् !! पुरन्दरादि-सेवितां पुरादिवंशखण्डिताम्... विशुद्ध-बुद्धिकारिणीं, भजामि विन्ध्यवासिनीम् !!

विन्धेश्वरी स्तोत्र | Vindheshwari Stotra : आनंद और शांति की प्राप्ति

इस प्राचीन विन्धेश्वरी स्तोत्र के माध्यम से, हम माँ विन्धेश्वरी की शक्तियों का गुणगान करते हैं। जो अपनी कृपा से लोगों का भला करती हैं। Vindheshwari stotra को आप अपने जीवन में ध्यान और पूजा का हिस्सा बनाकर अपने जीवन को सुखी बना सकते हैं। इस स्तोत्र का पाठ करने से हमारा  जीवन आनंद और शांतिमय … Read more

Siddha Kunjika Stotram शिव उवाच शृणु देवि प्रवक्ष्यामि, कुञ्जिकास्तोत्रमुत्तमम्... येन मन्त्रप्रभावेण चण्डीजापः शुभो भवेत !! 1 !! न कवचं नार्गलास्तोत्रं कीलकं न रहस्यकम्... न सूक्तं नापि ध्यानं च न न्यासो न च वार्चनम् !! 2 !! कुञ्जिकापाठमात्रेण दुर्गापाठफलं लभेत्... अति गुह्यतरं देवि देवानामपि दुर्लभम् !! 3 !! गोपनीयं प्रयत्नेन स्वयोनिरिव पार्वति... मारणं मोहनं वश्यं स्तम्भनोच्चाटनादिकम्। पाठमात्रेण संसिद्ध्येत् कुञ्जिकास्तोत्रमुत्तमम् !! 4 !! ॥अथ मन्त्रः॥ ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे। ॐ ग्लौ हुं क्लीं जूं स: ... ज्वालय ज्वालय ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ज्वल हं सं लं क्षं फट् स्वाहा !! ॥इति मन्त्रः॥ नमस्ते रूद्ररूपिण्यै नमस्ते मधुमर्दिनि... नमः कैटभहारिण्यै नमस्ते महिषार्दिनि !! 1 !! नमस्ते शुम्भहन्त्र्यै च निशुम्भासुरघातिनि !! 2 !! जाग्रतं हि महादेवि जपं सिद्धं कुरूष्व मे... ऐंकारी सृष्टिरूपायै ह्रींकारी प्रतिपालिका !! 3 !! क्लींकारी कामरूपिण्यै बीजरूपे नमोऽस्तु ते... चामुण्डा चण्डघाती च यैकारी वरदायिनी !! 4 !! विच्चे चाभयदा नित्यं नमस्ते मन्त्ररूपिणि !! 5 !! धां धीं धूं धूर्जटेः पत्नी वां वीं वूं वागधीश्वरी... क्रां क्रीं क्रूं कालिका देवि शां शीं शूं मे शुभं कुरु !! 6 !! हुं हुं हुंकाररूपिण्यै जं जं जं जम्भनादिनी... भ्रां भ्रीं भ्रूं भैरवी भद्रे भवान्यै ते नमो नमः !! 7 !! अं कं चं टं तं पं यं शं वीं दुं ऐं वीं हं क्षं धिजाग्रं धिजाग्रं त्रोटय त्रोटय दीप्तं कुरु कुरु स्वाहा॥ पां पीं पूं पार्वती पूर्णा खां खीं खूं खेचरी तथा !! 8 !! सां सीं सूं सप्तशती देव्या मन्त्रसिद्धिं कुरुष्व मे !! इदं तु कुञ्जिकास्तोत्रं मन्त्रजागर्तिहेतवे... अभक्ते नैव दातव्यं गोपितं रक्ष पार्वति !! यस्तु कुञ्जिकाया देवि हीनां सप्तशतीं पठेत्... न तस्य जायते सिद्धिररण्ये रोदनं यथा !! इति श्रीरुद्रयामले गौरीतन्त्रे शिवपार्वतीसंवादे कुञ्जिकास्तोत्रं सम्पूर्णम्। !! ॐ तत्सत् !!

