शनि प्रदोष व्रत कथा: शिव कृपा से शनि दोष निवारण की पौराणिक गाथा

शनि प्रदोष व्रत कथा शनि देव को प्रसन्न करने के लिए सुना या किया जाता है और इसे करने से व्यक्ति के जीवन में चल रही परेशानियाँ, कष्ट और बाधाएँ दूर होती हैं। लोग शनि की साढ़े साती या ढैय्या से प्रभावित होते हैं, उनके लिए यह Shani Pradosh Vrat Katha अत्यंत लाभकारी होता है। यह व्रत करने से जीवन की सभी बाधाएँ और कष्ट दूर हो सकते हैं। हमने आपके लिए यहां Shani Pradosh Vrat Katha In Hindi को उपलब्ध कराया है-

Shani Pradosh Vrat Katha

प्राचीन काल की बात है, अवंती नगर में चंद्रशेखर नामक एक धर्मपरायण ब्राह्मण रहता था। वह शिव भक्त था और सदैव नियमपूर्वक भगवान शिव का पूजन करता था। उसकी दिनचर्या में प्रतिदिन पूजा, व्रत, और दान-पुण्य करना शामिल था।

ब्राह्मण का जीवन और कठिनाइयाँ

चंद्रशेखर ब्राह्मण का जीवन सरल और तपस्वी था, लेकिन उसके पास अधिक धन नहीं था। वह और उसकी पत्नी अत्यंत श्रद्धालु थे, किंतु निर्धनता के कारण उन्हें कई कष्ट सहने पड़ते थे। फिर भी, उन्होंने कभी भी शिव उपासना से मुख नहीं मोड़ा।

एक दिन ब्राह्मण ने अपने गुरु से Shani Pradosh Vrat Katha के बारे में सुना। गुरु ने बताया कि यह व्रत करने से सभी कष्ट दूर हो सकते हैं और जीवन में सुख-समृद्धि आ सकती है। ब्राह्मण ने इसे अपनाने का निश्चय किया और हर शनिवार को यह व्रत रखने लगा।

राजा चंद्रकेतु और शनि देव का कोप

उसी समय उस नगर के राजा चंद्रकेतु पर शनि देव की साढ़े साती का प्रभाव पड़ा। राजा अत्यंत पराक्रमी और प्रजा के प्रिय थे, लेकिन शनिदेव के प्रभाव से उन्हें अनेकों परेशानियाँ होने लगीं।

  • उनके राज्य में अज्ञात कारणों से अकाल पड़ने लगा।
  • शत्रुओं ने उन पर बार-बार आक्रमण किए, जिससे उनकी सेना कमजोर हो गई।
  • मंत्री और सेनापति भी राजा का साथ छोड़कर चले गए।
  • राजा स्वयं भी बीमार रहने लगे और अत्यंत दुखी रहने लगे।

ब्राह्मण की परीक्षा और शिव कृपा

इसी दौरान, शनि देव ने ब्राह्मण की भक्ति की परीक्षा लेने का निश्चय किया। एक दिन एक व्यापारी वेश में शनिदेव ब्राह्मण के घर आए और कहा—

हे ब्राह्मण! मैं एक व्यापारी हूँ और मेरे पास अपार धन-संपत्ति है। लेकिन दुर्भाग्यवश मैं अपने धन की रक्षा नहीं कर सकता। क्या आप मेरी संपत्ति को अपने पास कुछ समय के लिए रख सकते हैं?

ब्राह्मण स्वभाव से सरल और दयालु थे। उन्होंने बिना किसी लालच के उस व्यापारी की संपत्ति को अपने घर में सुरक्षित रख लिया। लेकिन शनिदेव की लीला देखिए, उस दिन के बाद से नगर में यह अफवाह फैल गई कि ब्राह्मण के पास अपार धन आ गया है। यह सुनकर राजा चंद्रकेतु, जो पहले से ही परेशान थे, क्रोधित हो गए और बिना जाँच-पड़ताल किए ब्राह्मण को कारागार में डाल दिया। ब्राह्मण और उसकी पत्नी ने फिर भी शिव उपासना और शनि प्रदोष व्रत का पालन जारी रखा।

