गणेश चतुर्थी व्रत कथा एक विशेष धार्मिक कथा है, जिसे विशेष रूप से गणेश चतुर्थी के दिन पूजा विधि से जोड़ा जाता है। Ganesh Chaturthi Vrat Katha भगवान गणेश के जन्म, उनके पूजन के महत्व और उनके द्वारा दिए गए आशीर्वाद के बारे में बताती है। भगवान गणेश के सिर की विशेषता भी एक महत्वपूर्ण पहलू है, जिसे लेकर कई रोचक घटनाएँ और कथाएँ प्रचलित हैं। इस व्रत कथा को सुनने और श्रद्धा से पालन करने से भगवान गणेश का आशीर्वाद प्राप्त होता है और जीवन में सुख-शांति बनी रहती है।
कथा में यह भी बताया जाता है कि किस प्रकार भगवान गणेश के व्रत और पूजा से जीवन के हर संकट और कठिनाई का नाश हो जाता है। व्रत कथा में बताई गई घटनाएँ और भगवान गणेश की लीला भक्तों को उनके जीवन में सत्य, समृद्धि और सफलता प्राप्त करने के लिए प्रेरित करती हैं। यहां हमने आपके लिए इस सम्पूर्ण कथा को आपके लिए नीचे प्रस्तुत किया है-
गणेश चतुर्थी की व्रत कथा: माता-पिता की परिक्रमा
पौराणिक और प्रचलित कथा के अनुसार, एक बार देवता अनेक कष्टों और विपदाओं से घिर गए। अपनी समस्याओं का समाधान पाने के लिए वे भगवान शिव के पास पहुंचे। उस समय भगवान शिव के साथ उनके दोनों पुत्र, कार्तिकेय और गणेशजी भी उपस्थित थे। देवताओं की बातें सुनने के बाद भगवान शिव ने अपने पुत्रों से कहा, “तुम दोनों में से कौन इन कष्टों का निवारण कर सकता है?”
इस प्रश्न पर कार्तिकेय और गणेशजी दोनों ने स्वयं को इस कार्य के लिए योग्य बताया। उनकी इस बात को सुनकर भगवान शिव ने उनकी परीक्षा लेने का निश्चय किया। उन्होंने कहा, “तुम दोनों में से जो सबसे पहले पृथ्वी की परिक्रमा करके आएगा, वही देवताओं की सहायता करने जाएगा।”
कार्तिकेय और गणेशजी की परिक्रमा
जैसे ही भगवान शिव ने यह वचन कहा, कार्तिकेय अपने वाहन मोर पर सवार होकर तेजी से पृथ्वी की परिक्रमा करने निकल पड़े। दूसरी ओर, गणेशजी सोच में पड़ गए। उन्होंने विचार किया कि उनके वाहन, चूहे पर सवार होकर पृथ्वी की परिक्रमा करना कठिन और समयसाध्य होगा।
थोड़ी देर विचार करने के बाद गणेशजी को एक उपाय सूझा। वह अपने स्थान से उठे और अपने माता-पिता, भगवान शिव और माता पार्वती, की सात बार परिक्रमा करने लगे। परिक्रमा पूरी कर वह वहीं बैठ गए।
गणेशजी का उत्तर और उनकी विजय
जब कार्तिकेय पृथ्वी की परिक्रमा कर लौटे, तो उन्होंने स्वयं को विजेता घोषित कर दिया। इस पर भगवान शिव ने गणेशजी से पूछा, “तुमने पृथ्वी की परिक्रमा क्यों नहीं की?”