Siddha Kunjika Stotram | सिद्ध कुंजिका स्तोत्र : चमत्कारी मंत्र

सिद्ध कुंजिका स्तोत्र माँ दुर्गा की एक प्राचीन संस्कृत मंत्र है, जो उनके शक्तियों का वर्णन करता है। यह Siddha Kunjika Stotram बहुत ही चमत्कारी मंत्र है। इस मंत्र का गोपनीय जाप करने से भक्तों को अधिक लाभ और सफलता मिलता है। ॥सिद्धकुञ्जिकास्तोत्रम्॥ शिव उवाचशृणु देवि प्रवक्ष्यामि, कुञ्जिकास्तोत्रमुत्तमम्…येन मन्त्रप्रभावेण चण्डीजापः शुभो भवेत !! 1 !! … Read more

bajrang baan दोहा निश्चय प्रेम प्रतीति ते, बिनय करैं सनमान ! तेहि के कारज सकल शुभ, सिद्ध करैं हनुमान ॥ चौपाई जय हनुमन्त सन्त हितकारी ! सुन लीजै प्रभु अरज हमारी ॥ जन के काज विलम्ब न कीजै ! आतुर दौरि महासुख दीजै ॥ जैसे कूदि सिन्धु महि पारा ! सुरसा बदन पैठि विस्तारा ॥ आगे जाई लंकिनी रोका ! मारेहु लात गई सुर लोका ॥ जाय विभीषण को सुख दीन्हा ! सीता निरखि परमपद लीन्हा ॥ बाग उजारि सिन्धु महँ बोरा ! अति आतुर जमकातर तोरा ॥ अक्षयकुमार को मारि संहारा ! लूम लपेट लंक को जारा ॥ लाह समान लंक जरि गई ! जय जय धुनि सुरपुर में भई ॥ अब विलम्ब केहि कारण स्वामी ! कृपा करहु उर अन्तर्यामी ॥ जय जय लक्ष्मण प्राण के दाता ! आतुर होय दुख हरहु निपाता ॥ जै गिरिधर जै जै सुखसागर ! सुर समूह समरथ भटनागर ॥ ॐ हनु हनु हनुमंत हठीले ! बैरिहिं मारु बज्र की कीले ॥ गदा बज्र लै बैरिहिं मारो ! महाराज प्रभु दास उबारो ॥ ऊँकार हुंकार प्रभु धावो ! बज्र गदा हनु विलम्ब न लावो ॥ ॐ ह्रीं ह्रीं ह्रीं हनुमंत कपीसा ! ऊँ हुं हुं हुं हनु अरि उर शीशा ॥ सत्य होहु हरि शपथ पाय के ! रामदूत धरु मारु जाय के ॥ जय जय जय हनुमन्त अगाधा ! दुःख पावत जन केहि अपराधा ॥ पूजा जप तप नेम अचारा ! नहिं जानत हौं दास तुम्हारा ॥ वन उपवन, मग गिरिगृह माहीं ! तुम्हरे बल हम डरपत नाहीं ॥ पांय परों कर ज़ोरि मनावौं ! यहि अवसर अब केहि गोहरावौं॥ जय अंजनिकुमार बलवन्ता ! शंकरसुवन वीर हनुमन्ता ॥ बदन कराल काल कुल घालक ! राम सहाय सदा प्रतिपालक ॥ भूत प्रेत पिशाच निशाचर ! अग्नि बेताल काल मारी मर ॥ इन्हें मारु तोहिं शपथ राम की ! राखु नाथ मरजाद नाम की ॥ जनकसुता हरिदास कहावौ ! ताकी शपथ विलम्ब न लावो ॥ जय जय जय धुनि होत अकाशा ! सुमिरत होत दुसह दुःख नाशा ॥ चरण शरण कर ज़ोरि मनावौ ! यहि अवसर अब केहि गोहरावौं॥ उठु उठु चलु तोहि राम दुहाई ! पांय परों कर ज़ोरि मनाई॥ ॐ चं चं चं चं चपत चलंता ! ऊँ हनु हनु हनु हनु हनुमन्ता॥ ऊँ हँ हँ हांक देत कपि चंचल ! ऊँ सं सं सहमि पराने खल दल॥ अपने जन को तुरत उबारो ! सुमिरत होय आनन्द हमारो॥ यह बजरंग बाण जेहि मारै ! ताहि कहो फिर कौन उबारै॥ पाठ करै बजरंग बाण की ! हनुमत रक्षा करै प्राण की॥ यह बजरंग बाण जो जापै ! ताते भूत प्रेत सब काँपै ॥ धूप देय अरु जपै हमेशा ! ताके तन नहिं रहै कलेशा॥ दोहा ॥ प्रेम प्रतीतहि कपि भजै, सदा धरैं उर ध्यान ॥ ॥ तेहि के कारज सकल शुभ, सिद्घ करैं हनुमान॥