राजा का दुःस्वप्न और सत्य का उद्घाटन

एक रात राजा चंद्रकेतु को एक भयानक स्वप्न आया, जिसमें उन्होंने देखा कि शनिदेव उनसे रुष्ट हैं और उनकी समस्त संपत्ति नष्ट हो जाएगी। राजा भयभीत होकर प्रातःकाल अपने गुरु के पास गए और स्वप्न का रहस्य पूछा।

गुरु ने कहा—
हे राजन! आपने एक निर्दोष ब्राह्मण को कारागार में डाल दिया है। वह शिव भक्त है और शनि प्रदोष व्रत करता है। यदि आप उसे मुक्त कर उसकी क्षमा याचना करेंगे, तो शनिदेव आप पर प्रसन्न होंगे।

यह सुनते ही राजा तुरंत कारागार पहुँचे और ब्राह्मण से क्षमा माँगी। उन्होंने ब्राह्मण को धन-संपत्ति से सम्मानित कर पुनः अपने राज्य में प्रतिष्ठित किया।

शनि देव का आशीर्वाद

जैसे ही ब्राह्मण कारागार से बाहर निकले, नगर में अनेकों शुभ संकेत दिखाई देने लगे। लंबे समय से पड़ा अकाल समाप्त हो गया, राजा का स्वास्थ्य पुनः सुधर गया, राज्य की खोई हुई संपत्ति और सम्मान पुनः प्राप्त हो गया।

शनि देव ने स्वयं दर्शन देकर कहा—
हे ब्राह्मण! तुमने अपनी श्रद्धा और भक्ति से मुझे प्रसन्न किया है। तुम्हारे कारण इस नगर का दुर्भाग्य भी समाप्त हुआ है। जो कोई भी श्रद्धा से प्रदोष व्रत करेगा और श्रद्धा से Shani Pradosh Katha सुनेगा, उसके जीवन के समस्त कष्ट समाप्त होंगे।

Shani Pradosh Vrat Katha

प्राचीन काल की बात है, अवंती नगर में चंद्रशेखर नामक एक धर्मपरायण ब्राह्मण रहता था। वह शिव भक्त था और सदैव नियमपूर्वक भगवान शिव का पूजन करता था। उसकी दिनचर्या में प्रतिदिन पूजा, व्रत, और दान-पुण्य करना शामिल था।

ब्राह्मण का जीवन और कठिनाइयाँ

चंद्रशेखर ब्राह्मण का जीवन सरल और तपस्वी था, लेकिन उसके पास अधिक धन नहीं था। वह और उसकी पत्नी अत्यंत श्रद्धालु थे, किंतु निर्धनता के कारण उन्हें कई कष्ट सहने पड़ते थे। फिर भी, उन्होंने कभी भी शिव उपासना से मुख नहीं मोड़ा।

एक दिन ब्राह्मण ने अपने गुरु से Shani Pradosh Vrat Katha के बारे में सुना। गुरु ने बताया कि यह व्रत करने से सभी कष्ट दूर हो सकते हैं और जीवन में सुख-समृद्धि आ सकती है। ब्राह्मण ने इसे अपनाने का निश्चय किया और हर शनिवार को यह व्रत रखने लगा।

राजा चंद्रकेतु और शनि देव का कोप

उसी समय उस नगर के राजा चंद्रकेतु पर शनि देव की साढ़े साती का प्रभाव पड़ा। राजा अत्यंत पराक्रमी और प्रजा के प्रिय थे, लेकिन शनिदेव के प्रभाव से उन्हें अनेकों परेशानियाँ होने लगीं।

उनके राज्य में अज्ञात कारणों से अकाल पड़ने लगा।

शत्रुओं ने उन पर बार-बार आक्रमण किए, जिससे उनकी सेना कमजोर हो गई।

मंत्री और सेनापति भी राजा का साथ छोड़कर चले गए।

राजा स्वयं भी बीमार रहने लगे और अत्यंत दुखी रहने लगे।

ब्राह्मण की परीक्षा और शिव कृपा

इसी दौरान, शनि देव ने ब्राह्मण की भक्ति की परीक्षा लेने का निश्चय किया। एक दिन एक व्यापारी वेश में शनिदेव ब्राह्मण के घर आए और कहा—

हे ब्राह्मण! मैं एक व्यापारी हूँ और मेरे पास अपार धन-संपत्ति है। लेकिन दुर्भाग्यवश मैं अपने धन की रक्षा नहीं कर सकता। क्या आप मेरी संपत्ति को अपने पास कुछ समय के लिए रख सकते हैं?