गणेशजी ने हाथ जोड़कर उत्तर दिया, “पिताश्री, माता-पिता के चरणों में ही संपूर्ण लोक और सृष्टि का वास है। माता-पिता की परिक्रमा करना ही पृथ्वी की परिक्रमा के बराबर है।”
गणेशजी के इस उत्तर को सुनकर भगवान शिव अत्यंत प्रसन्न हुए। उन्होंने गणेशजी को आशीर्वाद दिया और देवताओं के संकट दूर करने का कार्य सौंपा। साथ ही, उन्होंने गणेशजी को वरदान दिया कि जो भी चतुर्थी के दिन तुम्हारी पूजा करेगा और रात्रि में चंद्रमा को अर्घ्य अर्पित करेगा, उसके तीनों ताप—दैहिक, दैविक और भौतिक—दूर होंगे।
भगवान शिव ने कहा कि चतुर्थी व्रत करने वालों के सभी दुख दूर होंगे। इस व्रत से व्यक्ति को जीवन में सुख-समृद्धि प्राप्त होगी। धन, ऐश्वर्य, और संतान की प्राप्ति होगी। साथ ही, घर-परिवार में शांति और समृद्धि का वास होगा।
गणेश चतुर्थी व्रत से जुडी दूसरी पौराणिक कथा
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, एक बार भगवान शिव और माता पार्वती नर्मदा नदी के किनारे विश्राम कर रहे थे। समय बिताने के उद्देश्य से माता पार्वती ने भगवान शिव से चौपड़ खेलने का आग्रह किया। भगवान शिव ने सहमति तो दे दी, लेकिन खेल में हार-जीत का निर्णय कौन करेगा, यह प्रश्न उनके सामने आया।
समस्या का समाधान करते हुए भगवान शिव ने पास में पड़े तिनकों से एक पुतला बनाया और उसमें प्राण-प्रतिष्ठा कर उसे जीवनदान दिया। पुतले से उन्होंने कहा, “बेटा, हम दोनों चौपड़ खेलना चाहते हैं, लेकिन हमारी हार-जीत का फैसला करने वाला कोई नहीं है। इसलिए तुम बताओगे कि हम दोनों में से कौन हारा और कौन जीता।”
खेल और माता पार्वती का क्रोध
खेल आरंभ हुआ, और तीन बार खेलने के बाद हर बार माता पार्वती विजयी रहीं। खेल समाप्त होने पर बालक से हार-जीत का निर्णय सुनाने को कहा गया। लेकिन बालक ने भगवान शिव को विजयी घोषित कर दिया।
यह सुनकर माता पार्वती क्रोधित हो गईं। क्रोध में उन्होंने बालक को श्राप दे दिया, “तू लंगड़ा होकर कीचड़ में पड़ा रहेगा।” बालक यह सुनकर बहुत दुखी हुआ और माता से क्षमा मांगते हुए कहा, “माता, यह मुझसे अनजाने में हुआ है। मैंने कोई पक्षपात या द्वेष भाव नहीं रखा।”
बालक के विनम्रता से माफी मांगने पर माता पार्वती का क्रोध शांत हुआ। उन्होंने कहा, “यहां नागकन्याएं आएंगी। उनसे श्री गणेश व्रत की विधि जानकर व्रत करना। इससे तुम्हें मुझसे मिलन का आशीर्वाद प्राप्त होगा।” इतना कहकर माता पार्वती भगवान शिव के साथ कैलाश पर्वत लौट गईं।
बालक का गणेश व्रत
एक वर्ष बीतने के बाद, नागकन्याएं उस स्थान पर आईं। बालक ने उनसे श्री गणेश व्रत की विधि सीखी और 21 दिनों तक श्रद्धा एवं भक्ति के साथ व्रत किया। उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर गणपति भगवान प्रकट हुए और बालक से वरदान मांगने को कहा।
बालक ने विनम्रता से कहा, “हे गणपति! मुझे इतनी शक्ति दें कि मैं अपने पैरों से चलकर माता-पिता के पास कैलाश पर्वत पहुंच सकूं और उन्हें प्रसन्न कर सकूं।”
गणपति ने उसकी प्रार्थना सुनकर उसे आशीर्वाद दिया और अंतर्ध्यान हो गए। गणपति के वरदान से बालक ने अपनी खोई हुई शक्ति प्राप्त की और अपने माता-पिता से मिलने कैलाश पर्वत पर पहुंच गया।
भगवान शिव का व्रत
बालक ने कैलाश पर्वत पर पहुंचकर भगवान शिव को अपनी कथा सुनाई। चौपड़ के खेल के बाद माता पार्वती भगवान शिव से रुष्ट थीं। बालक की कहानी सुनकर भगवान शिव ने भी 21 दिनों तक श्री गणेश व्रत करने का निर्णय लिया। व्रत के प्रभाव से माता पार्वती का क्रोध शांत हुआ और उनके मन में भगवान शिव के लिए जो नाराजगी थी, वह समाप्त हो गई।