बजरंग बाण | Bajrang Baan : हनुमान जी की कृपा

बजरंग बाण, एक बहुत शक्तिशाली आध्यात्मिक और प्राचीन मंत्र है जो हिन्दू धर्म में खास महत्व रखता है। इस मंत्र का उपयोग भक्त अपनी सुरक्षा, सुख, और समृद्धि के लिए करते हैं। इस Bajrang baan का जाप करने से भक्तों को भगवान हनुमान की कृपा और आशीर्वाद प्राप्त होता है। हमने यहाँ आपके सुविधा के लिए … Read more

Ram Raksha Stotra ॥विनियोग:॥ अस्य श्रीरामरक्षास्त्रोतमन्त्रस्य बुधकौशिक ऋषिः। श्री सीतारामचंद्रो देवता। अनुष्टुप छंदः। सीता शक्तिः। श्रीमान हनुमान कीलकम। श्री सीतारामचंद्रप्रीत्यर्थे रामरक्षास्त्रोतजपे विनियोगः। ॥अथ ध्यानम॥ ध्यायेदाजानुबाहुं धृतशरधनुषं बद्धपद्मासनस्थं, पीतं वासो वसानं नवकमल दलस्पर्धिनेत्रं प्रसन्नम्। वामांकारूढ़ सीता मुख कमल मिलल्लोचनं नीरदाभं, नाना लंका रदीप्तं दधत मुरुजटा मण्डलं रामचन्द्रम्। ॥स्तोत्रम॥ चरितं रघुनाथस्य शतकोटिप्रविस्तरम्। एकैकमक्षरं पुंसां महापातकनाशनम् ॥1॥ ध्यात्वा नीलोत्पलश्याम रामं राजीवलोचनम। जानकी लक्ष्मणोपेतं जटामुकुटमण्डितम ॥2॥ सासितूण – धनुर्बाणपाणिं नक्तंचरान्तकम। स्वलीलया जगत्त्रातुमाविर्भूतमजं विभुम ॥3॥ रामरक्षां पठेत प्राज्ञ: पापघ्नीं सर्वकामदाम। शिरो में राघवं पातु भालं दशरथात्मज: ॥4॥ कौसल्येयो दृशौ पातु विश्वामित्रप्रिय: श्रुती। घ्राणं पातु मखत्राता मुखं सौमित्रिवत्सल: ॥5॥ जिव्हां विद्यानिधि पातु कण्ठं भरतवन्दित:। स्कन्धौ दिव्यायुध: पातु भुजौ भग्नेशकार्मुक: ॥6॥ करौ सीतापति: पातु हृदयं जामदग्न्यजित। मध्यं पातु खरध्वंसी नाभिं जाम्बवदाश्रय: ॥7॥ सुग्रीवेश: कटी पातु सक्थिनी हनुत्मप्रभु:। ऊरू रघूत्तम: पातु रक्ष:कुलविनाशकृत ॥8॥ जानुनी सेतकृत्पातु जंघे दशमुखान्तक:। पादौ विभीषणश्रीद: पातु रामोsखिलं वपु: ॥9॥ एतां रामबलोपेतां रक्षां य: सुकृती पठेत। स चिरायु: सुखी पुत्री विजयी विनयी भवेत ॥10॥ पातालभूतलव्योमचारिण श्छद्मचारिण:। न द्रष्टुमपि शक्तास्ते रक्षितं रामनामभि: ॥11॥ रामेति रामभद्रेति रामचन्द्रेति वा स्मरन। नरो न लिप्यते पापैर्भुक्तिं मुक्तिं च विन्दति ॥12॥ जगज्जैत्रैकमन्त्रेण रामनाम्नाभिरक्षितम। य: कण्ठे धारयेत्तस्य करस्था: सर्वसिद्धय: ॥13॥ वज्रपंजरनामेदं यो रामकवचं स्मरेत। अव्याहताज्ञ: सर्वत्र लभते जयमंगलम ॥14॥ आदिष्टवान्यथा स्वप्ने रामरक्षामिमां हर:। तथा लिखितवान्प्रात: प्रबुद्धो बुधकौशिक: ॥15॥ आराम: कल्पवृक्षाणां विराम: सकलापदाम। अभिरामस्त्रिलोकानां राम: श्रीमान्स न: प्रभु: ॥16॥ तरुणौ रूपसम्पन्नौ सुकुमारौ महाबलौ। पुण्डरीकविशालाक्षौ चीरकृष्णाजिनाम्बरौ ॥