आदित्य ह्रदय स्तोत्र मंत्र: आदित्य ह्रदय स्तोत्र और इसके अद्भुत प्रभाव

आदित्य ह्रदय स्तोत्र मंत्र ऐसा मंत्रात्मक स्तोत्र है जो सूर्य भगवान की कृपा पाने का प्राचीन और सिद्ध साधन है। यह मंत्र श्रीराम को अगस्त्य ऋषि द्वारा युद्ध में विजय के लिए बताया गया था। Aditya Hridaya Stotra Mantra का उच्चारण मन और आत्मा को दिव्य ऊर्जा से भर देता है। यहां हमने आपके लिए Aditya Hridaya Stotra Mantra In Hindi को उपलब्ध कराया है-

Aditya Hridaya Stotra Mantra

ततो युद्धपरिश्रान्तं समरे चिन्तया स्थितम्‌॥
रावणं चाग्रतो दृष्ट्वा युद्धाय समुपस्थितम्‌ ॥१॥

दैवतैश्च समागम्य द्रष्टुमभ्यागतो रणम्‌॥
उपगम्याब्रवीद् राममगस्त्यो भगवांस्तदा ॥२॥

राम राम महाबाहो श्रृणु गुह्मं सनातनम्‌॥
येन सर्वानरीन्‌ वत्स समरे विजयिष्यसे ॥३॥

आदित्यहृदयं पुण्यं सर्वशत्रुविनाशनम्‌॥
जयावहं जपं नित्यमक्षयं परमं शिवम्‌ ॥४॥

सर्वमंगलमागल्यं सर्वपापप्रणाशनम्‌॥
चिन्ताशोकप्रशमनमायुर्वर्धनमुत्तमम्‌ ॥५॥

रश्मिमन्तं समुद्यन्तं देवासुरनमस्कृतम्‌॥
पुजयस्व विवस्वन्तं भास्करं भुवनेश्वरम्‌ ॥६॥

सर्वदेवात्मको ह्येष तेजस्वी रश्मिभावन:॥
एष देवासुरगणांल्लोकान्‌ पाति गभस्तिभि: ॥७॥

एष ब्रह्मा च विष्णुश्च शिव: स्कन्द: प्रजापति: ॥
महेन्द्रो धनद: कालो यम: सोमो ह्यापां पतिः ॥८॥

पितरो वसव: साध्या अश्विनौ मरुतो मनु: ॥
वायुर्वहिन: प्रजा प्राण ऋतुकर्ता प्रभाकर: ॥९॥

आदित्य: सविता सूर्य: खग: पूषा गभस्तिमान्‌॥
सुवर्णसदृशो भानुर्हिरण्यरेता दिवाकर: ॥१०॥

हरिदश्व: सहस्त्रार्चि: सप्तसप्तिर्मरीचिमान्‌॥
तिमिरोन्मथन: शम्भुस्त्वष्टा मार्तण्डकोंऽशुमान्‌ ॥११॥

हिरण्यगर्भ: शिशिरस्तपनोऽहस्करो रवि:॥
अग्निगर्भोऽदिते: पुत्रः शंखः शिशिरनाशन: ॥१२॥

व्योमनाथस्तमोभेदी ऋग्यजु:सामपारग:॥
घनवृष्टिरपां मित्रो विन्ध्यवीथीप्लवंगमः ॥१३॥

आतपी मण्डली मृत्यु: पिगंल: सर्वतापन:॥
कविर्विश्वो महातेजा: रक्त:सर्वभवोद् भव: ॥१४॥

नक्षत्रग्रहताराणामधिपो विश्वभावन:॥
तेजसामपि तेजस्वी द्वादशात्मन्‌ नमोऽस्तु ते ॥१५॥

नम: पूर्वाय गिरये पश्चिमायाद्रये नम:॥
ज्योतिर्गणानां पतये दिनाधिपतये नम: ॥१६॥

जयाय जयभद्राय हर्यश्वाय नमो नम:॥
नमो नम: सहस्त्रांशो आदित्याय नमो नम: ॥१७॥

नम उग्राय वीराय सारंगाय नमो नम: ॥
नम: पद्मप्रबोधाय प्रचण्डाय नमोऽस्तु ते ॥१८॥

ब्रह्मेशानाच्युतेशाय सुरायादित्यवर्चसे॥
भास्वते सर्वभक्षाय रौद्राय वपुषे नम: ॥१९॥

