गुरु वंदना स्तोत्रम् हिंदू धर्म में गुरु के महत्व को दर्शाने वाला एक पवित्र ग्रंथ है। यह स्तोत्र न केवल गुरु के प्रति श्रद्धा और समर्पण को प्रकट करता है, बल्कि आध्यात्मिक उन्नति का मार्ग भी दिखाता है। अगर आप भी Guru Vandana Stotram को खोज कर रहे है तो आप बिलकुल सही जगह आएं है यहां हमने इस स्तोत्र के सम्पूर्ण पाठ को विस्तार से उपलब्ध कराया है –
Guru Vandana Stotram
अखण्डमण्डलाकारं व्याप्तं येन चराचरम् ॥
तत्पदं दर्शितं येन तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥१॥
अज्ञानतिमिरान्धस्य ज्ञानाञ्जनशलाकया ॥
चक्षुरुन्मीलितं येन तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥२॥
गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः॥
गुरुरेव परम्ब्रह्म तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥३॥
स्थावरं जङ्गमं व्याप्तं यत्किञ्चित्सचराचरम्॥
तत्पदं दर्शितं येन तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥४॥
चिन्मयं व्यापियत्सर्वं त्रैलोक्यं सचराचरम् ॥
तत्पदं दर्शितं येन तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥५॥
त्सर्वश्रुतिशिरोरत्नविराजित पदाम्बुजः॥
वेदान्ताम्बुजसूर्योयः तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥६॥
चैतन्यः शाश्वतःशान्तो व्योमातीतो निरञ्जनः॥
बिन्दुनाद कलातीतः तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥७॥
ज्ञानशक्तिसमारूढः तत्त्वमालाविभूषितः॥
भुक्तिमुक्तिप्रदाता च तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥८॥
अनेकजन्मसम्प्राप्त कर्मबन्धविदाहिने॥
आत्मज्ञानप्रदानेन तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥९॥
शोषणं भवसिन्धोश्च ज्ञापणं सारसम्पदः॥
गुरोः पादोदकं सम्यक् तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥१०॥
न गुरोरधिकं तत्त्वं न गुरोरधिकं तपः॥
तत्त्वज्ञानात्परं नास्ति तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥११॥
मन्नाथः श्रीजगन्नाथः मद्गुरुः श्रीजगद्गुरुः॥
मदात्मा सर्वभूतात्मा तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥१२॥
गुरुरादिरनादिश्च गुरुः परमदैवतम्॥
गुरोः परतरं नास्ति तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥१३॥
त्वमेव माता च पिता त्वमेव, त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव॥
त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव, त्वमेव सर्वं मम देव देव ॥१४॥

यदि आप अपनी आध्यात्मिक उन्नति और जीवन के सभी क्षेत्रों में सकारात्मक बदलाव लाना चाहते हैं, तो गुरु वंदना स्तोत्रम् का नियमित पाठ अवश्य करें। इसके साथ ही, यदि आप गुरु स्तोत्र, गुरु अष्टकम या बृहस्पति स्तोत्रम् का भी अध्ययन और पाठ करते हैं, तो यह आपके लिए और भी अधिक लाभकारी होगा। गुरु की कृपा से ही जीवन में ज्ञान, भक्ति और शक्ति प्राप्त होती है।
गुरु वंदना स्तोत्रम् पाठ विधि
- इसका पाठ प्रातः स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण कर करना चाहिए।
- पूजा स्थल या मंदिर में पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके बैठें।
- मन को शांत कर गुरु के स्वरूप का ध्यान करें।
- श्रद्धा और भक्ति के साथ स्तोत्र का पाठ करें।
- संभव हो तो दीप जलाकर और पुष्प अर्पित करके पाठ करें।
- गुरुवार के दिन या गुरु पूर्णिमा पर विशेष रूप से पाठ करना शुभ माना जाता है।
- पाठ के बाद गुरु को प्रणाम करें और आशीर्वाद प्राप्त करें।
FAQ
इस स्तोत्र पाठ करने से क्या लाभ होता है?
इस स्तोत्र के नियमित पाठ से ज्ञान की प्राप्ति, मानसिक शांति, और जीवन में सफलता मिलती है।
पाठ कब करना चाहिए?
इसे प्रतिदिन सुबह स्नान के बाद या विशेष रूप से गुरुवार के दिन पढ़ना शुभ होता है।
इस स्तोत्रम् का पाठ किसी विशेष उद्देश्य के लिए किया जाता है?
हां, यह स्तोत्र विशेष रूप से गुरु कृपा प्राप्त करने, विद्या प्राप्ति और आध्यात्मिक उन्नति के लिए किया जाता है।

मैं हेमानंद शास्त्री, एक साधारण भक्त और सनातन धर्म का सेवक हूँ। मेरा उद्देश्य धर्म, भक्ति और आध्यात्मिकता के रहस्यों को सरल भाषा में भक्तों तक पहुँचाना है। शनि देव, बालाजी, हनुमान जी, शिव जी, श्री कृष्ण और अन्य देवी-देवताओं की महिमा का वर्णन करना मेरे लिए केवल लेखन नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक साधना है। मैं अपने लेखों के माध्यम से पूजन विधि, मंत्र, स्तोत्र, आरती और धार्मिक ग्रंथों का सार भक्तों तक पहुँचाने का प्रयास करता हूँ। जय सनातन धर्म