17॥ फलमूलाशिनौ दान्तौ तापसौ ब्रह्मचारिणौ। पुत्रौ दशरथस्यैतौ भ्रातरौ रामलक्ष्मणौ ॥18॥ शरण्यौ सर्वसत्त्वानां श्रेष्ठौ सर्वधनुष्मताम। रक्ष: कुलनिहन्तारौ त्रायेतां नो रघूत्तमौ ॥ 9॥ आत्तसज्जधनुषाविषुस्पृशावक्षयाशुगनिषंगसंगिनौ। रक्षणाय मम रामलक्ष्मणावग्रत: पथि सदैव गच्छताम ॥20॥ सन्नद्ध: कवची खड़्गी चापबाणधरो युवा। गच्छन्मनोरथान्नश्च राम: पातु सलक्ष्मण: ॥21॥ रामो दाशरथि: शूरो लक्ष्मणानुचरो बली। काकुत्स्थ: पुरुष: पूर्ण: कौसल्लेयो रघूत्तम: ॥22॥ वेदान्तवेद्यो यज्ञेश: पुराणपुरुषोत्तम:। जानकीवल्ल्भ: श्रीमानप्रमेयपराक्रम: ॥23॥ इत्येतानि जपन्नित्यं मद्भक्त: श्रद्धयान्वित:। अश्वमेधाधिकं पुण्यं सम्प्राप्नोति न संशय: ॥24॥ रामं दूर्वादलश्यामं पद्माक्षं पीतवाससम। स्तुवन्ति नामभिर्दिव्यैर्न ते संसारिणो नरा: ॥25॥ रामं लक्ष्मणपूर्वजं रघुवरं सीतापतिं सुंदरं। काकुत्स्थं करुणार्णवं गुणनिधिं विप्रप्रियं धार्मिकम ॥26॥ राजेन्द्रं सत्यसन्धं दशरथतनयं श्यामलं शान्तमूर्ति। वन्दे लोकाभिरामं रघुकुलतिलकं राघवं रावणारिम ॥27॥ रामाय रामभद्राय रामचन्द्राय वेधसे। रघुनाथय नाथाय सीताया: पतये नम: ॥28॥ श्रीराम राम रघुनन्दन राम राम श्रीराम राम भरताग्रज राम राम। श्रीराम राम रणकर्कश राम राम श्रीराम राम शरणं भव राम राम ॥29॥ श्रीरामचन्द्रचरणौ मनसा स्मरामि श्रीरामचन्द्रवरणौ वचसा गृणामि। श्रीरामचन्द्रचरणौ शिरसा नमामि श्रीरामचन्द्रचरणौ शरणं प्रपद्ये ॥30॥ माता रामो मत्पिता रामचन्द्र: स्वामी रामो मत्सखा रामचन्द्र:। सर्वस्वं मे रामचन्द्रो दयालुर्नान्यं जाने नैव जाने न जाने ॥31॥ दक्षिणे लक्ष्मणो यस्य वामे च जनकात्मजा। पुरतो मारुतिर्यस्य तं वन्दे रघुनंदनम ॥32॥ लोकाभिरामं रणरंगधीरं राजीवनेत्र रघुवंशनाथम। कारुण्यरुपं करुणाकरं तं श्रीरामचन्द्रं शरणं प्रपद्ये ॥33॥ मनोजवं मारुततुल्यवेगं जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठम। वातात्मजं वानरयूथमुख्यं श्रीरामदूतं शरणं प्रपद्ये ॥34॥ कूजन्तं रामरामेति मधुरं मधुराक्षरम। आरुह्य कविताशाखां वन्दे वाल्मीकिकोकिलम ॥35॥ आपदामपहर्तारं दातारं सर्वसम्पदाम। लोकाभिरामं श्रीरामं भूयो भूयो नमाम्यहम ॥36॥ भर्जनं भवबीजानामर्जनं सुखसम्पदाम। तर्जनं यमदूतानां रामरामेति गर्जनम ॥37॥ रामो राजमणि: सदा विजयते रामं रमेशं भजे, रामेणाभिहता निशाचरचमू, रामाय तस्मै नम: ॥38॥ रामान्नास्ति परायणं परतरं रामस्य दासोsस्म्यहं, रामे चित्तलय: सदा भवतु मे भो राम मामुद्धर ॥39॥ राम रामेति रामेति रमे रामे मनोरमे। सहस्त्र नाम तत्तुल्यं रामनाम वरानने ॥40॥