तमोघ्नाय हिमघ्नाय शत्रुघ्नायामितात्मने॥
कृतघ्नघ्नाय देवाय ज्योतिषां पतये नम: ॥२०॥

तप्तचामीकराभाय हरये विश्वकर्मणे॥
नमस्तमोऽभिनिघ्नाय रुचये लोकसाक्षिणे ॥२१॥

नाशयत्येष वै भूतं तमेष सृजति प्रभु:॥
पायत्येष तपत्येष वर्षत्येष गभस्तिभि: ॥२२॥

एष सुप्तेषु जागर्ति भूतेषु परिनिष्ठित:॥
एष चैवाग्निहोत्रं च फलं चैवाग्निहोत्रिणाम्‌ ॥२३॥

देवाश्च क्रतवश्चैव क्रतुनां फलमेव च॥
यानि कृत्यानि लोकेषु सर्वेषु परमं प्रभु: ॥२४॥

एनमापत्सु कृच्छ्रेषु कान्तारेषु भयेषु च ।
कीर्तयन्‌ पुरुष: कश्चिन्नावसीदति राघव ॥२५॥

पूजयस्वैनमेकाग्रो देवदेवं जगप्ततिम्‌॥
एतत्त्रिगुणितं जप्त्वा युद्धेषु विजयिष्यसि ॥२६॥

अस्मिन्‌ क्षणे महाबाहो रावणं त्वं जहिष्यसि॥
एवमुक्ता ततोऽगस्त्यो जगाम स यथागतम्‌ ॥२७॥

एतच्छ्रुत्वा महातेजा नष्टशोकोऽभवत्‌ तदा॥
धारयामास सुप्रीतो राघव प्रयतात्मवान्‌ ॥२८॥

आदित्यं प्रेक्ष्य जप्त्वेदं परं हर्षमवाप्तवान्‌॥
त्रिराचम्य शूचिर्भूत्वा धनुरादाय वीर्यवान्‌ ॥२९॥

रावणं प्रेक्ष्य हृष्टात्मा जयार्थं समुपागतम्‌॥
सर्वयत्नेन महता वृतस्तस्य वधेऽभवत्‌ ॥३०॥

अथ रविरवदन्निरीक्ष्य रामं मुदितमना: परमं प्रहृष्यमाण: ॥
निशिचरपतिसंक्षयं विदित्वा सुरगणमध्यगतो वचस्त्वरेति ॥३१॥

इति श्रीवाल्मीकीये रामायणे युद्धकाण्डे अगस्‍त्‍यप्रोक्‍तमादित्‍यहृदयस्‍तोत्रं सम्‍पूर्णम् ॥

Aditya Hridaya Stotra Mantra

ततो युद्धपरिश्रान्तं समरे चिन्तया स्थितम्‌॥
रावणं चाग्रतो दृष्ट्वा युद्धाय समुपस्थितम्‌ ॥१॥

दैवतैश्च समागम्य द्रष्टुमभ्यागतो रणम्‌॥
उपगम्याब्रवीद् राममगस्त्यो भगवांस्तदा ॥२॥

राम राम महाबाहो श्रृणु गुह्मं सनातनम्‌॥
येन सर्वानरीन्‌ वत्स समरे विजयिष्यसे ॥३॥

आदित्यहृदयं पुण्यं सर्वशत्रुविनाशनम्‌॥
जयावहं जपं नित्यमक्षयं परमं शिवम्‌ ॥४॥

सर्वमंगलमागल्यं सर्वपापप्रणाशनम्‌॥
चिन्ताशोकप्रशमनमायुर्वर्धनमुत्तमम्‌ ॥५॥

रश्मिमन्तं समुद्यन्तं देवासुरनमस्कृतम्‌॥
पुजयस्व विवस्वन्तं भास्करं भुवनेश्वरम्‌ ॥६॥

