शनि स्तुति: न्याय के देवता को समर्पित एक भावपूर्ण प्रार्थना

शनि स्तुति न केवल एक भक्तिपूर्ण पाठ है, बल्कि यह हमारे जीवन में शनि देव की उपस्थिति और उनके गहन प्रभाव को स्वीकार करने का एक दिव्य माध्यम भी है। शनि देव को कर्मों का न्यायाधीश माना जाता है, वे हमारे अच्छे और बुरे कर्मों का फल समय पर देते हैं। यह हमने आपके लिए इस अद्भुत Shani Stuti के पाठ को विस्तार से उपलब्ध कराया है-

Shani Stuti

नम: कृष्णाय नीलाय शितिकण्ठ निभाय च॥
नम: कालाग्निरूपाय कृतान्ताय च वै नम:॥1॥

नमो निर्मांस देहाय दीर्घश्मश्रुजटाय च॥
नमो विशालनेत्राय शुष्कोदर भयाकृते॥2॥

नम: पुष्कलगात्राय स्थूलरोम्णेऽथ वै नम:॥
नमो दीर्घाय शुष्काय कालदंष्ट्र नमोऽस्तु ते॥3॥

नमस्ते कोटराक्षाय दुर्नरीक्ष्याय वै नम:॥
नमो घोराय रौद्राय भीषणाय कपालिने॥4॥

नमस्ते सर्वभक्षाय बलीमुख नमोऽस्तु ते॥
सूर्यपुत्र नमस्तेऽस्तु भास्करेऽभयदाय च॥5॥

अधोदृष्टे: नमस्तेऽस्तु संवर्तक नमोऽस्तु ते॥
नमो मन्दगते तुभ्यं निस्त्रिंशाय नमोऽस्तुते॥6॥

तपसा दग्ध-देहाय नित्यं योगरताय च॥
नमो नित्यं क्षुधार्ताय अतृप्ताय च वै नम:॥7॥

ज्ञानचक्षुर्नमस्तेऽस्तु कश्यपात्मज-सूनवे॥
तुष्टो ददासि वै राज्यं रुष्टो हरसि तत्क्षणात्॥8॥

देवासुरमनुष्याश्च सिद्ध-विद्याधरोरगा:॥
त्वया विलोकिता: सर्वे नाशं यान्ति समूलत:॥9॥

प्रसाद कुरु मे सौरे, वारदो भव भास्करे॥
एवं स्तुतस्तदा सौरिर्ग्रहराजो महाबल:॥10॥

Shani Stuti

नम: कृष्णाय नीलाय शितिकण्ठ निभाय च॥
नम: कालाग्निरूपाय कृतान्ताय च वै नम:॥1॥

नमो निर्मांस देहाय दीर्घश्मश्रुजटाय च॥
नमो विशालनेत्राय शुष्कोदर भयाकृते॥2॥

नम: पुष्कलगात्राय स्थूलरोम्णेऽथ वै नम:॥
नमो दीर्घाय शुष्काय कालदंष्ट्र नमोऽस्तु ते॥3॥

नमस्ते कोटराक्षाय दुर्नरीक्ष्याय वै नम:॥
नमो घोराय रौद्राय भीषणाय कपालिने॥4॥

नमस्ते सर्वभक्षाय बलीमुख नमोऽस्तु ते॥
सूर्यपुत्र नमस्तेऽस्तु भास्करेऽभयदाय च॥5॥

अधोदृष्टे: नमस्तेऽस्तु संवर्तक नमोऽस्तु ते॥
नमो मन्दगते तुभ्यं निस्त्रिंशाय नमोऽस्तुते॥6॥

तपसा दग्ध-देहाय नित्यं योगरताय च॥
नमो नित्यं क्षुधार्ताय अतृप्ताय च वै नम:॥7॥

ज्ञानचक्षुर्नमस्तेऽस्तु कश्यपात्मज-सूनवे॥
तुष्टो ददासि वै राज्यं रुष्टो हरसि तत्क्षणात्॥8॥

देवासुरमनुष्याश्च सिद्ध-विद्याधरोरगा:॥
त्वया विलोकिता: सर्वे नाशं यान्ति समूलत:॥9॥

प्रसाद कुरु मे सौरे, वारदो भव भास्करे॥
एवं स्तुतस्तदा सौरिर्ग्रहराजो महाबल:॥10॥

जब जीवन में बाधाएं बार-बार सामने आएं, सफलता कुछ दूरी पर ही ठहर जाए और मन अस्थिर हो — तब Shani Dev Ki Stuti पाठ का नियमित अभ्यास आत्मिक शांति, मानसिक संतुलन और आंतरिक बल देता है। चाहे आप शनि की साढ़े साती, ढैया या शनि की महादशा से गुजर रहे हों, Shani Stuti का पाठ शनि के कठोर स्वरूप को भी सौम्य बना सकता है।

शनि स्तुति पाठ करने की विधि

Shani Stuti In Hindi का पाठ करने से शनि देव की कृपा प्राप्त होती है और जीवन की बाधाएं धीरे-धीरे दूर होने लगती हैं। यह पाठ विशेष रूप से शनिवार के दिन करने से अधिक फलदायक होता है-

  1. स्नान: पाठ शुरू करने से पहले सुबह उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें। ध्यान रखें कि तन और मन दोनों की शुद्धता आवश्यक है।
  2. पूजा स्थान: घर के पूजा स्थल या शनि मंदिर में शांत वातावरण में दीपक जलाएं। तिल के तेल का दीपक विशेष फलदायक माना गया है।
  3. मूर्ति या फोटो: अगर घर में शनि देव का फोटो या मूर्ति है तो उसके सामने बैठें और उन्हें नीले फूल, काले तिल, और काला वस्त्र अर्पित करें।
  4. शनि मंत्र: पाठ से पहले 11 या 21 बार “ॐ शं शनैश्चराय नमः” मंत्र का जप करें। इससे मन एकाग्र होता है और शनि कृपा प्राप्त होती है।
  5. पाठ करें: अब पूरे मन से Shani Dev Stuti का पाठ करें। यदि संभव हो तो हर शनिवार को नियमित रूप से पाठ करने का संकल्प लें। पाठ के समय आवाज मध्यम हो और मन शांत।
  6. प्रसाद वितरण: पाठ के बाद शनि देव को गुड़, काले तिल, या उड़द दाल से बनी वस्तु का प्रसाद अर्पित करें। फिर सभी को प्रसाद दें।
  7. प्रार्थना करें: अंत में शनि देव से प्रार्थना करें कि वे आपके जीवन की समस्याओं को दूर करें और स्थिरता प्रदान करें।

FAQ

इसका पाठ कब करना बहुत शुभ माना जाता है ?

क्या इसका पाठ नियमित रूप से किया जा सकता है ?

इसके क्या लाभ है ?

नियमित और श्रद्धा से किए गए पाठ से शनि दोष के प्रभाव कम हो सकते हैं।

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