Ram Raksha Stotra | राम रक्षा स्तोत्र : शत्रु से रक्षा

राम रक्षा स्तोत्र, भगवान राम की स्तुति के लिए बनाया गया है जो भक्तों की रक्षा और समृद्धि के लिए किया जाता है। यह स्तोत्र महर्षि वाल्मीकि के द्वारा लिखे गए रामायण से लिया गया है। राम रक्षा स्तोत्र का पाठ करने से भक्त अध्यात्म से जुड़ते है और खुद को जान पाते हैं। इस … Read more

Shree Hanuman Chalisa ॥ दोहा ॥ श्रीगुरु चरन सरोज रज, निज मनु मुकुरु सुधारि । बरनऊं रघुबर बिमल जसु, जो दायकु फल चारि ॥ बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन-कुमार । बल बुद्धि बिद्या देहु मोहिं, हरहु कलेस बिकार ॥ ॥ चौपाई ॥ जय हनुमान ज्ञान गुन सागर । जय कपीस तिहुं लोक उजागर ॥ रामदूत अतुलित बल धामा । अंजनि-पुत्र पवनसुत नामा ॥ महाबीर बिक्रम बजरंगी । कुमति निवार सुमति के संगी ॥ कंचन बरन बिराज सुबेसा । कानन कुंडल कुंचित केसा ॥ हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजै । कांधे मूंज जनेऊ साजै ॥ संकर सुवन केसरीनंदन । तेज प्रताप महा जग बन्दन ॥ विद्यावान गुनी अति चातुर । राम काज करिबे को आतुर ॥ प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया । राम लखन सीता मन बसिया ॥ सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा । बिकट रूप धरि लंक जरावा ॥ भीम रूप धरि असुर संहारे । रामचंद्र के काज संवारे ॥ लाय सजीवन लखन जियाये । श्रीरघुबीर हरषि उर लाये ॥ रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई । तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई ॥ सहस बदन तुम्हरो जस गावैं । अस कहि श्रीपति कंठ लगावैं ॥ सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा । नारद सारद सहित अहीसा ॥ जम कुबेर दिगपाल जहां ते । कबि कोबिद कहि सके कहां ते ॥ तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा । राम मिलाय राज पद दीन्हा ॥   तुम्हरो मंत्र बिभीषन माना । लंकेस्वर भए सब जग जाना ॥   जुग सहस्र जोजन पर भानू । लील्यो ताहि मधुर फल जानू ॥   प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं । जलधि लांघि गये अचरज नाहीं ॥   दुर्गम काज जगत के जेते । सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते ॥ राम दुआरे तुम रखवारे । होत न आज्ञा बिनु पैसारे ॥ सब सुख लहै तुम्हारी सरना । तुम रक्षक काहू को डर ना ॥ आपन तेज सम्हारो आपै । तीनों लोक हांक तें कांपै ॥ भूत पिसाच निकट नहिं आवै । महाबीर जब नाम सुनावै ॥ नासै रोग हरै सब पीरा । जपत निरंतर हनुमत बीरा ॥ संकट तें हनुमान छुड़ावै । मन क्रम बचन ध्यान जो लावै ॥ सब पर राम तपस्वी राजा । तिन के काज सकल तुम साजा ॥ और मनोरथ जो कोई लावै । सोइ अमित जीवन फल पावै ॥ चारों जुग परताप तुम्हारा । है परसिद्ध जगत उजियारा ॥ साधु-संत के तुम रखवारे । असुर निकंदन राम दुलारे ॥ अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता । अस बर दीन जानकी माता ॥ राम रसायन तुम्हरे पासा । सदा रहो रघुपति के दासा ॥ तुम्हरे भजन राम को पावै । जनम-जनम के दुख बिसरावै ॥ अन्तकाल रघुबर पुर जाई । जहां जन्म हरि-भक्त कहाई ॥ और देवता चित्त न धरई । हनुमत सेइ सर्ब सुख करई ॥ संकट कटै मिटै सब पीरा । जो सुमिरै हनुमत बलबीरा ॥ जै जै जै हनुमान गोसाईं । कृपा करहु गुरुदेव की नाईं ॥ जो सत बार पाठ कर कोई । छूटहि बंदि महा सुख होई ॥ जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा । होय सिद्धि साखी गौरीसा ॥ तुलसीदास सदा हरि चेरा । कीजै नाथ हृदय मंह डेरा ॥ ॥ दोहा ॥ ॥ पवन तनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप ॥ ॥ राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप ॥