माता पार्वती और पुत्र कार्तिकेय का मिलन
भगवान शिव की प्रेरणा से माता पार्वती ने भी अपने पुत्र कार्तिकेय से मिलने की इच्छा व्यक्त की। उन्होंने 21 दिनों तक श्री गणेश व्रत किया। हर दिन दूर्वा, फूल और लड्डुओं से गणपति का पूजन किया। 21वें दिन माता पार्वती की तपस्या पूर्ण हुई और कार्तिकेय स्वयं उनसे मिलने आ गए।
गणेश चतुर्थी व्रत का महत्व
यह वही दिन था जब श्री गणेश चतुर्थी व्रत को मनोकामनाओं की पूर्ति करने वाला व्रत माना गया। तभी से यह व्रत भक्तों द्वारा श्रद्धा और विश्वास के साथ किया जाता है। यह न केवल भगवान गणेश का आशीर्वाद प्राप्त करने का माध्यम है, बल्कि परिवार में सुख-शांति और समृद्धि लाने का मार्ग भी है।
कथा के साथ-साथ Ganesh Sankashti Chaturthi, Anuradha Paudwal Ganesh Aarti Lyrics और Ganesh Chaturthi Mantra का जाप भी आपके लिए अत्यधिक लाभदयक हो सकता है।
Ganesh Chaturthi Vrat Katha करने की मुख्य विधि
इस व्रत कथा को विधिपूर्वक करने के लिए निम्नलिखित मुख्य विधियों का पालन करना चाहिए-
- संकल्प: गणेश चतुर्थी का व्रत करने से पहले, श्रद्धालु को स्नान करने के बाद व्रत का संकल्प लेना चाहिए। इसे सही मनोबल और श्रद्धा के साथ लिया जाता है। व्रत का संकल्प लेते वक्त यह निश्चित करें कि आप भगवान गणेश की पूजा पूरी निष्ठा और श्रद्धा से करेंगे। संकल्प लेते समय मन में किसी प्रकार की कष्ट से मुक्ति, सुख, समृद्धि और शांति की प्रार्थना करें।
- पूजा स्थल: पूजा शुरू करने से पहले, पूजा स्थल को स्वच्छ करना चाहिए। यह स्थान विशेष रूप से शुद्ध और पवित्र होना चाहिए। यदि घर में कोई विशेष पूजा स्थल है तो वहां दीपक, अगरबत्ती और अन्य पूजन सामग्री रखें।
- मूर्ति स्थापना: पूजा की शुरुआत भगवान गणेश की मूर्ति या चित्र को पूजा स्थल पर स्थापित करके करें। मूर्ति को सुगंधित फूल, सिंदूर, और दूर्वा घास से सजाएं। गणेश जी के प्रिय मोदक और लड्डू अर्पित करें।
- कथा का श्रवण: पूजा के बाद, गणेश चतुर्थी व्रत कथा का श्रवण या पाठ करें। इस कथा में भगवान गणेश के जन्म की कहानी और उनकी पूजा के महत्व के बारे में बताया जाता है। पाठ को पूरी भक्ति और श्रद्धा के साथ सुनना चाहियें।
- प्रार्थना: इस व्रत कथा के दौरान भगवान गणेश के मंत्रों का उच्चारण करें। “ॐ गं गणपतये नमः” यह मुख्य मंत्र है जिसे भगवान गणेश की पूजा में उच्चारित किया जाता है।
- चंद्र दर्शन: इस दिन चंद्रमा को देखना भी विशेष रूप से महत्वपूर्ण माना जाता है। व्रत के समापन पर चंद्रमा के दर्शन करें और उनसे भगवान गणेश की कृपा के लिए प्रार्थना करें।
- व्रत पारण: गणेश चतुर्थी के दिन व्रत की समाप्ति के बाद पारण करना आवश्यक है। पारण के दौरान, हल्का भोजन जैसे फल, मोदक, लड्डू या अन्य धार्मिक प्रसाद खाएं। पारण के समय विशेष रूप से भगवान गणेश का आभार व्यक्त करें और उनके आशीर्वाद के लिए धन्यवाद अर्पित करें।
- प्रसाद वितरण: पूजा के बाद, घर के सभी सदस्य और अतिथियों को प्रसाद वितरित करें। भगवान गणेश द्वारा अर्पित किए गए मोदक और लड्डू का प्रसाद खाने से शरीर में ऊर्जा का संचार होता है और आशीर्वाद प्राप्त होता है।
व्रत कथा करने की विधि सरल और श्रद्धा से भरपूर होती है। इस व्रत को पूरी निष्ठा और आस्था से करने से जीवन में सुख, समृद्धि और शांति का वास होता है।
गणेश चतुर्थी व्रत करने के लाभ