सर्वदेवात्मको ह्येष तेजस्वी रश्मिभावन:॥
एष देवासुरगणांल्लोकान्‌ पाति गभस्तिभि: ॥७॥

एष ब्रह्मा च विष्णुश्च शिव: स्कन्द: प्रजापति: ॥
महेन्द्रो धनद: कालो यम: सोमो ह्यापां पतिः ॥८॥

पितरो वसव: साध्या अश्विनौ मरुतो मनु: ॥
 वायुर्वहिन: प्रजा प्राण ऋतुकर्ता प्रभाकर: ॥९॥

आदित्य: सविता सूर्य: खग: पूषा गभस्तिमान्‌॥
सुवर्णसदृशो भानुर्हिरण्यरेता दिवाकर: ॥१०॥

हरिदश्व: सहस्त्रार्चि: सप्तसप्तिर्मरीचिमान्‌॥
तिमिरोन्मथन: शम्भुस्त्वष्टा मार्तण्डकोंऽशुमान्‌ ॥११॥

हिरण्यगर्भ: शिशिरस्तपनोऽहस्करो रवि:॥
अग्निगर्भोऽदिते: पुत्रः शंखः शिशिरनाशन: ॥१२॥

व्योमनाथस्तमोभेदी ऋग्यजु:सामपारग:॥
घनवृष्टिरपां मित्रो विन्ध्यवीथीप्लवंगमः ॥१३॥

आतपी मण्डली मृत्यु: पिगंल: सर्वतापन:॥
कविर्विश्वो महातेजा: रक्त:सर्वभवोद् भव: ॥१४॥

नक्षत्रग्रहताराणामधिपो विश्वभावन:॥
तेजसामपि तेजस्वी द्वादशात्मन्‌ नमोऽस्तु ते ॥१५॥

नम: पूर्वाय गिरये पश्चिमायाद्रये नम:॥
ज्योतिर्गणानां पतये दिनाधिपतये नम: ॥१६॥

जयाय जयभद्राय हर्यश्वाय नमो नम:॥
नमो नम: सहस्त्रांशो आदित्याय नमो नम: ॥१७॥

नम उग्राय वीराय सारंगाय नमो नम: ॥
नम: पद्मप्रबोधाय प्रचण्डाय नमोऽस्तु ते ॥१८॥

ब्रह्मेशानाच्युतेशाय सुरायादित्यवर्चसे॥
भास्वते सर्वभक्षाय रौद्राय वपुषे नम: ॥१९॥

तमोघ्नाय हिमघ्नाय शत्रुघ्नायामितात्मने॥
कृतघ्नघ्नाय देवाय ज्योतिषां पतये नम: ॥२०॥

तप्तचामीकराभाय हरये विश्वकर्मणे॥
नमस्तमोऽभिनिघ्नाय रुचये लोकसाक्षिणे ॥२१॥

नाशयत्येष वै भूतं तमेष सृजति प्रभु:॥
पायत्येष तपत्येष वर्षत्येष गभस्तिभि: ॥२२॥

एष सुप्तेषु जागर्ति भूतेषु परिनिष्ठित:॥
एष चैवाग्निहोत्रं च फलं चैवाग्निहोत्रिणाम्‌ ॥२३॥

देवाश्च क्रतवश्चैव क्रतुनां फलमेव च॥
यानि कृत्यानि लोकेषु सर्वेषु परमं प्रभु: ॥२४॥

एनमापत्सु कृच्छ्रेषु कान्तारेषु भयेषु च ।
कीर्तयन्‌ पुरुष: कश्चिन्नावसीदति राघव ॥२५॥

पूजयस्वैनमेकाग्रो देवदेवं जगप्ततिम्‌॥
एतत्त्रिगुणितं जप्त्वा युद्धेषु विजयिष्यसि ॥२६॥

अस्मिन्‌ क्षणे महाबाहो रावणं त्वं जहिष्यसि॥
एवमुक्ता ततोऽगस्त्यो जगाम स यथागतम्‌ ॥२७॥