श्री हनुमान चालीसा | Shree Hanuman Chalisa : सुख-शांति

श्री हनुमान चालीसा एक प्रसिद्ध हिन्दू धार्मिक ग्रंथ है, इस ग्रंथ में श्री हनुमान जी के महत्वपूर्ण चौपाइयाँ उपलब्ध हैं।हनुमान भक्तों के लिए यह पाठ अधिक लाभदायक है। पाठ करने से सभी भक्तों के जीवन में सफलता प्राप्त होती है। Shree Hanuman Chalisa का पाठ पूरी भक्तिभाव से करने से जीवन में सुख -शांति बनी … Read more

Shri Hari Stotram lyrics जगज्जालपालं चलत्कण्ठमालं शरच्चन्द्रभालं महादैत्यकालं नभोनीलकायं दुरावारमायं सुपद्मासहायम् भजेऽहं भजेऽहं !! 1 !! सदाम्भोधिवासं गलत्पुष्पहासं जगत्सन्निवासं शतादित्यभासं गदाचक्रशस्त्रं लसत्पीतवस्त्रं हसच्चारुवक्त्रं भजेऽहं भजेऽहं !! 2 !! रमाकण्ठहारं श्रुतिव्रातसारं जलान्तर्विहारं धराभारहारं !! चिदानन्दरूपं मनोज्ञस्वरूपं ध्रुतानेकरूपं भजेऽहं भजेऽहं !! 3 !! जराजन्महीनं परानन्दपीनं समाधानलीनं सदैवानवीनं !! जगज्जन्महेतुं सुरानीककेतुं त्रिलोकैकसेतुं भजेऽहं भजेऽहं !! 4 !! कृताम्नायगानं खगाधीशयानं विमुक्तेर्निदानं हरारातिमानं !! स्वभक्तानुकूलं जगद्व्रुक्षमूलं निरस्तार्तशूलं भजेऽहं भजेऽहं !! 5 !! समस्तामरेशं द्विरेफाभकेशं जगद्विम्बलेशं ह्रुदाकाशदेशं !! सदा दिव्यदेहं विमुक्ताखिलेहं सुवैकुण्ठगेहं भजेऽहं भजेऽहं !! 6 !! सुरालिबलिष्ठं त्रिलोकीवरिष्ठं गुरूणां गरिष्ठं स्वरूपैकनिष्ठं !! सदा युद्धधीरं महावीरवीरं महाम्भोधितीरं भजेऽहं भजेऽहं !! 7 !! रमावामभागं तलानग्रनागं कृताधीनयागं गतारागरागं !! मुनीन्द्रैः सुगीतं सुरैः संपरीतं गुणौधैरतीतं भजेऽहं भजेऽहं !! 9 !! इदं यस्तु नित्यं समाधाय चित्तं पठेदष्टकं कण्ठहारम् मुरारे: !! स विष्णोर्विशोकं ध्रुवं याति लोकं जराजन्मशोकं पुनर्विन्दते नो !! 10 !!