ब्राह्मण स्वभाव से सरल और दयालु थे। उन्होंने बिना किसी लालच के उस व्यापारी की संपत्ति को अपने घर में सुरक्षित रख लिया। लेकिन शनिदेव की लीला देखिए, उस दिन के बाद से नगर में यह अफवाह फैल गई कि ब्राह्मण के पास अपार धन आ गया है। यह सुनकर राजा चंद्रकेतु, जो पहले से ही परेशान थे, क्रोधित हो गए और बिना जाँच-पड़ताल किए ब्राह्मण को कारागार में डाल दिया। ब्राह्मण और उसकी पत्नी ने फिर भी शिव उपासना और शनि प्रदोष व्रत का पालन जारी रखा।

राजा का दुःस्वप्न और सत्य का उद्घाटन

एक रात राजा चंद्रकेतु को एक भयानक स्वप्न आया, जिसमें उन्होंने देखा कि शनिदेव उनसे रुष्ट हैं और उनकी समस्त संपत्ति नष्ट हो जाएगी। राजा भयभीत होकर प्रातःकाल अपने गुरु के पास गए और स्वप्न का रहस्य पूछा।

गुरु ने कहा—
हे राजन! आपने एक निर्दोष ब्राह्मण को कारागार में डाल दिया है। वह शिव भक्त है और शनि प्रदोष व्रत करता है। यदि आप उसे मुक्त कर उसकी क्षमा याचना करेंगे, तो शनिदेव आप पर प्रसन्न होंगे।

यह सुनते ही राजा तुरंत कारागार पहुँचे और ब्राह्मण से क्षमा माँगी। उन्होंने ब्राह्मण को धन-संपत्ति से सम्मानित कर पुनः अपने राज्य में प्रतिष्ठित किया।

शनि देव का आशीर्वाद

जैसे ही ब्राह्मण कारागार से बाहर निकले, नगर में अनेकों शुभ संकेत दिखाई देने लगे। लंबे समय से पड़ा अकाल समाप्त हो गया, राजा का स्वास्थ्य पुनः सुधर गया, राज्य की खोई हुई संपत्ति और सम्मान पुनः प्राप्त हो गया।

शनि देव ने स्वयं दर्शन देकर कहा—
हे ब्राह्मण! तुमने अपनी श्रद्धा और भक्ति से मुझे प्रसन्न किया है। तुम्हारे कारण इस नगर का दुर्भाग्य भी समाप्त हुआ है। जो कोई भी श्रद्धा से प्रदोष व्रत करेगा और श्रद्धा से Shani Pradosh Katha सुनेगा, उसके जीवन के समस्त कष्ट समाप्त होंगे।

इस कथा से यह स्पष्ट होता है कि शनि प्रदोष व्रत कथा करने से व्यक्ति के समस्त कष्ट दूर होते हैं और शनि देव की कृपा प्राप्त होती है। जो कोई भी सच्चे मन से इस व्रत का पालन करता है, उसे जीवन में कभी किसी प्रकार की परेशानी नहीं होती।

FAQ

शनि प्रदोष व्रत क्या है?

क्या शनि प्रदोष व्रत करने से शनि की साढ़े साती और ढैया के प्रभाव कम हो सकते हैं?

हां, इस व्रत के प्रभाव से शनि देव की कृपा प्राप्त होती है और साढ़े साती व ढैया के नकारात्मक प्रभाव कम हो जाते हैं।

क्या इस कथा को शनिवार को ही पढ़ना चाहिए?

क्या यह कथा किसी भी समय पढ़ सकते हैं?

क्या केवल शनि से पीड़ित व्यक्ति ही यह कथा पढ़ सकते हैं?

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