एतच्छ्रुत्वा महातेजा नष्टशोकोऽभवत्‌ तदा॥
धारयामास सुप्रीतो राघव प्रयतात्मवान्‌ ॥२८॥

आदित्यं प्रेक्ष्य जप्त्वेदं परं हर्षमवाप्तवान्‌॥
त्रिराचम्य शूचिर्भूत्वा धनुरादाय वीर्यवान्‌ ॥२९॥

रावणं प्रेक्ष्य हृष्टात्मा जयार्थं समुपागतम्‌॥
सर्वयत्नेन महता वृतस्तस्य वधेऽभवत्‌ ॥३०॥

अथ रविरवदन्निरीक्ष्य रामं मुदितमना: परमं प्रहृष्यमाण: ॥
निशिचरपतिसंक्षयं विदित्वा सुरगणमध्यगतो वचस्त्वरेति ॥३१॥

इति श्रीवाल्मीकीये रामायणे युद्धकाण्डे अगस्‍त्‍यप्रोक्‍तमादित्‍यहृदयस्‍तोत्रं सम्‍पूर्णम् ॥

Aditya Hridaya Stotra Mantra का जाप न सिर्फ आत्मबल देता है, बल्कि जीवन में सकारात्मकता भी भरता है। इसके लाभ जानने के लिए आप Aditya Hridaya Stotra Benefits पढ़ सकते हैं, और यदि आप इसे अन्य भाषाओं में भी पढ़ना चाहते हैं तो Aditya Hridaya Stotra in Sanskrit, Aditya Hridayam in Telugu, या Aditya Hridaya Stotra PDF जैसे हमारे लेख आपकी साधना को और भी सरल बना सकते हैं।

आदित्य ह्रदय स्तोत्र मंत्र जाप विधि

अगर आप जीवन में ऊर्जा, आत्मविश्वास और आंतरिक शांति पाना चाहते हैं, तो आदित्य ह्रदय स्तोत्र का मंत्र जाप शुरू करें। आइए जानें इसकी सही और सरल विधि ताकि हर शब्द असर करे-

  1. तैयारी: प्रातःकाल सूर्योदय से पहले स्नान करके, स्वच्छ वस्त्र पहनें और पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठें। शांत चित्त होकर सूर्य देव का ध्यान करें।
  2. सूर्य अर्घ्य: तांबे के लोटे में जल लेकर उसमें रोली, चावल और फूल मिलाएं। सूर्य देव को “ॐ सूर्याय नमः” मंत्र बोलते हुए जल चढ़ाएं। यह क्रिया ऊर्जा को जाग्रत करती है।
  3. मंत्र का पाठ: अब पूरे श्रद्धा भाव से Aditya Hridaya Stotra मंत्र का पाठ करें। यदि संभव हो तो संस्कृत श्लोकों को स्पष्ट उच्चारण के साथ पढ़ें, इससे मंत्र की शक्ति पूर्ण रूप से प्रकट होती है।
  4. ध्यान: पाठ के बाद कुछ क्षण ध्यान में बैठकर सूर्य देव की कृपा को अपने अंदर अनुभव करें। यह ध्यान नकारात्मक ऊर्जा को हटाकर आत्मशक्ति प्रदान करता है।

Aditya Hridaya Stotra Mantra In Hindi न सिर्फ आध्यात्मिक उन्नति का मार्ग है, बल्कि यह जीवन में उत्साह, स्वास्थ्य और आत्मविश्वास का भी संचार करता है। जब श्रद्धा से सही विधि में जाप किया जाए, तो यही स्तोत्र जीवन का संबल बन जाता है।

FAQ

इसको कितनी बार पढ़ना चाहिए?

एक बार पूरी श्रद्धा से पढ़ना ही पर्याप्त है, लेकिन कोई चाहे तो 3 बार तक भी कर सकता है।

आदित्य ह्रदय स्तोत्र को मंत्र के रूप में क्यों पढ़ा जाता है?

इसे सिर्फ रविवार को ही पढ़ा जा सकता है?

क्या इस मंत्र का पाठ करने से मानसिक तनाव दूर होता है?

Share

Leave a comment