श्री हरी स्तोत्रम | Shri Hari Stotram Lyrics : मनोकामनाओं की पूर्ति

श्री हरी स्तोत्रम भगवान विष्णु का एक शक्तिशाली मंत्र है। इस Shri hari stotram lyrics का पाठ स्वामी ब्रह्मानन्दं द्वारा किया गया  है। इसका पाठ करने से आप भगवान विष्णु के साथ माता लक्ष्मी का भी आशीर्वाद और कृपा प्राप्त करते हैं।  आप स्वयं इस श्री हरी स्तोत्रम लिरिक्स के द्वारा पाठ करके श्री विष्णु … Read more

Ganesh Sankat Nashan Stotram !! ॐ श्री गणेशायनमः !! प्रणम्यं शिरसा देव गौरीपुत्रं विनायकम... भक्तावासं: स्मरैनित्यंमायु:कामार्थसिद्धये !! 1 !! प्रथमं वक्रतुंडंच एकदंतं द्वितीयकम... तृतीयं कृष्णं पिङा्क्षं गजवक्त्रं चतुर्थकम !! 2 !! लम्बोदरं पंचमं च षष्ठं विकटमेव च... सप्तमं विघ्नराजेन्द्रं धूम्रवर्ण तथाष्टकम् !! 3 !! नवमं भालचन्द्रं च दशमं तु विनायकम ... एकादशं गणपतिं द्वादशं तु गजाननम !! 4 !! द्वादशैतानि नामानि त्रिसंध्य य: पठेन्नर:... न च विघ्नभयं तस्य सर्वासिद्धिकरं प्रभो !! 5 !! विद्यार्थी लभते विद्यां धनार्थी लभते धनम् ... पुत्रार्थी लभते पुत्रान् मोक्षार्थी लभते गतिम् !! 6 !! जपेद्वगणपतिस्तोत्रं षड्भिर्मासै: फलं लभेत्... संवत्सरेण सिद्धिं च लभते नात्र संशय: !! 7 !! अष्टभ्यो ब्राह्मणेभ्यश्च लिखित्वां य: समर्पयेत... तस्य विद्या भवेत्सर्वा गणेशस्य प्रसादत: !! 8 !! !! इति श्रीनारदपुराणे संकष्टनाशनं गणेशस्तोत्रं सम्पूर्णम्‌ !!

गणेश संकट नाशन स्तोत्र | Ganesh Sankat Nashan Stotram : खुशियों और समृद्धि का आशीर्वाद

यह गणेश संकट नाशन स्तोत्र बहुत प्रसिद्ध और प्रिय स्तोत्र भगवान गणेश की आराधना के लिए किया जाता है। जो संकटों को दूर करने में हमारी सहायता करता है। इस स्तोत्र का पाठ कुछ खास पलों पर किया जाता है, जैसे कि गणेश चतुर्थी और अन्य शुभ कार्यों की पूजा के लिए Ganesh Sankat Nashan … Read more

