बैकुंठ अगर दोगी मैया भूलेंगे हर बार भजन लिरिक्स

बैकुंठ अगर दोगी मैया, भूलेंगे हर बार, यह भजन माँ की कृपा, भक्ति और आत्मसमर्पण को दर्शाता है। जब भक्त माँ की शरण में आते हैं, तो वे सांसारिक सुख-दुख से परे हो जाते हैं। इस भजन में माँ से यह प्रार्थना की गई है कि वे अपने भक्तों को ऐसा प्रेम और आशीर्वाद दें, जिससे वे हर कठिनाई भूल जाएं और केवल माँ की भक्ति में लीन हो जाएं।

Baikunth Agar Dogi Maiya Bhulenge Har Bar Bhajan Lyrics

बैकुंठ अगर दोगी मैया,
भूलेंगे हर बार,
हो सके तो नर्क ही देना,
आती रहे तेरी याद।।

ऐसे सुख का क्या माँ करना,
जो है तुझको भुलाए,
नौ महीने तो पेट में रखा,
रक्त हमें है पिलाए,
अपना जीवन कष्ट में काट,
हमें संसार दिखाए,
दूध का तेरे क्या माँ कहना,
वो है वो अमृत पान,
हो सके तो नर्क ही देना,
आती रहे तेरी याद।।

जन्मे तो मुख माँ ही बोले,
अंत भी माँ ही गाए,
भगवन ऐसी कृपा रखना,
विचलित ना हो जाए,
भूल अगर मैया से हो तो,
राम भी हम बन जाए,
मिले अगर वनवास भी तो हम,
जपे तुम्हारा नाम,
हो सके तो नर्क ही देना,
आती रहे तेरी याद।।

करके अपना जीवन अर्पण,
देख तू माँ का रूप,
गम हो या कैसी विपदा हो,
ना झुलसाए धूप,
माँ के आँचल तले ‘सुनील’ को,
लग ना पाए धूप,
माँ को पलकों पे रखे जो,
जिए हज़ारो साल,
हो सके तो नर्क ही देना,
आती रहे तेरी याद।।

बैकुंठ अगर दोगी मैया,
भूलेंगे हर बार,
हो सके तो नर्क ही देना,
आती रहे तेरी याद।।

माँ की भक्ति में डूबे हुए भक्त किसी भी सांसारिक सुख या स्वर्ग की चाह नहीं रखते। वे बस माँ की छत्रछाया में रहना चाहते हैं, क्योंकि वही उनका असली बैकुंठ है। यह भजन माँ की असीम कृपा को महसूस करने और उनके चरणों में अपना सर्वस्व अर्पित करने का संदेश देता है।

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