इस व्रत को श्रद्धा और भक्ति से करने से व्यक्ति के जीवन में अनेक सकारात्मक परिवर्तन होते हैं। निम्नलिखित हैं इस व्रत के प्रमुख लाभ-
- विघ्नहरण: गणेश जी को विघ्नहर्ता माना जाता है। इस व्रत को करने से जीवन में आने वाली सभी बाधाएँ, कठिनाइयाँ और समस्याएँ दूर होती हैं।
- धन और समृद्धि: भगवान गणेश को धन, समृद्धि और समृद्धि का देवता माना जाता है। गणेश चतुर्थी का व्रत करने से घर में लक्ष्मी का वास होता है और आर्थिक स्थिति में सुधार होता है। व्यवसाय में उन्नति और वित्तीय संकटों का समाधान भी संभव हो सकता है।
- मानसिक संतुलन: गणेश चतुर्थी व्रत मानसिक शांति और संतुलन प्राप्त करने का एक प्रमुख उपाय है। इस व्रत के दौरान ध्यान, पूजा और भगवान गणेश से प्रार्थना करने से व्यक्ति का मन शांत होता है, तनाव कम होता है और जीवन में सकारात्मक दृष्टिकोण पैदा होता है।
- परेशानिया: यह विशेष रूप से उन लोगों के लिए फायदेमंद है जो जीवन में कठिनाइयों और संकटों का सामना कर रहे हैं। व्रत करने से भगवान गणेश की कृपा से सभी कष्टों और परेशानियों से मुक्ति मिलती है।
- आध्यात्मिक उन्नति: इस कथा का पाठ पूरी श्रद्धा और भक्ति से करने से व्यक्ति की आध्यात्मिक उन्नति होती है। यह भगवान गणेश के साथ एक गहरा आत्मिक संबंध स्थापित करता है और व्यक्ति की आस्था और नैतिकता में वृद्धि होती है।
- परिवारिक प्रेम: गणेश चतुर्थी का व्रत न केवल व्यक्तिगत लाभ देता है, बल्कि परिवार के हर सदस्य के लिए भी फायदेमंद होता है। इससे परिवार में सुख-शांति, समृद्धि आती है, जिससे रिश्तों में प्रेम और सामंजस्य बढ़ता है।
- आर्थिक संकट: इसका पाठ करने से उधार, ऋण और वित्तीय समस्याओं से मुक्ति मिल सकती है। विशेष रूप से लोग जो आर्थिक तंगी का सामना कर रहे होते हैं, वे भगवान गणेश से आशीर्वाद प्राप्त कर अपनी वित्तीय स्थिति को बेहतर बना सकते हैं।
- सामाजिक सौहार्द: गणेश चतुर्थी का व्रत सामाजिक सौहार्द को बढ़ावा देता है। यह परिवार और समाज के बीच सामूहिकता और भाईचारे को बढ़ावा देता है। जब लोग मिलकर गणेश की पूजा करते हैं, तो उनके बीच की दूरी खत्म होती है और आपसी प्रेम और समझदारी बढ़ती है।
यह केवल एक धार्मिक कृत्य नहीं है, बल्कि यह मानसिक शांति, समृद्धि, सुख और सकारात्मकता के साथ जीवन में बदलाव लाने का एक साधन है।
FAQ
इस व्रत कथा का पाठ किसे करना चाहिए?
यह व्रत सभी श्रद्धालु और भक्तों द्वारा किया जा सकता है, विशेष रूप से यह व्रत उन लोगों के लिए फायदेमंद है जो किसी कष्ट, विघ्न, आर्थिक संकट या मानसिक तनाव से जूझ रहे हैं।
गणेश चतुर्थी व्रत कब शुरू करना चाहिए?
गणेश चतुर्थी व्रत प्रत्येक वर्ष हिंदू कैलेंडर के अनुसार भाद्रपद माह की शुक्ल पक्ष की चौथी तिथि (गणेश चतुर्थी) से शुरू होता है।
क्या इस चतुर्थी व्रत कथा का पाठ सिर्फ घर पर ही किया जा सकता है?
नहीं, चतुर्थी व्रत कथा का आयोजन मंदिर में भी किया जा सकता है, कई लोग इस दिन गणेश मंदिर में जाकर भगवान गणेश की इस कथा का पाठ करते हैं।
क्या कथा केवल सुनकर इसके लाभ को प्राप्त किया जा सकता है ?
हां, कथा को सच्चे मन और श्रद्धा के साथ सुना जाये तो इसके लाभ को प्राप्त किया जा सकता है।
गणेश चतुर्थी व्रत बिना उपवासी किए जा सकता है?
इस व्रत में उपवासी रहना मुख्य रूप से व्रति की शुद्धता और श्रद्धा का हिस्सा है। हालांकि, अगर कोई स्वास्थ्य कारणों से उपवासी नहीं रह सकता, तो वह हल्का भोजन कर पूजा कर सकता है।