आदित्य हृदय स्तोत्र | Aditya Hridaya Stotra ततो युद्धपरिश्रान्तं समरे चिन्तया स्थितम् ! रावणं चाग्रतो दृष्टवा युद्धाय समुपस्थितम् ॥1॥ दैवतैश्च समागम्य द्रष्टुमभ्यागतो रणम् ! उपगम्याब्रवीद् राममगरत्यो भगवांस्तदा !! 2 !! राम राम महाबाहो श्रृणु गुह्यं सनातनम् ! येन सर्वानरीन् वत्स समरे विजयिष्यसे !! 3 !! आदित्यहृदयं पुण्यं सर्वशत्रुविनाशनम् ! जयावहं जपं नित्यमक्षयं परमं शिवम् !! 4 !! सर्वमंगलमांगल्यं सर्वपापप्रणाशनम् ! चिन्ताशोकप्रशमनमायुर्वधैनमुत्तमम् !! 5 !! रश्मिमन्तं समुद्यन्तं देवासुरनमस्कृतम् ! पूजयस्व विवस्वन्तं भास्करं भुवनेश्वरम् !! 6 !! सर्वदेवतामको ह्येष तेजस्वी रश्मिभावनः ! एष देवासुरगणाँल्लोकान् पाति गभस्तिभिः !! 7 !! एष ब्रह्मा च विष्णुश्च शिवः स्कन्दः प्रजापतिः ! महेन्द्रो धनदः कालो यमः सोमो ह्यपां पतिः !! 8 !! पितरो वसवः साध्या अश्विनौ मरुतो मनुः ! वायुर्वन्हिः प्रजाः प्राण ऋतुकर्ता प्रभाकरः !! 9 !! आदित्यः सविता सूर्यः खगः पूषा गर्भास्तिमान् ! सुवर्णसदृशो भानुहिरण्यरेता दिवाकरः !! 10 !! हरिदश्वः सहस्रार्चिः सप्तसप्तिर्मरीचिमान् ! तिमिरोन्मथनः शम्भूस्त्ष्टा मार्तण्डकोंऽशुमान् !! 11 !! हिरण्यगर्भः शिशिरस्तपनोऽहरकरो रविः ! अग्निगर्भोऽदितेः पुत्रः शंखः शिशिरनाशनः !! 12 !! व्योमनाथस्तमोभेदी ऋम्यजुःसामपारगः ! घनवृष्टिरपां मित्रो विन्ध्यवीथीप्लवंगमः !! 13 !! आतपी मण्डली मृत्युः पिंगलः सर्वतापनः ! कविर्विश्वो महातेजा रक्तः सर्वभवोदभवः !! 14 !! नक्षत्रग्रहताराणामधिपो विश्वभावनः ! तेजसामपि तेजस्वी द्वादशात्मन् नमोऽस्तु ते !! 15 !! नमः पूर्वाय गिरये पश्चिमायाद्रये नमः ! ज्योतिर्गणानां पतये दिनाधिपतये नमः !! 16 !! जयाय जयभद्राय हर्यश्वाय नमो नमः ! नमो नमः सहस्रांशो आदित्याय नमो नमः !! 17 !! नम उग्राय वीराय सारंगाय नमो नमः ! नमः पद्मप्रबोधाय प्रचण्डाय नमोऽस्तु ते !! 18 !! ब्रह्मेशानाच्युतेशाय सूरायदित्यवर्चसे ! भास्वते सर्वभक्षाय रौद्राय वपुषे नमः !! 19 !! तमोघ्नाय हिमघ्नाय शत्रुघ्नायामितात्मने ! कृतघ्नघ्नाय देवाय ज्योतिषां पतये नमः !! 20 !! तप्तचामीकराभाय हस्ये विश्वकर्मणे ! नमस्तमोऽभिनिघ्नाय रुचये लोकसाक्षिणे !! 21 !! नाशयत्येष वै भूतं तमेव सृजति प्रभुः ! पायत्येष तपत्येष वर्षत्येष गभस्तिभिः !! 22 !! एष सुप्तेषु जागर्ति भूतेषु परिनिष्ठितः ! एष चैवाग्निहोत्रं च फलं चैवाग्निहोत्रिणाम् !! 23 !! देवाश्च क्रतवश्चैव क्रतूनां फलमेव च ! यानि कृत्यानि लोकेषु सर्वेषु परमप्रभुः !! 24 !! एनमापत्सु कृच्छ्रेषु कान्तारेषु भयेषु च ! कीर्तयन् पुरुषः कश्चिन्नावसीदति राघव !! 25 !! पूजयस्वैनमेकाग्रो देवदेवं जगत्पतिम् ! एतत् त्रिगुणितं जप्तवा युद्धेषु विजयिष्ति !! 26 !! अस्मिन् क्षणे महाबाहो रावणं त्वं जहिष्यसि ! एवमुक्त्वा ततोऽगस्त्यो जगाम स यथागतम् !! 27 !! एतच्छ्रुत्वा महातेजा, नष्टशोकोऽभवत् तदा ! धारयामास सुप्रीतो राघवः प्रयतात्मवान् !! 28 !! आदित्यं प्रेक्ष्य जप्त्वेदं परं हर्षमवाप्तवान् ! त्रिराचम्य शुचिर्भूत्वा धनुरादाय वीर्यवान् !! 29 !! रावणं प्रेक्ष्य हृष्टात्मा जयार्थे समुपागमत् ! सर्वयत्नेन महता वृतस्तस्य वधेऽभवत् !! 30 !! अथ रविरवदन्निरीक्ष्य रामं मुदितनाः परमं प्रहृष्यमाणः ! निशिचरपतिसंक्षयं विदित्वा सुरगणमध्यगतो वचस्त्वरेति !! 31 !!

आदित्य हृदय स्तोत्र | Aditya Hridaya Stotra : नई ऊर्जा

सबसे पहले  हम आप को यह बता दे की ‘आदित्य ‘शब्द से भगवान सूर्य को सम्बोधित किया जाता है। आदित्य हृदय स्तोत्र भगवान सूर्य की कृपा और ऊर्जा पाने के लिए किया जाता है। शास्त्रों में इस मंत्र का उच्चारण करने का अधिक लाभ और शुभ बताया गया है। इस प्राचीन स्तोत्र का पाठ करने से … Read more